चेतक: महाराणा प्रताप का वीर घोड़ा | Chetak: Maharana Pratap’s Brave Horse

महाराणा प्रताप का घोडा चेतक (Maharana Pratap Horse), आइये जानते है महाराणा प्रताप और चेतक की कहानी| चेतक का इतिहास (History of Chetak) और चेतक की मृत्यु के बारे में| चेतक (Chetak Horse) एक ऐसा नाम जो भारतीय इतिहास में वीरता और वफादारी का पर्याय बन गया है। 

चेतक का परिचय | Introduction of Chetak | Chetak ka Parichay

भारतीय इतिहास वीरता और साहस के अनेक किस्सों से भरा हुआ है। इन किस्सों में युद्धों की गर्जना, राजाओं का पराक्रम और वीर सैनिकों की बहादुरी के साथ-साथ एक और महत्वपूर्ण पात्र भी उभर कर सामने आता है – वफादार घोड़ों का। मेवाड़ के महाराणा प्रताप की कहानी भी ऐसी ही एक वीर गाथा है, जिसमें उनके घोड़े चेतक का नाम स्वर्ण अक्षरों में लिखा गया है।

चेतक काठियावाड़ी नस्ल का एक शक्तिशाली घोड़ा था। यह नस्ल अपनी गति, तेज और वफादारी के लिए जानी जाती है। चेतक भी उन्हीं गुणों से संपन्न था। बचपन से ही कठोर प्रशिक्षण प्राप्त करने के कारण चेतक न केवल बलवान था बल्कि युद्ध कौशल में भी निपुण था। महाराणा प्रताप और चेतक की जोड़ी युद्ध के मैदान में एकाएक बन जाती थी। आइए, अब हम आगे बढ़ते हैं और इस वीर घोड़े की वीरता और महाराणा प्रताप के साथ उसके अटूट बंधन के बारे में विस्तार से जानते हैं।

महाराणा प्रताप को चेतक कैसे मिला? | How did Maharana Pratap Get Chetak? | Maharana Pratap ko Chetak Kaise Mila?

चेतक की उत्पत्ति गुजरात के काठियावाड़ी क्षेत्र में हुई थी, जो अपनी उत्कृष्ट नस्ल के घोड़ों के लिए जाना जाता है। महाराणा प्रताप का यह प्रसिद्ध घोडा ईरानी मूल का था। चेतक घोड़ा गुजरात के चोटीला के पास भीमोरा का था। भीमोरा के काठी राजपूत के एक चारण व्यापारी ने एक दिन तीन घोड़ों – चेतक, त्राटक और अटक को लेकर मेवाड़ पहुंचा। महाराणा प्रताप घोड़ों के बड़े शौकीन थे और उन्होंने इन तीनों घोड़ों का परीक्षण करने का फैसला किया।

इतिहासकार यह बताते हैं कि चारण व्यापारी काठीयावाडी नस्ल के 3 अश्व लेकर आया था। जिनके नाम थे, चेतक,त्राटक और अटक| इनमे से त्राटक परीक्षण करते समय मारा गया, अटक को महाराणा प्रताप के छोटे भाई शक्ति सिंह ने रख लिया और चेतक को महाराणा प्रताप ने खुद के लिए रखा था| 

परीक्षण के दौरान चेतक की असाधारण बुद्धिमत्ता, गति और शक्ति उजागर हुई। चेतक किसी भी बाधा को आसानी से पार कर जाता था और युद्ध के मैदान में एक अजेय योद्धा की तरह लड़ता था। महाराणा प्रताप चेतक की क्षमताओं से इतने प्रभावित हुए कि उन्होंने उसे अपना प्रिय घोड़ा बना लिया।

कहा जाता है कि चेतक घोड़े को एक व्यापारी ने जंगल से पकड़ा था। चेतक घोड़ा पहले काफी उदंड स्वभाव का था। उसे उसका मालिक ही कंट्रोल कर सकता था। चेतक घोड़े को किसी प्रकार की रस्सी नहीं बांधी जाती थी। 

चेतक का प्रशिक्षण | Chetak’s Training | Chetak ka Prashikshan

महाराणा प्रताप के प्रिय घोड़े चेतक की अद्वितीय योग्यता और वफादारी उसकी कठोर प्रशिक्षण प्रक्रिया और महाराणा प्रताप की तीक्ष्ण निगाहों का परिणाम थी। चेतक का प्रशिक्षण उसके बचपन से ही शुरू हुआ था, जिसमें उसे कुशल घुड़सवारों के मार्गदर्शन में घुड़सवारी, युद्ध कौशल और विभिन्न परिस्थितियों में शांत रहने का अभ्यास कराया गया। उसकी शारीरिक क्षमताओं को उभारने के लिए नियमित अभ्यास किया जाता था, जिससे उसकी गति, शक्ति और सहनशक्ति में वृद्धि हो सके।

चेतक की बुद्धिमत्ता भी विकसित की गई थी, जिससे वह अपने स्वामी की आज्ञाओं का पालन और युद्ध के मैदान में संकेतों को समझ सके। महाराणा प्रताप ने चेतक का चयन बहुत ही सावधानी से किया, उन्हें एक ऐसा घोड़ा चाहिए था जो शक्तिशाली, गतिशील, बुद्धिमान और वफादार हो। चेतक इन सभी गुणों में खरा उतरा और महाराणा प्रताप का आदर्श साथी साबित हुआ। चेतक का प्रशिक्षण और चयन उस समय की उत्कृष्ट घुड़सवारी और युद्ध कौशल का प्रतीक है, जिसने उसे भारतीय इतिहास में अमर बना दिया।

चेतक का चयन | Chetak’s Selection | Chetak ka Chayan

चेतक, त्राटक और अटक तीनो घोड़ो को विशेष प्रशिक्षण देकर तैयार किया गया था। जब इन सभी घोड़ों को घोड़े के व्यापारी ने पूरी तरह से तैयार कर लिया, तो वह तीनों घोड़ों को लेकर महाराणा प्रताप के पास पहुंचा। 

कहानी के अनुसार व्यापारी ने महाराणा से तीनो घोड़े खरीद लेने का आग्रह किया। लेकिन एक अनजान व्यापारी होने के नाते महाराणा ने उससे घोड़े खरीदने के लिए मना कर दिया।

व्यापारी की बहुत विनती करने के बाद, तथा घोड़ों को उच्च नस्ल तथा युद्ध की विभिन्न रणनीतियों से पारंगत बताया तब महाराणा प्रताप ने कहा कि मुझे इन घोड़ों के अंदर क्या है? उसका सबूत चाहिए। 

इसके पश्चात् अटक को परीक्षण के लिए चुना जाता है| अटक इन तीन घोड़ों में सबसे अधिक शक्तिशाली तथा रण कौशल में पारंगत घोड़ा था| अटक ने परीक्षण को अपने अर्जित ज्ञान से सफलतापूर्वक पास भी कर लिया| परंतु इन परीक्षण में अटक बुरी तरीके से घायल भी हो चुका था| 

क्योंकि परीक्षण में हर ऐसी परिस्थिति बनाई जाती है जो युद्ध में तथा संकटकाल में बनती है| परंतु अटक इन सभी परिस्थितियों पर विजय पाने में सफल रहा लेकिन अत्यधिक घायल होने के कारण इलाज के दौरान अटक ने अपने प्राण त्याग दिए| 

इसके बाद त्राटक तथा चेतक इन दोनों घोड़ों ने भी परीक्षण मे सफलता प्राप्त की| महाराणा प्रताप ने त्राटक को अपने छोटे भाई शक्ति सिंह को दे दिया और चेतक को अपने पास रख लिया| 

चेतक की क्या कीमत थी? | चेतक के लिए क्या कीमत दी गयी थी? | What Was the Cost of Chetak? | Chetak ki Kya Kimat Thi? | What Was the Price Paid for the Chetak? | Chetak ke Liye Kya Kimat di Gayi Thi?

महाराणा प्रताप के प्रिय घोड़े चेतक की वास्तविक कीमत का आकलन करना चुनौतीपूर्ण है, क्योंकि इसके बारे में ठोस दस्तावेज उपलब्ध नहीं हैं। फिर भी, उस समय के घोड़ों की कीमत और चेतक के अद्वितीय गुणों को देखते हुए, यह स्पष्ट है कि वह अत्यधिक मूल्यवान था।

उस दौर में घोड़ों की कीमत उनकी नस्ल, प्रशिक्षण और युद्ध कौशल पर निर्भर करती थी। एक उच्च नस्ल का, युद्ध में सक्षम घोड़ा हजारों रुपयों का हो सकता था। चेतक एक काठियावाड़ी घोड़ा था, जो अपनी उत्कृष्ट नस्ल के लिए प्रसिद्ध था। उसे विशेष रूप से युद्ध कौशल और विभिन्न परिस्थितियों में शांत रहने का प्रशिक्षण मिला था।

कहानी है कि महाराणा प्रताप ने चेतक के बदले चारण व्यापारियों को गढ़वाड़ा और भानोल नामक दो गाँव भेंट किए थे। कुछ इतिहासकार चेतक की कीमत १०,००० से २०,००० रुपये के बीच बताते हैं, हालांकि यह केवल एक अनुमान है।

चेतक की असली कीमत उसकी वीरता, शांत स्वभाव और महाराणा प्रताप के प्रति उसकी वफादारी में निहित है। युद्ध के मैदान में उसकी वीरता ने उसे भारतीय इतिहास में अमर बना दिया।

चेतक किस रंग का था? | चेतक का रंग क्या था? | What Was the Color of the Chetak? | Chetak kis Rang ka Tha? | Chetak ka Rang Kya Tha?

महाराणा प्रताप के प्रिय घोड़े चेतक का रंग इतिहासकारों के बीच बहस का विषय रहा है। कुछ इतिहासकारों का मानना है कि चेतक एक ग्रे रंग का घोड़ा था, जबकि कुछ अन्य का मानना है कि वह एक नीले रंग का घोड़ा था।

चेतक की रंग की पहचान में सबसे अधिक आम तौर पर इस्तेमाल किया जाने वाला शब्द ‘ग्रुलो’ है, जो काठियावाड़ी घोड़ों की एक विशिष्ट रंगत है। यह एक नीले रंग का मिश्रण होता है जिसमें कुछ ग्रे और काले रंग के बाल भी होते हैं। इस रंगत के कारण चेतक को कभी-कभी ‘नीला घोड़ा’ भी कहा जाता था।

कुछ इतिहासकारों के अनुसार चेतक नीले रंग का घोड़ा था इस कारण चेतक को नीलवर्ण भी कहा जाता है| इतिहास में विभिन्न कवियों, इतिहासकारों तथा साहित्यकारों ने अपने लेख में चेतक के रंग रूप का बखूबी से वर्णन किया है| राजस्थान के लोकगीतों में चेतक तथा महाराणा प्रताप के बारे में वर्णन मिलता है, और ” महाराणा प्रताप को नीले घोड़े रा असवार म्हारा मेवाड़ी सिरदार ” कहकर भी संबोधित किया गया है| 

अंत में, चेतक का रंग कोई भी रहा हो, उसकी वीरता और शांति ही उसके सबसे महत्वपूर्ण गुण थे। चेतक ने महाराणा प्रताप के लिए एक वफादार साथी और युद्ध में एक अजेय योद्धा साबित किया। चेतक की वीरता और समर्पण के कारण वह भारतीय इतिहास में एक अमर घोड़ा बन गया।

चेतक कि ताकत | Power of Chetak | Chetak Ki Takat

महाराणा प्रताप के प्रिय घोड़े चेतक को उसकी असाधारण ताकत और शक्ति के लिए जाना जाता था। वह एक काठियावाड़ी घोड़ा था, जो अपनी ताकत और गति के लिए प्रसिद्ध है। चेतक को बचपन से ही कठोर प्रशिक्षण दिया गया था, जिससे उसकी ताकत और सहनशक्ति और बढ़ गई थी।

चेतक की ताकत का एक उदाहरण हल्दीघाटी के युद्ध में देखा जा सकता है। इस युद्ध में चेतक ने अपने घायल स्वामी महाराणा प्रताप को युद्ध के मैदान से सुरक्षित बाहर निकाल दिया था। इस दौरान चेतक ने अपने घायल पैरों पर चलते हुए 25 फीट चौड़े नाले को पार किया था।

चेतक की ताकत का एक और उदाहरण यह है कि वह अपने शरीर पर भारी भार उठा सकता था। कहा जाता है कि वह अपने शरीर पर 250 किलो से भी अधिक का वजन उठा लेता था। इसमें महाराणा प्रताप का कवच, भाला और तलवारें भी शामिल थीं।

चेतक इतना वजन को उठाकर युद्ध कर सकता था और काफी तेज़ रफ्तार से दौड़ सकता था| क्योंकि महाराणा प्रताप युद्ध भूमि में जाते वक्त अन्य योद्धाओं की तरह शरीर के विभिन्न अंगों को सुरक्षा प्रदान करने वाले लोहे युक्त कवच को धारण करते थे| तथा उनके शारीरिक वजन को मिलाकर यह वजन कहीं अधिक हो जाता था|  फिर भी चेतक युद्ध की रणनीतियां तथा स्वामी भक्ति में इतना पारंगत था कि वह कैसी भी परिस्थिति में सचेत रहता था|

चेतक की ताकत के कारण ही वह युद्ध के मैदान में एक अजेय योद्धा बन गया था। उसकी ताकत और शक्ति के बारे में कई किस्से और कहानियाँ प्रचलित हैं। चेतक की ताकत और वीरता के कारण ही वह भारतीय इतिहास में एक अमर घोड़ा बन गया।

चेतक का हल्दीघाटी युद्ध में पराक्रम | Chetak’s Might/Courage in The Battle of Haldighati | Chetak ka Haldighati Yudh Mein Parakram

हल्दीघाटी का युद्ध भारतीय इतिहास में एक महत्वपूर्ण युद्ध था, जिसमें महाराणा प्रताप की अगुवाई में मेवाड़ की सेना ने मुगल सम्राट अकबर की सेना का सामना किया था। इस युद्ध में महाराणा प्रताप के वफादार घोड़े चेतक ने असाधारण वीरता और पराक्रम का परिचय दिया।

हल्दीघाटी (१५७६) के युद्ध में राणा प्रताप के प्रिय घोड़े चेतक ने अहम भूमिका निभाई थी। इस युद्ध में चेतक घोड़े ने अद्वितीय बुद्धिमता और साहस का परिचय दिया था| हल्दीघाटी के युद्ध में महाराणा प्रताप के घोड़े चेतक तथा मेवाड़ी योद्धाओं ने अपने दुश्मन सेना को कड़ी टक्कर दी थी|

युद्ध के दौरान चेतक ने युद्ध के मैदान में अदम्य शक्ति और गति के साथ युद्ध किया। वह अपने पैरों की ताकत और फुर्ती से दुश्मनों को रौंदता हुआ आगे बढ़ता रहा। चेतक ने कई दुश्मनों को मार गिराया और महाराणा प्रताप की रक्षा में अहम भूमिका निभाई।

हल्दीघाटी के युद्ध में चेतक के सिर को हाथी की सूंड जैसा एक कवच के मुखौटे से सुरक्षित किया गया था, ताकि दुश्मन सेना के हाथी इसे देखकर भ्रमित हो जाये| तथा उसके अन्य शरीर को भी कवच से ढका गया था|

इस युद्ध में जब महाराणा प्रताप ने चेतक को आदेश देकर मानसिंह के हाथी की तरफ आगे बढ़ाया तब चेतक मानसिंह के हाथी के मस्तक की ऊँचाई तक बाज की तरह उछल गया था और अपने आगे के दोनों पांव को हाथी की सूंड पर रख दिया| इसी वक़्त महाराणा प्रताप ने अपने भाले से वार किया जिसमें मानसिंह घायल हो गए थे|  

इसी वक़्त चेतक की एक टांग हाथी के दातों पर लगी तलवार से घायल हो गई थी| घायल चेतक ने अपनी चाल में किसी भी तरह का परिवर्तन नहीं किया जिससे अपने स्वामी को किसी भी प्रकार की अनहोनी का अंदेशा ना हो और चेतक घायल अवस्था में ही युद्धध भूमि में डटा रहा| 

इतिहासकार बताते है, कि अकबर की सेना के विरुद्ध लड़ने के बाद महाराणा प्रताप का घोड़ा चेतक घायल हो गया था। घायल अवस्था में ही उसने महाराणा प्रताप को बचाया था। 

जैसे ही महाराणा प्रताप को पता चला कि अब उनका घोड़ा चेतक बुरी तरह से घायल हो चुका है। तो उन्होंने युद्ध ‌‌‌भूमी को छोड़ा उचित समझा| और उसके बाद झाला राव मानसिंह ने भी महाराणा प्रताप को हल्दी घाटे से निकले को कहा। 

जब प्रताप हल्दीघाटी से निकले तो कुछ मुगल सैनिकों ने उनको देख लिया। वे प्रताप को मारकर अकबर से ईनाम लेना चाहते थे। इस वजह से प्रताप के पीछे पीछे हो लिए। ‌‌‌महाराणा प्रताप युद्ध से निकलना नहीं चाहते थे। लेकिन उनके पास इसके अलावा और कोई चारा भी नहीं था। 

जब महाराणा प्रताप को पता चला की दो मुगल सैनिक उनका पीछा कर रहे हैं तो वे सावधान हो गये। ऐसे में ही उनके सामने एक 2५-2६ फिट चौड़ा बरसाती नाला था| चेतक इस जख्मी हालत में भी एक लंबी छलांग लगाकर उस नाले को पार कर गया जिसे मुग़ल सैनिक पार नहीं कर पाए|

लेकिन इस समय तक उसके शरीर से लगातार खून बह रहा था और वह महान घोड़ा ‌‌‌बुरी तरह से घायल हो चुका था। पर अब उसकी गति धीरे-धीरे कम होती जा रही थी, पीछे से मुगलों के घोड़ों की टापें भी सुनाई पड़ रही थी| उसी समय प्रताप को अपनी मातृभाषा में आवाज सुनाई पड़ी, ‘नीला घोड़ा रा असवार’| प्रताप ने पीछे पलटकर देखा तो उन्हें एक ही अश्वारोही दिखाई पड़ा और वह था, उनका सगा भाई शक्तिसिंह| 

प्रताप के साथ व्यक्तिगत मतभेद ने उसे देशद्रोही बनाकर अकबर का सेवक बना दिया था| और युद्ध स्थल पर वह मुग़ल पक्ष की तरफ से लड़ रहा था| जब उसने नीले घोड़े को बिना किसी सेवक के पहाड़ की तरफ जाते हुए देखा, तो वह भी चुपचाप उसके पीछे चल पड़ा| परन्तु केवल पीछा करनेवाले मुग़लों को यमलोक पहुंचाने के लिए|

चेतक की वीरता और बलिदान के कारण ही हल्दीघाटी का युद्ध मेवाड़ की सेना के लिए एक वीरतापूर्ण युद्ध बन गया। चेतक की वीरता का भारतीय इतिहास में एक अद्वितीय स्थान है। वह आज भी वीरता, शक्ति और समर्पण का प्रतीक माना जाता है।

चेतक की मृत्यु | Death of Chetak | Chetak Ki Mrutu

चेतक की मृत्यु / Chetak Ki Mrutu

जब शक्ति सिंह महाराणा प्रताप के पास पहुंचे, तो महाराणा प्रताप अपने घायल चेतक घोड़े के पास बैठकर वैरागी हो रहे थे| इसके बाद शक्ति सिंह ने महाराणा प्रताप से क्षमा याचना मांग कर उनके पांव छुए| जीवन में पहली बार दोनों भाई प्रेम के साथ गले मिले थे| 

इन्ही भाउक पलोमे चेतक ने अपनी अंतिम सांस ली और अपनी जीवन यात्रा अपने स्वामी के प्राण बचाकर समाप्त की| स्वयं महाराणा प्रताप और उनके भाई शक्ति सिंह ने अपने हाथों से इस अश्व का दाह संस्कार किया था| इस जगह पर हल्दीघाटी में चेतक की समाधि बनी हुई है| राणा प्रताप की तरह ही उनका अश्व भी बहादुर था। हर साल हल्दीघाटी में चेतक की समाधि पर एक मेला भी लगता है।

हल्दीघाटी के युद्ध में चेतक ने अदम्य शक्ति और वीरता के साथ युद्ध किया था। इस युद्ध में चेतक को कई घाव हुए थे, लेकिन वह अपने स्वामी महाराणा प्रताप की रक्षा करता रहा। युद्ध के अंत में चेतक अपने घावों के कारण ही मर गया। उसकी मृत्यु महाराणा प्रताप के लिए एक बहुत बड़ा आघात थी।

चेतक की मृत्यु भले ही हो गई हो, लेकिन उसकी वीरता और बलिदान के कारण वह भारतीय इतिहास में अमर हो गया। वह आज भी वीरता, शक्ति और समर्पण का प्रतीक माना जाता है। चेतक की कहानी हमें सिखाती है कि हमेशा अपने कर्तव्य का पालन करना चाहिए और कभी भी हार नहीं माननी चाहिए।

2 thoughts on “चेतक: महाराणा प्रताप का वीर घोड़ा | Chetak: Maharana Pratap’s Brave Horse”

  1. चेतक को मेरी तरफ से सैल्यूट !
    चेतक के साहस,वीरता, ईमानदारी और बलिदान को मेरा प्रणाम 🙏🏻
    “महा राणा प्रताप” और “चेतक” की वीरता कभी भुला नहीं सकते हैं!!!

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  2. चेतक की वीरता बुद्धिमाता एवं स्वामी भक्ति को इतिहास में हमेशा याद किया जायेगा

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