राजा बलवंत सिंह परिचय / Introduction of Raja Balwant Singh / Raja Balwant Singh Parichay
पूरा | राजा बलवंत सिंह |
जन्म | २१ सितम्बर १८५३ |
राज्याभिषेक | सन १८९० |
राज्य सीमा | अवागढ़ |
शासन अवधी | १८९० – १९०९ (१९ वर्ष) |
मृत्यु | सन् १९०९ |
उम्र | ५६ वर्ष |
राजा बलवंत सिंह कौन थे? | Who was Raja Balwant Singh? | Raja Balwant Singh Kaun The
राजा बलवंत सिंह जी (Raja Balwant Singh) अखिल भारतीय क्षत्रिय महासभा (Akhil Bhartiya Kshatriya Mahasabha) के संस्थापक और राजा बलवंत सिंह कॉलेज (Raja Balwant Singh Collage) के संस्थापक के रूप में जाने जाते है| राजा बलवंत सिंह जी (Raja Balwant Singh) अवागढ़ रियासत (Awagar Riyasat) के महाराजा थे| उनके ही राष्ट्रहित और कल्याणकारी कार्यों की वजह से उनका नाम सम्पूर्ण भारत वर्ष में जाना जाता है।
बलवंत सिंह जी (Balwant Singh) अवागढ़ के प्रसिद्ध ज़मींदार और परोपकारी राजा थे। राजा साहब बहुत ही सरल व सहज प्रवृत्ति के व्यक्ति थे। राजा बलवंत सिंह जी राजकारण के साथ ही समाज कार्य में भी तत्पर रहते थे| वे शारीरिक रूप से बहुत ही बलवान और तेज बुद्धि वाले थे। बलवंत सिंह जी (Raja Balwant Singh) स्वयं तो पढ़े लिखे नहीं थे, लेकिन बिना पढ़े होने के बावजूद भी उनकी बुद्धि चातुर्य सराहनीय था|
उनके बारे में कहा जाता है क़ि उनकी लगन व्यायाम तथा शारीरिक परिश्रम की ओर अधिक थी। वे पुरुषार्थी अधिक थे। उनके ही राष्ट्रहित और कल्याणकारी कार्यों की वजह से आज उत्तर प्रदेश के एटा जिले के छोटे से कसबे अवागढ़ का नाम सम्पूर्ण भारत वर्ष में जाना जाता है।
उनके अनेको राष्ट्रहित और कल्याणकारी कार्यों के बावजूद भी बलवंत सिंह जी एक ऐसी शख़्सियत थी जिन्होंने कभी भी अपने नाम का प्रचार नहीं किया।
राजा बलवंत सिंह जी का व्यक्तित्व | Personality of Raja Balwant Singh | Raja Balwant Singh ji ka Vyaktitva
राजा बलवंत सिंह जी (Raja Balwant Singh) बहुत ही सरल व सहज प्रवृत्ति के व्यक्ति थे। अवागढ़ राजा साहिब के दिल में अपनी राजपूत जाति से अगाध प्रेम था। वे बड़े भाबुक ,उदारबादी होने के साथ -साथ दूरदर्शी सोच के धनी इन्सान थे जो हर समय राजपूतों के उत्थान के विषय में चिंतित रहते थे।
वह वर्तमान में घटने वाली सामाजिक घटनाओं के बारे में हमेशा ही बहुत सतर्क रहते थे| सामयिक घटनाओं की जानकारी रखने के लिए अशिक्षित होते हुए भी नित्य समाचार पत्र सुना करते थे।अवागढ़ के राजा उस सदी उन राजाओं की श्रेणी में आते थे जिन्होंने अपने कठिन परिश्रम और वुद्धिमानी से अपना प्रभुत्व कायम रखा। सन् १८८० ई. में अवागढ़ परिवार सम्पूर्ण अपर इंडिया में सवसे धनी जमींदार थे।
अवागढ़ नरेश बलवंत सिंह जी (Raja Balwant Singh) खुद तो अशिक्षित थे इस पीड़ा से उनके हिर्दय में राजपूतों के शैक्षणिक विकास की भावना का दर्द जाग्रत हुवा और इसके लिए उन्होंने साक्षरता के प्रसार की ओर अपनी दूरगामी दृष्टि फैलाई। वह शिक्षा के प्रति बहुत ही जागरूक रहते थे| उन्होंने अपने राज्य तथा राजपूत समाज के युवाओं के शिक्षा के लिए काफी महत्वपूर्ण कार्य किये|
वे शारीरिक रूप से बहुत ही बलवान और तेज बुद्धि वाले थे। उनके बारे में कहा जाता है क़ि उनकी लगन व्यायाम तथा शारीरिक परिश्रम की ओर अधिक थी। वे पुरुषार्थी अधिक थे। उन्होंने हमेशा अपने सम्मान तथा प्रतिष्ठा को पूर्ण रूप से सुरक्षित रखा।
राजा बलवंत सिंह का इतिहास | History of Raja Balwant Singh | Raja Balwant Singh ka Itihas
अवागढ़ राजपरिवार रॉयल जादौन राजपूत करौली राजवंश से संवन्धित है, जो उत्तरप्रदेश के सम्पूर्ण जादौन राजपूतों का प्रतिनिधुत्व करता है।
इस राज्य के उत्पति से पहले करौली के राजा कुंवर पाल जी के पुत्र राजा आनंद पाल जी करौली से प्रवासित होकर मथुरा के छाता परगना के नरी गांव में जाकर बसे।
इनके वंशज ठाकुर चतुर्भुज सिंह जी जो नरी गांव के जमींदार थे, जलेसर में जाकर बसे उस समय जलेसर मथुरा जिले का परगना था।
ठाकुर चतुर्भुज सिंह जी ने सन् १७०० के आस -पास अवागढ़ जागीर की स्थापना की। ब्रिटिश साम्राज्य में अंग्रेजों ने १८०३ ई. में अवागढ़ को मथुरा से जोड़ दिया था| इसके बाद १८७४ ई. में इसे आगरा जनपद में मिला दिया गया, और फिर बाद में १८७६ ई. में अवागढ़ को एटा जनपद में मिला दिया गया था।
इनके वंशज ठाकुर पीताम्बर सिंह को १८३८ ई. में गवर्नर जनरल लार्ड ऑकलैंड ने राजा की उपाधि से नवाजा गया जिसका समर्थन उदयपुर के महाराणा फ़तेह सिंह जी ने भी किया।
इन्ही के वंश में २१ सितम्बर सन् १८५३ को राजा बलवंत सिंह जी (Raja Balwant Singh) का जन्म हुआ। जो सन् १८९० में अवागढ़ रियासत के राजा के पद पर बिराजमान हुऐ। उस समय उनके उम्र 36 वर्ष की थी।
अवागढ़ रियासत | Awagarh Estate | Awagad Riyasat
अवागढ़ के राजा निहाल सिंह जी की मृत्यु के बाद राजा बलवंत सिंह जी (Raja Balwant Singh) सन् १८९० में अवागढ़ रियासत के राजा के पद पर विराजमान हुऐ। उस समय उनकी उम्र 36 वर्ष की थी। कहा जाता है कि उनके अवागढ़ के राज्याभिषेक में कोटला के राजा ठाकुर उमराव सिंह जी की अहम् भूमिका थी|
जब राजा बलवंत सिंह जी (Raja Balwant Singh) अवागढ़ रियासत के राजा बने उस समय उनके शासन काल में अंग्रेजी साम्राज्य की नींव द्रुण हो चुकी थी।
राजा बलवंत सिंह जी (Raja Balwant Singh) सदैव अपनी अवागढ़ रियासत के प्रति जागरूक एवं सचेत रहते थे| राज्य, प्रदेश एवं देश से जुडी सामयिक घटनाओं की जानकारी रखने के लिए अशिक्षित होते हुए भी वे नित्य समाचारपत्र सूना करते थे| उन्होंने अपनी इसी बुद्धि से अवागढ़ जागीर को उत्तर प्रदेश की दूसरी सबसे बड़ी रियासत बना दिया था|
अवागढ़ के राजा उस सदी उन राजाओं की श्रेणी में आते थे जिन्होंने अपने कठिन परिश्रम और वुद्धिमानी से अपना प्रभुत्व कायम रखा। सन् १८८० ई. में अवागढ़ परिवार सम्पूर्ण अपर इंडिया में सबसे धनी जमींदार थे। जिसकी सीमा एटा, आगरा, फ़िरोज़ाबाद, अलीगढ़, फतेहपुर सीकरी, मैनपुरी तथा मथुरा जिलों तक फैली हुई थी। अवागढ़ एस्टेट उत्तर प्रदेश ही नहीं सम्पूर्ण ऊपरी भारत की सबसे धनी जागीर थी, यह सब राजा साहब की ही मेहनत की देन था।
राजा बलवंत सिंह जी का राजनीतिक सहभाग | Political involvement of Raja Balwant Singh | Raja Balwant Singh ji ka Rajnitik Sahabhag
राजा बलवंत सिंह जी (Raja Balwant Singh) राज गद्दी और अपनी रियासत के अलावा भी देश की राजनीति में हमेशा सक्रिय रहते थे| राजा बलवंत सिंह जी को लॉर्ड कर्जन के समय सन १९०२ में दिल्ली दरबार में बुलाया गया। उसको मार्ले मिंटो रिफार्म के अंतर्गत प्रान्तीय कौंसिल का सदस्य नियुक्त किया गया।
राजा बलवंत सिंह जी लेजिस्लेटिव काउंसिल के सदस्य यानी कि MLC रहे, जिसमें लगभग 2 वर्ष कार्य करने के उपरान्त उनको बाद उन्हें OBE, CIE की उपाधि प्रदान की गई।
राजा बलवंत सिंह (Raja Balwant Singh) ने देश की स्वतंत्रता के लिए लड़ रहे स्वतंत्रता सेनानियों को भी प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष दोनों ही रूपों से उनकी आर्थिक मदद में योगदान दिया। राजा साहिब के निधन के बाद भी ये दान देने की परम्परा अवागढ़ राजपरिवार ने जारी रखी।
राजपूत हाई स्कूल | राजा बलवंत सिंह कॉलेज का विकास | Development of Rajput High School | Raja Balwant Singh College | Raja Balwant Singh College ka Vikas
अवागढ़ नरेश बलवंत सिंह जी (Raja Balwant Singh) खुद अशिक्षित थे और इस पीड़ा से उनके हिर्दय में राजपूतों के शैक्षणिक विकास की भावना हमेशा जागृत रहती थी| और इसी के चलते उन्होंने साक्षरता के प्रसार की ओर अपनी दूरगामी दृष्टि फैलाई। वह शिक्षा के प्रति बहुत ही जागरूक रहते थे| इसी जागरूकता का परिणाम राजपूत हाई स्कूल और बाद में राजा बलवंत सिंह कॉलेज के रूप में प्रत्यक्ष साकार हुआ|
राजा बलवंत सिंह जी (Raja Balwant Singh) ने सन १८७८ ई. में देश में राजपूतों की शिक्षा और उत्थान के लिए आगरा में राजपूत बोर्डिंग हाउस छात्रावास प्रारम्भ किया| बाद में यह महसूस किया गया कि इस साधारण होस्टल से काम नहीं चलेगा। राजपूत जाति के बच्चों को आगे बढ़ने के लिए आधुनिक अंग्रेजी प्रणाली की शिक्षा आवश्यक है। इसी प्रयोजन की पूर्ती आगे चल कर अवागढ़ नरेश राजा बलवंत सिंह जी ने पूर्ण की।
राजपूत बोर्डिंग हाउस छात्रावास बाद में सन् १८८५ में आदरणीय स्वर्गीय पंडित मदन मोहन मालवीय जी और कोटला के राजा उमराव सिंह के परामर्श से बलवंत राजपूत हाई स्कूल के रूप में विस्तारित किया गया|
बलवंत राजपूत हाई स्कूल को और आगे बढ़ानेके लिए राजा बलवंत सिंह जी (Raja Balwant Singh) ने करीब १०० एकड़ जमीन खरीदी का प्रबंद किया और साथ ही में आगरा में १२,००,००० रुपये के दान के साथ इसे भव्य रूप प्रदान किया|
इस शिक्षा केंद्र के प्रथम प्रधानाचार्य कर्नल डॉब्सन तथा सर. ई.एच. फोर्सिथ थे। स्कूल में राजपूत समाज के छात्रों को वरीयता दी जाती थी। उनके लगातार प्रयासों से ये हाई स्कूल हमेशा बढ़ता रहा| उन्होंने उनकी मृत्यु से पहले वर्ष १९०९ में इस संस्था के प्रगति हेतु के लिए ९,३०,००० रुपये का एक और बंदोबस्त किया।
बाद में ये राजा साहब के परिवार के सहयोग से यह हाई स्कूल राजा बलवंत सिंह कॉलेज (Raja Balwant Singh College) के रूप में विकसित हो गया। उसके बाद लगातार उनके परिवार के प्रयासों से ये कॉलेज बढ़ता गाया, आज ये कॉलेज राजा बलवंत सिंह कॉलेज (आर. बी. एस. कॉलेज, आगरा) के नाम से जाना जाता है|
आज देश के सर्वश्रेष्ठ महाविद्यालयों में गिना जाता है। आज ये कॉलेज एशिया का सबसे बड़ा केम्पस वाला कॉलेज है, इस कॉलेज का संबंध दो यूनिवर्सिटी, डॉ भीमराव अमबेडकर, आगरा और APJ अब्दुल कलाम यूनिवर्सिटी से है। ये आगरा यूनिवर्सिटी का एक मात्र A+ ग्रेड कॉलेज है।
राजा बलवंत सिंह की दानी प्रवृत्ति | Raja Balwant Singh’s charitable attitude | Raja Balwant Singh ki Dani Pravrutti
राजा बलवंत सिंह जी अपनी रियासत तथा बलवंत राजपूत हाई स्कूल तक ही सीमित नहीं थे बल्कि वे हर मुमकिन और उचित स्थानों पर हर तरह से दान धर्म करके सहयोग प्रदान करते थे|
राजा बलवंत सिंह जी (Raja Balwant Singh) ने नोबेल विजेता गुरुदेव रवीन्द्रनाथ टैगोर जी को भी उस समय शांतिनिकेतन संस्था की स्थापना में काफी मदद की थी और आर्थिक सहायता भी प्रदान की थी। साथ ही उन्होंने राजा उदय प्रताप कॉलेज वाराणसी जैसे और कई शिक्षण संस्थानों में योगदान दिया।
उन्होंने राजपूत हाई स्कूल से जुड़े खंदारी फार्म के रूप में ज्ञात कृषि के लिए आगरा में 100 एकड़ से अधिक भूमि का दान दिया था।
अखिल भारतीय क्षत्रिय महासभा की स्थापना | Establishment of Akhil Bhartiya Kshatriya Mahasabha | Akhil Bhartiya Kshatriya Mahasabha ki Sthapana
राजा बलवंत सिंह जी (Raja Balwant Singh) सदैव ही राजपूत तथा समस्त क्षत्रिय परिवार के उत्थान एवं एकता हेतु प्रेरित तथा चिंतित रहते थे| इसी सोच की प्रेरणा से सन् १८९७ में देश के इतिहास में पहली बार अवागढ़ के राजा बलवंत सिंह जी के प्रतिनिधत्व में कोटिला के ठाकुर उमराव सिंह जी और भिंगा ,उत्तरप्रेदश के राजा उदय प्रताप सिंह जी के सहयोग से क्षत्रियों के सामाजिक उत्थान के लिए एक संगठन “अखिल भारतीय क्षत्रिय महासभा” (ABKM) का १९ अक्टूबर सन् १८९७ को दिल्ली नगर में रजिस्ट्रेशन कराया गया।
अखिल भारतीय क्षत्रिय महासभा (ABKM) के संस्थापक राजा बलवंत सिंह जी (Raja Balwant Singh) को बनाया गया। राजा बलवंत सिंह जी ही अखिल भारतीय क्षत्रिय महासभा (ABKM) के प्रथम अध्यक्ष भी रहे|
अखिल भारतीय क्षत्रिय महासभा (ABKM) की प्रथम सभा आगरा में राजा बलवंत सिंह जी के राजपूत बोर्डिंग हाउस में हुई थी।
हिंदी भाषा को सरकारी कामकाज भाषा का दर्जा | Official working language status of Hindi language
राजा बलवंत सिंह जी (Raja Balwant Singh), मदन मोहन मालवीय के घनिष्ठ मित्र और सहयोगी भी थे| १८९८ में, राजा बलवंत सिंह, मदन मोहन मालवीय जी के नेतृत्व वाले प्रतिनिधिमंडल में अयोध्या के महाराजा प्रताप नारायण सिंह, मांडू के राजा रामप्रसाद सिंह, श्रीकृष्ण जोशी, डॉ. सुंदरलाल के साथ शामिल थे।
इस प्रतिनिधिमंडल ने तत्कालीन डिप्टी वायसराय सर एंटनी मैकडॉनल्ड से हिंदी को अदालतों और सरकारी दस्तावेजों में कामकाजी भाषाओं में से एक के रूप में शामिल करने का अनुरोध किया। यह उन्हीं के प्रयासों के कारण था कि हिंदी को सरकारी दस्तावेजों और अदालतों में कामकाजी भाषाओं में से एक के रूप में जोड़ा गया था।
राजा बलवंत सिंह जी का राजपूत समाज के विकास के लिए योगदान | Contribution of Raja Balwant Singh ji for the development of Rajput society
१. सन् १८९७ में देश के इतिहास में पहली बार अवागढ़ के राजा बलवंत सिंह जी (Raja Balwant Singh) के प्रतिनिधत्व में कोटिला के ठाकुर उमराव सिंह जी और भिंगा, उत्तरप्रेदश के राजा उदय प्रताप सिंह जी के सहयोग से क्षत्रियों के सामाजिक उत्थान के लिए एक संगठन “अखिल भारतीय क्षत्रिय महासभा” का १९ अक्टूबर १८९७ को दिल्ली नगर में रजिस्ट्रेशन करायीं गयी।
२. राजा बलवंत सिंह जी (Raja Balwant Singh) ने बनारस के बाबू सांवल सिंह जी की अध्यक्षता में प्रस्ताव पारित करके २० जनवरी १८९८ को राजपूत समाज में एकता और जागृति लाने के उद्देश्य से एक Newsletter जिसको Rajput Monthly का नाम दिया गया प्रकाशित करवाया जिसके माध्यम से देश के विभिन्न भागों में फैले हुए क्षत्रिय समाज में जागृति व एकता लाने के लिए जनसम्पर्क व सभाएं शुरू हुई।
३. अवागढ़ नरेश खुद तो अशिक्षित थे लेकिन उन्होंने साक्षरता के प्रसार के लिए सन् १८७८ ई. में देश में राजपूतों की शिक्षा और उत्थान के लिए आगरा में राजपूत बोर्डिंग हाउस छात्रावास प्रारम्भ किया था जो बाद में सन् १८८५ में राजपूत हाई स्कूल में प्रसारित हुआ|
४. इसके बाद दूसरे राजाओं में भी उनके इस कदम से राजपूतों के शैक्षणिक विकास के विषय में जागृति उत्पन्न हुई जिसमें भिंगा के राजा उदय प्रताप सिंह जी ने बनारस में अपने नाम से उदय प्रताप कॉलेज खोला। वे राजा बलवंत सिंह जी के घनिष्ठ मित्र थे। इसी तरह ईडर के राजा प्रताप सिंह जी ने जोधपुर में Chopasni स्कूल खोला। इसके बाद पूर्व के राजपूत शासकों के द्वारा देश के विभिन्न प्रांतों में राजपूतों के लिए स्कूल व बोर्डिंग हाउस खोलने की शुरुआत हुई जिनमे राजकोट, अजमेर, लाहौर, रायपुर और इंदौर प्रमुख थे ।
५. राजा बलवंत सिंह जी ने नोबेल विजेता स्वर्गीय रविंद्र नाथ टैगोर जी को भी उस समय शांतिनिकेतन संस्था की स्थापना में धन देकर उनकी आर्थिक सहायता की थी|
६. राजा बलवंत सिंह (Raja Balwant Singh) ने देश की स्वतंत्रता के लिए लड़ रहे स्वतंत्रता सेनानियों को भी प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष दोनों ही रूपों से उनकी आर्थिक मदद से योगदान दिया।
राजा बलवंत सिंह जी के वंशज | Descendants of Raja Balwant Singh | Raja Balwant Singh ke Vanshaj
राजा बलवंत सिंह जी (Raja Balwant Singh) के वंशज राजा अनिरुद्ध पाल सिंह और उनके पुत्र युवराज अम्बरीश पाल सिंह नैनीताल में अवागढ़ स्टेट की देख रेख करते हैं, हेरिटेज होटल चलाते हैं और साथ ही में खेती और व्यापार करते हैं| युवराज अम्बरीश, राजा बलवंत एजुकेशनल सोसाइटी के सचिव हैं, और RBS सहित १२ शिक्षण संस्थान चलाते हैं, उन्होंने अपने गृह क्षेत्र अवागढ़ में शिक्षा का स्तर बढाने के लिए राजमाता अनंत कुमारी पब्लिक स्कूल की शुरुवात भी कराई है| वे अखिल भारतीय क्षत्रिय महासभा के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष हैं और राजनीति में सक्रिय रहते हैं।
राजा जी के एक और वंशज राजा जितेंद्र पाल सिंह जी और राजकुमार ऋषिराज जी राजस्थान में अपने हज़ारों एकड़ के फार्म्स की देखरेख करते हैं और कई होटल चलाते हैं इसी के साथ नेस्ले जैसी कंपनी को कॉफ़ी ब्रीड की सप्लाई जैसे कई व्यापार भी करते हैं| राजकुमार ऋषिराज घुड़सवारी के महारथी भी हैं, वे राजस्थान में अपनी एक हॉर्स सफारी चलाते हैं| वे शूटिंग और गाड़ियों में भी काफी दिलजिसपी रखते है| वह क्षत्रिय संगठनों और हिन्दू सभाओं में अक्सर सक्रिय रहते हैं।
राजा यादवेन्द्र पाल सिंह जी आगरा में अवागढ़ फार्म्स की देख रेख करते हैं व खेती करवाते हैं| और उनके पुत्र कुँ. भूपेंद्र पाल सिंह दिल्ली में एक सॉफ्टवेयर कंपनी चलाते हैं। कुं. भूपेंद्र पाल कम्प्यूटर्स के साथ साथ वाइल्डलाइफ फोटोग्राफर भी हैं, और कई अवार्ड भी पा चुके हैं| वह क्षत्रिय महासभा के पदाधिकारी भी हैं।
अवागढ़ परिवार आज भी अवागढ़ किला को अपने निजी आवास के रूप में प्रयोग करता है। अवागढ़ का किला उत्तर प्रदेश में दूसरा सबसे बडा किला है और सबसे बड़ा निजी आवास भी है।
उत्तर प्रदेश भारतीय जनसंघ के प्रथम अध्यक्ष एक राजनेता स्वर्गीय राव कृष्ण पाल सिंह जी अवागढ़, राजा बलवंत सिंह (Raja Balwant Singh) के सुपुत्र थे।
ऐसे ही राजपूत वीरो के बारे में पढ़े kingrajput पर।
FAQ (Frequently Asked Question | अक्सर पूछे जाने वाले सवाल)
अखिल भारतीय क्षत्रिय महासभा के संस्थापक कौन है?
राजा बलवंत सिंह जी अखिल भारतीय क्षत्रिय महासभा के संस्थापक है|
राजा बलवंत सिंह कौन है?
राजा बलवंत सिंह जी अखिल भारतीय क्षत्रिय महासभा के संस्थापक और राजा बलवंत सिंह कॉलेज के संस्थापक के रूप में जाने जाते है| राजा बलवंत सिंह जी अवागढ़ रियासत के महाराजा थे|
राजा बलवंत सिंह कौन सी रियासत के महाराजा थे?
राजा बलवंत सिंह जी अवागढ़ रियासत के महाराजा थे|
राजा बलवंत सिंह के पिता का नाम क्या था?
अवागढ़ के राजा निहाल सिंह जी राजा बलवंत सिंह के पिता थे|