भाटी राजपूत की अनसुनी गाथा : भाटी वंश | Bhati Rajput ki Ansuni gatha : Bhati Vansh

भारत के वीर इतिहास में भाटी राजपूत (Bhati Rajput) का नाम स्वर्ण अक्षरों में लिखा है। आइए, हम उनके गौरवशाली इतिहास से जाने भाटी राजपूत की शाखाएं, भाटी गोत्र, भाटी गोत्र की कुलदेवी, भाटी वंश का चिन्ह, भाटी वंश का गोत्र, भाटी वंश का इतिहास और ऐसी ही कई बातें।

भाटी  राजपूत का परिचय | भाटी  वंश का परिचय | Introduction of Bhati Rajput Vansh

भाटी राजपूत, सूर्यवंश के वंशज, अपनी वीरता, त्याग और बलिदान के लिए सदैव याद किए जाते हैं। इनकी उत्पत्ति भगवान कृष्ण के वंशज यदुवंश से मानी जाती है। छठी शताब्दी में, राजा भाटी ने भट्टक सम्वत / संवत  की स्थापना की, जो आज भी राजस्थान में प्रचलित है।

भाटी वंश ने भारत के इतिहास में अनेक वीर योद्धाओं को जन्म दिया, जिन्होंने अपनी वीरता और त्याग से अनेक युद्धों में विजय प्राप्त की। रावल जैसलदेव ने ११९६ ईस्वी में जैसलमेर की स्थापना की, जो भाटी राजपूतों की गौरवशाली राजधानी बनी।

भाटी राजपूतों ने अनेक किलों का निर्माण भी करवाया, जिनमें जैसलमेर का सोनार किला, भटिंडा का किला, और गंगानगर का किला प्रमुख हैं। इनके शासनकाल में कला, साहित्य और संस्कृति का भी विकास हुआ।

आज भी, भाटी राजपूत अपने साहस, वीरता और त्याग के लिए जाने जाते हैं। वे भारतीय संस्कृति और परंपराओं के संरक्षक हैं, और सदैव राष्ट्र सेवा के लिए तत्पर रहते हैं।

यह भाटी राजपूतों का संक्षिप्त परिचय है। आइए अब उनके इतिहास, प्रमुख शासकों, वीरतापूर्ण कार्यों और सांस्कृतिक योगदानों पर विस्तार से प्रकाश डालते हैं।

भाटी वंश की उत्पत्ति | भाटी वंश के संस्थापक | Bhati Rajput Vansh ke Sansthapak

भाटी वंश की उत्पत्ति को लेकर इतिहासकारों में एक रोमांचकारी रहस्य बना हुआ है। कुछ विद्वान उन्हें चंद्रवंशी क्षत्रियों से जोड़ते हैं, जिसका अर्थ है वे भगवान कृष्ण के वंशज हैं। वहीं, अन्य मतों के अनुसार, वे यदुवंशी क्षत्रियों की एक शाखा हैं, जो समान रूप से शूरवीरता के लिए प्रसिद्ध माने जाते हैं।

छठी शताब्दी ईस्वी में राजा शालिवाहन इस वंश के प्रारंभिक शासकों में से एक के रूप में उभर कर आते हैं। उन्होंने शालिवाहनपुर नामक नगर की स्थापना की, जो बाद में सियालकोट के नाम से जाना गया। राजा शालिवाहन के वंशज, राजा भाटी को ही अक्सर भाटी वंश का संस्थापक माना जाता है। उन्होंने ६२३ ईस्वी में भट्टक सम्वत की शुरुआत की, जो आज भी राजस्थान में प्रयोग किया जाता है।

हालांकि उत्पत्ति को लेकर मतभेद हैं, लेकिन ऐतिहासिक साक्ष्य बताते हैं कि भाटी वंश का उदभव सिंध और पंजाब क्षेत्र से हुआ। १२ वीं शताब्दी से पहले तक उनका राज्य अफगानिस्तान से लेकर पाकिस्तान और पश्चिमी भारत तक विस्तृत था। आगामी लेखों में, हम भाटी वंश के संस्थापकों के बारे में और अधिक जानने का प्रयास करेंगे, साथ ही उनके शासनकाल के वैभव और उपलब्धियों पर विस्तार से चर्चा करेंगे।

भाटी राजपूत का इतिहास | भाटी वंश का इतिहास | भाटी राजपूत हिस्ट्री इन हिंदी | Bhati Rajput History in Hindi | Bhati vansh ka Itihas

भाटी राजपूतों का इतिहास वीरता, त्याग और राष्ट्रभक्ति से सराबोर है। सदियों से, उन्होंने भारत की रक्षा के लिए अनेकों युद्ध लड़े और अपना सर्वस्व न्योछावर कर दिया। उनकी उत्पत्ति को लेकर इतिहासकारों में मतभेद हैं, कुछ उन्हें चंद्रवंशी मानते हैं तो कुछ यदुवंशी क्षत्रियों की शाखा मानते हैं।

१२ वीं शताब्दी तक भाटी राजपूतों का शासन सिंध और पंजाब क्षेत्र से लेकर अफगानिस्तान और पाकिस्तान तक फैला हुआ था। रावल जैसलदेव (११५०-११६६ ईस्वी) भाटी वंश के सबसे प्रसिद्ध शासकों में से एक थे। उन्होंने ११९६ ईस्वी में जैसलमेर की स्थापना की, जो भाटी राजपूतों की गौरवशाली राजधानी बनी।

भाटी राजपूत इतिहास में रावल जैसलदेव (११५०-११६६ ईस्वी) एक चमकता सितारा हैं। उनकी वीरता, रणनीति और दूरदर्शिता ने भाटी राजपूतों के इतिहास में एक स्वर्णिम अध्याय लिखा।

भाटी राजपूत सदैव बाहरी आक्रमणों को नाकाम करने में अग्रणी रहे। उन्होंने मुगलों से भी अनेकों युद्ध लड़े। रावल जैसलदेव की पुत्री रानी लक्ष्मीबाई (१५२८-१५४३ ईस्वी) अपने अदम्य साहस और वीरता के लिए जानी जाती हैं। उन्होंने दिल्ली के सुल्तान अलाउद्दीन खिलजी के विरुद्ध युद्ध किया और जैसलमेर के किले की रक्षा करते हुए जौहर किया।

  • जैसलमेर की स्थापना: रावल जैसलदेव ने ११९६ ईस्वी में जैसलमेर की स्थापना की। उन्होंने इसे मरुस्थलीय प्रदेश में एक मजबूत गढ़ के रूप में विकसित किया। यह किला सदियों से भारत की पश्चिमी सीमा की रक्षा करता रहा और भाटी राजपूतों की शक्ति का प्रतीक बना। जैसलमेर आज पर्यटन स्थल के रूप में भी प्रसिद्ध है, जिसका श्रेय रावल जैसलदेव की दूरदर्शिता को जाता है।
  • रणनीतिक कौशल: रावल जैसलदेव एक कुशल रणनीतिकार थे। उन्होंने अपने शासनकाल में आसपास के राज्यों के साथ कूटनीतिक संबंध बनाए और युद्धों में चतुराई का परिचय दिया। उनकी रणनीतियों ने भाटी राजपूतों को उस समय की चुनौतियों से निपटने में सहायता प्रदान की।
  • वीरता और दृढ़ संकल्प: रावल जैसलदेव एक निर्भीक योद्धा थे। उन्होंने अपने राज्य की रक्षा के लिए कई युद्ध लड़े। उनके दृढ़ संकल्प और वीरता की कहानियां आज भी लोकप्रिय हैं और पाठकों को प्रेरणा देती हैं।
  • सांस्कृतिक योगदान: रावल जैसलदेव के शासनकाल में कला और स्थापत्य को भी बढ़ावा मिला। उन्होंने जैसलमेर के किले का निर्माण करवाया, जो उस समय की शिल्पकला का एक उत्कृष्ट उदाहरण है। यह किला आज भी भारतीय वास्तुकला का गौरव बना हुआ है।

आगे के लेखों में, हम भाटी राजपूतों के इतिहास पर और अधिक विस्तार से चर्चा करेंगे। उनके प्रमुख शासकों, युद्धों, वीरतापूर्ण कार्यों और सांस्कृतिक योगदानों का गहन अध्ययन करेंगे। यह भाटी राजपूतों की विरासत को समझने और उनके गौरवशाली इतिहास को जीवित करने का एक प्रयास होगा।

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भाटी वंश के शासकों का इतिहास वीरता और राष्ट्रभक्ति से भरा पड़ा है। सदियों से उन्होंने भारत की रक्षा के लिए अनेकों युद्ध लड़े और अपना सर्वस्व न्योछावर कर दिया। आइए, भाटी वंश के कुछ प्रमुख शासकों पर एक नजर डालते हैं:

  • राजा शालिवाहन (६ ठी शताब्दी ईस्वी): इतिहासकार उन्हें भाटी वंश के प्रारंभिक शासकों में से एक मानते हैं। उन्होंने शालिवाहनपुर नामक नगर की स्थापना की, जो बाद में सियालकोट के नाम से जाना गया।
  • राजा भाटी (६२३ ईस्वी): इन्हें भाटी वंश का संस्थापक माना जाता है। उन्होंने ६२३ ईस्वी में भट्टक सम्वत की शुरुआत की।
  • रावल जैसलदेव (११५०-११६६ ईस्वी): भाटी वंश के सबसे प्रसिद्ध शासकों में से एक। उन्होंने ११९६ ईस्वी में जैसलमेर की स्थापना की, जो भाटी राजपूतों की गौरवशाली राजधानी बनी।
  • रानी लक्ष्मीबाई (१५२८-१५४३ ईस्वी): रावल जैसल देव की पुत्री रानी लक्ष्मीबाई। अपने अदम्य साहस और वीरता के लिए जानी जाती हैं। उन्होंने दिल्ली के सुल्तान अलाउद्दीन खिलजी के विरुद्ध युद्ध किया और जौहर किया।
  • महारावल अखैराज (१७६२-१७७२ ईस्वी):  इनके शासनकाल में भाटी राजपूतों का मुगलों से संघर्ष चरम पर था। उन्होंने मुगल आक्रमणों को विफल करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
  • महारावल मूलराज (१७६०-१८२० ईस्वी):  महारावल अखैराज के पुत्र। इन्होंने मुगलों से संघर्ष जारी रखा और अपने राज्य का विस्तार किया।
  • रावल गजसिंह (१८२०-१८४६ ईस्वी): महारावल मूलराज के पुत्र। इनके शासनकाल में ब्रिटिश सत्ता का उदय हुआ। रावल गजसिंह ने कूटनीति से काम लेते हुए ब्रिटिश राज से संधि स्थापित की।
  • महारावल जवाहरसिंह (१८४६-१८६४ ईस्वी): रावल गजसिंह के पुत्र। इनके शासनकाल में भी ब्रिटिश प्रभाव बढ़ता रहा। उन्होंने आंतरिक सुधारों पर ध्यान दिया।
  • महारावल भारमलसिंह (१८६४-१८९१ ईस्वी): महारावल जवाहर सिंह के पुत्र। शिक्षा और प्रशासन के क्षेत्र में सुधारों के लिए जाने जाते हैं।
  • महारावल श्री सिंह (१८९१-१९११ ईस्वी): महारावल भारमल सिंह के पुत्र। इनके शासनकाल में जैसलमेर रियासत का आधुनिकीकरण हुआ।

यह तो भाटी वंश के कुछ प्रमुख शासकों की संक्षिप्त जानकारी है। आगामी लेखों में, हम इन शासकों के जीवन, उपलब्धियों और उनके शासनकाल की घटनाओं पर विस्तार से चर्चा करेंगे।

भाटी गोत्र | भाटी राजपूत गोत्र | भाटी वंश का गोत्र | Bhati Rajput Gotra | Bhati vansh Gotra

भाटी राजपूतों के गोत्र के विषय में इतिहासकारों और विद्वानों में एकमत नहीं है। हालांकि, कुछ स्रोतों में भाटी  राजपूत गोत्र अत्रि गोत्र से जोड़ने का प्रयास किया गया है।

गोत्र मूल रूप से हिंदू धर्म में वंश परंपरा को दर्शाता है। माना जाता है कि किसी व्यक्ति का गोत्र उसके प्राचीन ऋषि पूर्वज से जुड़ा होता है।

कुछ विद्वानों का मानना है कि भाटी राजपूत चंद्रवंशी क्षत्रियों से उत्पन्न हुए हैं, जिनकी वंशावली ऋषि अत्रि से जुड़ी मानी जाती है। हालांकि, भाटी वंश की उत्पत्ति को लेकर ही मतभेद हैं, इसलिए भाटी गोत्र अत्रि गोत्र से उनके संबंध को निर्विवाद रूप से स्वीकारना कठिन है।

वर्तमान में उपलब्ध दस्तावेज और शिलालेख भाटी राजपूतों के गोत्र के स्पष्ट प्रमाण नहीं देते हैं।  आने वाले शोधों में  इस विषय पर और अधिक प्रकाश पड़ने की संभावना है।

भाटी गोत्र की कुलदेवी | भाटी वंश की कुलदेवी | भाटी राजपूत की कुलदेवी | Bhati Vansh ki kuldevi | Bhati Rajput Kuldevi

भाटी राजपूतों के लिए स्वांगिया माता, जिन्हें आवड़ माता के नाम से भी जाना जाता है, उनकी कुलदेवी हैं। देवी स्वांगिया का वीरतापूर्ण इतिहास सदियों से भाटी वंश के गौरव का प्रतीक रहा है।

माना जाता है कि देवी स्वांगिया चारण कुल में जन्मी थीं। उनका विवाह भाटी राजपूत राजा कान्हदेव के साथ हुआ था। शादी के बाद, देवी स्वांगिया ने युद्ध में अपने पति का साथ दिया और वीरतापूर्वक युद्ध लड़ा। दुश्मनों को परास्त करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हुए वे वीरगति को प्राप्त हुईं।

देवी स्वांगिया के वीरतापूर्ण कार्यों और बलिदान ने उन्हें भाटी वंश की कुलदेवी का दर्जा दिलाया। भाटी राजपूत सदियों से देवी स्वांगिया की पूजा करते हैं और उन्हें अपनी प्रेरणा का स्रोत मानते हैं।

देवी स्वांगिया का मंदिर जैसलमेर में स्थित है, जो भाटी राजपूतों के लिए एक महत्वपूर्ण तीर्थस्थल है। हर साल, भाटी राजपूत बड़ी धूमधाम से देवी स्वांगिया का मेला मनाते हैं और उनके वीरतापूर्ण कार्यों को याद करते हैं।

देवी स्वांगिया का इतिहास न केवल भाटी राजपूतों के लिए प्रेरणादायक है, बल्कि यह वीरता, त्याग और राष्ट्रभक्ति का प्रतीक भी है।

भाटी राजपूत की शाखाएं | भाटी  वंश की शाखाएं | Bhati Rajput ki Shakhayen

भाटी राजपूतों का इतिहास विभिन्न शाखाओं में विभाजित है। माना जाता है कि ये शाखाएँ समय के साथ युद्धों, विवाहों और राजनीतिक परिस्थितियों के कारण उत्पन्न हुईं। आइए, भाटी वंश की कुछ प्रमुख शाखाओं पर एक नज़र डालें:

  • अभोरिया: राजा भाटी के अनुज अभेराज के वंशज अभोरिया भाटी कहलाए। वर्तमान में ये शाखा मुख्य रूप से पंजाब क्षेत्र में पाई जाती है।
  • जेहा: राजा भाटी के अनुज जेह के वंशज जेहा भाटी कहलाए। इनका उल्लेख ऐतिहासिक दस्तावेजों में कम मिलता है, लेकिन माना जाता है कि ये भारत के कुछ अन्य क्षेत्रों में फैले।
  • सहराव: राजा भाटी के अनुज सहरा के वंशज सहराव भाटी कहलाए। इनकी शाखा भी मुख्य रूप से राजस्थान और आसपास के क्षेत्रों में निवास करती थी।
  • चौहान: कुछ विद्वानों का मानना है कि भाटी राजपूतों की एक शाखा चौहान राजपूतों में विलीन हो गई। यह मतभेद भाटी और चौहान वंशों के बीच ऐतिहासिक संबंधों को जटिल बनाता है।
  • आवड़: ये भाटी राजपूतों की एक महत्वपूर्ण शाखा मानी जाती है। माना जाता है कि इनका संबंध देवी स्वांगिया (आवड़ माता) के वंश से है।
  • आखावत: ये भाटी वंश की एक और प्रमुख शाखा है, जो मुख्य रूप से जैसलमेर और आसपास के क्षेत्रों में निवास करती थी।
  • काला: यह शाखा भी भाटी वंश से निकली मानी जाती है। ये मुख्य रूप से बीकानेर और जोधपुर क्षेत्रों में पाए जाते हैं।

यह भाटी राजपूतों की कुछ प्रमुख शाखाओं का संक्षिप्त विवरण है। आगामी लेखों में, हम इन शाखाओं के इतिहास, परंपराओं और उनके वर्तमान वितरण पर अधिक विस्तार से चर्चा करेंगे।

भाटी राजवंश के प्रांत | Bhati Vansh ke Prant

क्र.प्रांत के नामप्रांत का प्रकार
बालरवाठिकाना
बशाह्ररियासत
बेरूठिकाना
बिर्लोकाठिकाना
बीठूठिकाना
चामूठिकाना
गड़ाठिकाना
घडियालाठिकाना
हाड़लाठिकाना
१०हंसारीजागीर
११जैसलमेररियासत
१२जालोङाठिकाना
१३झाजूठिकाना
१४खारा–नेनियाठिकाना
१५खरबाराठिकाना
१६खेजड़लाठिकाना
१७खुड़ियालाठिकाना
१८ओसियांठिकाना
१९पूगलठिकाना
२०रतेशजैलदारी
२१रोहिडाठिकाना
२२साथीनठिकाना
२३सत्तोजागीर
२४सिंधूठिकाना
२५सिर्मूररियासत
२६सोडावासठिकाना
२७तालनपुरठिकाना
२८टोकलाठिकाना
२९उमेदनगरठिकाना

निष्कर्ष  | Conclusion

भाटी राजपूतों का इतिहास वीरता, राष्ट्रभक्ति और बलिदान से भरा पड़ा है। सदियों से उन्होंने भारत की रक्षा के लिए लड़ाईयां लड़ीं और अपना सर्वस्व न्योछावर कर दिया। रावल जैसलदेव जैसे शासकों ने अपने शौर्य से भाटी वंश का नाम रोशन किया। देवी स्वांगिया जैसी कुलदेवी उनकी प्रेरणा स्रोत रहीं। भाटी वंश की विभिन्न शाखाएं आज भी भारत के विभिन्न क्षेत्रों में मौजूद हैं, जो उनके समृद्ध इतिहास की गवाह हैं। आगामी लेखों में हम भाटी राजपूतों के इस गौरवशाली इतिहास को और अधिक गहराई से जानने का प्रयास करेंगे।

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