बप्पा रावल का इतिहास | History of Bappa Rawa

बप्पा रावल (Bappa Rawal) को गहलोत वंश के संस्थापक के रूप में जाना जाता है| आइये जाने बप्पा रावल का इतिहास (History of Bappa Rawal) और बप्पा रावल की वंशावली (Bappa Rawal ke Vanshaj) के बारे में|

Table of Contents

बाप्पा रावल का परिचय | Introduction of Bappa Rawal | Bappa Rawal ka Parichay

नामकालभोजादित्य या कालाभोज
उपनामबाप्पा रावल
जन्मसन ७१२ , ईडर में हुआ
शासनावधिसन ७२८ – सन ७५३
राज्यकाल२० वर्ष
पितारावल महेंद्र द्वितीय
राजवंशगुहिल राजवंश
धर्महिन्दू धर्म
राजवंश स्थापनामेवाड़ राजवंश
संन्यास७५३ ई. में बप्पा रावल ५९ वर्ष की आयु
रानियांबाप्पा रावल की १०० रानियां थी ३३ मुस्लिम रानी

बप्पा रावल कौन थे? | Who was Bappa Rawal | Bappa Rawal Kaun The

बप्पा रावल (Bappa Rawal) मेवाड़ के संस्थापक और मेवाड़ राजवंश के सबसे शक्तिशाली और प्रसिद्ध शासकों में से एक थे। बप्पा रावल को “कालभोज” के नाम से भी जाना जाता है|

गुहिल वंश के वास्तविक संस्थापक बप्पा रावल को माना जाता है| इसी राजवंश में से सिसोदिया वंश का निकास माना जाता है, जिनमें आगे चल कर महान राजा राणा कुम्भा (Rana Kumbha), राणा सांगा (Rana Sanga), महाराणा प्रताप (Maharana Pratap) जैसे प्रतापी योद्धाओं ने जन्म लिया।

ऐसा कहा जाता है कि बप्पा रावल (Bappa Rawal) को मेवाड़ क्षेत्र के एक ऋषि हरित ऋषि (Harit Rushi) ने राजत्व का आशीर्वाद दिया था। बप्पा रावल को हारीत ऋषि (Harit Rushi) के द्वारा ही महादेव जी के दर्शन होने की बात मशहूर है|

बप्पा रावल (Bappa Rawal) एक न्यायप्रिय शासक थे। वे राज्य को अपना नहीं मानते थे, बल्कि शिवजी के एक रूप एकलिंग जी को ही उसका असली शासक मानते थे और स्वयं उनके प्रतिनिधि के रूप में शासन चलाते थे। लगभग २० वर्ष तक शासन करने के बाद उन्होंने वैराग्य ले लिया और अपने पुत्र को राज्य देकर शिव की उपासना में लग गये थे।

बप्पा रावल (Bappa Rawal) का मुस्लिम शासकों में और अरब आक्रमणकारियों में इतना खौफ था कि वह लगभग ४०० वर्षों तक भारत की तरफ आंख उठाकर भी नहीं देख सके। बप्पा रावल का इतिहास बहुत ही गौरवपूर्ण रहा है|

बप्पा रावल का जन्म और उनके पिता | Birth of Bappa Rawal and his Father | Bappa Rawal ka Janam aur Unke Pita

बप्पा रावल (Bappa Rawal) के पिता, रावल महेंद्र द्वितीय ने माउंट आबू या चंद्रावती की परमार राजपूत जाति की एक महिला से विवाह किया था। माउंट आबू और चंद्रावती दोनों उस समय परमार राजपूतों का केंद्र हुआ करते थे| वह परमार राजा मान मोरी की बहन थीं, जिन्होंने मेवाड़ राज्य के विस्तृत भाग पर अपना शासन प्रस्थापित किया था। इस भाग में गुहिलोत जाति वालों की भूमि भी शामिल थी, जिसे परमार आक्रमणकारियों ने एक सदी या उससे पहले मालवावोसे हासिल कर कब्जा कर लिया था, और चित्तौड़गढ़ के प्राचीन किले में अपनी राजधानी स्थापित की थी।

बप्पा रावल का जन्म कब हुआ?

बप्पा रावल की माता का नाम पुष्पवती था। बप्पा रावल का जन्म ७१२-७१३ ईस्वी में ईडर में हुआ था। उनका बचपन का नाम कालभोज (कालभोजादित्य) था।

बप्पा रावल की कितनी पत्नियां थी? | बप्पा रावल की कितनी मुस्लिम रानियां थी? | How many wives did Bappa Rawal have? | How many Muslim queens did Bappa Rawal have? | Bappa Rawal ki Kitni Patniya thi?

बापा रावल (Bappa Rawal) उस वक़्त के सबसे शक्तिशाली योद्धा और राजा थे| उस समय उनसे कोई भी लड़ना नहीं चाहता था और सभी राजाओको उनके साथ अच्छे समंधो की इच्छा थी| बप्पा रावल (Bappa Rawal) जी ने सम्पूर्ण भारत में अपना विजय रथ चलाया था| कहा जाता है की बप्पा रावल जी की सेना में १२ लाख से अधिक सैनिक थे।

बाप्पा रावल जी के साथ संबंध बनानेके लिए उस समय के काफी सारे राज परिवारोने अपनी बेटियों को बाप्पा रावल के साथ ब्याही थी| कहा जाता है की बप्पा रावल की १०० रानियां थी|

कई मुस्लिम शासकों ने बाप्पा रावल के डर से अपनी पुत्रियों का विवाह बाप्पा से कर दिया था| १०० रानियों में से बाप्पा रावल की ३३ मुस्लिम रानियां थी|

बाप्पा रावल एक उपाधि | Bappa Rawal is a title | Bappa Rawal ek Upadhi

बप्पा रावल (Bappa Rawal) में बप्पा या बापा वास्तव में कोई व्यक्तिवाचक शब्द या नाम नहीं है| जिस तरह से वल्लभ भाई पटेल को सरदार पटेल या फिर महात्मा गांधी को बापू कहकर पुकारा जाता है, इसी तरह बाप्पा यह एक आदर वाचक उपाधि है| मेवाड़ में बाप्पा इस शब्द को एक नृप विशेष के रूप में प्रयोग में लाया जाता है|

राजा कालाभोज को उनके प्रजा संरक्षण, देश रक्षण आदि कामों से प्रभावित होकर ही संभवत: जनता ने उन्हें बापा पदवी से विभूषित किया था।

भील समाज के प्रति उनकी आत्मीयता और संबंधों के बारे में तो हमें पता ही है| उन्ही भील समाज के सरदारों ने उन्हें रावल की उपाधि से नवाजा था|

राजा कालाभोज को मिली इन्ही उपाधियों के कारण वह इतिहास में बाप्पा रावल (Bappa Rawal) के नाम से ही प्रसिद्ध हुए और सदा के लिए जाने गए|

ऋषि हरित राशि की कृपा और आशीर्वाद | Grace and Blessings of Rishi Harit Rashi | Rishi Harit Rashi ki Kripa aur Aashirwad

बाप्पा रावल (Bappa Rawal) से जीडी कई किवदंतियां प्रसिद्ध है, हालांकि सबकी पूर्णतः पुष्टि नहीं की जा सकती| कहा जाता है की बाप्पा रावल पर महर्षि हरित ऋषि की विशेष कृपा थी| कुछ जगहों पर महर्षि हरित ऋषि को बप्पा रावल के गुरु भी बताया गया है|

सन ७११-७१२ के लगभग अरबी मुस्लिम आक्रमणों को गुरु गोरखनाथ जी और हरित ऋषि ने अपनी आंखों से देखा था। तभी गुरु गोरखनाथ ने हरित ऋषि से कहा था कि एक ऐसा योद्धा आएगा जो इन अरबी मुस्लिम आक्रमणकारियों को खदेड़ देगा।

बप्पा रावल बचपन में गाय चराने जाते थे| बप्पा जिन गायों को चराते थे, उनमें से एक गाय बहुत अधिक दूध देती थी। शाम को गाय जब जंगल से वापस लौटती थी तो उसके थनों में दूध नहीं रहता था। बप्पा दूध से जुड़े हुए रहस्य को जानने के लिए जंगल में उसके पीछे चल दिए। गाय निर्जन कंदरा में पहुंची और उसने हारीत ऋषि के यहां शिवलिंग अभिषेक के लिए दुग्धधारा करने लगी। इसके बाद बप्पा हारीत ऋषि की सेवा में जुट गए।

नागदा में ही हरित ऋषि की की देखरेख में बाप्पा रावल (Bappa Rawal) ने शिक्षा दीक्षा प्राप्त की और महर्षि हरित ऋषि ने उनको युद्ध ,अस्त्र और शस्त्र की शिक्षा प्रदान की थी। ऐसा कहा जाता है कि बप्पा को हरित ऋषि ने राजत्व का आशीर्वाद दिया था और ऋषि के आशीर्वाद से ही बप्पा मेवाड़ के राजा बने|

बप्पा रावल जब राजा बने, चित्तौड़ का मजबूत दुर्ग उस समय तक मोरी वंश के राजाओं के हाथ में ही था। परंपरा से यह प्रसिद्ध है कि हारीत ऋषि की कृपा से बापा रावल ने मानमोरी जैसे बलवान शासक को मारकर इस दुर्ग को अपने अधीन किया।

बप्पा रावल (Bappa Rawal) को हारीत ऋषि के द्वारा स्वयं भगवान महादेव जी के दर्शन होने की बात मशहूर है| बप्पा रावल ने भगवान एकलिंग जी के मंदिर का निर्माण उदयपुर के उत्तर में कैलाशपुरी में ७३४ ई. में करवाया था| इसी मंदिर के निकट ही हारीत ऋषि का आश्रम है।

बाप्पा रावल (Bappa Rawal) एक ऐसे सम्राट थे जो कभी किसी से भी पराजित नहीं हुए। यह बहुत ही चक्रवर्ती सम्राट थे। जब उन्होंने संपूर्ण क्षेत्र में शांति की स्थापना कर दी तो तो इन्होंने संन्यास लेना उचित समझा और मात्र 58 वर्ष की आयु में संन्यास ले लिया और अपने पुत्र को मेवाड़ का राजा बनाया।

महर्षि हरित ऋषि के नियमों के अनुसार वह वनप्रस्थ बन गए और संन्यास ले लिया। बाकी की उम्र इन्होंने हरित ऋषि के आश्रम और एकलिंग नाथ के मंदिर में गुजारी और वह लगातार शिव भक्ति करते रहे।

बाप्पा रावल की भगवान एकलिंग की भक्ति | Bappa Rawal’s devotion to Lord Ekling | Bappa Rawal ki Bhagwan Ekling ki Bhakti

बाप्पा रावल (Bappa Rawal) भगवान एकलिंग के परम भक्त थे जो की भगवान शिव का ही एक रूप है| बप्पा रावल को हारीत ऋषि के द्वारा स्वयं भगवान महादेव जी के दर्शन होने की बात मशहूर है| बप्पा रावल ने भगवान एकलिंग जी के मंदिर का निर्माण उदयपुर के उत्तर में कैलाशपुरी में ७३४ ई. में करवाया था|

बाप्पा राज्य को अपना नहीं मानते थे, बल्कि शिवजी के एक रूप ‘एकलिंग जी’ को ही उसका असली शासक मानते थे और स्वयं उनके प्रतिनिधि के रूप में शासन चलाते थे।

बाप्पा रावल (Bappa Rawal) ने संन्यास लेने के बाद बाकी की उम्र हरित ऋषि के आश्रम में एकलिंग नाथ के मंदिर में गुजारी और वह लगातार शिव भक्ति करते रहे।

बप्पा रावल का इतिहास | History of Bappa Rawal | Bappa Rawal ka Itihas

बप्पा रावल (8वीं शताब्दी) राजस्थान, भारत में मेवाड़ साम्राज्य के एक न्यायप्रिय राजा थे। वे राज्य को अपना नहीं मानते थे, बल्कि शिवजी के एक रूप ‘एकलिंग जी’ को ही उसका असली शासक मानते थे और स्वयं उनके प्रतिनिधि के रूप में शासन चलाते थे। लगभग 20 वर्ष तक उन्होंने बिना पराजित हुए शासन किया और बाद में अपने पुत्र को राज्य देकर उन्होंने वैराग्य ले लिया और शिव की उपासना में लग गये।

महाराणा संग्राम सिंह (राणा सांगा), उदय सिंह और महाराणा प्रताप जैसे श्रेष्ठ और वीर शासक उनके ही वंश में उत्पन्न हुए थे।

उन्होंने अरब की हमलावर सेनाओं को कई बार ऐसी करारी हार दी कि अगले ४०० वर्षों तक किसी भी मुस्लिम शासक की हिम्मत भारत की ओर आँख उठाकर देखने की नहीं हुई।

बप्पा रावल का राज्यकाल निश्चित तौर पर बताया नहीं जा सकता। बप्पा रावल का इतिहास के कुछ पहलू अभी भी लुप्त है। एकलिंग महात्म्य के अनुसार, बप्पा रावल ने सन ७२८ में मेवाड़ साम्राज्य की स्थापना की, और सन ७५३ में सिंहासन का त्याग कर दिया था|

बप्पा रावल मेवाड़ राजवंश के सबसे शक्तिशाली और प्रसिद्ध शासकों में से एक थे। सिंध में अरबों का शासन स्थापित हो जाने के बाद जिस वीर ने उनको न केवल पूर्व की ओर बढ़ने से सफलतापूर्वक रोका था, बल्कि उनको कई बार करारी हार भी दी थी, उसका नाम था बप्पा रावल।

हालांकि गुहिलोत राजपूत वंश के आठवें शासक होने के बावजूद, राजकुमार कलभोज (उनका वास्तविक नाम), ने सिंहासन और सत्ता हासिल करने के बाद अपने पारिवारिक नाम को जारी न रखते हुए उन्होंने मेवाड़ राजवंश की स्थापना की और इस वंश का नाम उन्होंने हासिल किये हुवे मेवाड़ राज्य के नाप पर रखा। बप्पा रावल ने देश के साथ ही दूसरे प्रदेशों में भी एक प्रसिद्ध नायक के रूप में अपना नाम प्रसिद्ध किया|

बप्पा रावल ने राजस्थान की लड़ाईयो में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी यह लड़ाईया युद्धों की एक श्रृंखला थी जो की ८ वीं शताब्दी ईस्वी में उत्तर-पश्चिमी भारत के क्षेत्रीय शासकों और सिंध के अरबों के बीच लड़ी गयी थी| इस लड़ाइयोमे भारत के क्षेत्रीय शासकों ने हमलावरों को करारी शिकस्त दी।

८ वीं शताब्दी में अरब मुसलमानों ने इस्लाम के जन्म के कुछ दशकों के भीतर ही हिंदुस्तान पर आक्रमण करना शुरू कर दिया था, यह आक्रमण मूल रूप से फारसीयो के आक्रमण का ही विस्तार था।

७३८ ई. में अरब आक्रमणकारियों से बाप्पा ने युद्ध किया यह युद्ध वर्तमान राजस्थान की सीमा के भीतर हुआ था| बप्पा रावल, प्रतिहार शासक नागभट्ट प्रथम व चालुक्य शासक विक्रमादित्य द्वितीय की सम्मिलित सेना ने अल हकम बिन अलावा, तामीम बिन जैद अल उतबी व जुनैद बिन अब्दुल रहमान अल मुरी की सम्मिलित सेना को पराजित किया था|

राजपूताना की पश्चिमी और उत्तरी सीमाओं पर मुस्लिम आक्रमणों को रोकने के लिए, बप्पा रावल ने अजमेर और जैसलमेर के छोटे राज्यों को एकजुट किया जिससे की हमलावरों को रोका जा सके। बप्पा रावल ने देश में अरबों से युद्ध किया और उन्हें पराजित किया जिससे कुछ समय के यह हमेल रुक गए| हमलावर बिन कासिम सिंध में दाहिर को हराने में सफल रहा था, लेकिन बप्पा रावल ने उसे भी रोक दिया।

कुछ ऐतिहासिक दस्तावेजों में विवरण मिलता है की कासिम ने चित्तौड़ पर हमला किया था, जिस पर उस समय मोरी राजपूतों का शासन था। गुहिलोत वंश के बप्पा रावल, उस समय मोरी सेना में सेनापति थे| बप्पा रावल ने बिन कासिम को करारी शिकस्त दी और बिन कासिम को सौराष्ट्र से होते हुए सिंधु के पश्चिमी तट तक (वर्तमान का बलूचिस्तान) खदेड़ दिया|

फिर बाप्पा रावल (Bappa Rawal) ने गजनी की ओर कूच किया और स्थानीय शासक सलीम को हराया, वह अपने एक प्रशासनिक प्रतिनिधि को नियुक्त करने के बाद वह चित्तौड़ लौट आये।

राजा मोरी ने बप्पा रावल को अपना उत्तराधिकारी नियुक्त किया और उन्हें चित्तौड़ का राजा बनाया| बप्पा रावल और उनकी सेनाओं ने कंधार, खुरासान, तूरान, इस्पाहन, ईरान सहित विभिन्न राज्यों पर आक्रमण किया और उन्हें अपने राज्य का जागीरदार बना लिया। इस प्रकार उन्होंने न केवल भारत की सीमाओं की रक्षा की बल्कि थोड़े समय के लिए उनका विस्तार भी किया।

अरबों के खिलाफ सफल अभियानों के बाद, हिंदुस्तान में कई भीतरी संघर्ष हुए, सबसे प्रसिद्ध प्रतिहारों और राष्ट्रकूटों के बीच का था| राष्ट्रकूट राजा दंतिदुर्ग ने उज्जैन पर कब्जा कर लिया और वहां हिरण्यगर्भ समारोह किया, हालांकि कुछ समय पश्चात राष्ट्रकूट चले गए और नागभट्ट ने अपनी सत्ता वापस हासिल कर ली|

इन संघर्षों में बप्पा रावल को भी प्रतिहारों को उनके संघर्ष में मदद करके, दंतिदुर्ग की सेना का सामना करना पड़ा| इन संघर्षो में बप्पा रावल ने मेवाड़ क्षेत्र के पूर्वी हिस्सों पर कब्जा करने में सफलता प्राप्त की थी| उन्होंने कर्नाटक और चोलावो के साथ भी संघर्ष किया जैसा कि चित्तौड़ के शिलालेख में वर्णित मिलता है।

बप्पा रावल (Bappa Rawal) का मुस्लिम शासकों में और अरब आक्रमणकारियों में इतना खौफ था कि वह लगभग ४०० वर्षों तक भारत की तरफ आंख उठाकर भी नहीं देख सके।

रावलपिंडी का इतिहास | History of Rawalpindi | Rawalpindi ka Itihas

Rawalpindi - Bappa Rawal

बाप्पा रावल (Bappa Rawal) ने अरब आक्रमण करियोका प्रतिकार करके उन्हें अफगानिस्तान व पाकिस्तान तक खदेड़ा था। बाप्पा इन विदेशी आक्रामकारियो का सामना भारतीय सीमाओं से बाहर ही करना चाहते थे| इसलिए इन अरब आक्रमण करियो पर नजर बनाए रखने के लिए और प्रतिकार करने के लिए बाप्पा ने अपना एक मुख्य सैन्य ठिकाना गजनी नामक प्रदेश में बना लिया था|

बाद में इस गजनी नामक प्रदेश को बाप्पा रावल (Bappa Rawal) के नाम से रावलपिंडी कहकर सम्बोधित किया जाने लगा| कई इतिहासकारों का यही मानना है कि पाकिस्तान का मुख्य शहर रावलपिंडी, मेवाड़ के महान शासक बप्पा रावल के नाम पर बना हुआ है।

बप्पा रावल की वंशावली | बप्पा रावल के वंशज | Bappa Rawal ke Vanshaj

गुहिल राजवंश

  • बप्पा रावल (734-753 ई.): मेवाड़ के संस्थापक, जिन्होंने चित्तौड़गढ़ पर विजय प्राप्त की।
  • कालभोज (753-778 ई.): बप्पा रावल के पुत्र, जिन्होंने मेवाड़ के शासन को मजबूत किया।
  • भोजराज (778-806 ई.): कालभोज के पुत्र, जिन्होंने अरब आक्रमणों को रोकने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
  • कक्क (806-813 ई.): भोजराज के पुत्र, जिन्होंने मेवाड़ की सीमाओं का विस्तार किया।
  • गुहदित्य (813-828 ई.): कक्क के पुत्र, जिन्होंने मेवाड़ में कई मंदिरों का निर्माण करवाया।
  • खुमाण (828-853 ई.): गुहदित्य के पुत्र, जिन्होंने मेवाड़ की समृद्धि में वृद्धि की।
  • महाभोज (853-878 ई.): खुमाण के पुत्र, जिन्होंने मेवाड़ की कला और संस्कृति को विकसित किया।
  • भोज (878-917 ई.): महाभोज के पुत्र, जिन्होंने मेवाड़ की सैन्य शक्ति को मजबूत किया।
  • नरवाहन (917-948 ई.): भोज के पुत्र, जिन्होंने मेवाड़ में कई सामाजिक सुधार किए।
  • श्रीपाल (948-973 ई.): नरवाहन के पुत्र, जिन्होंने मेवाड़ की शिक्षा प्रणाली को विकसित किया।

सिसोदिया वंश

  • राणा कुंभा (1433-1468 ई.): मेवाड़ के महान शासक, जिन्होंने चित्तौड़गढ़ किले का निर्माण करवाया।
  • राणा सांगा (1482-1528 ई.): राणा कुंभा के पुत्र, जिन्होंने मुगलों के खिलाफ वीरता से युद्ध लड़ा।
  • महाराणा प्रताप (1572-1597 ई.): राणा सांगा के वंशज, जिन्होंने मुगलों के खिलाफ 30 वर्षों तक संघर्ष किया।

यह बप्पा रावल की वंशावली का एक संक्षिप्त विवरण है। इस वंश में कई महान योद्धा, कलाकार और शासक हुए, जिन्होंने मेवाड़ को एक शक्तिशाली और समृद्ध राज्य बनाया।

बप्पा रावल के सिक्के | Bappa Rawal’s coins | Bappa Rawal ke Sikke

कविराज श्यामलदास के शिष्य गौरीशंकर हीराचंद ओझा ने अजमेर के सोने के सिक्के को बापा रावल का माना है। इस सिक्के का तोल 115 ग्रेन (65 रत्ती) है।

इस सिक्के में सामने की ओर ऊपर के हिस्से में माला के नीचे श्री बोप्प लेख है| बाई ओर त्रिशूल है और उसकी दाहिनी तरफ वेदी पर शिवलिंग बना है। इसके दाहिनी ओर नंदी शिवलिंग की ओर मुख किए बैठा है। शिवलिंग और नंदी के नीचे दंडवत करते हुए एक पुरुष की आकृति है।

सिक्के के पीछे की तरफ चमर, सूर्य, और छत्र के चिह्न हैं। इन सबके नीचे दाहिनी ओर मुख किए एक गौ खड़ी है और उसी के पास दूध पीता हुआ बछड़ा है। ये सब चिह्न बप्पा रावल की शिवभक्ति और उसके जीवन की कुछ घटनाओं से संबंधित हैं।

बाप्पा रावल की मृत्यु | Death of Bappa Rawal | Bappa Rawal ki Mrutu

बाप्पा रावल की मृत्यु नागदा में हुई थी, उनकी समाधि आज भी वहा स्थित है| बाप्पा रावल की मृत्यु के समय उनकी उम्र लगभग ९७ साल की थी|

आबू के शिलालेख, कीर्ति स्तंभ शिलालेख और रणकपुर प्रशस्ति में बाप्पा रावल (Bappa Rawal) का वर्णन मिलता है|

बप्पा रावल से जुड़े रोचक तथ्य | Interesting facts related to Bappa Rawal | Bappa Rawal se Jude Rochak Tathya

  • बाप्पा रावल (Bappa Rawal) को मेवाड़ के गुहिल वंश का वास्तविक संस्थापक माना जाता है।
  • गोहिल राजपूत वंश के बप्पा रावल आठवें शासक राजा थे।
  • बप्पा जी रावल ने चित्तौड़ में मौर्य साम्राज्य को ध्वस्त करके गुहिल वंश की नीव रखी थी।
  • बाप्पा रावल जी की सेना में १२ लाख से अधिक सैनिक थे।
  • बप्पा रावल के बारे में कहा जाता है कि उनको भगवान शिव ने साक्षात दर्शन दिए थे।
  • मेवाड़ राजवंश के आराध्य श्री एकलिंगजी के मंदिर का निर्माण बप्पा रावल जी ने ७३४ ई. में करवाया था।
  • प्रचलित कथाओं के हिसाब से उनमे इतना बल था की वह एक साथ दो भैंसों की बलि एक ही झटके में दे देते थे।
  • वर्तमान पाकिस्तान के प्रसिद्ध शहर रावलपिंडी का नाम बप्पा रावल के नाम पर ही रखा गया था।
  • बप्पा का बाल्यकाल का नाम राजकुमार कालभोज हुआ करता था।
  • पहेरवेश में ३५ हाथ की धोती और १६ हाथ का दुपट्टा पहनते थे।
  • बापा की तलवार का वजन ३२ मन बताया जाता है।
  • बाप्पा रावल अपने भोजन में ४ बकरों का भोजन करते थे।
  • इनकी करीब १०० पत्नियां थी, जिनमे ३५ से अधिक मुस्लिम औरतें थी।
  • बप्पा रावल ने कुल १९ वर्षों तक शासन किया था।
  • जब इन्होंने चित्तौड़ को अपने अधिकार में लिया तब उनकी आयु मात्र २० वर्ष थी।
  • बप्पा रावल ने ३९ वर्ष की उम्र में सन्यास लिया था।
  • बप्पा रावल का वजन और बप्पा रावल की तलवार का वजन बहुत ज्यादा था।
  • उनका जन्म सन् ७१३ में हुआ था। और उनकी मौत तक़रीबन ९७ वर्ष की आयु में हुई थी।

FAQ (Frequently Asked Question | अक्सर पूछे जाने वाले सवाल)

बप्पा रावल का पूरा नाम क्या था?

बाप्पा रावल का असली नाम कालभोज था।

बप्पा रावल की कितनी मुस्लिम रानियां थी?

बप्पा रावल की करीब १०० रनिया थी, जिनमे ३५ से अधिक मुस्लिम राजकुमारियां थी।

बप्पा रावल की तलवार कितने किलो की थी?

ऐसी कोई पुख्ता जानकारी तो उपलब्ध नहीं है, किन्तु दन्त कथाओं और मेवाड़ के प्राचीन दस्तावेजों की माने तो Bappa Rawal की तलवार का वजन करीब ३२ मन (१२०० किलो) बताया जाता है।

बप्पा रावल के पूर्वज कौन थे?

बप्पा रावल के पिता ईडर के शासक महेंद्र द्वितीय थे।

बप्पा रावल की हाइट कितनी थी? | बप्पा रावल की लंबाई कितनी थी?

बप्पा रावल की हाइट या ऊंचाई करीब ९ फिट बताई जाती है|

बप्पा रावल के कुल कितने पुत्र थे?

बप्पा रावल के १०० से भी अधिक पुत्र थे|

बप्पा रावल के बाद मेवाड़ का राजा कौन था?

बप्पा रावल के बाद क्रमशः रावल खुमाण प्रथम, रावल मत्तट, रावल भर्तृभट्ट प्रथम शासक हुए।

बप्पा रावल क्यों प्रसिद्ध है?

बप्पा रावल सही मायनोमे प्रसिद्धी अरब सेनाओं के विरुद्ध सफल अभियनोसे मिली| उन्होंने अरब सेनाओं को सिंध तक खदेड़ा था|

बप्पा रावल का भोजन कितना था?

बाप्पा रावल अपने भोजन में ४ बकरों का भोजन करते थे।

क्या बप्पा रावल ने मोहम्मद बिन कासिम को हराया था?

बप्पा रावल ने बिन कासिम को करारी शिकस्त दी थी और बिन कासिम को सौराष्ट्र से होते हुए सिंधु के पश्चिमी तट तक (वर्तमान का बलूचिस्तान) खदेड़ दिया था|

बप्पा रावल का वजन कितना था?

बप्पा रावल का वजन कितना था, इसका कोई निश्चित प्रमाण नहीं है।
हालांकि, लोककथाओं और किंवदंतियों के अनुसार, वे अत्यंत शक्तिशाली और विशालकाय व्यक्ति थे। कहा जाता है कि वे ३५ हाथ की धोती और १६ हाथ का दुपट्टा पहनते थे, और उनकी तलवार का वजन ३२ मन (लगभग १२८० किलोग्राम) था।
यह भी कहा जाता है कि वे एक हाथ से दो भैंसों की बलि दे सकते थे।
हालांकि, इन दावों का कोई वैज्ञानिक प्रमाण नहीं है, और इन्हें केवल किंवदंती के रूप में ही देखा जाना चाहिए।

3 thoughts on “बप्पा रावल का इतिहास | History of Bappa Rawa”

  1. Sir, we were not told anything about such brave kings and there is no information about Bappa Rawal ji in our education department.

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  2. जय माताजी हुक्म
    हुक्म कृप्या बप्पा रावल जी कि वंशावली उपलब्ध करा दीजिये बताते इनके पुत्र या पौत्र मे खंगार जी नामक महाराज श्री हुए थे जिनका कोई वंसज 1209 समवत ईस्वी मे हरियाणा कि तरफ गए थे और फिर वही पर बस गए थे कृप्या इनकी सम्पूर्ण वंशावली उपलब्ध करा दीजिये 🙏🙏

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    • जय माताजी भाई साहब,
      हम बप्पा रावल जी की वंशावली खोज कर आप तक और अपने सभी भइओ तक पहुंचाने की कोशिश जरूर करेंगे|

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