नागवंशी राजपूत राजवंश (Nagvanshi) का इतिहास प्राचीन काल से जुड़ा हुआ है, जिन्होंने सदियों तक छोटानागपुर पठार क्षेत्र पर शासन किया। आइये जानते है नागवंशी जाति का इतिहास, नागवंशी गोत्र लिस्ट नागवंश की कुलदेवी और क्षेत्रों के बारे में।
नागवंशी राजपूत का परिचय | नागवंशी वंश का परिचय | नागवंशी क्षत्रियों का परिचय | Introduction of Nagvanshi Rajput Vansh
भारतीय इतिहास में नागवंश का एक महत्वपूर्ण स्थान रहा है। यह एक शक्तिशाली राजवंश था जिसने सदियों तक छोटानागपुर के कुछ हिस्सों पर शासन किया। नागवंश को “छोटानागपुर नागवंश” के नाम से भी जाना जाता है। उनकी उत्पत्ति इक्ष्वाकु वंश की एक शाखा, नागवंश से मानी जाती है। नागवंशी राजपूतों का शासनकाल प्राचीन, मध्यकालीन और आधुनिक काल तक फैला हुआ था।
अपने शासनकाल के दौरान, नागवंशी राजपूतों ने कला, स्थापत्य, और शासन में महत्वपूर्ण योगदान दिया। उन्होंने अपने राज्य में शांति और समृद्धि स्थापित की और कई सुंदर मंदिरों का निर्माण करवाया। हालांकि, १८ वीं शताब्दी में मराठा साम्राज्य के उदय के साथ उनका साम्राज्य कमजोर पड़ने लगा और अंततः १९ वीं शताब्दी में ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी के अधीन आ गया।
आज भी, नागवंशी राजपूत झारखंड में एक प्रमुख समुदाय हैं। वे अपनी समृद्ध सांस्कृतिक विरासत और परंपराओं को संजोये हुए हैं।
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नागवंशी वंश की उत्पत्ति को स्पष्ट रूप से समझने के लिए, हमें सबसे पहले यह जानना होगा कि नागवंश और नागवंशी राजपूत इन दोनों में अंतर है।
नागवंशी, जिसे इक्ष्वाकु वंश की एक शाखा माना जाता है, काफी प्राचीन है। पौराणिक कथाओं के अनुसार, नागवंशी राजवंश के संस्थापक फणि मुकुट राय, वाराणसी की एक ब्राह्मण कन्या और नागराज तक्षक के वंशज पुंडरिका नाग के पुत्र थे। उन्हें सुतियाम्बे का मानकी (या राजा) चुना गया था। इस प्रकार, फणि मुकुट राय को नागवंश के शासन का वास्तविक संस्थापक माना जाता है।
बाद के समय में, नागवंश के वंशजों ने राजपूत उपाधि धारण कर ली, और इस तरह नागवंशी राजपूत अस्तित्व में आए। नागवंशी राजपूतों का शासन छोटानागपुर के कुछ हिस्सों पर सदियों तक चला। उन्होंने कला, स्थापत्य और शासन में उल्लेखनीय योगदान दिया।
फणि मुकुट राय के बारे में एक अन्य राय:
फणी मुकुट राय ( गोंड कबीले ) के थे। इसी लिए गोंड प्राचीन समय से खुद को नागवंशी हिन्दू क्षत्रिय ही माना है। गोंड राजवंश के नागवंशी होने के बहुत से प्रमाण है। ओडिसा मे नाग देव का मंदिर और कवर्धा राज्य में बना भोरम देव मंदिर के शिलालेख पर साफ साफ लिखा है की यह मंदिर नागवंशी गोंड राजा गोपाल देव ने बनवाया था। जब अंग्रेज आए तो यही गोंड राजपूतों पर ट्राइबल एक्ट लगा कर इन्हे आदिवासी तथा ट्राइबल का टैग दे दिया। मगर इनमे दो जाति का विभाजन भी है (i) राजगोंड (ii) कोयातूर गोंड।
राजगोंड: जिन्होने लंबे समय तक गोंडवाना हुकूमत जारी करके उसपे राज किया। और ये खुद को नागवंशी हिन्दू क्षत्रिय कुल के मानते है।कोयातूर गोंड: ये एक ओडिसा की अलग जनजाति थी जिन्होंने बाद में खुद को गोंड लिख कर खुद को गोंड जनजाति का पहचान लिया। ब्रिटिश काल मे यही जनजाति जंगलों में रह कर ईस्ट इंडिया कंपनी से युद्ध करके वनों में चुप जाते थे। जिसके कारण अंग्रेजों को हमेशा कोयतूर गोंडो से हार स्वीकार करना पड़ता था। इसके कारण ईस्ट इंडिया कंपनी ने जंगल मे रहने वाले सभी जनजातियों के लिए ट्राइबल एक्ट लाया जिसके बाद इनकी पहचान बदल गई। और ये नागवंशी राजपूत क्षत्रिय से अलग ट्राइब/ आदिवासी के नाम से जाने जाने लगे। (संदर्भ: Saurav Kumar Singh: [email protected])
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नागवंशी राजपूतों का इतिहास प्राचीन, मध्यकालीन और आधुनिक काल तक फैला हुआ है। छोटानागपुर पठार (आधुनिक झारखंड) के कुछ हिस्सों पर सदियों तक शासन करने वाले इस शक्तिशाली राजवंश की जड़ें नागवंश से जुड़ी हुई हैं। नागवंश को “छोटानागपुर नागवंश” के नाम से भी जाना जाता है।
प्राचीन काल:
नागवंशी राजवंश का इतिहास फणि मुकुट राय के शासनकाल से शुरू होता है, जिन्हें नागवंश के संस्थापक के रूप में माना जाता है। पौराणिक कथाओं के अनुसार, वे वाराणसी की एक ब्राह्मण कन्या और नागराज तक्षक के वंशज पुंडरिका नाग के पुत्र थे। उन्हें सुताम्बे का मानकी (या राजा) चुना गया था, जिससे नागवंश का शासन आरंभ हुआ। माना जाता है कि उनके पूर्वज भी छोटानागपुर क्षेत्र में शासन करते थे, लेकिन फणि मुकुट राय को ही आधिकारिक रूप से नागवंश का संस्थापक माना जाता है।
कुछ समय बाद, राजधानी को सुताम्बे से चुटिया (वर्तमान रांची के पास) स्थानांतरित कर दिया गया। प्रताप राय, जो नागवंश के एक प्रमुख शासक थे, उन्होंने इस परिवर्तन को अंजाम दिया। उनके शासनकाल के दौरान नागवंश का प्रभाव काफी बढ़ा और उन्होंने कला, स्थापत्य और शासन में महत्वपूर्ण योगदान दिया।
मध्यकाल:
१२ वीं शताब्दी के आसपास, नागवंश के शासनकाल में एक और महत्वपूर्ण बदलाव आया। राजधानी को चुटिया से खुखरागढ़ (वर्तमान झारखंड में) स्थानांतरित कर दिया गया। भीम कर्ण, जिन्हें एक कुशल शासक माना जाता है, उनके शासनकाल के दौरान यह स्थानांतरण हुआ।
मध्यकालीन काल में नागवंश का साम्राज्य अपने चरम पर पहुंचा। उन्होंने छोटानागपुर के विभिन्न क्षेत्रों पर अपना प्रभाव बनाए रखा और आसपास के राज्यों के साथ भी संबंध स्थापित किए। इस दौरान, नागवंशी राजपूतों ने अपने राज्य में शांति और समृद्धि स्थापित की।
आधुनिक काल:
१७ वीं शताब्दी में, नागवंश के इतिहास में एक महत्वपूर्ण मोड़ आया। मराठा साम्राज्य के उदय के साथ ही नागवंश का साम्राज्य कमजोर पड़ने लगा। लगातार संघर्षों और मुठभेड़ों के कारण नागवंश का प्रभाव कम होता गया।
१८ वीं शताब्दी के अंत तक, नागवंश का अधिकांश क्षेत्र मराठा साम्राज्य के अधीन आ गया। इसके बाद, १९ वीं शताब्दी में ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी के बढ़ते प्रभाव के कारण उनका शासन पूरी तरह समाप्त हो गया।
हालांकि, नागवंशी राजवंश का शासनकाल समाप्त हो गया, लेकिन उनकी सांस्कृतिक और ऐतिहासिक विरासत आज भी झारखंड में जीवित है। नागवंशी राजपूत समुदाय अपने समृद्ध इतिहास और परंपराओं को संजोये हुए है।
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नागवंशी राजवंश का शासन सदियों तक चला, जिसके कारण उनके शासकों की पूरी वंशावली का सटीक विवरण प्राप्त करना मुश्किल है। हालांकि, इतिहासकारों और विभिन्न स्रोतों के आधार पर, नागवंशी वंश के कुछ प्रमुख शासकों की सूची इस प्रकार है:
- फणि मुकुट राय: नागवंश के संस्थापक माने जाते हैं। उन्हें सुताम्बे का मानकी चुना गया था।
- प्रताप राय: उन्होंने राजधानी को सुताम्बे से चुटिया स्थानांतरित किया।
- भीम कर्ण: उनके शासनकाल में राजधानी को चुटिया से खुखरागढ़ स्थानांतरित किया गया।
- दुर्जन शाह: उन्होंने राजधानी को खुखरागढ़ से नवरतनगढ़ (दोइसागढ़) स्थानांतरित किया।
- अखंड राय: १६ वीं शताब्दी के शासक, जिन्होंने मुगल साम्राज्य से संघर्ष किया।
- मदन राय: १७ वीं शताब्दी के शासक, जिन्हें मराठा साम्राज्य से संघर्ष का सामना करना पड़ा।
- दुबराज राय: मराठा साम्राज्य के साथ संघर्ष जारी रहा।
- गोपाल राय: १८ वीं शताब्दी के उत्तरार्ध के शासक, जिनके शासनकाल में नागवंशी राजवंश का अधिकांश क्षेत्र मराठा साम्राज्य के अधीन आ गया।
- मेदिनी राय: १९ वीं शताब्दी के शासक, जिनके समय तक ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी का प्रभाव बढ़ गया और नागवंशी राजवंश का शासन समाप्त हो गया।
- रामचंद्र राय: १९ वीं शताब्दी के उत्तरार्ध के प्रमुख व्यक्ति, जिन्होंने ब्रिटिश शासन के अधीन भी नागवंशी समुदाय के हितों की रक्षा करने का प्रयास किया।
यह सूची नागवंशी वंश के सभी शासकों को समाहित नहीं करती है, लेकिन यह उनके शासनकाल के एक बड़े हिस्से को दर्शाती है।
नागवंशी राजपूत गोत्र | नागवंशी वंश का गोत्र | नागवंशी क्षत्रियों का गोत्र | Nagvanshi Rajput Gotra | Nagvanshi Rajput vansh gotra | Nagvanshi vansh gotra
नागवंशी राजपूतों का गोत्र मुख्य रूप से भारद्वाज माना जाता है। भारद्वाज गोत्र ऋषि भारद्वाज के वंशजों से संबंधित है, जो ऋग्वेद के सात ऋषियों में से एक थे।
हालांकि, कुछ नागवंशी राजपूत परिवार अन्य गोत्रों से भी जुड़े हो सकते हैं, जैसे कि कश्यप, वशिष्ठ, विश्वामित्र, और गौतम। यह विभिन्न कारणों से हो सकता है, जैसे कि गोत्र परिवर्तन, विवाह, या गोद लेना।
यह ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि गोत्र एक सामाजिक समूह है जो वंशानुगत होता है। यह व्यक्ति की जाति, धर्म या सामाजिक स्थिति से संबंधित नहीं है।
नागवंशी क्षत्रियों का गोत्र भारद्वाज होने के कुछ प्रमाण:
- ऐतिहासिक ग्रंथ: प्राचीन ग्रंथों और लेखों में नागवंशी राजपूतों को भारद्वाज गोत्र से जोड़ा गया है।
- पारिवारिक परंपराएं: कई नागवंशी राजपूत परिवारों में पीढ़ी दर पीढ़ी भारद्वाज गोत्र का पालन किया जाता रहा है।
- धार्मिक अनुष्ठान: नागवंशी राजपूत परिवार अपने धार्मिक अनुष्ठानों में भारद्वाज गोत्र का उल्लेख करते हैं।
यह निष्कर्ष निकाला जा सकता है कि नागवंशी राजपूतों का मुख्य गोत्र भारद्वाज है, हालांकि कुछ अपवाद भी हो सकते हैं।
नागवंशी वंश की कुलदेवी | नागवंशी राजपूत की कुलदेवी | नागवंशी क्षत्रियों की कुलदेवी | Nagvanshi Rajput ki Kuldevi | Nagvanshi vansh ki kuldevi
नागवंशी राजपूतों की कुलदेवी कालिका माता है। कालिका माता, देवी दुर्गा का एक रूप हैं, जिन्हें शक्ति और वीरता की देवी के रूप में जाना जाता है।
नागवंशी राजपूतों के लिए कालिका माता विशेष महत्व रखती हैं। वे सदियों से उनकी पूजा करते आ रहे हैं और उन्हें अपनी कुलदेवी मानते हैं।
नागवंशी राजपूतों और कालिका माता के बीच संबंध:
पौराणिक कथाएं: पौराणिक कथाओं के अनुसार, नागवंशी राजपूतों के पूर्वज, फणि मुकुट राय, देवी कालिका माता के प्रबल भक्त थे। माना जाता है कि देवी कालिका माता ने उन्हें राज्य प्राप्ति में मदद की थी।
ऐतिहासिक प्रमाण: कई ऐतिहासिक प्रमाणों से पता चलता है कि नागवंशी राजपूत कालिका माता की पूजा करते थे। उनके शासनकाल में निर्मित कई मंदिरों में देवी कालिका माता की मूर्तियां और प्रतिमाएं मिली हैं।
आधुनिक परंपराएं: आज भी, नागवंशी राजपूत कालिका माता की पूजा करते हैं। वे उनके मंदिरों में जाते हैं, त्योहारों पर उनकी पूजा करते हैं, और विशेष अवसरों पर उनकी आराधना करते हैं।
कालिका माता का महत्व:
शक्ति और वीरता: कालिका माता को शक्ति और वीरता की देवी माना जाता है। नागवंशी राजपूत उनसे शक्ति और साहस प्राप्त करने की प्रार्थना करते हैं।
रक्षा: कालिका माता को बुराई से रक्षा करने वाली देवी के रूप में भी जाना जाता है। नागवंशी राजपूत उनसे अपने परिवार और राज्य की रक्षा करने की प्रार्थना करते हैं।
समृद्धि: कालिका माता को समृद्धि और सुख-समृद्धि की देवी भी माना जाता है। नागवंशी राजपूत उनसे अपने जीवन में खुशहाली लाने की प्रार्थना करते हैं।
यह स्पष्ट है कि नागवंशी राजपूतों के लिए कालिका माता गहन आस्था और महत्व का विषय हैं। वे सदियों से उनकी पूजा करते आ रहे हैं और उन्हें अपनी कुलदेवी मानते हैं।
नागवंशी अष्टकुल | नागवंशी वंश के अष्टकुल | Nagvanshi Ashtakul
नागवंशी वंश के इतिहास में “नागवंशी अष्टकुल” का उल्लेख अक्सर मिलता है। हालांकि, यह नागवंशी वंश की आठ शाखाओं को सीधे तौर पर इंगित नहीं करता। यह शब्द नाग जाति के आठ प्रमुख वंशों की ओर संकेत करता है, जो हिंदू पौराणिक कथाओं में वर्णित हैं।
कुछ पुराणों के अनुसार, नागवंशी अष्टकुल में शामिल हैं: वासुकी, तक्षक, कुलक, कर्कोटक, पद्म, शंख, चूड़, महापद्म और धनंजय। ये नाग जाति के प्रमुख वंश माने जाते हैं, जिनका वर्णन विभिन्न पौराणिक कथाओं में मिलता है।
यह ध्यान देना जरूरी है कि नागवंशी वंश की आठ शाखाओं और नागवंशी अष्टकुल के बीच सीधा संबंध नहीं है। नागवंशी वंश की शाखाएं ऐतिहासिक और भौगोलिक आधार पर विभाजित हैं, जबकि नागवंशी अष्टकुल पौराणिक कथाओं में वर्णित नाग जाति के प्रमुख वंशों को दर्शाता है।
नागवंशी राजवंश के प्रांत | नागवंशी क्षत्रियों के प्रांत | Nagvanshi Vansh ke Prant
क्र. | प्रांत के नाम | प्रांत का प्रकार |
---|---|---|
१ | जारिया | जमींदारी |
२ | कालाहंडी | रियासत |
३ | खैरागढ़ | रियासत |
निष्कर्ष | Conclusion
नागवंशी राजवंश का शासनकाल प्राचीन, मध्यकालीन और आधुनिक काल तक फैला हुआ था। उन्होंने छोटानागपुर पठार क्षेत्र के विभिन्न हिस्सों पर शासन किया, जो आज मुख्य रूप से झारखण्ड राज्य में शामिल है। इस राजवंश के शासकों ने स्थानीय जनजीवन और संस्कृति को काफी प्रभावित किया। उनके शासनकाल में कला, स्थापत्य और साहित्य का विकास भी उल्लेखनीय रहा। हालांकि, समय के साथ साम्राज्यों के उदय-पतन के दौर में नागवंशी राजवंश की शाखाएं विभिन्न क्षेत्रों में फैल गईं और उनका सामरिक प्रभाव कम होता गया।
फणी मुकुट राय ( गोंड कबीले ) के थे। इसी लिए गोंड प्राचीन समय से खुद को नागवंशी हिन्दू क्षत्रिय ही माना है। गोंड राजवंश के नागवंशी होने के बहुत से प्रमाण है। ओडिसा मे नाग देव का मंदिर और कवर्धा राज्य में बना भोरम देव मंदिर के शिलालेख पर साफ साफ लिखा है की यह मंदिर नागवंशी गोंड राजा गोपाल देव ने बनवाया था। जब अंग्रेज आए तो यही गोंड राजपूतों पर ट्राइबल एक्ट लगा कर इन्हे आदिवासी तथा ट्राइबल का टैग दे दिया। मगर इनमे दो जाति का विवाझिन भी है। पहला (i) राजगोंड (ii) कोयातूर गोंड
राजगोंड: जिन्होने लंबे समय तक गोंडवाना हुकूमत जारी करके उसपे राज किया। और ये खुद को नागवंशी हिन्दू क्षत्रिय कुल के मानते है।
कोयातूर: ये एक ओडिसा की अलग जनजाति थी जिन्होंने बाद मे खुद को गोंड लिख कर खुद को गोंड जनजाति का पहचान लिया। ब्रिटिश काल मे यही जनजाति जंगलों में रह कर ईस्ट इंडिया कंपनी से युद्ध करके वनों में चुप जाते थे। जिसके कारण अंग्रेजों को हमेशा कोयतूर गोंडो से हार स्वीकार करना पड़ता था। इससे कारण ईस्ट इंडिया कंपनी ने जंगल मे रहने वाले सभी जनजातियों के लिए ट्राइबल एक्ट लाया जिसके बाद इनकी पहचान बदल गई। और ये नागवंशी राजपूत क्षत्रिय से अलग ट्राइब/ आदिवासी के नाम से जाने जाने लगे।
सौरव कुमार जी, आप की इस सलाह को हमने हमारे इस लेख में आप के नाम के साथ समाविष्ट किया है। आप के सहयोग के लिए धन्यवाद।
बहुत बहुत धन्यवाद सर जी 🙏