चित्तौड़गढ़ दुर्ग | Chittorgarh Fort

चित्तौड़गढ़ किला (Chittorgarh kila / Chittorgarh Fort) राजस्थान में स्थित एक ऐतिहासिक किला है। आइये जानते है चित्तौड़गढ़ का किला किसने बनवाया, चित्तौड़गढ़ कहा है, चित्तौड़गढ़ दुर्ग के साके, और चित्तौड़गढ़ दुर्ग का निर्माण कब हुआ जैसे और कई सवालों के जवाब।

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चित्तौड़गढ़ दुर्ग का परिचय | Introduction of Chittorgarh Fort | Chittorgarh Durg ka Parichay

चित्तौड़गढ़ दुर्ग (Chittorgarh Fort) भारत का सबसे विशाल दुर्ग है। चित्तौड़गढ़ का किला राजस्थान के ५ पहाड़ी किलों में से एक है| यह राजस्थान के चित्तौड़गढ़ में स्थित है जो भीलवाड़ा से कुछ किमी दक्षिण में है। चित्तौड़गढ़ दुर्ग (Chittorgarh Fort) राजस्थान के इतिहास में त्याग, वीरता, बलिदान, और स्वाभिमान का प्रतीक है| अपनी संस्कृति और अपने इतिहास के कारण यह दुर्ग भारत में एक विशिष्ट पहचान बनाए हुए है। यह किला मेवाड़ की प्राचीन राजधानी भी रह चुका है।

यह दुर्ग मेवाड़ मे वीरों ओर बलिदान की भावनाओ का प्रतीक है। यह किला राजपूतों के त्याग,शौर्य, बलिदान और महिलाओं के अदम्य साहस की कई कहानियों को प्रदर्शित करता है। यह इतिहास की सबसे खूनी लड़ाईयों का गवाह है। इसने तीन महान आख्यान और पराक्रम के कुछ सर्वाधिक वीरोचित कार्य देखे हैं, जो अभी भी स्थानीय गायकों द्वारा गाए जाते हैं।

चित्तौड़गढ़ का किला यूनेस्को विश्व विरासत स्थल | Chittorgarh Fort UNESCO World Heritage Site | Chittorgarh ka Kila UNESCO Vishva Virasat Sthal

चित्तौड़गढ़ का किला (Chittorgarh Fort) भारत के सबसे बड़े और ऐतिहासिक किलों में से एक हैं| उससे भी कहीं ज्यादा रोमांचक है इस किले का इतिहास। चित्तौड़ के दुर्ग को २१ जून, २०१३ में यूनेस्को (UNESCO) विश्व विरासत स्थल (World Heritage Place) घोषित किया गया। चित्तौड़ दुर्ग (Chittorgarh Fort) को राजस्थान (Rajasthan) का गौरव एवं राजस्थान के सभी दुर्गों का सिरमौर भी कहते हैं |

चित्तौड़गढ़ का प्राचीन नाम क्या है? | What is the Ancient Name of Chittorgarh? | Chittorgarh ka Prachin Naam Kya Hai?

चित्तौड़गढ़ दुर्ग (Chittorgarh Fort) राजस्थान मे क्षेत्रफल की द्रष्टि से सबसे बड़ा दुर्ग है| यह दुर्ग चित्रकूट नामक पहाड़ी पर बनाया गया है। इसलिए चित्तौड़गढ़ दुर्ग को चित्रकूट के नाम से भी जाना जाता है।

कुछ इतिहासकारो के अनुसार इस किले का निर्माण मौर्य वंशीय राजा चित्रांगद मौर्य ने सातवीं शताब्दी में करवाया था, और उसे अपने नाम पर चित्रकूट के रूप में बसाया। मेवाड़ के प्राचीन सिक्कों पर एक तरफ चित्रकूट नाम अंकित मिलता है। बाद में यह चित्तौड़ (Chittod) कहा जाने लगा।

चित्तौड़गढ़ किले का क्षेत्रफल कितना है? | चित्तौड़गढ़ किला कितना बड़ा है? | What is the Area of ​​Chittorgarh Fort? | How Big is Chittorgarh Fort? | Chittorgarh Kile ka Kshetraphal Kitna Hai? | Chittorgarh Kila Kitna Bada Hai?

चित्तौड़गढ़ का किला (Chittorgarh Fort) १८० मीटर की ऊंची पहाड़ी पर बना हुआ है| यह किला ७०० एकड़ में फैला हुआ है। चित्तौड़गढ़ दुर्ग (Chittorgarh Fort) समुन्द्र की सतह से लगभग १८५० फीट की उचाई पर है| यह दुर्ग ३ मील लंबा ओर आधा मील चौड़ा है|

चित्तौड़गढ़ किला, जो ‘वीरता का प्रतीक’ और ‘राजस्थान का गौरव’ के रूप में जाना जाता है| चित्तौड़गढ़ किले का क्षेत्रफल 2.8 वर्ग किलोमीटर (1.1 वर्ग मील) या 700 एकड़ (283 हेक्टेयर) के विशाल क्षेत्र में फैला हुआ है। चित्तौड़गढ़ किला भारत का सबसे विशाल किला है, जो कि अरावली पहाड़ियों की चोटी पर स्थित है।

चित्तौड़गढ़ का किला कौन सी नदी के किनारे स्थित है? | Chittorgarh Fort is Situated on the Bank of Which River? | Chittorgarh ka Kila Kaun se Nadi ke Kinare Sthit Hai?

चित्तौड़गढ़ का किला (Chittorgarh Fort) राजस्थान राज्य के चित्तौड़गढ़ जिले में स्थित है। यह बेड़च नदी के किनारे बसा हुआ है। यह मेवाड़ की प्राचीन राजधानी थी। भारत के वीर पुत्र महाराणा प्रताप यहां के राजा थे। इसे महाराणा प्रताप का गढ़ तथा जौहर का गढ़ भी कहा जाता है।

चित्तौड़गढ़ किले की आकृति कैसी है? | What is the Shape of Chittorgarh Fort? | Chittorgarh Kile ki Aakruti Kaisi Hai?

चित्तौड़गढ़ दुर्ग (Chittorgarh Fort) की आकृति व्हेल मछली के समान है। इस दुर्ग में खेती योग्य भूमि और जलाशय भी है| चित्तौड़गढ़ दुर्ग (Chittorgarh Fort) में रहने योग्य बस्तिया और मंदिर भी बनाये गए है। राजस्थान का यह एकमात्र दुर्ग है जिसके अन्दर कृषि कि जाती है। यह राजस्थान का सबसे बड़ा लिविंग फोर्ट/रिहायशी दुर्ग है।

इस किले के पास ही महावीर स्वामी का मंदिर है। उससे थोड़ा आगे नीलकंठ महादेव का मंदिर है, जिसके बारे में कहा जाता है कि महादेव की इस विशाल मूर्ति को भीम अपने बाजुओं में बांधे रखते थे।

चित्तौड़गढ़ किले में प्रवेश करने के लिए कितने दरवाजे है? | How Many Doors are There to Enter Chittorgarh Fort? | Chittorgarh Kile Main Pravesh Karane ke Liye Kitane Darwaje Hai?

इस विशाल किले में प्रवेश करने के लिए कुल सात दरवाजे बने हुए हैं। इन सभी को पार करके ही किले के अंदर प्रवेश किया जा सकता है। इन सातों दरवाजों के नाम हैं

१. पाडन पोल (Padan Paul),

२. भैरव पोल (Bhairav Paul),

३. हनुमान पोल (Hanuman Paul),

४. गणेश पोल (Ganesh Paul),

५. जोड़ला पोल (Jodala Paul),

६. लक्ष्मण पोल (Laxman Paul) और

७. राम पोल (Ram Paul)

पहले द्वार के बारे में कहा जाता है कि एक बार एक भीषण युद्ध में खून की नदी बहने लगी थी| जिसमें एक पाड़ा (भैंसा) बहता हुआ यहां तक आ गया था। इसी कारण इस द्वार का नाम पाडन पोल पड़ा। यहां मौजूद हर दरवाजे की एक अलग कहानी है।

कहते हैं कि प्राचीन समय में चित्तौड़गढ़ किले (Chittorgarh) में एक लाख से भी ज्यादा लोग रहते थे, जिसमें राजा-रानी से लेकर दास-दासियाँ और सैनिक शामिल थे।

चित्तौड़गढ़ किले में किये गए प्रमुख जौहर | Major Johar Committed in Chittorgarh Fort | Chittorgarh Kile Mein Kiye Gaye Pramukh Johar

इस महान किले को महिलाओं का प्रमुख जौहर स्थान भी माना जाता है। याहां पहला जौहर १३वीं सदी में राजा रतन सिंह के शासनकाल में अलाउद्दीन खिलजी के आक्रमण के समय रानी पद्मिनी के नेतृत्व में हुआ था। कहते हैं कि रानी पद्मिनी और उनके साथ १६ हजार दासियों ने विजय स्तंभ के पास ही जीवित अग्नि समाधि ले ली थी। 

इसके अलावा १६वीं सदी में यहां रानी कर्णावती ने १३००० दासियों के साथ जौहर किया था। उसके कुछ सालों के बाद रानी फूल कंवर ने हजारों स्त्रियों के साथ जौहर किया था। ये भारतीय इतिहास की प्रमुख घटनाओं में से एक हैं।

चित्तौड़गढ़ दुर्ग के साके | Sake of Chittorgarh Fort | Chittorgarh Durg ke Sake

चित्तौड़गढ़ दुर्ग (Chittorgarh Fort) में कुल ३ साके हुए।

पहला साका १३०३ में हुआ।

दूसरा साका १५३५ में हुआ।

तीसरा साका १५६७-१५६८ में हुआ।

चित्तौड़गढ़ का पहला साका | First Saka of Chittorgarh | Chittorgarh ka Pahala Saka

चित्तौड़ का प्रथम साका १३०३ में हुआ जब दिल्ली के सुल्तान अलाउद्दीन खिलजी ने रणथम्भौर विजय के बाद चित्तौड़ को आक्रांत किया। पहले साके के दौरान चित्तौड़ के राजा, रावल रतन सिंह थे| और उनकी पत्नी रानी पद्मिनी थी।

अलाउद्दीन खिलजी की साम्राज्यवादी महत्वाकांक्षा थी| मलिक मुहम्मद जायसी द्वारा रचित पद्मावत मे कहा गया था की, रावल रतन सिंह जी की धर्मपत्नी महारानी मां पद्मिनी को पाने की लालसा इस हमले का कारण बनी। 

अलाउद्दीन खिलजी २८ जनवरी १३०३ को दिल्ली से निकला तथा, २६ अगस्त १३०३ को उसने चित्तौड़ के दुर्ग पर अधिकार कर लिया। अपने सम्मान, स्वाभिमान और सतीत्व की रक्षा करने के लिए रानी पद्मिनी सहित अन्य राजपूत वीरांगनाओं ने स्वयं को अग्नि कुंड को समर्पित कर दिया।

पद्मिनी ने अपने मर्यादा और कुल की रक्षा में यह जोहर किया इसमें कुल १६०० रानियों ने जौहर किया।

चित्तौड़गढ़ का दूसरा साका | Second Saka of Chittorgarh | Chittorgarh ka Dusara Saka

दूसरा साका ८ मार्च १५३५ को हुआ। दूसरे साके के समय चित्तौड़ के शासक महाराणा विक्रमादित्य थे। विक्रमादित्य की माता का नाम कर्मावती/कर्णावती था।

महाराणा सांगा की मृत्यु के बाद उनके पुत्र महाराणा विक्रमादित्य मेवाड़ के शासक बने। उस वक़्त महाराणा विक्रमादित्य अल्पवयस्क थे|

ऐसे समय में १५३५ में गुजरात के बादशाह बहादुर शाह ने चित्तौड़ पर आक्रमण किया। महाराणा विक्रमादित्य और उदयसिंह दोनों अल्पवयस्क होने के कारण रानी कर्णावती ने अपने दोनों पुत्रों की सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए उन्हें बूंदी में इनके नाना के यहां भेज दिया।

जब बहादुर शाह ने चित्तौड़गढ़ दुर्ग (Chittorgarh Fort) पर आक्रमण किया तो रानी कर्णावती ने चित्तौड़गढ़ दुर्ग (Chittorgarh Fort) की सुरक्षा करने का दायित्व प्रतापगढ़ के ठाकुर बाघ सिंह को सौंप दिया।

इस युद्ध में भी राजपूत योद्धाओं ने केसरिया किया और सभी वीरांगनाओं ने रानी कर्णावती के नेतृत्व में जौहर किया।

चित्तौड़गढ़ का तीसरा साका | Third Saka of Chittorgarh | Chittorgarh ka Tisara Saka

चितौड़गढ़ का तीसरा साका जयमल और फत्ता सिसोदिया के पराक्रम और बलिदान के लिए प्रसिद्ध है। इस समय मेवाड़ के शासक महाराणा उदयसिंह थे। चित्तौड़गढ़ का तीसरा और अंतिम साका २५ फरवरी १५६८ को हुआ।

अकबर के द्वारा चित्तौड़गढ़ पर चढ़ाई करने की सूचना मिलते से ही चित्तौड़ के सिसोदिया सेनानायको ने महाराणा उदय सिंह को गोगुंदा जाने की सलाह दी| महाराणा उदय सिंह ने गोगुंदा के जाने से पहले चित्तौड़गढ़ के रक्षा की जिम्मेदारी जयमल राठौड़ और पत्ता सिसोदिया को सौंप दी। जब युद्ध की घड़ी आई तो जयमल राठौड़ पत्ता सिसोदिया और कल्ला राठौड़ यह तीनों अकबर की सेना पर काल बनकर टूट पड़े।

चित्तौड़गढ़ के इस तीसरे साके में फत्ता सिसोदिया की पत्नी फूलकँवर एवम महाबली जयमल मेड़तिया जी की धर्मपत्नी के नेतृत्व में ७०० रानियों ने जौहर किया। और राजपूत योद्धाओं ने केसरिया किया।

चित्तौड़गढ़ किले का निर्माण | चित्तौड़गढ़ का किला किसने और कब बनाया था? | Construction of Chittorgarh Fort | Chittorgarh Kile ka Nirman | Who Built the Fort of Chittorgarh and When? | Chittorgarh ka Kila Kisane aur Kab Banaya Tha?

वैसे तो इस किले का निर्माण किसने करवाया था और कब, उसके बारे में सटीक जानकारी नहीं है| लेकिन इतिहासकारों के अनुसार इस किले का निर्माण मौर्य वंशीय राजा चित्रांगद मौर्य ने सातवीं शताब्दी में करवाया था, और इसे अपने नाम पर चित्रकूट के रूप में बसाया। मेवाड़ के प्राचीन सिक्कों पर एक तरफ चित्रकूट नाम अंकित मिलता है। बाद में यह चित्तौड़ कहा जाने लगा।

इस किले के निर्माण को लेकर एक कहानी/दंतकथा यह भी है कि इसे महाभारत काल में बनवाया गया था। किवदंती के अनुसार, एक बार भीम जब संपत्ति की खोज में निकले थे, तो उन्हें रास्ते में एक योगी मिले। भीम ने उनसे चमत्कारी पारस पत्थर की मांग की, जिसपर योगी ने कहा कि वो पारस पत्थर दे तो देंगे, लेकिन उन्हें पहाड़ी पर रातों-रात एक किले का निर्माण करना पड़ेगा।

भीम इसके लिए मान गए और अपने भाईयों के साथ दुर्ग के निर्माण में लग गए। उनका काम लगभग समाप्त होने ही वाला था, सिर्फ किले के दक्षिणी हिस्से का काम थोड़ा सा बचा हुआ था। इधर योगी किले का तेजी से निर्माण होता देख चिंता में पड़ गए, क्योंकि उसके बाद उन्हें पारस पत्थर भीम को देना पड़ता।

इससे बचने के लिए उन्होंने एक उपाय सोचा और अपने साथ रह रहे कुकड़ेश्वर नाम के यति से मुर्गे की तरह बांग देने को कहा, जिससे भीम समझें कि सुबह हो गई है। कुकड़ेश्वर ने भी ऐसा ही किया। अब मुर्गे की बांग सुनकर भीम को गुस्सा आ गया और उन्होंने जमीन पर एक जोर की लात मारी, जिससे वहां पर एक बड़ा सा गड्ढा बन गया। इस गड्ढे को आज लोग लत-तालाब के नाम से जानते हैं।

वह स्थान जहाँ भीम के घुटने ने विश्राम किया, भीम-घोड़ी कहलाता है। जिस तालाब पर यति ने मुर्गे की बांग की थी, वह कुकड़ेश्वर कहलाता है।

चित्तौड़गढ़ किले का इतिहास | History of Chittorgarh Fort | Chittorgarh Kile ka Itihas

चित्तौड़गढ़ के इस किले पर मौर्य वंश के अंतिम शासक मानमोरी से आठवीं शताब्दी में गुहिल वंश के संस्थापक बप्पा रावल ने इस पर अधिकार कर लिया| फिर मालवा के परमार राजा मुंज ने इसे गुहिल वंशीय से छीनकर अपने राज्य में मिला लिया।

इस प्रकार ९ वी -१० वीं शताब्दी में इस पर परमारों का आधिपत्य रहा। सन् ११३३ में गुजरात के सोलंकी राजा जयसिंह (सिद्धराज) ने यशोवर्मन को हराकर परमारों से मालवा छीन लिया, जिसके कारण चित्तौड़गढ़ का दुर्ग भी सोलंकियों के अधिकार में आ गया।

तदनंतर जयसिंह के उत्तराधिकारी कुमारपाल के भतीजे अजयपाल से वैवाहिक सम्बन्ध बना कर चित्तौड़गढ़ के राजा सामंत सिंह ने सन् ११७४ के आसपास पुनः गुहिल वंशियों का आधिपत्य स्थापित कर दिया।

इन्ही राजा सामंत सिंह का पृथ्वीराज चौहान की बहन पृथ्वी बाई से विवाह हुआ था| तराइन के द्वितीय युद्ध में सामंत सिंह की मृत्यु हो गयी |

सन् १२१३ से १२५२ तक नागदा को इल्तुतमिश के द्वारा तहस- नहस कर देने पर के बाद, यहां राजा जैत्र सिंह ने अपनी राजधानी चित्तौड़ से शासन चलाया।

सन् १३०३ में यहाँ के रावल रतन सिंह की अलाउद्दीन खिलजी से लड़ाई हुई। यह लड़ाई चित्तौड़ का प्रथम शाका के नाम से प्रसिद्ध हुई। इस लड़ाई में अलाउद्दीन खिलजी की विजय हुई, और उसने अपने पुत्र खिज्र खाँ को यह राज्य सौंप दिया| खिज्र खाँ ने वापसी पर चित्तौड़ का राजकाज कान्हा देव के भाई मालदेव को सौंप दिया।

१५६८ से १६१५ ई तक यह किले मुगलों के अधीन रहा| १६१५ ई की मेवाड़ मुगल संधि के परिणामस्वरूप यह पुनः गुहिल वंश को प्राप्त हुआ| तब से १९४७ ई तक इस पर मेवाड़ के गुहिल सिसोदिया शासकों का ही अधिकार रहा|

चित्तौड़गढ़ किले के युद्ध | चित्तौड़गढ़ दुर्ग के युद्ध | Chittorgarh Kile ke yudh | Chittorgarh Durg ke yudh

जैसा कि पहले वर्णन किया गया है, चित्तौड़गढ़ के इतिहास में तीन मुख्य युद्ध हुए, जो की चित्तौड़गढ़ दुर्ग के साके या चित्तौड़ के साके के नाम से प्रसिद्ध युद्ध  हैं| चित्तौड़गढ़ किले के इन प्रमुख युद्धों के बारे में ऊपर जानकारी दी गई है| लेकिन इतिहास के पन्नों और किंवदंतियों में कई अन्य महत्वपूर्ण लड़ाइयों का उल्लेख मिलता है। आइए कुछ उदाहरणों पर नजर डालें:

प्रारंभिक युद्ध:

  • ४ थी – ५ वीं शताब्दी: ऐसा माना जाता है कि मौर्य सम्राट चंद्रगुप्त द्वितीय ने स्थानीय शासकों से चित्तौड़गढ़ को जीत लिया था।
  • ८ वीं शताब्दी: अरब कमांडर मुहम्मद बिन कासिम ने अपने भारतीय अभियान के दौरान कुछ समय के लिए किले पर कब्जा कर लिया था।
  • १० वीं- ११ वीं शताब्दी: परमार राजा भोज ने चित्तौड़गढ़ को दो बार जीता, एक बार १०२० में और फिर १०३२ में।

मध्यकालीन युद्ध:

  • ११६०: मुहम्मद गोरी ने घेराबंदी के बाद किले पर कब्जा कर लिया, जिसने इस क्षेत्र में मुस्लिम प्रभाव की शुरुआत को चिह्नित किया।
  • १२०३ : पृथ्वीराज चौहान ने ग़ुरीदों से चित्तौड़गढ़ को पुनः प्राप्त किया।
  • १३०३ : दूसरे “सका” (सामूहिक आत्मदाह) के बाद, हाड़ा राजपूतों ने अलाउद्दीन खिलजी से किले पर फिर से नियंत्रण कर लिया।

बाद के युद्ध:

  • १५३५ : गुजरात के बहादुर शाह ने राणा विक्रमादित्य से चित्तौड़गढ़ जीत लिया।
  • १५४० : राणा उदय सिंह ने बहादुर शाह से किले को वापस ले लिया।
  • १६१५ : मुगल सम्राट जहांगीर ने थोड़े समय की घेराबंदी के बाद किले पर कब्जा कर लिया।
  • १६८० : राणा राज सिंह प्रथम के नेतृत्व में मराठा सेनाओं ने मुगलों से किले को छीन लिया।

चित्तौड़गढ़ दुर्ग के दर्शनीय स्थल | Chittorgarh Fort Attractions | Chittorgarh Durg ke Darshaniy Sthal

Chittorgarh Fort Attractions

विजय स्तंभ | Victory pillar | Vijay Sthamb

नौखंड वाला यह स्थान १२० फीट ऊंचा है| इसके यह नो खंड नौ निधियों के प्रतीक है| इसका निर्माण महाराणा कुम्भा ने मालवा के सुल्तान महमूद खिलजी पर अपनी विजय के उपलक्ष्य में करवाया था| इसके सभी मंजिलों पर विभिन्न देवी देवताओं के चित्र उत्कीर्ण है| जो रामायण और महाभारत से संबंधित है| इसे हिंदू देवी-देवताओं का अजायबघर कहा जाता है|

पद्मिनी महल | Padmini Mahal | Padmini Mahal

चित्तौड़ दुर्ग में राणा रतन सिंह की प्रसिद्ध सुंदरी रानी पद्मिनी का महल एक सुंदर जलाशय के मध्य स्थित है| चौगान के निकट ही एक झील के किनारे रावल रतन सिंह की रानी पद्मिनी के महल बने हुए हैं। एक छोटा महल पानी के बीच में बना है, जो जनाना महल कहलाता है| व किनारे के महल मरदाने महल कहलाते हैं।

मर्दाना महल मे एक कमरे में एक विशाल दर्पण इस तरह से लगा है कि, यहाँ से झील के मध्य बने जनाना महल की सीढ़ियों पर खड़े किसी भी व्यक्ति का स्पष्ट प्रतिबिंब दर्पण में नजर आता है| परंतु पीछे मुड़कर देखने पर सीढ़ी पर खड़े व्यक्ति को नहीं देखा जा सकता| अलाउद्दीन खिलजी ने यहीं खड़े होकर रानी पद्मिनी का प्रतिबिंब देखा था।

रावत बाघसिंह का स्मारक | Monument to Rawat Bagh Singh | Ravat Baghasingh ka Smarak

दुर्ग के प्रथम द्वार पाडन पोल के बाहर के चबूतरे पर ही रावत बाघसिंह का स्मारक बना हुआ है। महाराणा विक्रमादित्य के राज्य काल में, सन् १५३५ (वि. सं. १५९१) में यहाँ की व्यवस्था से प्रेरित हो गुजरात के सुल्तान बहादुर शाह ने चित्तौड़ पर आक्रमण कर दिया। उस समय बालक होने के कारण हाड़ी रानी कर्मवती ने विक्रमादित्य व उदयसिंह को बूंदी भेजकर मेवाड़ के सरदारों को किले की रक्षा का कार्यभार सौंप दिया।

प्रतापगढ़ के रावत बाघसिंह ने मेवाड़ का राज्य चिन्ह धारण कर महाराणा विक्रमादित्य का प्रतिनिधित्व किया तथा लड़ता हुआ इसी दरवाजे के पास वीरगति को प्राप्त हुआ। उसी वीर की स्मृति में यह स्मारक बनाया गया है।

श्रृंगार चौधरी | Shringar Choudhary | Shringar Chaudhari

यह मूल रूप से शांतिनाथ का जैन मंदिर है| यहाँ से प्राप्त शिलालेखों से यह ज्ञात होता है कि भगवान शांतिनाथ की चौमुखी प्रतिमा की प्रतिष्ठा खगतरगच्छ के आचार्य जिनसेन सूरी ने की थी|

परंतु मुगलों के आक्रमण से यह मूर्ति विध्वंस कर दी गई। अब सिर्फ एक वेदी बची है, जिसे लोग चौरी बताते हैं। मंदिरों की बाह्य दीवारों पर देवी-देवताओं व नृत्य मुद्राओं की अनेकों मूर्तियाँ कलाकारों के पत्थर पर उत्कीर्ण कलाकारी का परिचायक है|

कालिका माता का मंदिर | Kalika Mata Temple | Kalika Mata ka Mandir

चित्तौड़गढ़ दुर्ग (Chittorgarh Fort) में राजस्थान का प्राचीनतम सूर्य मंदिर है, जो वर्तमान में कालिका माता का मंदिर है| मूल रूप से यह मंदिर एक सूर्य मंदिर था। निज मंदिर के द्वार तथा गर्भगृह के बाहरी पार्श्व के ताखों में स्थापित सूर्य की मूर्तियां इसका प्रमाण है|

बरसों तक यह मंदिर सूना रहा। उसके बाद इसमें कालिका की मूर्ति स्थापित की गई। मंदिर के स्तंभों, छतों तथा अन्तः द्वार पर खुदाई का काम दर्शनीय है। महाराणा सज्जन सिंह ने इस मंदिर का जीर्णोद्धार कराया था। चूंकि इस मंदिर में मूर्ति प्रतिष्ठा वैशाख शुक्ल अष्टमी को हुई थी, अतः प्रति वर्ष यहां एक विशाल मेला लगता है।

जयमल व कल्ला की छतरियां | Jaimal and Kalla Umbrellas | Jayamal aur Kalla ki Chhatriyan

भैरव पोल के पास ही दाहिनी ओर दो छतरियाँ बनी हुई है। प्रथम चार स्तंभों वाली छत्री प्रसिद्ध राठौड़ जयमल (जयमल बदनोर के राजा) के कुटुंबी कल्ला की है| तथा दूसरी, छः स्तम्भों वाली छत्री स्वयं जैमल की है, जिसके पास ही दोनों राठौड़ मारे गये थे।

सन् १५६७ (वि. सं. १६२४) में जब बादशाह अकबर ने चित्तौड़गढ़ पर चढ़ाई की, उस समय सिसोदिया पत्ता तथा मेड़तिया राठौड़ जैमल, दोनों, महाराणा उदयसिंह सिसोदिया की अनुपस्थिति में दुर्ग के रक्षक नियुक्त हुए थे।

तीसरे साके की लड़ाई के दिनों में एक रात्रि जब जैमल एक टूटी दीवार की मरम्मत करा रहे थे, उस समय अकबर की गोली से उनकी एक टांग बेकार हो गयी। लंगड़े जैमल को कल्ला ने अपने कंधों पर बिठाकर दूसरे दिन के युद्ध में उतारा था। उन दोनों ने मिलकर शत्रु सेना पर कहर ढा दिया।

अंत में दोनों भिन्न-भिन्न स्थानों पर वीरगति को प्राप्त हो गये। ये छतरियां उन्हीं की गौरव गाथाओं की याद दिलाती हैं।

भामाशाह की हवेली | Bhamashah Ki Haveli | Bhamashah Ki Haveli

यह इमारत एक समय मेवाड़ की आन-बान के रक्षक महाराणा प्रताप को मातृभूमि की रक्षा के लिए अपना सब कुछ दान करने वाले प्रसिद्ध दानवीर दीवान भामाशाह की याद दिलाने वाली है।

कहा जाता है कि हल्दीघाटी के युद्ध के पश्चात् महाराणा प्रताप का राजकोष खाली हो गया था, व मुगलों से युद्ध के लिए बहुत बड़ी धनराशि की आवश्यकता थी। ऐसे कठिन समय में प्रधानमंत्री भामाशाह ने अपनी पीढ़ियों से संचित धन राशि महाराणा को भेंट कर दी।

कई इतिहासकारों का मत है कि भामाशाह द्वारा दी गई राशि मालवा को लूट कर लाई गई थी, जिसे भामाशाह ने सुरक्षा की दृष्टि से कहीं गाड़ रखी थी।

पत्ता का स्मारक | Patta Monument | Patta ka Smarak

राम पोल में प्रवेश करते ही सामने की तरफ लगभग ५० कदम की दूरी पर स्थित चबूतरे पर सिसोदिया पत्ता के स्मारक का पत्थर है। आमेर के रावतों के पूर्वज पत्ता सन् १५६८ में अकबर की सेना से लड़ते हुए इसी स्थान पर वीरगति को प्राप्त हुए थे।

कुकड़ेश्वर का कुंड तथा कुकड़ेश्वर का मंदिर | Kukdeshwar’s Kund and Kukdeshwar’s Temple | Kukadeshwar ka Kund Ya Kukadeshwar ka Mandir

राम पोल से प्रवेश करने के बाद सड़क उत्तर की ओर मुड़ती है। उससे थोड़ी ही दूरी पर दाहिनी ओर कुकड़ेश्वर का कुंड स्थित है, जिसके ऊपर के भाग में कुकड़ेश्वर का मंदिर बना हुआ है। किंवदंतियों के अनुसार ये दोनों रचनाएं महाभारत कालीन है तथा पाण्डव पुत्र भीम से जुड़ी हैं।

चित्तौड़गढ़ दुर्ग के कुछ विशेष आकर्षण | Some Special Attractions of Chittorgarh Fort | Chittorgarh Durg ke Kuch Vishesh Aakarshan

विजय स्तम्भ | Victory Pillar | Vijay Stambh

विजय स्तम्भ (Vijay Stambh) का निर्माता महाराणा कुम्भा ने सन् १४४० से १४४८ के बीच करवाया था।

विजय स्तम्भ (Vijay Stambh) के वास्तुकार जैता, नापा, पोमा, पूँजा थे।

विजय स्तम्भ (Vijay Stambh) की ऊँचाई १२० फिट है।

विजय स्तम्भ (Vijay Stambh) कुल ९ मंजिला इमारत है।

विजय स्तम्भ में कुल १५७ सिढ़िया स्थित है।

फर्ग्युसन के द्वारा विजय स्तम्भ की तुलना रोम के टार्जन से की गई है।

विजय स्तम्भ (Vijay Stambh) का निर्माण महाराणा कुम्भा ने सारंगपुर/मालवा विजय के उपलक्ष्य में करवाया था।

सारंगपुर/मालवा युद्ध १४३७ ई. मे महाराणा कुम्भा और महमूद खिलजी के मध्य हुआ था जिसमें महाराणा कुम्भा विजय हुई।

राजस्थान पुलिस व माध्यमिक शिक्षा बोर्ड का प्रतीक चिन्ह विजय स्तम्भ से लिया गया है।

भारत सरकार ने १५ अगस्त १९४९ को विजय स्तम्भ के नाम पर १ रुपये की डाक टिकट जारी कर रखी है।

विजय स्तम्भ के उपनाम

हिन्दू देवी देवताओं का अजायबघर

भारतीय मूर्तिकला का विश्वकोश

राजस्थानी मूर्तिकला का अनमोल खजाना

विष्णु ध्वज (विजय स्तम्भ पर भगवान विष्णु की मूर्ति होने के कारण)

विष्णु स्तम्भ

किर्ति स्तम्भ | Kirti Pillar | Kirti Stambh

निर्माण- सन् ११७० में जैन धर्म के व्यापारी बघेरवाल जीजा जैन ने करवाया

ऊँचाई- ७५ फिट

मंजिला- ७

समर्पित- यह स्तम्भ भगवान आदिनाथ को समर्पित है

जैन कीर्ति स्तम्भ शिलालेख लिखने की शुरुआत कवि अत्री ने की थी लेकिन इसको पूरा उनके पुत्र महेश ने किया था

चित्तौड़गढ़ दुर्ग के प्रसिद्ध मंदिर | Famous Temples of Chittorgarh Fort | Chittorgarh Durg ke Prasiddh Mandir

मीरा बाई का मंदिर (Mira Bai Mandir)

कुंभ स्वामी मंदिर (Kumbh Swami Mandir)

सतबीस देवरी मंदिर (२७ छोटे-छोटे जैन मंदिरों का समूह) (Satbis Devari Mandir)

तुळजा माता मंदिर (Tulja Mata Mandir)- यह मंदिर पृथ्वीराज सिसोदिया के बेटे बनवीर ने बनवाया था तथा तुळजा माता मराठा शासक शिवाजी की आराध्य देवी मानी जाती है

कालिका माता मंदिर (Kalika Mata Mandir)- इस मंदिर का निर्माण मौर्य वंश के राजा मानमौरी ने करवाया था तथा यह मंदिर राजस्थान में भगवान सूर्य का सबसे प्राचीनतम मंदिर है

श्रृंगार चवरी (Shrungar Chauri)- यह मंदिर जैन धर्म के १६ वें तीर्थंकर शांतिनाथ का मंदिर है जिसका निर्माण वेलका ने करवाया था

समिद्धेश्वर का मंदिर (Samiddheshwar Mandir)- यह मंदिर राजा भोज के द्वारा बनवाया गया था जिसका जीर्णोद्धार (पुनः निर्माण) महाराणा मोकल ने करवाया था इसलिए इस मंदिर को मोकल जी का मंदिर भी कहते है

चित्तौड़गढ़ दुर्ग की प्रसिद्ध छतरियां | Famous Chhatris of Chittorgarh Fort | Chittorgarh Durg ki Prasiddh Chhatriyan

रैदास की छतरी (रैदास/रविदास मीराबाई के गुरु) (Raidas ki Chatari)

कल्ला जी की छतरी (Kallaji ki Chhatri)

जयमल व फत्ता की छतरी (Jaymal-Fatta ki chhatri)

चित्तौड़गढ़ दुर्ग की प्रसिद्ध हवेलियां | Famous Havelis of Chittorgarh Fort | Chittorgarh Durg ki Prasiddh Haveliyan

जयमल व फत्ता की हवेली (Jaimal and Fatta Haweli)

सलूम्बर कि हवेली (Salumbr ki Haweli)

भामाशाह की हवेली (Bhamshah ki Haweli)

चित्तौड़गढ़ दुर्ग के प्रसिद्ध महल | Famous Palaces of Chittorgarh Fort | Chittorgarh Durg ke Prasiddh Mahal

गोरा व बादल महल (Gora-Badal Mahal)

फतह प्रकाश महल (Fatah prakash Mahal)

कुम्भा महल (Kumbha Mahal)

कुम्भा महल को ९ कोठा महल तथा नवलखा महल के नाम से जाना जाता है।

चित्तौड़गढ़ दुर्ग के कुम्भा महल में राणा सांगा के पुत्र उदयसिंह का जन्म हुआ था जिसको पृथ्वीराज सिसोदिया का पुत्र बनवीर जान से मारना चाहता था।

उदयसिंह की धाय माँ श्रीमती पन्ना ने बनवीर से उदयसिंह को बचाते हुए अपने पुत्र चंदन का बलिदान दिया था इसलिए राजस्थान में पन्ना धाय स्वामी भक्ति के लिए प्रसिद्ध है।

पृथ्वीराज सिसोदिया को उड़णिया राजकुमार कहते है।

चित्तौड़गढ़ किले का स्थान | Chittorgarh Kile ka Location | Location of Chittorgarh Fort

FAQ (Frequently Asked Question | अक्सर पूछे जाने वाले सवाल)

चित्तौड़गढ़ में क्या प्रसिद्ध है?

विजय स्तम्भ, कीर्ति स्तम्भ, राणा कुंभ पैलेस, मीरा मंदिर और अन्य कई संरचनाएं भी किले के अंदर स्थित हैं।

चित्तौड़गढ़ किले का राजा कौन था?

चित्तौड़गढ़ किले पर मेवाड़ साम्राज्य के कई राजपूत राजाओं राज्य किया जिनेम बप्पा रावल और महाराणा प्रताप नाम प्रमुख है।

चित्तौड़गढ़ कौन सा जिला में पड़ता है?

चित्तौड़गढ़ का किला चित्तौड़ जिले में स्थित है।

चित्तौड़गढ़ को किसने नष्ट किया?

अकबर ने चित्तौड़गढ़ की घेराबंदी कर १५६८ में चित्तौड़गढ़ के किले पर सफलतापूर्वक कब्जा कर लिया| इस दौरान इस किले के काफी हिस्से नष्ट हो गए थे।

चित्तौड़गढ़ का दूसरा नाम क्या है?

चित्तौड़गढ़ का दूसरा नाम चित्रकूट है।

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