जोधपुर शहर के निर्माता राव जोधा (Rao Jodha)| आइये जानते है राव जोधा की कहानी, राव जोधा कौन थे और राव जोधा का जीवन परिचय| मांडोर से जोधपुर तक फैला राज, और उतनी ही विस्तृत राव जोधा की वंशावली| तो चलिए परिचित होते है राव जोधा हिस्ट्री से|
राव जोधा का जीवन परिचय | Introduction of Rao Jodha
पूरा नाम | राव जोधा सिंह राठौड़ |
पिता | राव रणमल |
माता | रानी अखेरकंवर |
जन्म | २८ मार्च १४१६ |
पूर्ववर्ती | राव रणमल |
उत्तरवर्ती | राव बीका |
पत्नियां | चार पत्नियां: रानी सुंदरी, रानी संतोष, रानी भोजा, रानी फरमा |
संतान | १२ पुत्र और ५ पुत्रियाँ |
राज्य सीमा | मांडोर से जोधपुर तक |
शासन काल | १४३८ से १४८९; ५० वर्ष |
मृत्यु | ६ अप्रैल १४८९ |
राव जोधा, मारवाड़ (आधुनिक जोधपुर) के राठौड़ राजपूत राजा थे। राव जोधा का जन्म २८ मार्च १४१६ को हुआ था। राव जोधा के पिता का नाम राव रणमल था (Rao Jodha ke pita ka naam) और वह उन्हीं के उत्तराधिकारी थे।
राव जोधा की माता का नाम रानी अखेरकंवर था (Rao Jodha ki mata ka naam)। वे हलवद के राजा जैतसिंह झाला की पुत्री थीं। रानी अखेरकंवर एक वीर और कुशल महिला थीं। उन्होंने राव जोधा को एक कुशल योद्धा और प्रशासक बनने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
राव जोधा ने १४५९ में जोधपुर शहर की स्थापना की। राव जोधा ने मेहरानगढ़ दुर्ग का निर्माण भी कराया, जो आज भी जोधपुर का एक प्रमुख पर्यटन स्थल है। वह एक कुशल योद्धा और प्रशासक थे। उन्होंने अपने राज्य का विस्तार किया और उसे एक शक्तिशाली राज्य बनाया।
राव जोधा की मृत्यु ६ अप्रैल १४८९ को हुई थी। राव जोधा के बेटे/पुत्र राव बीका (Rao Jodha ke putra) ने उनका उत्तराधिकार संभाला। आगे चलके राव जोधा की वंशावली के सदस्यों ने उनके राज्य का विस्तार किया|
राव जोधा को मारवाड़ के इतिहास में एक महान राजा के रूप में याद किया जाता है। उनकी वीरता, कुशलता और दूरदर्शिता ने मारवाड़ को एक शक्तिशाली और समृद्ध राज्य बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
राव जोधा के प्रमुख उपलब्धियां कुछ इस प्रकार है|
- जोधपुर शहर की स्थापना
- मेहरानगढ़ दुर्ग का निर्माण
- मारवाड़ राज्य का विस्तार
राव जोधा का परिवार | Rao Jodha ka Parivar
मांडू से मेवाड़, बीकानेर से जैसलमेर तक फैली हुईं गाथाएं हैं राव जोधा के वंश (Rao Jodha ka Vansh) की। मारवाड़ के सूर्यवंशी राठौड़ राजवंश के इस शूरवीर ने ना सिर्फ इतिहास में अपना नाम अंकित किया, बल्कि एक ऐसे परिवार को जन्म दिया जिसने सदियों तक राजस्थान की धरती को गौरवान्वित किया।
राव जोधा के पिता राव रणमल; मारवाड़ के शासक थे, मां रानी अखेरकंवर हलवद के राजा की सुंदरी पुत्री। राव जोधा की पत्नियां रानी सुंदरी, रानी संतोष, रानी भोजा और रानी फरमा (Rao Jodha Wife) – इन चार रानियों से राव जोधा को १२ पुत्र और ५ पुत्रियों का आशीर्वाद मिला। इनमें से प्रत्येक संतान ने इतिहास में अपना अलग मुकाम बनाया।
राव जोधा के पुत्रों में सबसे चर्चित हैं राव बीका। राव बीका बीकानेर शहर के संस्थापक थे| राव बीका अपनी वीरता और कुशल नीतियों के लिए आज भी जाने जाते हैं। राव जोधा के पुत्र राव सातल, राव सूजा, राव उदयसिंह और राव जगमाल ने जहां मारवाड़ की ख्याति को बनाए रखा, वहीं राव जोधा की पुत्री राव श्रींगारदेवी ने मेवाड़ से रिश्तेदारी निभाकर राजपूत धर्म की एकता को मजबूत किया।
परिवार का इतिहास सिर्फ वंशावली नहीं होता, बल्कि उपलब्धियों और त्यागों का सिलसिमा होता है। राव जोधा का परिवार भी इस बात का जीता जागता उदाहरण है। जोधपुर शहर की स्थापना, भव्य मेहरानगढ़ दुर्ग का निर्माण, मारवाड़ राज्य का विस्तार – ये वो उपलब्धियां हैं जिन्होंने राव जोधा को इतिहास में अमर कर दिया। इन उपलब्धियों के पीछे उनके परिवार का निरंतर समर्थन और योगदान भी भुलाया नहीं जा सकता।
आज भी मारवाड़ की धरती पर राठौड़ वंश के वंशज रहते हैं। राव जोधा और उनके परिवार की गाथाएं पीढ़ी-दर-पीढ़ी सुनाई जाती हैं। यही वीरता और त्याग की विरासत ही उनकी सबसे बड़ी देन है, जो रेगिस्तान की हवाओं में हमेशा गूंजती रहेगी।
राव जोधा की वंशावली | Rao Jodha ki Vanshavali
राव जोधा, मारवाड़ के महान शासक और जोधपुर शहर के संस्थापक, ने एक वंशावली छोड़ी जिसने सदियों से राज्य पर शासन किया। उनके कई पुत्रों ने महत्वपूर्ण भूमिकाएँ निभाईं, और उनमें से कुछ ने अपने स्वयं के रियासतों की स्थापना भी की। आइए, राव जोधा के उन वंशजों पर एक नज़र डालें, जिन्होंने उनके राज्य का नेतृत्व किया:
- राव बीका: राव जोधा के सबसे प्रसिद्ध पुत्रों में से एक, राव बीका ने १४८८ में बीकानेर शहर की स्थापना की। वह अपनी वीरता, कुशल नेतृत्व और दूरदर्शिता के लिए जाने जाते थे। उन्होंने जोधपुर और बीकानेर के बीच मजबूत संबंध बनाए रखे।
- राव सातल: राव जोधा के ज्येष्ठ पुत्र, राव सातल को उनके पिता ने फलौदी की जागीर दी थी। वह अपने शांत स्वभाव और कूटनीतिक कौशल के लिए जाने जाते थे। उन्होंने फलौदी रियासत की नींव रखी, जो बाद में जोधपुर का एक महत्वपूर्ण हिस्सा बन गया।
- राव सूजा: राव जोधा के एक अन्य पुत्र, राव सूजा को उनके पिता ने सिवाना की जागीर दी थी। वह एक बहादुर योद्धा थे और उन्होंने मुगलों के खिलाफ कई लड़ाइयों में जोधपुर का नेतृत्व किया।
- राव उदयसिंह: राव जोधा के वंशजों में से एक, राव उदयसिंह १५१५ से १५३२ तक जोधपुर के शासक रहे। उन्होंने मेवाड़ के राणा संग्राम सिंह के साथ मिलकर बाबर के खिलाफ खानवा की लड़ाई लड़ी।
- राव मालदेव: राव उदयसिंह के पुत्र, राव मालदेव १५३२ से १५६२ तक जोधपुर के शासक रहे। वह अपने समय के सबसे शक्तिशाली राजपूत शासकों में से एक थे और उन्होंने मुगलों के खिलाफ कई सफल युद्ध लड़े।
- राजा सूरज सिंह: राव मालदेव के पुत्र, राजा सूरज सिंह १५६२ से १५९३ तक जोधपुर के शासक रहे। उन्होंने मुगलों के साथ शांति स्थापित की और राज्य की आंतरिक स्थिरता को बनाए रखा।
- राजा गज सिंह: राजा सूरज सिंह के पुत्र, १५९३ से १६१९ तक शासन किया। मुगलों के साथ संघर्ष जारी रखा।
- महाराजा गज सिंह प्रथम: राजा गज सिंह के पुत्र, १६१९ से १६३८ तक शासन किया। मुगलों से संधि कर राज्य की स्थिरता बढ़ाई।
- महाराजा जसवंत सिंह प्रथम: महाराजा गज सिंह प्रथम के पुत्र, १६३८ से १६७८ तक शासन किया। कला और साहित्य का संरक्षक, शाहजहाँ और औरंगजेब के राज में मुगल साम्राज्य में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
- महाराजा अजीत सिंह: महाराजा जसवंत सिंह प्रथम के पुत्र, १६७८ से १७२४ तक शासन किया। औरंगजेब से कई युद्ध लड़े, राजपूत गौरव की रक्षा की।
- महाराजा अभय सिंह: महाराजा अजीत सिंह के पुत्र, १७२४ से १७४९ तक शासन किया। मराठों से संघर्ष किया, जोधपुर की शक्ति बनाए रखी।
- महाराजा राम सिंह: महाराजा अभय सिंह के पुत्र, १७४९ से १७५१ तक शासन किया। मराठों के साथ समझौता किया।
- महाराजा बख्त सिंह: महाराजा राम सिंह के पुत्र, १७५१ से १७६३ तक शासन किया। मराठों से संघर्ष किया, आंतरिक विद्रोह का सामना किया।
- महाराजा विजय सिंह: महाराजा बख्त सिंह के पुत्र, १७६३ से १७९२ तक शासन किया। मराठों से समझौता किया, अंग्रेजों से संबंध स्थापित किया।
- महाराजा मान सिंह: महाराजा विजय सिंह के पुत्र, १७९२ से १८०३ तक शासन किया। अंग्रेजों से संधि कर जोधपुर की रक्षा की।
- महाराजा भोम सिंह: महाराजा मान सिंह के पुत्र, १८०३ से १८२३ तक शासन किया। अंग्रेजों के साथ सहयोगात्मक संबंध बनाए रखा।
यह सूची १९ वीं शताब्दी के मध्य तक जोधपुर पर शासन करने वाले राव जोधा के वंशजों को दर्शाती है। राव जोधा के वंशजों ने सदियों तक राजस्थान के राजनीतिक परिदृश्य में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उन्होंने बहादुरी, कूटनीति और दूरदर्शिता का परिचय दिया और अपने राज्य को समृद्ध बनाने में योगदान दिया। उनकी विरासत आज भी जोधपुर की संस्कृति और इतिहास में देखी जा सकती है।
राव जोधा का इतिहास | राव जोधा हिस्ट्री | History of Rao Jodha | Rao Jodha History in Hindi | Rao Jodha ka itihas
१४१६ में जन्मे राव जोधा राठौड़ वंश के थे। युवावस्था से ही उन्होंने शस्त्रास्त्र और युद्ध कला में निपुणता हासिल की। जब उनके पिता राव रणमल मंडोर के युद्ध में पराजित हुए, तो राव जोधा ने अपने भाइयों के सहयोग से मंडोर, सोहजत, पाली जैसे महत्वपूर्ण क्षेत्रों को पुनः प्राप्त कर राठौड़ वंश का प्रभाव बढाया।
१४५९ में उन्होंने मेहरानगढ़ दुर्ग का निर्माण शुरू करवाया, जो आज देश के सबसे भव्य किलों में से एक है। इसके बाद जोधपुर की स्थापना हुई, जो राव जोधा की महत्वाकांक्षा और कुशल रणनीति का प्रमाण है। उन्होंने कई युद्ध लड़े, विजय हासिल कीं और मारवाड़ राज्य की सीमाओं का विस्तार किया।
राव जोधा सिर्फ़ एक योद्धा ही नहीं, बल्कि कुशल प्रशासक भी थे। उन्होंने व्यापार को बढ़ावा दिया, धर्म और कला का संरक्षण किया। उनका दरवार विद्वानों और कलाकारों का प्रमुख केन्द्र था। उन्होंने जल संरक्षण की पहल की और कई बावड़ियों का निर्माण करवाया।
राव जोधा को उनकी धार्मिक सहिष्णुता के लिए भी जाना जाता है। उन्होंने मुसलमान संतों का सम्मान किया और उनके लिए मकबरे बनवाए। उनकी विनम्रता और दयालुता ने उन्हें आम जनता के बीच भी प्रिय बना दिया।
१४८९ में जब उनका निःश्वास चल गया, तो उनके पीछे एक समृद्ध साम्राज्य और गौरवशाली इतिहास रह गया। उनकी वंशजों ने कई शताब्दियों तक मारवाड़ पर शासन किया और आज भी जोधपुर की संस्कृति और इतिहास में उनकी छाप स्पष्ट दिखाई देती है।
राव जोधा का फलसा | Rao Jodha ji ka falsa
राव जोधा के “फलसा” को लेकर इतिहास में दो मुख्य मत मौजूद हैं:
पहला, यह शब्द शाब्दिक ही “फलसा” के पेड़ (Aegle marmelos) को संदर्भित करता है। किंवदंतियों के अनुसार, राव जोधा ने मेहरानगढ़ दुर्ग निर्माण के समय किसी संत की सलाह पर प्रतिदिन एक फलसा ग्रहण किया था। इससे दुर्ग के निर्माण में कष्ट दूर हुए और तीव्र गति बनी रही। इसे राव जोधा की दूरदर्शिता और धर्मनिष्ठा का प्रतीक माना जाता है।
दूसरा मत “फलसा” को एक प्रतीकात्मक शब्द के रूप में देखता है। संभावना है यह “फरमान” या “आदेश” का अपभ्रंश हो, जो दुर्ग निर्माण से जुड़े आदेशों और नियमों को इंगित करता था।
चाहे शाब्दिक फलसा हो या प्रतीकात्मक, यह राव जोधा के समय मेहरानगढ़ दुर्ग निर्माण और राजनीतिक कुशलता से जुड़ा हुआ है।
राव जोधा की मृत्यु | Rao Jodha ki Mrutu
राव जोधा के निधन को लेकर इतिहास में कई तरह की बातें कही जाती हैं, लेकिन कोई भी पूरी तरह प्रमाणित नहीं है। ऐसा माना जाता है कि १४८९ उन्हें जहर दे दिया गया था, मगर षड्यंत्र का कारण या जहर देने वाले का नाम स्पष्ट नहीं है। कुछ सूत्रों में मेवाड़ के राणा के साथ अनबन के चलते उनके मंत्री द्वारा षड्यंत्र की बात मिलती है, वहीं अन्य स्रोत बीकानेर के राव बीका से विवाद को संभावित कारण मानते हैं।
हालांकि, इन कहानियों का कोई ठोस प्रमाण नहीं है और यह भी संभव है कि राव जोधा की मृत्यु स्वाभाविक कारणों से ही हुई हो। इतिहास के पन्नों में उनके कार्यों और योगदान की छाप स्पष्ट दिखाई देती है, चाहे उनकी मृत्यु का वास्तविक कारण कुछ भी रहा हो।
राव जोधा के प्रमुख कार्य | Rao Jodha ke kary
राव जोधा, 15वीं शताब्दी के मारवाड़ शासक, इतिहास में अपने युद्ध कौशल और स्थापत्य कला के लिए प्रसिद्ध हैं। आइए, इन दोनों पहलुओं पर गहराई से नज़र डालें:
युद्धों का वीर योद्धा:
- पैतृक राज्य की पुनर्प्राप्ति: राव जोधा ने युवावस्था में ही अपने पिता की पराजय का बदला लिया और मंडोर, सोहजत, पाली जैसे महत्वपूर्ण क्षेत्रों को वापस जीतकर मारवाड़ को पुनर्स्थापित किया।
- विजय अभियान: उन्होंने गागरोन, भाद्राजुन, नाडोल जैसे पड़ोसी क्षेत्रों पर सफल युद्ध छेड़े और मारवाड़ राज्य का विस्तार किया।
- रणनीतिक चातुर्य: राव जोधा युद्धनीति में माहिर थे। वे कम से कम सैनिकों के साथ अधिक से अधिक लाभ अर्जित करने के लिए युद्ध कौशल का प्रयोग करते थे।
- प्रतिद्वंदियों से संघर्ष: उन्होंने दिल्ली सल्तनत और मेवाड़ जैसे शक्तिशाली प्रतिद्वंदियों से लगातार संघर्ष किया और अपनी स्वतंत्रता बनाए रखी।
स्थापत्य कला का धरोहर:
- मेहरानगढ़ दुर्ग: 1459 में शुरू हुआ यह भव्य दुर्ग उनकी सबसे महत्वपूर्ण स्थापत्य उपलब्धि है। इसका सात दरवाजों से युक्त विशाल परिसर उनकी शक्ति और वैभव का प्रतीक है।
- जोधपुर की स्थापना: मेहरानगढ़ के निकट उन्होंने राजधानी के रूप में जोधपुर शहर बसाया। यह व्यापार और कला-संस्कृति का प्रमुख केंद्र बना।
- जल संरक्षण कार्य: उन्होंने कई बावड़ियों का निर्माण करवाया, जो आज भी जोधपुर की प्यास बुझाती हैं। ये उनकी दूरदर्शिता और प्रजा के प्रति समर्पण का प्रमाण हैं।
- धार्मिक संरचनाएं: उन्होंने हिंदू और मुस्लिम संतों के लिए मंदिर और मकबरे बनवाए, जो उनकी धार्मिक सहिष्णुता का परिचय देते हैं।
इस प्रकार, राव जोधा ने युद्ध भूमि और निर्माण परियोजनाओं दोनों में अपनी छाप छोड़ी। उनकी वीरता और स्थापत्य कौशल का मिश्रण मारवाड़ के इतिहास में एक सुनहरा अध्याय बन गया। उनकी विरासत आज भी जोधपुर के वीरतापूर्ण अतीत और समृद्ध संस्कृति की गवाह है।
निष्कर्ष | Conclusion
राव जोधा, १५ वीं शताब्दी के इतिहास में एक धूमकेतु की तरह आए और अपनी वीरता, कूटनीति और स्थापत्य कौशल से एक अमिट छाप छोड़ी। युद्ध में शूरवीर, शासन में कुशल, धर्म में सहिष्णु – उन्होंने मारवाड़ राज्य को नई ऊंचाइयों तक पहुंचाया।
मेहरानगढ़ दुर्ग की गगनचुंबी दीवारें और जोधपुर शहर की रौनक उनकी दूरदर्शिता का प्रमाण हैं। उनके युद्ध अभियानों ने मारवाड़ की सीमाओं का विस्तार किया, तो उनकी प्रशासनिक क्षमता ने प्रजा का कल्याण सुनिश्चित किया। शताब्दियों बाद भी, राव जोधा का नाम मारवाड़ की गौरव गाथा का पर्याय बना हुआ है, उनकी विरासत राजपूत इतिहास में हमेशा अमर रहेगी।
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FAQ (राव जोधा के महत्वपूर्ण प्रश्न | Question related to Rao Jodha)
राव जोधा के कितने पुत्र थे? | Rao Jodha ke kitne putra the?
राव जोधा के १३ पुत्र और ४ पुत्रियां थी|
राव जोधा का जन्म कब हुआ? Birth of Rao Jodha | Rao Jodha ka janm kab hua?
राव जोधा का जन्म २८ मार्च १४१६ को हुआ था।
राव जोधा जी कौन थे?
राव जोधा जी मारवाड़ (जोधपुर) के एक महान शासक थे। उन्होंने मेहरानगढ़ दुर्ग का निर्माण करवाया और जोधपुर शहर की स्थापना की। They were known for their bravery, leadership, and architectural skills.
राव सूजा किसका पुत्र था?
राव सूजा, राव जोधा, मारवाड़ के प्रसिद्ध शासक का पुत्र था। १४३९ में जन्मे राव सूजा ने १४९२ से १५१५ तक मारवाड़ पर शासन किया।
राव जोधा ने कौन सा किला बनवाया था?
राव जोधा ने मेहरानगढ़ किला बनवाया था। यह किला १४५९ में बनना शुरू हुआ और १५ वीं शताब्दी के अंत तक बनकर तैयार हुआ। यह किला जोधपुर शहर में स्थित है और आज भी राजस्थान के प्रमुख पर्यटक आकर्षणों में से एक है।
राव जोधा ने कितने युद्ध लड़े?
राव जोधा ने कितने युद्ध लड़े, इसका निश्चित विवरण इतिहास में नहीं मिलता।
उनके शासनकाल में कई छोटे-बड़े युद्ध और अभियान हुए, जिनमें मंडोर, सोहजत, पाली, गागरोन, भाद्राजुन, नाडोल, दिल्ली सल्तनत और मेवाड़ से युद्ध प्रमुख थे।
यह अनुमान लगाया जाता है कि राव जोधा ने अपने जीवनकाल में १५-२० युद्ध लड़े होंगे।
राव जोधा की कितनी पत्नियां थी?
राव जोधा की कितनी पत्नियां थीं, यह निश्चित रूप से कहना मुश्किल है। इतिहासकारों के मत भिन्न हैं। कुछ इतिहासकारों का मानना है कि उनकी १२ पत्नियां थीं, जबकि अन्य का अनुमान ८-९ पत्नियों का है।
यह निश्चित रूप से ज्ञात है कि राव जोधा ने विभिन्न राज्यों और राजघरानों से विवाह किए थे। इन विवाहों का उद्देश्य राजनीतिक संबंधों को मजबूत करना था।
राव जोधा की पत्नियों के नाम और उनके बारे में अधिक जानकारी प्राप्त करना कठिन है, क्योंकि उस समय के ऐतिहासिक दस्तावेजों में महिलाओं का उल्लेख कम ही होता था।
Rao Jodha ki mrityu kab hui?
राव जोधा की मृत्यु ६ अप्रैल १४८९ को हुई थी। वे ७३ वर्ष के थे। मृत्यु के बाद उनका पुत्र राव सूरजमल मारवाड़ का शासक बना।