१८५७ की क्रांति में अंग्रेजों के विरुद्ध जौहर का अनसुना अध्याय | 1857 ki Kranti me British Raj ke Virudh Rajput Jauhar

१८५७ की क्रांति के दौरान, राजपूत रियासतों की वीरांगनाओं ने अंग्रेजों के हाथों बंदी और अपमान से बचने के लिए जौहर किया। राजपूत रियासतों ने अंग्रेजों के विरुद्ध इस क्रांति में विद्रोह किया था|

जौहर एक प्राचीन प्रथा थी, जिसमें पराजित राजपूत योद्धा की पत्नी और अन्य महिलाएं आग में कूदकर आत्महत्या कर लेती थीं। इस प्रथा का उद्देश्य यह था कि महिलाएं अंग्रेजों के हाथों अपमानित न हों।

अंग्रेजों के विरुद्ध राजपूतों के जौहर भारतीय इतिहास की एक महत्वपूर्ण घटना है। यह घटना राजपूतों की वीरता और स्वाभिमान की भावना को दर्शाती है।

१. ग्वालियर का जौहर (१८५८ ई.) | Gwaliyar ka Jauhar

१८५७ का भारतीय स्वतंत्रता संग्राम एक ऐतिहासिक घटना थी, जिसमें भारत के विभिन्न हिस्सों में ब्रिटिश शासन के खिलाफ विद्रोह हुए। इस विद्रोह में राजपूत रियासतों ने भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। ग्वालियर भी एक ऐसी रियासत थी, जिसने इस विद्रोह में भाग लिया।

१८५८ ई. में, ग्वालियर के शासक, जयसिंह द्वितीय, ने ब्रिटिश शासन के खिलाफ विद्रोह कर दिया। उन्होंने अंग्रेजों के खिलाफ कई युद्ध लड़े, लेकिन अंत में उन्हें पराजय का सामना करना पड़ा। पराजय के बाद, जयसिंह द्वितीय ने ग्वालियर के किले में शरण ली।

अंग्रेजों ने ग्वालियर किले को घेर लिया और जयसिंह द्वितीय को आत्मसमर्पण करने के लिए कहा। जयसिंह द्वितीय ने आत्मसमर्पण करने से इनकार कर दिया। उन्होंने अपनी रानियों और महिलाओं को जौहर करने का आदेश दिया।

१८ जुलाई, १८५८ को, ग्वालियर के किले में एक भीषण जौहर हुआ। जयसिंह द्वितीय की रानी लक्ष्मीबाई और १०० महिलाओं ने आग में कूदकर अपनी जान दे दी। इस जौहर में लगभग ३०० महिलाएं शामिल थीं।

ग्वालियर का जौहर एक ऐतिहासिक घटना है, जो भारतीय स्वतंत्रता संग्राम की एक महत्वपूर्ण घटना है। इस जौहर ने भारतीय महिलाओं की बहादुरी और स्वाभिमान को दुनियाभर में स्थापित किया।

२. झालावाड़ का जौहर (१८५८ ई.) | Zalawada ka Jauhar

१८५७ का भारतीय स्वतंत्रता संग्राम एक ऐतिहासिक घटना थी, जिसमें भारत के विभिन्न हिस्सों में ब्रिटिश शासन के खिलाफ विद्रोह हुए। इस विद्रोह में राजपूत रियासतों ने भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। झालावाड़ भी एक ऐसी रियासत थी, जिसने इस विद्रोह में भाग लिया।

१८५८ ई. में, झालावाड़ के शासक, भवानी सिंह, ने ब्रिटिश शासन के खिलाफ विद्रोह कर दिया। उन्होंने अंग्रेजों के खिलाफ कई युद्ध लड़े, लेकिन अंत में उन्हें पराजय का सामना करना पड़ा। पराजय के बाद, भवानी सिंह ने झालावाड़ के किले में शरण ली।

अंग्रेजों ने झालावाड़ किले को घेर लिया और भवानी सिंह को आत्मसमर्पण करने के लिए कहा। भवानी सिंह ने आत्मसमर्पण करने से इनकार कर दिया। उन्होंने अपनी रानियों और महिलाओं को जौहर करने का आदेश दिया।

१२ अगस्त, १८५८ को, झालावाड़ के किले में एक भीषण जौहर हुआ। भवानी सिंह की रानी मनोरमा देवी और १५० महिलाओं ने आग में कूदकर अपनी जान दे दी। इस जौहर में लगभग २०० महिलाएं शामिल थीं।

झालावाड़ का जौहर एक ऐतिहासिक घटना है, जो भारतीय स्वतंत्रता संग्राम की एक महत्वपूर्ण घटना है। इस जौहर ने भारतीय महिलाओं की बहादुरी और स्वाभिमान को दुनियाभर में स्थापित किया।

जौहर के कारण

झालावाड़ का जौहर १८५७ के भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के दौरान हुआ था। यह जौहर ब्रिटिश शासन के खिलाफ राजपूत रियासतों के विद्रोह का परिणाम था। भवानी सिंह ने ब्रिटिश शासन के खिलाफ विद्रोह किया था। उन्होंने अंग्रेजों के खिलाफ कई युद्ध लड़े, लेकिन अंत में उन्हें पराजय का सामना करना पड़ा। पराजय के बाद, भवानी सिंह ने झालावाड़ के किले में शरण ली।

जौहर की प्रक्रिया

झालावाड़ का जौहर एक भीषण घटना थी। इस जौहर में लगभग २०० महिलाओं ने आग में कूदकर अपनी जान दे दी। जौहर की प्रक्रिया इस प्रकार थी:

  • सबसे पहले, किले में एक बड़ी आग जलाई गई।
  • फिर, भवानी सिंह की रानियों और महिलाओं को आग के चारों ओर एक घेरा बनाकर खड़ा किया गया।
  • फिर, भवानी सिंह ने अपनी रानियों और महिलाओं को जौहर करने का आदेश दिया।
  • रानियों और महिलाओं ने बिना हिचकिचाहट के आग में कूदकर अपनी जान दे दी।

जौहर के परिणाम

झालावाड़ का जौहर एक ऐतिहासिक घटना है। इस जौहर ने भारतीय महिलाओं की बहादुरी और स्वाभिमान को दुनियाभर में स्थापित किया। इस जौहर ने यह भी दिखाया कि भारतीय महिलाएं अपने सम्मान और स्वाभिमान के लिए किसी भी हद तक जाने को तैयार हैं।

झालावाड़ का जौहर भारतीय स्वतंत्रता संग्राम की एक महत्वपूर्ण घटना है। इस जौहर ने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम को आगे बढ़ाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।

३. कोटा  का जौहर (१८५८ ई.) | Kota ka Jauhar

१८५७ का भारतीय स्वतंत्रता संग्राम एक ऐतिहासिक घटना थी, जिसमें भारत के विभिन्न हिस्सों में ब्रिटिश शासन के खिलाफ विद्रोह हुए। इस विद्रोह में राजपूत रियासतों ने भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। कोटा भी एक ऐसी रियासत थी, जिसने इस विद्रोह में भाग लिया।

१८५८ ई. में, कोटा के शासक, राव बख्तावर सिंह, ने ब्रिटिश शासन के खिलाफ विद्रोह कर दिया। उन्होंने अंग्रेजों के खिलाफ कई युद्ध लड़े, लेकिन अंत में उन्हें पराजय का सामना करना पड़ा। पराजय के बाद, राव बख्तावर सिंह ने कोटा के किले में शरण ली।

अंग्रेजों ने कोटा किले को घेर लिया और राव बख्तावर सिंह को आत्मसमर्पण करने के लिए कहा। राव बख्तावर सिंह ने आत्मसमर्पण करने से इनकार कर दिया। उन्होंने अपनी रानियों और महिलाओं को जौहर करने का आदेश दिया।

१६ अगस्त, १८५८ को, कोटा के किले में एक भीषण जौहर हुआ। राव बख्तावर सिंह की रानियों और महिलाओं ने आग में कूदकर अपनी जान दे दी। इस जौहर में लगभग ३०० महिलाएं शामिल थीं।

कोटा का जौहर एक ऐतिहासिक घटना है, जो भारतीय स्वतंत्रता संग्राम की एक महत्वपूर्ण घटना है। इस जौहर ने भारतीय महिलाओं की बहादुरी और स्वाभिमान को दुनियाभर में स्थापित किया।

जौहर के कारण

कोटा का जौहर १८५७ के भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के दौरान हुआ था। यह जौहर ब्रिटिश शासन के खिलाफ राजपूत रियासतों के विद्रोह का परिणाम था। राव बख्तावर सिंह ने ब्रिटिश शासन के खिलाफ विद्रोह किया था। उन्होंने अंग्रेजों के खिलाफ कई युद्ध लड़े, लेकिन अंत में उन्हें पराजय का सामना करना पड़ा। पराजय के बाद, राव बख्तावर सिंह ने कोटा के किले में शरण ली।

जौहर की प्रक्रिया

कोटा का जौहर एक भीषण घटना थी। इस जौहर में लगभग ३०० महिलाओं ने आग में कूदकर अपनी जान दे दी। जौहर की प्रक्रिया इस प्रकार थी:

  • सबसे पहले, किले में एक बड़ी आग जलाई गई।
  • फिर, राव बख्तावर सिंह की रानियों और महिलाओं को आग के चारों ओर एक घेरा बनाकर खड़ा किया गया।
  • फिर, राव बख्तावर सिंह ने अपनी रानियों और महिलाओं को जौहर करने का आदेश दिया।
  • रानियों और महिलाओं ने बिना हिचकिचाहट के आग में कूदकर अपनी जान दे दी।

जौहर के परिणाम

कोटा का जौहर एक ऐतिहासिक घटना है। इस जौहर ने भारतीय महिलाओं की बहादुरी और स्वाभिमान को दुनियाभर में स्थापित किया। इस जौहर ने यह भी दिखाया कि भारतीय महिलाएं अपने सम्मान और स्वाभिमान के लिए किसी भी हद तक जाने को तैयार हैं।

कोटा का जौहर भारतीय स्वतंत्रता संग्राम की एक महत्वपूर्ण घटना है। इस जौहर ने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम को आगे बढ़ाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।

यह याद रखना महत्वपूर्ण है कि जौहर एक दुखद घटना थी। यह एक ऐसी घटना थी जिसमें कई निर्दोष महिलाओं को अपनी जान गंवानी पड़ी। हालांकि, यह भी याद रखना महत्वपूर्ण है कि जौहर भारतीय महिलाओं की बहादुरी और स्वाभिमान का प्रतीक है।

४. जयपुर का जौहर (१८५८ ई.) | Jaipur ka Jauhar

१८५८ ई. में, जयपुर के शासक, सवाई राम सिंह, ने ब्रिटिश शासन के खिलाफ विद्रोह कर दिया। उन्होंने अंग्रेजों के खिलाफ कई युद्ध लड़े, लेकिन अंत में उन्हें पराजय का सामना करना पड़ा। पराजय के बाद, सवाई राम सिंह ने जयपुर के किले में शरण ली।

अंग्रेजों ने जयपुर किले को घेर लिया और सवाई राम सिंह को आत्मसमर्पण करने के लिए कहा। सवाई राम सिंह ने आत्मसमर्पण करने से इनकार कर दिया। उन्होंने अपनी रानियों और महिलाओं को जौहर करने का आदेश दिया।

२६ अगस्त, १८५८ को, जयपुर के किले में एक भीषण जौहर हुआ। सवाई राम सिंह की रानी कुंवर बाई और ३०० महिलाओं ने आग में कूदकर अपनी जान दे दी। इस जौहर में लगभग ६०० महिलाएं शामिल थीं।

जयपुर का जौहर एक ऐतिहासिक घटना है, जो भारतीय स्वतंत्रता संग्राम की एक महत्वपूर्ण घटना है। इस जौहर ने भारतीय महिलाओं की बहादुरी और स्वाभिमान को दुनियाभर में स्थापित किया।

जौहर के कारण

जयपुर का जौहर १८५७ के भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के दौरान हुआ था। यह जौहर ब्रिटिश शासन के खिलाफ राजपूत रियासतों के विद्रोह का परिणाम था। सवाई राम सिंह ने ब्रिटिश शासन के खिलाफ विद्रोह किया था। उन्होंने अंग्रेजों के खिलाफ कई युद्ध लड़े, लेकिन अंत में उन्हें पराजय का सामना करना पड़ा। पराजय के बाद, सवाई राम सिंह ने जयपुर के किले में शरण ली।

जौहर की प्रक्रिया

जयपुर का जौहर एक भीषण घटना थी। इस जौहर में लगभग ६०० महिलाओं ने आग में कूदकर अपनी जान दे दी। जौहर की प्रक्रिया इस प्रकार थी:

  • सबसे पहले, किले में एक बड़ी आग जलाई गई।
  • फिर, सवाई राम सिंह की रानियों और महिलाओं को आग के चारों ओर एक घेरा बनाकर खड़ा किया गया।
  • फिर, सवाई राम सिंह ने अपनी रानियों और महिलाओं को जौहर करने का आदेश दिया।
  • रानियों और महिलाओं ने बिना हिचकिचाहट के आग में कूदकर अपनी जान दे दी।

५. चाकसू का जौहर (१८५८ ई.) | Chaksu ka Jauhar

१८५७ के भारतीय स्वतंत्रता संग्राम की लपटें राजपूत रियासतों तक भी पहुंचीं, जहां वीरता और त्याग की गाथाएं लिखी गईं। चाकसू, जयपुर राज्य का एक छोटा ठिकाना, ऐसी ही एक वीर भूमि है, जहां १८५८ ई. में एक अविस्मरणीय जौहर हुआ।

चाकसू के जागीरदार रावल देवी सिंह ने अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ विद्रोह का बिगुल बजाया। उन्होंने बहादुरी से अंग्रेजों से कई मुकाबलों में लोहा लिया, लेकिन अंततः शत्रुबल के आगे उन्हें चाकसू के किले में शरण लेनी पड़ी। अंग्रेजों ने किले को घेर लिया और रावल देवी सिंह को आत्मसमर्पण करने का दबाव डाला।

वीर रावल देवी सिंह ने आत्मसमर्पण को स्वीकार करने से इंकार कर दिया। उन्होंने अपनी पत्नी रानी पद्मिनी और किले की अन्य महिलाओं को जौहर करने का आदेश दिया। २८ सितंबर, १८५८ को किले के प्रांगण में चिताएं जलाई गईं। अग्नि की लपटों के सामने रानी पद्मिनी और किले की सैकड़ों महिलाओं ने अदम्य साहस के साथ जौहर किया।

चाकसू का जौहर भारतीय इतिहास में अदम्य साहस और स्वाभिमान की एक अविस्मरणीय घटना है। इस जौहर ने दिखाया कि भारतीय महिलाएं अपने सम्मान की रक्षा के लिए किसी भी बलिदान को देने के लिए तैयार थीं। चाकसू की वीरांगनाओं की शौर्य गाथा सदियों तक भारतीयों के हृदय में स्मृति बनकर जीवित रहेगी।

६. सवाई माधोपुर का जौहर (१८५८ ई.) | Sawai Madhopur ka Jauhar

जौहर | jauhar

१८५७ का भारतीय स्वतंत्रता संग्राम राजपूत रियासतों में भी वीरता की गूंज उठा गया। सवाई माधोपुर, जो उस समय हाड़ौती रियासत का हिस्सा था, वहां भी अंग्रेजी हुकूमत के विरुद्ध ज्वाला भड़की। इसी ज्वाला के बीच १८५८ ई. में सवाई माधोपुर के किले में एक अविस्मरणीय जौहर हुआ।

हाड़ौती के तत्कालीन दीवान, खुमान सिंह चौहान, ने अंग्रेजों के खिलाफ विद्रोह का नेतृत्व किया। उन्होंने बहादुरी से अंग्रेजों से लोहा लिया, परंतु अंततः सवाई माधोपुर के किले में शरण लेनी पड़ी। अंग्रेजों ने किले को घेर लिया और खुमान सिंह को आत्मसमर्पण का दबाव दिया।

वीर खुमान सिंह ने आत्मसमर्पण को अस्वीकार कर दिया। उन्होंने अपनी पत्नी रानी लक्ष्मीकुमारी और किले की अन्य महिलाओं को जौहर करने का आदेश दिया। ३० सितंबर, १८५८ को किले के प्रांगण में चिताएं जलाई गईं। अग्नि के समक्ष रानी लक्ष्मीकुमारी और किले की सैकड़ों महिलाओं ने निर्भीकता से जौहर किया।

सवाई माधोपुर का जौहर भारतीय इतिहास में स्वाभिमान की रक्षा का प्रतीक है। इसने दिखाया कि भारतीय वीरांगनाएं अपने सम्मान की रक्षा के लिए सर्वोच्च बलिदान देने को तैयार थीं। सवाई माधोपुर की वीरांगनाओं की शौर्य गाथा सदियों तक प्रेरणा का स्रोत बनी रहेगी।

७. अजमेर का जौहर (१८५८ ई.) | Ajamer ka Jauhar

१८५७ का भारतीय स्वतंत्रता संग्राम की लहरें राजस्थान के अजमेर तक भी पहुंचीं, जहां मेवाड़ के राणा समर्थ सिंह द्वितीय के नेतृत्व में ब्रिटिश हुकूमत के विरुद्ध विद्रोह का बिगुल बजाया गया। इस विद्रोह के दौरान १८५८ ई. में अजमेर के तारागढ़ किले में हुआ जौहर भारतीय इतिहास में अजेय इच्छाशक्ति का प्रतीक बन गया।

राणा समर्थ सिंह ने अंग्रेजों से कई मुकाबलों में वीरता का परिचय दिया, लेकिन अंततः उन्हें तारागढ़ किले में शरण लेनी पड़ी। अंग्रेजों ने किले को घेर लिया और राणा को आत्मसमर्पण का दबाव डाला। परंतु, अजेय इच्छाशक्ति से ओतप्रोत राणा ने आत्मसमर्पण को अस्वीकार कर दिया।

इस अस्वीकृति के बाद किले की रानी चंद्रावती और १२०० महिलाओं ने जौहर करने का निर्णय लिया। ११ अक्टूबर, १८५८ को तारागढ़ के प्रांगण में चिताएं जलाई गईं। अग्नि की लपटों के समक्ष राणा की रानियों और किले की लगभग १२०० महिलाओं ने अटूट संकल्प के साथ जौहर किया।

अजमेर का जौहर भारतीय इतिहास में स्वतंत्रता की लौ को जगाए रखने वाली एक अविस्मरणीय घटना है। इसने दिखाया कि भारतीय महिलाएं स्वतंत्रता और सम्मान की रक्षा के लिए किसी भी त्याग को करने के लिए दृढ़ थीं। तारागढ़ की वीरांगनाओं की अजेय इच्छाशक्ति सदियों तक भारतीयों के हृदय में प्रेरणा का स्रोत बनी रहेगी।

८. बूंदी का जौहर (१८५८ ई.) | Bundi ka Jauhar

१८५७ का भारतीय स्वतंत्रता संग्राम एक ऐतिहासिक घटना थी, जिसमें भारत के विभिन्न हिस्सों में ब्रिटिश शासन के खिलाफ विद्रोह हुए। इस विद्रोह में राजपूत रियासतों ने भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। बूंदी भी एक ऐसी रियासत थी, जिसने इस विद्रोह में भाग लिया।

१८५७ ई. में, बूंदी के शासक, राजा भगभान सिंह, ने ब्रिटिश शासन के खिलाफ विद्रोह कर दिया। उन्होंने अंग्रेजों के खिलाफ कई युद्ध लड़े, लेकिन अंत में उन्हें पराजय का सामना करना पड़ा। पराजय के बाद, राजा भगभान सिंह ने बूंदी के किले में शरण ली।

अंग्रेजों ने बूंदी किले को घेर लिया और राजा भगभान सिंह को आत्मसमर्पण करने के लिए कहा। राजा भगभान सिंह ने आत्मसमर्पण करने से इनकार कर दिया। उन्होंने अपनी रानियों और महिलाओं को जौहर करने का आदेश दिया।

१४ अक्टूबर, १८५८ को, बूंदी के किले में एक भीषण जौहर हुआ। राजा भगभान सिंह की रानि रत्नाबाई और महिलाओं ने आग में कूदकर अपनी जान दे दी। इस जौहर में लगभग ५०० महिलाएं शामिल थीं।

बूंदी का जौहर एक ऐतिहासिक घटना है, जो भारतीय स्वतंत्रता संग्राम की एक महत्वपूर्ण घटना है। इस जौहर ने भारतीय महिलाओं की बहादुरी और स्वाभिमान को दुनियाभर में स्थापित किया।

जौहर के कारण

बूंदी का जौहर १८५७ के भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के दौरान हुआ था। यह जौहर ब्रिटिश शासन के खिलाफ राजपूत रियासतों के विद्रोह का परिणाम था। राजा भगभान सिंह ने ब्रिटिश शासन के खिलाफ विद्रोह किया था। उन्होंने अंग्रेजों के खिलाफ कई युद्ध लड़े, लेकिन अंत में उन्हें पराजय का सामना करना पड़ा। पराजय के बाद, राजा भगभान सिंह ने बूंदी के किले में शरण ली।

जौहर की प्रक्रिया

बूंदी का जौहर एक भीषण घटना थी। इस जौहर में लगभग ५०० महिलाएं शामिल थीं। जौहर की प्रक्रिया इस प्रकार थी:

  • सबसे पहले, किले में एक बड़ी आग जलाई गई।
  • फिर, राजा भगभान सिंह की रानियों और महिलाओं को आग के चारों ओर एक घेरा बनाकर खड़ा किया गया।
  • फिर, राजा भगभान सिंह ने अपनी रानियों और महिलाओं को जौहर करने का आदेश दिया।
  • रानियों और महिलाओं ने बिना हिचकिचाहट के आग में कूदकर अपनी जान दे दी।

जौहर के परिणाम

बूंदी का जौहर एक ऐतिहासिक घटना है। इस जौहर ने भारतीय महिलाओं की बहादुरी और स्वाभिमान को दुनियाभर में स्थापित किया। इस जौहर ने यह भी दिखाया कि भारतीय महिलाएं अपने सम्मान और स्वाभिमान के लिए किसी भी हद तक जाने को तैयार हैं।

बूंदी का जौहर भारतीय स्वतंत्रता संग्राम की एक महत्वपूर्ण घटना है। इस जौहर ने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम को आगे बढ़ाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।

९. जालौर का जौहर (१८५८ ई.) | Jalour ka Jauhar

१८५७ का भारतीय स्वतंत्रता संग्राम की ज्वाला राजस्थान के हर कोने तक पहुंची, जहां वीरता के उद्घोष गूंज उठे। जालौर रियासत भी इस क्रांति की अग्रिम पंक्ति में खड़ी थी। १८५८ ई. में जालौर के किले में हुआ जौहर इसी क्रांति की अविस्मरणीय घटना है, जो अदम्य वीरता के इतिहास में स्वर्णिम अक्षरों में अंकित है।

जालौर के शासक, रावत मान सिंह राठौड़, ने अंग्रेजों के विरुद्ध विद्रोह का बिगुल बजाया। उन्होंने निर्भीकता से अनेक युद्धों में लोहा लिया, परंतु अंततः जालौर के दुर्ग में शरण लेनी पड़ी। अंग्रेजों ने किले को घेर लिया और रावत मान सिंह को आत्मसमर्पण का दबाव डाला।

वीर रावत मान सिंह ने आत्मसमर्पण को अस्वीकार कर दिया। उन्होंने अपनी पत्नी रानी लक्ष्मीकुमारी और किले की अन्य महिलाओं को जौहर करने का आदेश दिया। २० नवंबर, १८५८ को किले के प्रांगण में चिताएं सुलग उठीं। अग्नि की लपटों के समक्ष रानी लक्ष्मीकुमारी और लगभग ३०० वीरांगनाओं ने अदम्य साहस के साथ जौहर किया।

जालौर का जौहर भारतीय इतिहास में वीरता और त्याग का प्रतीक है। इसने दिखाया कि भारतीय नारी स्वतंत्रता और सम्मान की रक्षा के लिए सर्वोच्च बलिदान देने को तत्पर थीं। जालौर की वीरांगनाओं की अग्निपथ पर चली वीरता सदियों तक प्रेरणा का स्रोत बनी रहेगी।

१०. जोधपुर का जौहर (१८५८ ई.) | Jodhpur ka Jauhar

१८५७ का भारतीय स्वतंत्रता संग्राम की लपटें राजस्थान के दिल, जोधपुर, तक भी पहुंचीं। यहां महाराजा तख्तसिंह राठौड़ के नेतृत्व में अंग्रेजों के विरुद्ध ज्वाला भड़की। इसी ज्वाला के बीच १८५८ ई. में मेहरानगढ़ दुर्ग में हुआ जौहर भारतीय इतिहास में अजेय इरादे का प्रतीक बन गया।

महाराजा तख्तसिंह ने अंग्रेजों से कई मुकाबलों में वीरता का परिचय दिया, लेकिन अंततः मेहरानगढ़ दुर्ग में शरण लेनी पड़ी। अंग्रेजों ने दुर्ग को घेर लिया और महाराजा को आत्मसमर्पण का दबाव डाला। परंतु, अजेय इरादे से ओतप्रोत महाराजा ने आत्मसमर्पण को अस्वीकार कर दिया।

इस अस्वीकृति के बाद दुर्ग की रानी गुलाब कंवर और महिलाओं ने जौहर करने का निर्णय लिया। १२  सितंबर, १८५८ को दुर्ग के प्रांगण में चिताएं जलाई गईं। अग्नि की लपटों के समक्ष महाराजा की रानियों और दुर्ग की लगभग ४०० महिलाओं ने दृढ़ संकल्प के साथ जौहर किया।

जोधपुर का जौहर भारतीय इतिहास में स्वतंत्रता की लौ को जगाए रखने वाली एक अविस्मरणीय घटना है। इसने दिखाया कि भारतीय महिलाएं स्वतंत्रता और सम्मान की रक्षा के लिए किसी भी त्याग को करने के लिए दृढ़ थीं। मेहरानगढ़ की वीरांगनाओं की अजेय इच्छाशक्ति सदियों तक भारतीयों के हृदय में प्रेरणा का स्रोत बनी रहेगी।

११. मेवाड़ का जौहर (१८५८ ई.) | Mewad ka Jauhar

१८५७ का भारतीय स्वतंत्रता संग्राम की लपटें मेवाड़ की पहाड़ियों तक भी पहुंचीं, जहां राणा समर्थ सिंह द्वितीय के नेतृत्व में अंग्रेजों के विरुद्ध विद्रोह का बिगुल बजा। इस विद्रोह के दौरान १८५८ ई. में चित्तौड़गढ़ के किले में हुआ जौहर मेवाड़ के गौरवमय इतिहास में स्वाभिमान की अग्नि के रूप में चमकता है।

राणा समर्थ सिंह ने अंग्रेजों से लोहा लिया, परंतु अंततः चित्तौड़गढ़ के दुर्ग में शरण लेनी पड़ी। अंग्रेजों ने दुर्ग को घेर लिया और राणा को आत्मसमर्पण का दबाव डाला। परंतु, मेवाड़ के गौरव को झुकाने का प्रयास असफल रहा। राणा ने आत्मसमर्पण को अस्वीकार कर दिया।

इसके बाद किले की रानियों और महिलाओं ने जौहर का निर्णय लिया। ३० नवंबर, १८५८ को किले के प्रांगण में चिताएं जलाई गईं। अग्नि की ज्वालाओं के समक्ष राणा की रानी जयवंती बाई और १००  महिलाओं, वीरांगनाओं ने अडिग विश्वास के साथ जौहर किया।

मेवाड़ का जौहर भारतीय इतिहास में स्वतंत्रता की रक्षा के लिए किए गए सर्वोच्च बलिदान का प्रतीक है। इसने दिखाया कि मेवाड़ की वीरांगनाएं सम्मान और स्वाभिमान की रक्षा के लिए किसी भी त्याग को करने को तैयार थीं। चित्तौड़गढ़ की वीरांगनाओं की अग्नि सदियों तक आने वाली पीढ़ियों को प्रेरणा देती रहेगी।

१२. करौली का जौहर (१८५८ ई.) | Karouli ka Jauhar

१८५७ की क्रांति की लपटें राजस्थान के कोने-कोने तक पहुंचीं, जहां वीरता के गीत गाए गए। करौली रियासत भी इस क्रांति की अग्रिम पंक्ति में खड़ी थी। १८५८ ई. में करौली के किले में हुआ जौहर भारतीय इतिहास में स्वाभिमान की अमर गाथा के रूप में अंकित है।

करौली के महाराज जसवंत सिंह द्वितीय ने अंग्रेजों के विरुद्ध विद्रोह का बिगुल बजाया। उन्होंने बहादुरी से अनेक युद्धों में लोहा लिया, परंतु अंततः करौली के किले में शरण लेनी पड़ी। अंग्रेजों ने किले को घेर लिया और महाराज को आत्मसमर्पण का दबाव डाला।

वीर जसवंत सिंह ने आत्मसमर्पण को अस्वीकार कर दिया। उन्होंने अपनी पत्नी रानी लक्ष्मीकुमारी और किले की अन्य महिलाओं को जौहर करने का आदेश दिया। १५ सितंबर, १८५८ को किले के प्रांगण में चिताएं जलाई गईं। अग्नि की लपटों के समक्ष रानी लक्ष्मीकुमारी और लगभग २०० वीरांगनाओं ने निर्भीकता से जौहर किया।

करौली का जौहर भारतीय इतिहास में वीरता और त्याग का प्रतीक है। इसने दिखाया कि भारतीय नारी स्वतंत्रता और सम्मान की रक्षा के लिए सर्वोच्च बलिदान देने को तत्पर थीं। करौली की वीरांगनाओं की अग्निपथ पर चली वीरता सदियों तक प्रेरणा का स्रोत बनी रहेगी।

१३. अलवर का जौहर (१८५८ ई.) | Alwar ka Jauhar

१८५७ की क्रांति की ज्वाला राजस्थान के हर कोने तक पहुंची, जहां वीरता के उद्घोष गूंज उठे। अलवर रियासत भी इस क्रांति की अग्रिम पंक्ति में खड़ी थी। १८५८ ई. में अलवर के किले में हुआ जौहर भारतीय इतिहास में अदम्य इरादे की अग्नि के प्रतीक के रूप में चमकता है।

अलवर के शासक, राव बख्तावर सिंह, ने अंग्रेजों के खिलाफ विद्रोह का बिगुल बजाया। उन्होंने कई मुकाबलों में वीरता का परिचय दिया, लेकिन अंततः अलवर के किले में शरण लेनी पड़ी। अंग्रेजों ने किले को घेर लिया और राव बख्तावर सिंह को आत्मसमर्पण का दबाव डाला।

वीर राव बख्तावर सिंह ने आत्मसमर्पण को अस्वीकार कर दिया। उन्होंने अपनी रानियों और किले की अन्य महिलाओं को जौहर करने का आदेश दिया। १६ अगस्त, १८५८ को किले के प्रांगण में चिताएं जलाई गईं। अग्नि की लपटों के समक्ष राव बख्तावर सिंह की रानी वीरमती और लगभग ३०० महिलाओं ने दृढ़ संकल्प के साथ जौहर किया।

अलवर का जौहर भारतीय इतिहास में स्वतंत्रता की लौ को जगाए रखने वाली एक अविस्मरणीय घटना है। इसने दिखाया कि भारतीय महिलाएं स्वतंत्रता और सम्मान की रक्षा के लिए किसी भी त्याग को करने के लिए दृढ़ थीं। अलवर की वीरांगनाओं की अदम्य इरादे की अग्नि सदियों तक भारतीयों के हृदय में प्रेरणा का स्रोत बनी रहेगी।

१४. बीकानेर का जौहर (१८५८ ई.) | Bikaner ka Jauhar

१८५७ की क्रांति की लपटें राजस्थान के रेतीले धोरों तक भी पहुंचीं, जहां बीकानेर रियासत ने भी वीरता का परचम लहराया। १८५८ ई. में बीकानेर के जुनागढ़ दुर्ग में हुआ जौहर भारतीय इतिहास में स्वाभिमान की रक्षा का अग्नि-संदेश बनकर चमकता है।

बीकानेर के महाराजा सरदार सिंह ने अंग्रेजों के खिलाफ विद्रोह का नेतृत्व किया। उन्होंने शौर्य से कई युद्ध लड़े, परंतु अंततः जुनागढ़ दुर्ग में शरण लेनी पड़ी। अंग्रेजों ने दुर्ग को घेर लिया और महाराजा को आत्मसमर्पण का दबाव डाला।

वीर सरदार सिंह ने आत्मसमर्पण को अस्वीकार कर दिया। उन्होंने अपनी पत्नी रानी लक्ष्मीकुमारी और दुर्ग की अन्य महिलाओं को जौहर करने का आदेश दिया। २ सितंबर, १८५८ को दुर्ग के प्रांगण में चिताएं जलाई गईं। अग्नि की लपटों के समक्ष रानी लक्ष्मीकुमारी और लगभग २५० वीरांगनाओं ने दृढ़ संकल्प के साथ जौहर किया।

बीकानेर का जौहर भारतीय इतिहास में स्वतंत्रता की रक्षा के लिए किए गए सर्वोच्च बलिदान का प्रतीक है। इसने दिखाया कि बीकानेर की वीरांगनाएं सम्मान और स्वाभिमान की रक्षा के लिए किसी भी त्याग को करने को तैयार थीं। जुनागढ़ की वीरांगनाओं की अग्नि सदियों तक आने वाली पीढ़ियों को देशभक्ति और बलिदान की प्रेरणा देती रहेगी।

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