भुमित (Bhumit) यह शब्द राजपूतों के लिए विशिष्ट है। इस शब्द का अर्थ ही ‘भूमि’ है और भूमित का अर्थ है एकमेव अधिकारी। भुमित का मिट्टी पर अधिकार अनिवार्य रूप से वंशानुगत, गैर-पुनर्ग्रहणीय और अहस्तांतरणीय संपत्ति के रूप में होता है।
भुमित प्रांत प्रणाली का परिचय | Introduction to Bhumit Province System
भूमिद की उपाधि इतनी पोषित/अभिलषित है कि महानतम प्रमुख इसे प्राप्त करने के लिए इच्छुक हैं, यहां तक कि उन गांवों में भी जो पूरी तरह से उनके अधिकार पर निर्भर हैं, और साथ ही उनके क्षेत्रीय अधिकार क्षेत्र के बाहर भी है।
राजपूतों का शासन भारतीय इतिहास में एक महत्वपूर्ण काल है। 8वीं से 12वीं शताब्दी के बीच राजपूत राजवंशों ने उत्तर और मध्य भारत में अपना साम्राज्य फैलाया। राजपूत शासन की सबसे खास विशेषताओं में से एक थी ‘भुमित प्रांत प्रणाली’। यह एक अनूठी भूमि प्रशासन व्यवस्था थी, जिसका प्रभाव आज भी भारत के कुछ हिस्सों में देखा जा सकता है।
भुमित प्रणाली क्या थी? | What was the Bhumit system?
भुमित प्रणाली एक जटिल और विकसित भूमि प्रशासन प्रणाली थी, जो राजपूत राज्यों में भूमि के उपयोग और राजस्व संग्रह को नियंत्रित करती थी। इस प्रणाली के अंतर्गत, भूमि को विभिन्न क्षेत्रों में विभाजित किया गया था, जिन्हें ‘खंड’ या ‘प्रांत’ कहा जाता था। इसके बाद, इन खंडों को आगे भी छोटे-छोटे हिस्सों में विभाजित किया जाता था, जिन्हें ‘भुमित’ कहा जाता था।
भूमिदों के मूल कर्तव्य | fundamental duties of Bhumud
भूमिदों के कर्तव्य मूल रूप से तीन प्रकार के थे|
- जिस गाँव में भूम है उसे, और गाँव के मवेशियों को लुटेरों से बचाना|
- गांव के भीतर यात्रियों की संपत्ति को चोरी और डकैती से बचाना|
- तथा पीड़ितों को ऐसे अपराध के लिए मुआवजा प्रदान करना या करवाना जिसे की रोका जा सकता था।
भुमित प्रणाली की विशेषताएं | Features of Bhumit system
- भूमि का वर्गीकरण: भूमि को उसकी उर्वरता, सिंचाई की सुविधाओं और उपयोग के आधार पर विभिन्न श्रेणियों में बांटा गया था।
- भूमि अनुदान: राजा अपने सैनिकों, अधिकारियों, विद्वानों और धार्मिक संस्थानों को भूमि अनुदान के रूप में देता था, जिन्हें ‘जागीर’ या ‘भूमिदान’ कहा जाता था।
- राजस्व संग्रह: भूमि से राजस्व विभिन्न तरीकों से एकत्र किया जाता था, जैसे फसल का एक हिस्सा, मौद्रिक भुगतान या श्रम सेवा।
- स्थानीय स्वशासन: ‘भुमित’ स्तर पर, स्थानीय समुदायों को स्वशासन का अधिकार दिया गया था। ग्रामीण परिषदें, जिन्हें ‘पंचायत’ कहा जाता था, भूमि विवादों को सुलझाती थीं और स्थानीय मुद्दों पर फैसला लेती थीं।
राजपूत शासन में भुमित प्रणाली का महत्व | Importance of Bhumit system in Rajput rule
- कृषि विकास: भुमित प्रणाली ने कृषि विकास को सशक्त बनाया। भूमि के वर्गीकरण और अनुदान प्रणाली ने भूमि उपयोग को कुशल बनाया और कृषि उत्पादन में वृद्धि की।
- स्थिरता: ‘भुमित’ स्तर पर स्थानीय स्वशासन ने सामाजिक और राजनीतिक स्थिरता को बढ़ावा दिया।
- सैन्य शक्ति: जागीरदारों को दी गई भूमि अनुदान उन्हें सैनिकों को बनाए रखने और राजा की सैन्य शक्ति को मजबूत करने में सक्षम बनाती थी।
- सांस्कृतिक विकास: भूमि अनुदानों ने धार्मिक संस्थानों और विद्वानों को बढ़ावा दिया, जिससे कला, साहित्य और दर्शन का विकास हुआ।
भुमित प्रणाली की कमियां | Disadvantages of Bhumit system
- भ्रष्टाचार: राजस्व संग्रह की प्रणाली में भ्रष्टाचार की संभावना अधिक थी।
- जमींदारों का शोषण: कुछ जमींदार किसानों का शोषण करते थे और उनसे अधिक राजस्व वसूलते थे।
- समाज में असमानता: जागीर प्रणाली ने समाज में असमानता को बढ़ावा दिया, क्योंकि जमींदारों के पास बहुत अधिक शक्ति और संपत्ति थी।
निष्कर्ष | Conclusion
भुमित प्रणाली राजपूत शासन की एक महत्वपूर्ण प्रशासनिक व्यवस्था थी। इसने कृषि विकास, स्थिरता, सैन्य शक्ति और सांस्कृतिक विकास को बढ़ावा दिया। हालांकि, इस प्रणाली में कुछ कमियां भी थीं, जिन्होंने किसानों और समाज के अन्य वर्गों का शोषण किया। आज भी, भुमित प्रणाली के अवशेष भारतीय भूमि प्रशासन प्रणाली में देखे जा सकते हैं।