बूंदी का किला: तारागढ़ का इतिहास और पर्यटन | Bundi Fort: History of Taragarh fort and Tourist Guide

अरावली पर्वतमाला की चोटियों को छूता हुआ, बूंदी का किला (Bundi Fort) राजस्थान के इतिहास का गौरवशाली अध्याय है। आइए, जानते है बूंदी के किले का इतिहास, बूंदी के किले के पर्यटन स्थल, बूंदी का किला हिस्ट्री इन हिंदी, बूंदी का किला कहा है और बूंदी का किला किसने बनवाया जैसे सवालों के जवाब।

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बूंदी के किले का परिचय | तारागढ़ किले का परिचय | तारागढ़ किला बूंदी | Introduction of Bundi Fort | Introduction of Taragarh fort

राजस्थान अपने शानदार किलों के लिए जाना जाता है, और उनमें से एक रमणीय रत्न है बूंदी का किला। इसे तारागढ़ के नाम से भी जाना जाता है, यह अरावली पर्वतमाला की ऊंची चोटियों पर गर्व से खड़ा है। १३५४ ईस्वी में बूंदी के संस्थापक राव देव हाड़ा द्वारा निर्मित, यह किला राजपूत वास्तुकला का एक शानदार उदाहरण है।

यह किला अपने रणनीतिक स्थान के लिए प्रसिद्ध है, जो न केवल बूंदी शहर का मनमोहक दृश्य प्रस्तुत करता है बल्कि आक्रमणकारियों से रक्षा करने में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाता रहा है। माना जाता है कि पृथ्वी से देखने पर यह किला आकाश के तारों जैसा चमकता है, इसलिए इसे तारागढ़ नाम दिया गया होगा। आइए, अब हम इस ऐतिहासिक किले के भव्य द्वारों से गुजरें और इसके समृद्ध अतीत, कलात्मक वैभव और किले के भीतर छिपे राजों को पता करें।

बूंदी के किले का स्थान | बूंदी का किला कहाँ स्थित है | तारागढ़ कहा है | Location of Bundi Fort | Location of Taragarh fort Bundi

बूंदी का किला, जिसे तारागढ़ के नाम से भी जाना जाता है, राजस्थान के हृदय स्थल में स्थित एक रमणीय रत्न है। यह रमणीय शहर बूंदी में स्थित है, जो जयपुर से लगभग २१८ किलोमीटर दक्षिण-पश्चिम में स्थित है। अरावली पर्वतमाला की एक ऊंची चोटी पर बना यह किला न केवल शहर का एक प्रमुख पर्यटन स्थल है, बल्कि आसपास के क्षेत्र पर भी अपना प्रभुत्व जमाए हुए है।

१३५४ ईस्वी में बूंदी के संस्थापक राव देव हाड़ा द्वारा निर्मित, यह किला राजपूत वास्तुकला का एक शानदार उदाहरण है। अपनी भव्य वास्तुकला और समृद्ध इतिहास के साथ, यह किला पर्यटकों और इतिहास प्रेमियों को आकर्षित करता है।

किले के अंदर, कई महल, मंदिर, और अन्य संरचनाएं हैं जो दर्शकों को मंत्रमुग्ध कर देती हैं। चंद्र महल, गुप्त गंगा, और बादल महल किले के कुछ प्रमुख आकर्षण हैं। किले से बूंदी शहर का मनोरम दृश्य भी देखा जा सकता है।

बूंदी का किला राजस्थान की समृद्ध संस्कृति और विरासत का प्रतीक है। यह निश्चित रूप से उन लोगों के लिए एक यात्रा योग्य स्थान है जो राजस्थान के इतिहास और वास्तुकला में रुचि रखते हैं।

बूंदी के किले की वास्तुकला | तारागढ़ दुर्ग की वास्तुकला | Architecture of Bundi Fort | Architecture of Taragarh Fort

बूंदी का किला राजपूत शैली की वास्तुकला का एक शानदार उदाहरण है। १४ वीं शताब्दी में निर्मित, यह किला मजबूती और कलात्मक वैभव का एक अद्भुत मिश्रण प्रदर्शित करता है। किले की दीवारें लाल बलुआ पत्थर से बनी हैं और इनमें कई बुर्ज और छेद हैं, जो युद्ध के समय रक्षात्मक क्षमता को बढ़ाते थे।

प्रवेश द्वार भव्य और जटिल नक्काशी से सुशोभित है, जो उस समय के शिल्प कौशल का प्रमाण है। किले के परिसर में कई महल हैं, जिनमें से प्रत्येक की अपनी अनूठी विशेषताएं हैं। चंद्र महल अपनी चांदी की छत के लिए प्रसिद्ध है, जो चांदनी रात में चमकती थी।

गुप्त गंगा महल की दीवारों पर चित्रों और भित्ति चित्रों की एक समृद्ध गैलरी है, जो राजपूत जीवन शैली और पौराणिक कथाओं को दर्शाती है। बादल महल अपनी अनूठी वास्तुकला के लिए जाना जाता है, जिसमें नक्काशीदार खिड़कियां और मेहराब हैं।

किले के परिसर में कई मंदिर भी हैं, जिनमें से अधिकांश भगवान शिव को समर्पित हैं। किले की समग्र वास्तुकला राजपूत राजाओं की शक्ति और कलात्मक प्रतिभा का एक प्रमाण है। यह विभिन्न शैलियों का एक सुंदर मिश्रण है, जिसमें जटिल नक्काशी, सुंदर मेहराब और  बालकनियाँ शामिल हैं।

बूंदी के किले का निर्माण | तारागढ़ का निर्माण | Construction of Jaigarh Fort | Construction of Taragarh Fort

बूंदी किले का निर्माण १४ वीं शताब्दी के मध्य में हुआ था। इतिहासकारों का मानना है कि इसका निर्माण कार्य १३५४ ईस्वी में शुरू हुआ और कई चरणों में पूरा हुआ। किले के निर्माण का श्रेय बूंदी रियासत के संस्थापक राव देव हाड़ा को दिया जाता है।

रणनीतिक दृष्टि से महत्वपूर्ण स्थान पर स्थित होने के कारण ही इस दुर्ग का निर्माण करवाया गया था। अरावली पर्वतमाला की ऊंची चोटी पर स्थित यह किला न केवल आक्रमणों से रक्षा करता था बल्कि आसपास के क्षेत्र पर भी नियंत्रण रखने में सहायक था।

ऐसा माना जाता है कि किले के निर्माण में स्थानीय कारीगरों और शिल्पियों का महत्वपूर्ण योगदान रहा है। लाल बलुआ पत्थर से निर्मित इस विशाल किले की मजबूत दीवारें युद्ध की विभीषिकाओं को सहने के लिए बनाई गई थी। किले में कई प्रवेश द्वार हैं, जिनमें से सबसे प्रमुख हाथीपोल है। इस विशाल द्वार को पार करने के लिए ही हाथियों का इस्तेमाल किया जाता था।

कहा जाता है कि किले के निर्माण के दौरान सुरक्षा के लिहाज से कई गुप्त मार्ग और सुरंगें भी बनाई गई थीं। ये मार्ग किले के बाहर किसी सुरक्षित स्थान तक जाते थे और युद्ध के समय राज परिवार या सैनिकों के भागने का काम आते थे। कुल मिलाकर, बूंदी किले का निर्माण एक लंबी और जटिल प्रक्रिया थी, जिसमें रणनीतिक सोच, कुशल शिल्प कौशल और अथक परिश्रम का संगम देखने को मिलता है।

बूंदी के किले का इतिहास | तारागढ़ का इतिहास | बूंदी का किला हिस्ट्री इन हिंदी | Taragarh fort history in Hindi | Bundi Fort History

बूंदी का किला, अरावली की चोटी पर मानो राजस्थान के इतिहास का पहरेदार बन खड़ा है। इसे तारागढ़ के नाम से भी जाना जाता है, परन्तु इसका असली सार छिपा है इसके युद्धों और कला के संगम में। १४ वीं शताब्दी के मध्य में निर्मित, यह किला राव देव हाड़ा की दूरदृष्टि और शौर्य का प्रतीक है, जिन्होंने बूंदी रियासत की नींव रखी थी।

कहानी यूं शुरू होती है कि रणनीति के धुरंधर राव देव हाड़ा ने इस दुर्ग का निर्माण करवाया. ऊंची चोटी पर स्थित होने के कारण न सिर्फ आसपास के क्षेत्र पर नजर रखी जा सकती थी बल्कि बाहरी आक्रमणों से भी मजबूती से सामना किया जा सकता था। किले की दीवारें इतनी मजबूत थीं कि मानो युद्धों की आहें भी उन्हें पार न कर पाती।

१६ वीं शताब्दी आते-आते बूंदी युद्धों और कूटनीति का केंद्र बन गया। सबसे पहले मुगल सम्राट अकबर की विशाल सेना ने बूंदी को घेर लिया। परन्तु राव भोज ने किले की रक्षा इस वीरता से की कि मुगलों को पीछे हटना पड़ा। यह विजय बूंदी के इतिहास में स्वर्णिम अक्षरों में लिखी गई।

हालांकि, मुगल साम्राज्य का डर बना रहा। जहांगीर के शासनकाल में मुगलों ने पुनः आक्रमण कर दिया। इस बार रणनीति कुछ अलग थी। बूंदी के राजा छत्र सिंह ने मुगलों के साथ संधि कर ली। यह संधि शांति तो ले आई परन्तु बूंदी की स्वतंत्रता थोड़ी कमज़ोर पड़ गई।

१७ वीं शताब्दी के अंत होते-होते मुगल साम्राज्य कमजोर होने लगा तो बूंदी ने अपनी स्वतंत्रता पुनः पाने का प्रयास किया। परन्तु किस्मत को कुछ और ही मंजूर था। 18वीं शताब्दी में मराठों के उदय के साथ बूंदी को फिर से युद्धों का सामना करना पड़ा। अंततः बूंदी को मराठा साम्राज्य के अधीन होना पड़ा।

१९ वीं शताब्दी में ब्रिटिश राज के आगमन के साथ बूंदी एक रियासत के रूप में उनके अधीन हो गई। हालांकि, किले का महत्व कम नहीं हुआ। यहां तक ​​कि अंग्रेजों ने भी प्रशासनिक कार्यों और जेल के लिए किले का इस्तेमाल किया।

स्वतंत्रता के बाद बूंदी रियासत का विलय भारत संघ में हो गया। आज, बूंदी का किला भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग के संरक्षण में है। यह किला राजस्थान के गौरवशाली इतिहास और कलात्मक विरासत को अपने में समेटे हुए है। युद्धों की गर्जना से लेकर कलाकारों की तूलिकाओं के नृत्य तक, यह किला सदियों की कहानियों का गवाह है। पर्यटकों को अतीत की एक झलक दिखाने के लिए यह एक महत्वपूर्ण स्मारक है।

बूंदी के किले के प्रमुख दर्शनीय स्थल | बूंदी के किले के पर्यटन स्थल | तारागढ़ के प्रमुख दर्शनीय स्थल | तारागढ़ के पर्यटन स्थल | Major tourist places of Bundi Fort | Tourist places of Taragarh fort

बूंदी का किला सिर्फ राजस्थान के रणक्षेत्र का ही गवाह नहीं है, बल्कि कला और स्थापत्य का भी एक अद्भुत संग्रहालय है। किले के प्रांगण में बिखरे हुए महल, मंदिर और अन्य संरचनाएं राजपूत शासनकाल की कलात्मक वैभवता का बखान करती हैं। आइए, अब हम किले के कुछ प्रमुख दर्शनीय स्थलों की सैर करते हैं:

  • चांद महल: किले का सबसे प्रसिद्ध महल चांद महल है।  इसका नाम ही इसकी खूबसूरती का राज़ खोल देता है।  कहते हैं कि रात के समय जब चांदनी किरणें महल की दीवारों और छत पर जड़ें चांदी की टुकड़ियों पर पड़ती हैं, तो पूरा महल चांदी की तरह चमक उठता है।  इस महल की दीवारों और छतों पर बनी कलाकृतियां राज दरबार के वैभव और उस समय के जीवन शैली की झलक दिखाती हैं।
  • बादल महल: चांद महल की तरह ही बादल महल भी अपनी अनूठी वास्तुकला के लिए प्रसिद्ध है।  इस महल की छत और दीवारों पर बने बादलों के आकार के चित्र देखते ही ऐसा लगता है मानो बादल महल को अपनी गोद में ले रहे हों।  यह कलाकृति मानसून के स्वागत और बादलों के महत्व को दर्शाती है।
  • गुप्त गंगा: किले के अंदर एक रहस्यमयी गुप्त जलकुंड है, जिसे गुप्त गंगा के नाम से जाना जाता है।  कहा जाता है कि यह कुंड किसी गुप्त सुरंग से जुड़ा हुआ है, जो किले को आपातकालीन स्थिति में पानी प्रदान करता था।  यह गुप्त सुरंग कहां जाती है और कहां से आती है, यह आज भी एक रहस्य बना हुआ है।
  • रणगढ़: किले का सबसे ऊंचा भाग रणगढ़ कहलाता है। यहां से बूंदी शहर का मनोरम दृश्य देखा जा सकता है।  चारों तरफ फैले हरे-भरे मैदान और दूर क्षितिज पर नीले आसमान का संगम देखते ही मन प्रसन्न हो जाता है।  रणगढ़ से ही शायद कभी रणनीतियां बनाई जाती थीं और आसपास के क्षेत्र पर नज़र रखी जाती होगी।
  • मंदिर: किले के अंदर कई मंदिर भी हैं, जो राजपूत शासकों की आस्था का प्रमाण हैं।  इनमें से भगवान शिव को समर्पित मंदिर सबसे प्रसिद्ध है।  मंदिर की भव्य वास्तुकला और मूर्तिकला राजपूत काल की धार्मिक कला का बेहतरीन उदाहरण है।

यह तो सिर्फ बूंदी किले के कुछ ही प्रमुख दर्शनीय स्थल हैं। किले के अंदर घूमते हुए आपको हर कदम पर कोई न कोई ऐतिहासिक निशान या कलाकृति जरूर देखने को मिलेगी।

बूंदी का किला घूमने का सही समय | तारागढ़ घूमने का सही समय | Right time to visit Bundi Fort | Right time to visit Taragarh Fort

बूंदी की खूबसूरत वादियों के बीच स्थित, तारागढ़ का किला साल भर पर्यटकों को अपनी ओर खींचता है।  लेकिन अगर आप अपनी यात्रा को और भी यादगार बनाना चाहते हैं, तो किले घूमने का सही समय चुनना ज़रूरी है।

बूंदी घूमने के लिए सबसे अच्छा समय अक्टूबर से मार्च के महीनों के बीच का माना जाता है।  इन महीनों में राजस्थान में गर्मी का प्रकोप कम हो जाता है और मौसम सुहावना रहता है।  हल्की सर्द हवा और साफ आसमान किले की भव्यता को और निखार देते हैं।  दिन में घूमने में भी आसानी होती है और आप आराम से किले की वास्तुकला का बारीकी से निरीक्षण कर सकते हैं।

यदि आप कुछ ज्यादा ही सुहावना मौसम पसंद करते हैं, तो नवंबर से फरवरी के बीच का समय आपके लिए आदर्श रहेगा।  इन महीनों में तापमान काफी कम हो जाता है, जिससे घूमने में काफी आराम मिलता है।  हालांकि, इन महीनों में कोहरा भी पड़ सकता है, जिससे दूर का नज़ारा थोड़ा धुंधला दिख सकता है।

बरसात के मौसम (जुलाई से सितंबर) में घूमने का विचार कम ही लोग करते हैं।  लेकिन अगर आप भीड़ से दूर शांत वातावरण में किले का आनंद लेना चाहते हैं, तो यह समय भी उपयुक्त हो सकता है।  हालांकि, बरसात के दिनों में किले के कुछ हिस्सों में फिसलन हो सकती है, इसलिए सावधानी बरतनी ज़रूरी है।  इसके अलावा, बरसात के कारण किले के आसपास की वादियां हरी-भरी हो जाती हैं, जो एक अलग ही नज़ारा पेश करती हैं।

अंत में, बूंदी किले की यात्रा का समय चुनते समय अपनी पसंद का मौसम और भीड़ का मिश्रण करें।  अगर आप गर्मी सहन कर सकते हैं, तो अप्रैल से जून के बीच कम भीड़ का फायदा उठा सकते हैं।  लेकिन याद रखें, सुहावने मौसम में ही आप किले की खूबसूरती को पूरे मन से महसूस कर पाएंगे।

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बूंदी किले की भव्यता और इतिहास को एक्सप्लोर करने के लिए आप किसी भी दिन किले के खुलने के समय पहुंच सकते हैं।  बूंदी का किला, जिसे तारागढ़ किला भी कहा जाता है, आम जनता के लिए सुबह ८ बजे से शाम ५ बजे तक खुला रहता है।  हालांकि, अगर आप किले के परिसर में किसी विशेष कार्यक्रम या समारोह में शामिल होना चाहते हैं, तो उसकी अलग से जानकारी लेना आवश्यक है।

किले में प्रवेश करने के लिए मामूली शुल्क लगता है।  यह शुल्क भारतीय और विदेशी पर्यटकों के लिए अलग-अलग निर्धारित है।  आम तौर पर, भारतीय नागरिकों के लिए प्रवेश शुल्क ३० रु. से ५० रु. के बीच होता है, जबकि विदेशी पर्यटकों के लिए यह १०० रु. से २०० रु. के बीच हो सकता है।  ५ साल से कम उम्र के बच्चों के लिए प्रवेश निःशुल्क होता है।

किले में घूमने के लिए आप गाइड की सहायता भी ले सकते हैं।  स्थानीय गाइड आपको किले के इतिहास और वास्तुकला के बारे में विस्तृत जानकारी प्रदान कर सकते हैं।  गाइड का शुल्क अलग से देना होता है, जिसकी जानकारी किले के प्रवेश द्वार पर ही मिल जाती है।

अगर आप फोटोग्राफी के शौकीन हैं, तो कैमरा साथ ले जाना न भूलें।  हालांकि, परिसर में व्यावसायिक फोटोग्राफी के लिए अलग से अनुमति लेनी पड़ सकती है।

तो देर किस बात की, बूंदी किले की यात्रा की योजना बनाएं, जरूरी जानकारी जुटा लें और राजस्थान के इतिहास और कला का एक शानदार अनुभव प्राप्त करें!

बूंदी के किले तक कैसे पहुंचे | तारागढ़ किले तक कैसे पहुंचे | How to Reach Bundi Fort

बूंदी किले तक पहुंचना आसान है। आप सड़क, रेल या हवाई मार्ग से बूंदी पहुंच सकते हैं और फिर वहां से किले तक आसानी से जाया जा सकता है।

सड़क मार्ग:

बूंदी राजस्थान के प्रमुख शहरों से अच्छी तरह जुड़ा हुआ है। जयपुर से बूंदी की दूरी लगभग 218 किलोमीटर है। आप राष्ट्रीय राजमार्ग NH-27 से होते हुए सड़क मार्ग से बूंदी पहुंच सकते हैं। जयपुर, कोटा, अजमेर और चित्तौड़गढ़ जैसे शहरों से नियमित रूप से सरकारी और निजी बसें बूंदी के लिए चलती हैं। बूंदी पहुंचने के बाद, आप किले तक पहुंचने के लिए ऑटो रिक्शा या टैक्सी किराए पर ले सकते हैं।

रेल मार्ग:

यदि आप ट्रेन से यात्रा करना पसंद करते हैं, तो भी आप बूंदी आसानी से पहुंच सकते हैं। बूंदी में अपना रेलवे स्टेशन है, जो दिल्ली, मुंबई, जयपुर और अन्य प्रमुख शहरों से जुड़ा हुआ है। स्टेशन से किले तक पहुंचने के लिए आप रिक्शा या टैक्सी ले सकते हैं।

हवाई मार्ग:

हालांकि, बूंदी का अपना हवाई अड्डा नहीं है, लेकिन निकटतम हवाई अड्डा कोटा में है, जो लगभग 170 किलोमीटर दूर है। कोटा हवाई अड्डे से बूंदी के लिए टैक्सी या कैब आसानी से मिल जाती है।

यात्रा के सुझाव:

  • बूंदी की यात्रा अक्टूबर से मार्च के महीनों के बीच करने की सलाह दी जाती है, क्योंकि इस दौरान मौसम सुहावना रहता है।
  • सड़क मार्ग से यात्रा करते समय, यात्रा की अवधि ट्रैफिक स्थिति के अनुसार बदल सकती है।
  • रेलवे स्टेशन और बस स्टैंड से किले तक पहुंचने के लिए पहले से ही कैब या ऑटो रिक्शा किराए के बारे में पूछताछ कर लें।
  • यदि आप हवाई मार्ग से यात्रा कर रहे हैं, तो कोटा हवाई अड्डे से बूंदी के लिए पहले से टैक्सी बुक करवाना बेहतर है।

बूंदी किले तक पहुंचने के लिए कई विकल्प उपलब्ध हैं। अपनी यात्रा योजना और बजट के अनुसार आप इनमें से कोई भी रास्ता चुन सकते हैं।

बूंदी के किले में पर्यटकों के लिए मार्गदर्शन | पर्यटकों के लिए सुझाव | Tourist Guide for Bundi fort | Tourist Instruction for Taragarh fort

बूंदी किले की भव्यता और इतिहास को पूरी तरह से अनुभव करने के लिए, कुछ महत्वपूर्ण बातों का ध्यान रखना ज़रूरी है:

पहुंच:

  • किले में प्रवेश सुबह ८ बजे से शाम ५ बजे तक होता है।
  • प्रवेश शुल्क भारतीय नागरिकों के लिए ३० रु. से ५० रु. और विदेशी पर्यटकों के लिए १०० रु. से २०० रु. के बीच होता है।
  • यदि आप फोटोग्राफी के शौकीन हैं, तो व्यावसायिक फोटोग्राफी के लिए अनुमति लेनी होगी।

यात्रा:

  • किले का क्षेत्र काफी बड़ा है, इसलिए आरामदायक जूते पहनें।
  • किले में पानी और कुछ हल्के नाश्ते की व्यवस्था रखें।
  • गर्मियों के दिनों में सनस्क्रीन, टोपी और धूप का चश्मा लगाना न भूलें।
  • किले के अंदर शांत वातावरण बनाए रखें और कूड़ा-कचरा न फैलाएं।

सुरक्षा:

  • अपनी कीमती वस्तुओं का ध्यान रखें।
  • बच्चों को हमेशा अपने साथ रखें।
  • प्राचीन वस्तुओं को छूने या नुकसान पहुंचाने से बचें।
  • यदि आपको कोई सहायता चाहिए, तो किले के कर्मचारियों से संपर्क करें।

अन्य:

  • किले में घूमने के लिए गाइड की सहायता ले सकते हैं।
  • किले परिसर में कई दुकानें हैं जहाँ से आप स्मृति चिन्ह खरीद सकते हैं।
  • किले के पास कई रेस्तरां और कैफे हैं जहाँ आप भोजन और पेय का आनंद ले सकते हैं।

कुछ अतिरिक्त सुझाव:

  • यदि आप सुबह जल्दी किले पहुंचते हैं, तो आपको शांत वातावरण में किले का आनंद लेने का मौका मिलेगा।
  • किले के विभिन्न हिस्सों का पता लगाने के लिए पर्याप्त समय दें।
  • किले के इतिहास और वास्तुकला के बारे में जानने के लिए कुछ समय निकालें।
  • बूंदी शहर के अन्य पर्यटन स्थलों की भी यात्रा करें।

बूंदी किले की यात्रा आपके लिए एक अविस्मरणीय अनुभव होगी। इन सुझावों का पालन करके आप अपनी यात्रा को और भी अधिक सुखद और यादगार बना सकते हैं।

निष्कर्ष | Conclusion

बूंदी का किला सिर्फ एक ऐतिहासिक संरचना नहीं, बल्कि राजस्थान के गौरवशाली अतीत का प्रतीक है। इसकी ऊंची दीवारें सदियों से युद्धों की गवाह रही हैं, वहीं इसके भव्य महल कलात्मक वैभव का प्रदर्शन करते हैं। किले के अंदर घूमते हुए हर कदम पर इतिहास की झलक मिलती है।  पर्यटकों के लिए यह किला न केवल अतीत का भ्रमण करवाता है, बल्कि राजस्थान की संस्कृति और धरोहर को करीब से समझने का एक शानदार अवसर भी प्रदान करता है।

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