अखिल भारतीय क्षत्रिय महासभा (Akhil Bhartiya Kshatriya Mahasabha) भारत के विशाल इतिहास में अनेक सामाजिक व राजनीतिक संगठनों मेसे एक महत्वपूर्ण संगठन है, जिन्होंने समाज में बदलाव और समुदायों के उत्थान में अहम भूमिका निभाई है।
अखिल भारतीय क्षत्रिय महासभा परिचय | Introduction of Akhil Bhartiya Kshatriya Mahasabha
स्वतंत्रता पूर्व गोंडा के राजा देवी बख्श सिंह बिसेन, कालाकांकर के राजा हनुमंत सिंह, प्रताप सिंह, माधोसिंह, अवध के राजा बेनी माधव सिंह, दरियाव सिंह, बाबू सहलन सिंह, जोधराज सिंह खीरी आदि राजाओं ने अवध की बेगम हजरत महल के योगदान से कालाकांकर के गंगा पुलिन पर “राम दल “का १६ मई १८५७ ई. में गठन किया जिसका प्रतीक चिन्ह “श्री राम “के चिन्ह के साथ लाल कमल का फूल था| यही से अखिल भारतीय क्षत्रिय महासभा की नींव रखी गयी थी या फिर यह कह सकते है की यही अखिल भारतीय क्षत्रिय महासभा का प्रारंभिक रूप था|
कुछ समय पश्चात क्षत्रियों ने “राम दल ” को विघटित कर उसके स्थान पर १८६० ई. में “क्षत्रिय हितकारणी सभा” का गठन किया| इस प्रकार संघ का गठन राजपूत समुदायों के अधिकारों और हितों की रक्षा और लड़ाई के लिए किया गया।
कालांतर में क्षत्रिय हितकारणी सभा का नाम परिवर्तित कर अखिल भारतीय क्षत्रिय महासभा १९ अक्टूबर १८९७ को अस्तित्व में आई, जिसने क्षत्रियों और राजपूतों के कारण को बढ़ावा देने के लिए एक मंच तैयार किया। क्षत्रिय महासभा का पंजीकरण संयुक्त प्रान्त आगरा और अवध के प्रदेश में १९ अक्टूबर १८९७ को भारतीय सोसायटी अधिनियम के तहत राजधानी लखनऊ (लक्ष्मणपुर) अवध में किया गया|
अखिल भारतीय क्षत्रिय महासभा की ऐतिहासिक भूमिका | Historical role of Akhil Bhartiya Kshatriya Mahasabha
अपने प्रारंभिक वर्षों में, क्षत्रिय महासभा ने औपनिवेशिक शासन के दौरान क्षत्रियों को प्रभावित करने वाली चुनौतियों पर ध्यान केंद्रित किया। भूमि हड़पने, राजनीतिक प्रतिनिधित्व की कमी और सामाजिक भेदभाव जैसे मुद्दों को उठाकर क्षत्रिय महासभा ने अपने समुदाय के अधिकारों के लिए आवाज उठाई।
स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात, क्षत्रिय महासभा ने समाज में क्षत्रियों की स्थिति को सुधारने के अपने प्रयासों को जारी रखा। शिक्षा को बढ़ावा देने के उद्देश्य से स्कूलों और कॉलेजों की स्थापना की गई। साथ ही, महासभा ने ग्रामीण क्षेत्रों में विकास परियोजनाओं का संचालन किया। इसके अलावा, क्षत्रिय महासभा ने क्षत्रिय संस्कृति और विरासत को संरक्षित करने के लिए भी अनेक कार्यक्रम आयोजित किए।
अखिल भारतीय क्षत्रिय महासभा इतिहास | History of Akhil Bhartiya Kshatriya Mahasabha
अखिल भारतीय क्षत्रिय महासभा के निर्माण में १८५७ के देशव्यापी स्वतंत्रता विद्रोह का अहम योगदान था|
ब्रिटिश शासन काल में, अंग्रेजी शासन के खिलाफ भारतीयों का प्रथम स्वतंत्रता संग्राम अंग्रेजों द्वारा क्षत्रियो के विरुद्ध अपनाई गई कलुषित नीति के विरुद्ध विदेशी दासता से मुक्ति पाने के लिए एक खुली अघोषित क्रांति था| प्रथम स्वतंत्रता संग्राम का प्रमुख केंद्र उत्तरी भारत था।
प्रथम स्वतंत्रता संग्राम के शुरुआत में इसके क्रांति के दो मुख्य स्रोत “सैनिक क्रांति “और “जन क्रांति “थे। इसके सूत्रपात्र का जिम्मा शुरुआती दौर में उत्तरप्रदेश ,बिहार ,मध्यप्रदेश ,दिल्ली ,पंजाब (वर्तमान हरियाणा )तथा आँध्रप्रदेश के उत्पीड़ित क्षत्रिय शासकों एवं मुस्लिम नबाबों ने उठाया था। यह क्षत्रिय-मुस्लिम एकता का अदभुत संगम था।
सयुक्त प्रान्त, आगरा एवं अवध में, अवध की वेगमों, बनारस के राजा चेत सिंह की फांसी, रुहेलखण्ड के क्षत्रिय सरदारों के प्रति ईस्ट इंडिया कंपनी की उपेक्षा पूर्ण नीति और दिल्ली के अंतिम मुगल शासक बहादुरशाह जफ़र के दो बेटों को दिल्ली में बीच मार्ग पर खड़ा करके गोली मारने की घटना ने आग में घी डालने का काम किया| साथ ही क्षत्रिय राजाओं को गोद लेने की प्रथा को समाप्त करने की लार्ड डलहौजी की घोषणा ने भी भीषण जनक्रांति को जन्म दिया ।
परिणामस्वरूप मुग़ल शासक बहादुरशाह जफ़र के झंडे के नेतृत्व में बेगम हजरत महल, झांसी की रानी लक्ष्मीबाई, बाजीराव पेशवा, अवध के राजा बेनी माधव सिंह, उन्नाव के राव रामबक्श सिंह बैस, बाबू कुंवर वीरसिंह पंवार जगदीशपुर, दरियाव सिंह खागा, राजा नरपति सिंह हरदोई, शिवरतन सिंह हिस्था सेमरी बिहार, गालब सिंह अलुरी, सीताराम राजू आंध्र प्रदेश तथा रानी निड़ाल नागालैंड आदि ने क्रांति कर लाखों क्रांतिकारियों के साथ क्रांति की ज्वाला को प्रज्जवलित कर दिया।
इसी दरमियान १८५७ के विद्रोह के बाद कई तालुकदार और राजपूत एस्टेट धारकों की स्थिति से अंग्रेजी शासन द्वारा समझौता किया गया था| जिन तालुकदार और राजपूत एस्टेट धारकों ने १८५७ के विद्रोह में क्रांतिकारियों का समर्थन किया या फिर उनके साथ भाग लिया उनके साथ अंग्रेजी शासन ने सख्त रवैया अपना था। अंग्रेजों ने उन तालुकदार और राजपूत एस्टेट धारकों की कई जमीनों और संपत्तियों को जब्त कर लिया और उन पर भारी जुर्माना लगाया गया।
कालाकांकर के मुखिया राजा हनुमंत सिंह, एक ऐसे ही तालुकदार थे, जिन्हें १८५७ के विद्रोह का समर्थन करने के लिए उनकी कई संपत्तियों से बेदखल कर दिया गया था। राजा हनुमंत सिंह ने महसूस किया कि उनके समुदाय द्वारा इस अत्याचारों के खिलाफ आवाज उठाने के लिए तथा समाज पर होने वाले इस अत्याचार के खिलाफ आवाज और अन्याय को दूर करने के लिए एक अखिल भारतीय संगठन आवश्यक है।
इसी समय गोंडा के राजा देवी बख्श सिंह बिसेन, कालाकांकर के राजा हनुमंत सिंह, प्रताप सिंह, माधोसिंह, अवध के राजा बेनी माधव सिंह, दरियाव सिंह, बाबू सहलन सिंह, जोधराज सिंह खीरी आदि राजाओं ने अवध की बेगम हजरत महल के योगदान से कालाकांकर के गंगा पुलिन पर “राम दल “का १६ मई १८५७ ई. में गठन किया जिसका प्रतीक चिन्ह “श्री राम “के चिन्ह के साथ लाल कमल का फूल था| और जिसके प्रचार तंत्र में योगी एवं साधु महात्मा भी घर- घर जाकर क्रांति का प्रचार-प्रसार कर रहे थे।
एक तरफ अखिल भारतीय संगठन की नींव रखी जा रही थी तो दूसरी तरफ अंग्रेजी हुकूमत ने अवध के जो सरदार लगान नहीं दे पा रहे थे उनकी जमीन जब्त कर ली गयी| और उनको उनके अधिकारों से बेदखल कर दिया गया। इस कठोर नीति ने जनक्रांति को वीभत्स रूप प्रदान किया।
इसी समय अंग्रेजों के द्वारा सैनिकों की दी गयी बंदूकों की गोलियों को गाय और सूअर की चर्बी को लगाने की बात ने तूल पकड़ लिया था| गाय हिन्दुवोंके के पवित्र तथा सूअर मुस्लिमोंके लिए हराम है इसी बात से हिन्दू और मुस्लिम सैनिकों की भावनाये आहात हो गई| और इसी धार्मिक उन्माद ने क्रांति के रूप में जन्म ले लिया|
क्रांति के लिए ३१ मई १८५७ ई. की तिथि निर्धारित की गयी थी| पर उसके पूर्व ही २६ फ़रवरी १८५७ ई. को सैनिक छावनी बहरामपुर में विद्रोह हो गया; लेकिन उस विद्रोह को दबा दिया गया। अंततः ३१ मार्च १८५७ ई. में मंगल पांडे ने विद्रोह कर दिया और विद्रोह की ज्वाला भड़क गयी।
बैसवाडा क्षेत्र उस समय ब्रिटिश फ़ौज की छावनी थी, जहाँ ४०००० हजार से अधिक क्षत्रिय सरदार सेना में सैनिक थे। करीब तीस हजार पेंशन पा रहे थे उनको युद्ध का अनुभव भी था। वे सभी राजाओं की क्रांति सेना में भर्ती हो गये।
नवाब रुहेलखण्ड की सेना में पिचहत्तर हजार बैस राजपूत सैनिक ,बैस वाड़ा के राजा बेनी माधव की सेना में ३५ हजार सैनिक थे। बैस वाङा केहर परिवार से हर एक व्यक्ति उनकी सेना का अंग था। बिहार के कुंवर वीर सिंह की सेना में 65 हजार विद्रोही सैनिक शामिल थे। यह एक महान क्रांति का समय था।
अंग्रेज गरीब भारतीयों को धन के लालच से ईसाई बना रहे थे। इसी समय कुछ क्षत्रिय राजाओं और नवाबों के अत्याचारों से पीड़ित थे वे परोक्ष रूप से अंग्रेजों से मिले रहे थे, जिससे उनको सामाजिक उपेक्षा का शिकार तो होना ही पड़ा, पर इसे क्षत्रियो को लामबन्द करके इस बलि बेदी पर एक सूत्र में बाँधने की आवश्यकता का अनुभव हुआ।
कालाकांकर प्रतापगढ़ के राजा हनुमंत सिंह के नेतृत्व में गंगा -जमुना क्रांति के प्रवाह में “राम दल “नाम के संघ ने गोपनीय तरीके से क्लब के रूपमें क्षत्रिय महासभा के सूत्रपात्र को जन्म दिया| और क्षत्रियों ने “राम दल ” को विघटित कर उसके स्थान पर १८६० ई. में “क्षत्रिय हितकारणी सभा” का गठन किया|
क्षत्रिय हितकारणी सभा का गठन राजपूत समुदायों के अधिकारों और हितों की रक्षा और लड़ाई के लिए किया गया था। पर यह राजाओं, राजदरवारियों और उनके सहयोगियों का संगठन आम बन कर रह गया| इस सभा का कार्य क्षेत्र उत्तरप्रदेश (प्रतापगढ़, गोरखपुर, आजमगढ़, बलिया, रायबरेली, उन्नाव, आगरा, मथुरा, हरदोई, मैनपुरी, गोंडा), मध्यप्रदेश, राजस्थान, गुजरात, बंगाल, जम्बू कश्मीर, पंजाब (वर्तमान हरियाणा ) तक ही सीमित था| जिसके सरपरस्त अंग्रेजों के शुभचिंतक थे इस कारण इससे क्रांति कारियों के परिवारों ने प्रायः दूरी बना कर रखी।
कालाकांकर से जन्मी क्षत्रिय हितकारणी सभा ने कालांतर में आगरा और अवध के नाम को परिवर्तित कर संयुक्त प्रान्त आगरा और अवध के नाम से पंजीकृत किया।
अवागढ़, एटा के राजा बलवंत सिंह के नेतृत्व में तत्काल समिति के प्रतिनिधि ठाकुर उमराव सिंह कोटला, राजर्षि राजा उदयप्रताप सिंह बिसेन, भिंगा, राजा खडग बहादुर सिंह, मझोली, बिहार, श्री रामदीन सिंह, तथा राजा मल्ल एवं अन्य क्षत्रियों ने “क्षत्रिय हितकारणी सभा” को बदल कर इसका पुनः नामकरण “क्षत्रिय महासभा” रखा गया।
इसी समय क्षत्रिय महासभा १९ अक्टूबर १८९७ को अस्तित्व में आई, जिसने क्षत्रियों और राजपूतों के कारण को बढ़ावा देने के लिए एक मंच तैयार किया। क्षत्रिय महासभा का पंजीकरण संयुक्त प्रान्त आगरा और अवध के प्रदेश में १९ अक्टूबर १८९७ को भारतीय सोसायटी अधिनियम के तहत राजधानी लखनऊ (लक्ष्मणपुर) अवध में किया गया|
राजा बलवंत सिंह, अवागढ़, एटा को संयुक्त प्रान्त आगरा एवं अवध को जनक (Founder) के रूप में अध्यक्ष निर्वाचित कर इसका पंजीकरण पंजीकृत कार्यालय 224 महात्मा गांधी मार्ग ,लखनऊ कैंट ,उत्तरप्रदेश तथा प्रधान कार्यालय मथुरा ,संयुक्त प्रान्त आगरा एवं अवध में रखा गया।
1898 में सभा द्वारा समाज जागृति तथा संगठन का प्रसार करने हेतु ‘राजपूत मासिक’ नामक एक समाचार पत्र शुरू किया गया। इसी समाचार पत्र के समरूप; जम्मू और कश्मीर के महाराजा सर प्रताप सिंह ने पाक्षिक रूप लाहौर के रूप में राजपूत राजपत्र नामक एक उर्दू प्रकाशन का शुभारंभ किया।
क्षत्रिय महासभा एसोसिएशन का पहला सम्मेलन आगरा में राजपूत बोर्डिंग हाउस में आयोजित किया गया था।
क्षत्रिय महासभा ने समाज के प्रति अपने प्रयास से उन्होंने शिक्षा के लिए और क्षत्रिय समुदाय के छात्रों को वरीयता देने के लिए अपने क्षेत्रों में विभिन्न स्कूल और कॉलेज शुरू किए।
स्वतंत्रता के पूर्व जिन रियासतों शासकों और बड़े ज़मींदारों का बोलबाला था उन की तथा उच्च क्षत्रिय जाति और उसके प्रभावशाली सदस्यों की स्थिति में स्वतंत्रता के पश्चात अचानक काफी बदलाव आये| रियासतों को भारत संघ में विलय कर दिया गया था और बाद में जमींदारी को भी समाप्त कर दिया गया था| इस वक़्त क्षत्रिय महासभा इन बड़े बदलावोके चलते दिशाहीन हो गई थी|
कालांतर में ०९-११-१९८६ में महाराजा लक्ष्मण सिंह डूंगरपुर के अध्यक्षता में एवं श्री कोक सिंह भदौरिया, राष्ट्रीय महामंत्री के समय में “क्षत्रिय महासभा” नामांतरण “अखिल भारतीय क्षत्रिय महासभा” के रूप किया गया, जो की वर्तमान के संगठन के रूप में कार्यरत है|
अखिल भारतीय क्षत्रिय महासभा के पूर्व एवं वर्तमान राष्ट्रीय अध्यक्ष | Former and current National President of Akhil Bhartiya Kshatriya Mahasabha
स्थापना के बाद से कई उल्लेखनीय व्यक्तियों ने इस संगठन का नेतृत्व किया है।
- अवगढ़ (यूपी) के राजा बलवंत सिंहजी 1897
- महाराजा साहब रामपाल सिंह जी, कला कंकड़ (यूपी) 1899
- महाराजा सर प्रताप सिंह जी, जम्मू और कश्मीर, 1902
- लेफ्टिनेंट कर्नल प्रताप सिंह जी इदर, जोधपुर, (राज.) 1903
- बीकानेर (राजस्थान) के महाराजा सर गंगा सिंहजी 1904
- मंझोली (यूपी) के राजा कौशल किशोर सिंह जी 1906
- राजा साहब प्रताप बहादुर सिंह जी प्रतापगढ़ (यूपी) 1907
- महाराजा जसवंत सिंह जी, सैलाना (म.प्र.) 1911
- महाराजा सर प्रताप सिंह जी, जम्मू और कश्मीर, 1913
- सैलाना के महाराजा दलीप सिंहजी (एमपी) 1920
- शाहपुरा (राजस्थान) के महाराजाधिराज श्री नाहर सिंहजी 1922
- राव साहब गोपाल सिंह जी, खरवा, अजमेर, (राजस्थान) 1924
- अलवर (राजस्थान) के महाराजा सवाज जय सिंहजी 1925
- महाराजा साहब सज्जन सिंह जी, रतलाम (म.प्र.) 1929
- महाराजा यादवेंद्र सिंहजी, पटियाला, पंजाब 1933
- कुंवर साहब सर विजय प्रताप सिंह जी राय, बागला, 1940
- महाराजा साहब राम रणविजय प्रताप सिंह जी, डुमरावा, बिहार 1941
- मोतिहारी (बिहार) के महाराजा कुमार विजय आनंद 1942
- रामगढ़ (बिहार) के राजा कामाख्या नारायण सिंहजी 1942
- पन्ना के महाराजा यादवेंद्र सिंहजी जूदेव (एमपी) 1946
- अलवर (राजस्थान) के महाराजा स्वाई तेज सिंहजी 1947
- जोधपुर के ठाकुर साहब कर्नल मान सिंहजी भाटी (राजस्थान) 1948
- रामगढ़ (बिहार) के राजा कामाख्या नारायण सिंहजी 1953
- हजारी बेग (बिहार) के श्रीमन बाबू राम नारायण सिंहजी 1955
- डूंगरपुर (राजस्थान) के महारावल लक्ष्मण सिंहजी 1960
- वांकानेर (गुजरात) के राजा डॉ दिग्विजय सिंहजी 1989- दिसंबर 2018
- श्री. महेंद्र सिंह तंवर कुरुक्षेत्र हरियाणा 2019 – अब तक
अखिल भारतीय क्षत्रिय महासभा संरक्षक मंडल | Akhil Bhartiya Kshatriya Mahasabha board of guardians
- महाराजा गज सिंह (जोधपुर)
- डॉ. करण सिंह (जम्मू & कश्मीर)
- महाराणा डॉ. दिग्विजय सिंह (गुजरात)
- राणा के.पी.सिंह (पंजाब)
- महाराजा रघुबीर सिंह सिहोरी (सिहोरी राजस्थान)
- राजा दिग्विजय सिंह (राघोगढ़, म. प्र.)
- युवराज हर्षवर्धन सिंह (डूंगरपुर)
- जी श्री हुजूर अरविंद सिंह (मेवाड़, राजस्थान)
अखिल भारतीय क्षत्रिय महासभा महिला विंग | Akhil Bhartiya Kshatriya Mahasabha Women’s Wing
अखिल भारतीय क्षत्रिय महासभा महिला विंग यह अखिल भारतीय क्षत्रिय महासभा संगठन का ही एक भाग है| यह इकाई अखिल भारतीय क्षत्रिय महासभा का महिला संगठन है| इस इकाई की सभी सदयस्या महिलाएं (क्षत्राणियां) है| इस संगठन की कार्यकारिणी भी महिलाओं द्वारा ही संचालित की जाती है|
अखिल भारतीय क्षत्रिय महासभा महिला विंग का मुख्य उद्देश्य महिलाओं को उनका अधिकार दिलाना, आगे बढ़ने के सभी अवसर प्रदान करना, क्षत्रिय महिलाओं को शिक्षित करना तथा समाज में उचित स्थान प्रदान करना है| इन उद्देश्यों के चलते अखिल भारतीय क्षत्रिय महासभा महिला विंग महिलाओं के लिए अनेक कार्यक्रमों का आयोजन करती रहती है|
अखिल भारतीय क्षत्रिय महासभा महिला विंग की विद्यमान राष्ट्रीय अध्यक्ष माननीय जया सिंह जूदेव है|
अखिल भारतीय क्षत्रिय महासभा वेबसाइट | Akhil Bhartiya Kshatriya Mahasabha website
अखिल भारतीय क्षत्रिय महासभा के बारे में अधिक जानकारी प्राप्त करने के लिए तथा संगठन के विविध कार्यों के बारे में जानने के लिए अखिल भारतीय क्षत्रिय महासभा ने अपनी एक वेबसाइट वेबसाइट प्रस्तुत की है| इस वेबसाइट पर जाने की किये अखिल भारतीय क्षत्रिय महासभा (http://akhilbharatiyakshatriyamahasabha.com/) पर क्लिक करे|
अखिल भारतीय क्षत्रिय महासभा के उद्देश्य | Objectives of Akhil Bhartiya Kshatriya Mahasabha
- क्षत्रिय नैतिकता और परंपराओं को कायम रखना शिक्षा।
- सर्वत्र फैले क्षत्रिय संगठन के बीच प्रभावी समन्वय के लिए एक शीर्ष निकाय के रूप में कार्य करना।
- एकता और सामाजिक उत्थान लाना।
- राष्ट्र और इसकी प्राकृतिक और सांस्कृतिक विरासत की रक्षा के लिए कार्य करना।
- स्वच्छ सार्वजनिक जीवन सुनिश्चित करने के लिए समाज में व्याप्त भ्रष्टाचार और शोषण की समस्याओं का सामना करना।
- महिलाओं को दिए जाने वाले आरक्षण के सभी लाभों का लाभ उठाने के लिए क्षत्रिय महिलाओं को सक्रिय करना।
- क्षत्रियों की आर्थिक स्थिति में सुधार के लिए बाजार अर्थव्यवस्था की मौजूदा प्रवृत्ति के साथ तालमेल रखे।
- विरासत में मिले नेतृत्व के गुण क्षत्रियों को पंचायतों से लेकर संसद तक सभी राजनीतिक दलों में होना चाहिए।
- आरक्षण जाति के आधार के बजाय समाज के सभी आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों को दिया जाना चाहिए।
- दहेज और मृत्यु के बाद खर्च के खिलाफ सामाजिक सुधारों को बढ़ावा देना।
- कृषि को उद्योगों की तर्ज पर टैक्स फ्री सुविधा दी जाए।
निष्कर्ष | Conclusion
अखिल भारतीय क्षत्रिय महासभा भारतीय इतिहास में एक महत्वपूर्ण संगठन है। क्षत्रियों के हितों की रक्षा करने और उनके उत्थान के लिए महासभा ने सराहनीय कार्य किया है। वर्तमान में भी महासभा के प्रयास जारी हैं, जिससे क्षत्रिय समुदाय राष्ट्र निर्माण में महत्वपूर्ण योगदान दे सके।