चंदेल वंश: चंदेल राजपूत के उत्थान, शिखर और अवसान की कहानी | Chandel vansh: Chandel Rajput ki kahani

मध्य भारत में अपनी शक्ति का डंका बजाने वाला चंदेल राजपूत वंश (Chandel Rajput), युद्धों और विजयों से भरे इतिहास का एक प्रमुख अध्याय है। आइए, जानते हैं चंदेल कौन थे, चंदेल वंश का इतिहास, चंदेल वंश की वंशावली, चंदेल वंश की राजधानी, चंदेल वंश के संस्थापक और कई रोचक बाते।

चंदेल राजपूत का परिचय | चंदेल वंश का परिचय | Introduction of Chandel Rajput Vansh

भारत का इतिहास वीर राजपूत राजवंशों की गाथाओं से सराबोर है। उन्हीं में से एक शक्तिशाली वंश है – चंदेल राजपूत वंश। माना जाता है कि ८वीं से १२वीं शताब्दी के बीच मध्य भारत में इनका प्रभावशाली शासन रहा। इनके उत्थान का श्रेय प्रतिहार साम्राज्य के कमजोर पड़ने को दिया जाता है।

चंदेल राजपूतों की उत्पत्ति को लेकर इतिहासकारों में मतभेद है। कुछ उन्हें गोंड जनजातीय समुदाय से जोड़ते हैं, तो कुछ का मानना है कि वे राजपूत क्षत्रियों की एक शाखा थे। हालांकि, यह स्पष्ट है कि समय के साथ चंदेल राजपूत एक मजबूत राजपूत वंश के रूप में स्थापित हुए। इनका साम्राज्य अपने समय में काफी विस्तृत था, जो उत्तर में यमुना नदी से लेकर दक्षिण में सागर (मध्य प्रदेश) और पूर्व में धसान नदी से पश्चिम में विंध्य पहाड़ियों तक फैला हुआ था।

चंदेल राजपूतों ने कला और स्थापत्य के क्षेत्र में भी उल्लेखनीय योगदान दिया है। खजुराहो के विश्व प्रसिद्ध मंदिर उन्हीं की शानदार वास्तु कला का जीता जागता उदाहरण हैं। आगामी लेख में चंदेल राजपूत वंश के शासकों, महत्वपूर्ण युद्धों और उनकी सांस्कृतिक धरोहर पर विस्तार से चर्चा की जाएगी।

चंदेल वंश का संस्थापक कौन है | चंदेल वंश की उत्पत्ति | Chandel vansh ki Utpatti | Chandel Vansh ke Sansthapak

चंदेल राजपूत वंश की स्थापना को लेकर इतिहासकारों में काफी बहस है। प्रमुख मतों में से एक के अनुसार चंदेल वंश के संस्थापक नन्नुका को माना गया है। किंवदंतियों के अनुसार, नन्नुका को एक चंदन की लकड़ी के डिब्बे में पाया गया था। जालौन (वर्तमान में उत्तर प्रदेश) के एक गांव के मुखिया ने उनकी परवरिश की। बड़े होकर नन्नुका एक वीर योद्धा बने और उन्होंने अपना राज्य स्थापित किया।

हालांकि, नन्नुका के अस्तित्व और उनके राज्य स्थापना के ऐतिहासिक प्रमाण अभी तक नहीं मिल पाए हैं। कुछ इतिहासकार चंदेलों को गोंड जनजातीय समुदाय से जोड़ते हैं। वहीं, कुछ अन्य उन्हें राजपूत क्षत्रियों की एक शाखा मानते हैं।

पुरातात्विक साक्ष्यों से पता चलता है कि ९ वीं शताब्दी के प्रारंभ तक चंदेल राजपूत एक स्थापित शक्ति के रूप में उभर चुके थे। इस कालखंड में प्रतिहार साम्राज्य कमजोर पड़ रहा था, जिसका फायदा उठाकर चंदेलों ने अपना साम्राज्य विस्तार किया। आने वाले शासकों ने चंदेल वंश को मध्य भारत की एक प्रमुख शक्ति के रूप में खड़ा किया।

चंदेल वंश का इतिहास | चंदेलों का इतिहास | चंदेल जाति का इतिहास | चंदेल राजपूत का इतिहास | चंदेल राजपूत हिस्ट्री इन हिंदी | Chandel History | Chandel Rajput History in Hindi

चंदेल राजपूत वंश का इतिहास उतार-चढ़ाव से भरा रहा है। माना जाता है कि ९ वीं शताब्दी के प्रारंभ में प्रतिहार साम्राज्य के कमजोर पड़ने के साथ ही चंदेलों का उदय हुआ।

आरंभिक शासक, जिनमें नन्नुका और उनके उत्तराधिकारी शामिल हैं, ने नींव मजबूत करने का कार्य किया। ९ वीं शताब्दी के मध्य में राजा यशोवर्मन के शासनकाल को चंदेलों के लिए महत्वपूर्ण मोड़ माना जाता है। उसी समय के आसपास, खजुराहो में भव्य मंदिरों का निर्माण आरंभ हुआ, जो उनकी कलात्मक प्रतिभा का प्रमाण है।

आरंभिक चरणों में, राजा यशोवर्मन (लगभग 850 ईस्वी) के शासनकाल को एक महत्वपूर्ण मोड़ माना जाता है। इसी समय के आसपास, खजुराहो में भव्य मंदिरों का निर्माण शुरू हुआ, जो आज भी चंदेल वास्तुकला का शिखर माना जाता है। ये मंदिर हिंदू और जैन धर्म को समर्पित हैं और उनके शिल्प में देवी-देवताओं, अप्सराओं और पौराणिक कथाओं के अद्भुत चित्रण देखने को मिलते हैं। मंदिरों की वास्तुकला त्रिकुटा शैली (तीन मंदिरों का समूह) और खजुराहो शैली (एकल शिखर वाला मंदिर) में निर्मित है। 

चंदेल वंश की राजधानी, जिसे जेजाक-भुक्ति के नाम से जाना जाता था, कला और स्थापत्य की गौरवशाली विरासत के लिए प्रसिद्ध है। यह शहर आज “खजुराहो” के नाम से जाना जाता है, जो मध्य प्रदेश में स्थित है।

“जेजाक-भुक्ति” नाम का उल्लेख प्राचीन शिलालेखों और ताम्रपत्रों में मिलता है। यह माना जाता है कि यह नाम “जैजक” नामक राजा के नाम पर रखा गया था, जो चंदेल वंश के प्रारंभिक शासकों में से एक था।

यशोवर्मन के पुत्र धंग (९५०-११०२ ईस्वी) को चंदेल वंश का सबसे महान शासक माना जाता है। उनके शासनकाल में चंदेल साम्राज्य का व्यापक विस्तार हुआ। उन्होंने कन्नौज के शासक को अधीनता में लिया और उत्तर भारत में अपना प्रभाव स्थापित किया। धंग ने कला और स्थापत्य को भी भरपूर समर्थन दिया। 

धंग के शासनकाल में खजुराहो के प्रसिद्ध मंदिर परिसरों का निर्माण चरम पर पहुंचा। विश्व प्रसिद्ध कंदरिया महादेव मंदिर और लक्ष्मण मंदिर इसी कालखंड में निर्मित हुए। इन मंदिरों की भव्यता और जटिल शिल्पकला आज भी दर्शकों को मंत्रमुग्ध कर देती है।

चंदेल राजपूतों ने सिर्फ धार्मिक स्थापत्य ही नहीं बनवाए, बल्कि उन्होंने जल प्रबंधन प्रणालियों और किलों के निर्माण पर भी ध्यान दिया। उनके शासनकाल में कई किलों का निर्माण हुआ, जिनमें कालिंजर का किला सबसे प्रमुख है। यह किला रणनीतिक रूप से महत्वपूर्ण था और सदियों से विभिन्न राज्यों के बीच संघर्ष का केंद्र रहा।

१२ वीं शताब्दी के प्रारंभ से चंदेल साम्राज्य को चुनौतियों का सामना करना पड़ा। दिल्ली सल्तनत के उदय और पड़ोसी राज्यों के साथ संघर्षों ने उनके साम्राज्य को कमजोर कर दिया। १३ वीं शताब्दी के अंत तक चंदेल राजपूतों का शासन कमजोर पड़ गया और अंततः उनका साम्राज्य समाप्त हो गया।

हालांकि, चंदेल वंश का इतिहास सिर्फ युद्धों और विजयों का ही वृत्तांत नहीं है। उन्होंने कला, स्थापत्य और साहित्य के क्षेत्र में भी उल्लेखनीय योगदान दिया। खजुराहो के मंदिर उनकी शिल्पकला और स्थापत्य कौशल का अद्भुत उदाहरण हैं। इन मंदिरों में नृत्य, संगीत और सांसारिक जीवन के विभिन्न पहलुओं का चित्रण किया गया है। चंदेल शासनकाल में संस्कृत साहित्य भी फला-फूला।

चंदेल राजपूत वंश का इतिहास हमें बताता है कि किस प्रकार एक शक्तिशाली साम्राज्य का उदय हुआ, उसने वैभवशाली शासन किया और फिर समय के थपेड़ों के सामने नतमस्तक हो गया। लेकिन उनकी कलात्मक विरासत आज भी खजुराहो के मंदिरों में जीवंत है, जो हमें उनके गौरवशाली अतीत की याद दिलाती है।

चंदेल वंश की वंशावली | चंदेल राजवंश | चंदेल वंश के राजा | Chandel Rajput king | Chandel vansh ki Vanshavali | Chandel Rajvansh

चंदेल वंश का इतिहास कई शक्तिशाली शासकों की गाथा है। यद्यपि आरंभिक शासकों के बारे में स्पष्ट जानकारी नहीं मिलती, फिर भी उपलब्ध स्रोतों से चंदेल वंशावली का कुछ अंश इस प्रकार है:

  • नन्नुका (८३१-८४५ ईस्वी): उन्हें चंदेल वंश का संस्थापक माना जाता है।
  • वाक्पति (८४५-८८५ ईस्वी): इन्होंने चंदेल साम्राज्य की नींव को मजबूत किया।
  • जयशक्ति (८८५-९०० ईस्वी): इनके शासनकाल में चंदेलों का प्रभाव बढ़ा।
  • विजयशक्ति (९००-९२५ ईस्वी): इन्होंने पड़ोसी राज्यों के साथ युद्ध कर चंदेल साम्राज्य का विस्तार किया।
  • यशोवर्मन (९२५-९५० ईस्वी): इनके शासनकाल में खजुराहो में प्रसिद्ध मंदिरों के निर्माण का आरंभ हुआ, जिसने चंदेल कलात्मक वैभव की नींव रखी।
  • धंग (९५०-११०२): चंदेल वंश का सबसे महान शासक माना जाता है। इन्होंने कन्नौज के शासक को परास्त किया और चंदेल साम्राज्य को चरम पर पहुंचाया। उनके शासनकाल में खजुराहो के कई भव्य मंदिरों का निर्माण हुआ, जिनमें विश्व प्रसिद्ध कंदरिया महादेव मंदिर और लक्ष्मण मंदिर शामिल हैं। धंग ने कला और साहित्य को भी भरपूर समर्थन दिया।
  • विद्याधर (१००३-१०३५): धंग के पुत्र। इन्होंने अपने पिता की विरासत को संभाला और चंदेल साम्राज्य के विस्तार में योगदान दिया।
  • कर्ण (१०३५-१०४५ ईस्वी): इनके शासनकाल में चंदेल साम्राज्य स्थिर रहा और विद्रोहों को नियंत्रित किया गया।
  • विद्यापति (१०४५-१०५४ ईस्वी): कला और साहित्य के संरक्षक माने जाते हैं। इनके शासनकाल में चंदेल दरबार में विद्वानों और कलाकारों का जमघट होता था।
  • सल्लक्षणवर्मन (१०५४-१०६० ईस्वी): इनके शासनकाल में साम्राज्य कमजोर होने लगा और पड़ोसी राज्यों के साथ संघर्ष बढ़ गया।
  • मदनवर्मन (१०६०-१०९५ ईस्वी): इन्होंने विद्रोहों को दबाया और बाहरी आक्रमणों का सामना कर चंदेल साम्राज्य को संभाला।
  • यशोवर्मन द्वितीय (१०९५-११२० ईस्वी): इनके शासनकाल में चंदेल प्रतिष्ठा कम हुई और साम्राज्य की सीमाएं सिकुड़ने लगी।
  • प्रद्युम्न (११२०-११६० ईस्वी): इनके शासनकाल में चंदेलों को दिल्ली सल्तनत के साथ हुए युद्धों में पराजयों का सामना करना पड़ा, जिससे साम्राज्य कमजोर होता गया।
  • मदनवर्मन द्वितीय (११६०-११६५ ईस्वी): इनके बाद चंदेल साम्राज्य का पतन शुरू हुआ।
  • परमर्दिदेव (१२०६-१२५१ ईस्वी): इनके शासनकाल में चंदेलों का प्रभाव काफी कम हो चुका था और अंततः १३ वीं शताब्दी के अंत तक उनका साम्राज्य समाप्त हो गया।

यह सूची संपूर्ण नहीं है, लेकिन यह चंदेल वंश के प्रमुख शासकों और उनके शासनकाल की एक झलक प्रदान करती है।

चंदेल वंश का गोत्र | चंदेल राजपूत गोत्र | चंदेल गोत्र | Chandel Rajput gotra | Chandel gotra

चंदेल राजपूत वंश के इतिहास में चंदेल राजपूत का गोत्र चन्द्रायन बताया गया है । यह गोत्र सीधे तौर पर चंद्रवंश से जुड़ा हुआ माना जाता है। हिंदू परंपरा में, चंद्रवंश को क्षत्रियों के दो मुख्य वंशों में से एक माना जाता है। पौराणिक कथाओं के अनुसार, चंद्रवंश की उत्पत्ति चंद्र देव के पुत्र सोम से हुई है।

यदि चंदेल वंश वास्तव में चंद्रवंशी है, तो यह उनके शासन को एक दिव्य वैधता प्रदान करता है।  हालांकि, इस दावे को अभी तक ठोस सबूतों का समर्थन प्राप्त नहीं हुआ है। इतिहासकार चंदेलों की उत्पत्ति को लेकर विभाजित मत रखते हैं। कुछ का मानना है कि उनकी जड़ें गोंड जनजातीय समुदाय में हैं, जबकि अन्य उन्हें राजपूत क्षत्रियों की एक शाखा मानते हैं।

दिलचस्प बात यह है कि चंदेलों के संदर्भ में एक अन्य नाम “चंद्रात्रेय” भी सामने आता है।  कुछ विद्वानों का मानना है कि यह नाम उनके गोत्र “चन्द्रायन” का ही एक रूप है। वहीं, कुछ अन्य का मत है कि चंद्रात्रेय उनके वंशज ऋषि का नाम हो सकता है। ऋषि वेदों के ज्ञानियों और द्रष्टाओं को कहा जाता है।  यदि यह सच है, तो ऋषि चंद्रात्रेय का अस्तित्व चंदेलों के चंद्रवंशी होने के दावे को मजबूत कर सकता है।

हालांकि, अभी तक ऋषि चंद्रात्रेय का कोई ऐतिहासिक उल्लेख नहीं मिला है। चंदेल वंशावली में भी ऐसे किसी ऋषि का वर्णन नहीं है।

इसलिए, चंदेलों का चंद्रवंश से संबंध एक रहस्य बना हुआ है। उनके “चन्द्रायन” गोत्र और संभावित ऋषि चंद्रात्रेय के उल्लेखों को और अधिक शोध की आवश्यकता है।

चंदेल राजपूत कुलदेवी | चंदेल वंश की कुलदेवी कौन है | Chandel Rajput Kuldevi | Chandel vansh Kuldevi

कुलदेवी की पूजा भारतीय परंपरा में एक महत्वपूर्ण अनुष्ठान है। यह वह देवी होती है जिसे किसी वंश या परिवार का संरक्षक माना जाता है। चंदेल राजपूतों के संबंध में कुलदेवी को लेकर इतिहासकारों और स्थानीय मान्यताओं में कुछ विविधता देखी जाती है।

कुछ स्रोतों के अनुसार, चंदेल राजपूतों की कुलदेवी माता हिमालय की पुत्री, देवी नंदा हैं। देवी नंदा को शक्ति और पार्वती का ही एक रूप माना जाता है। उन्हें पर्वतीय क्षेत्रों की रक्षक और विनाशकारी प्राकृतिक शक्तियों को नियंत्रित करने वाली देवी के रूप में पूजा जाता है।

हालांकि, अन्य स्रोतों और स्थानीय परंपराओं में चंदेल वंश की कुलदेवी के रूप में जरा माता का उल्लेख मिलता है।  इन मान्यताओं के अनुसार, जरा माता को चंदेलों के पूर्वजों की रक्षक माना जाता था।

यह संभव है कि चंदेल वंश के विभिन्न शासकों या शाखाओं की अपनी-अपनी कुलदेवियाँ रही हों।  अभी तक कोई ठोस सबूत यह निर्धारित नहीं करता है कि चंदेलों की एक सर्वमान्य कुलदेवी थी।

चंदेल राजवंश के प्रांत | Chandel Vansh ke Prant

क्र.प्रांत के नामप्रांत का प्रकार
आगोरी बरहारजमींदारी
अजबपुरजमींदारी
बिलासपुररियासत
चेनानीजागीर
घुंडजैलदारी
गिधौरजमींदारी
मधानजैलदारी
नालागढ़रियासत
रामगढजागीर
१०साहसपुरजमींदारी
११थेओगजैलदारी

चंदेल वंश का अंतिम शासक | चंदेल वंश का अंत कैसे हुआ | चंदेल वंश का अंत किसने किया | Chandel Vansh ke Antim Shasak | Last king of Chandel vansh

चंदेल वंश का इतिहास कई शक्तिशाली शासकों से सजेला है, लेकिन वंश का अंत धीरे-धीरे होता गया। अंतिम चंदेल शासक के रूप में परमर्दिदेव (१२०६-१२५१ ईस्वी) का नाम इतिहास में दर्ज है। उनके शासनकाल तक चंदेल साम्राज्य पहले जैसा वैभवशाली नहीं रह गया था।

परमर्दिदेव के समय तक चंदेलों को दिल्ली सल्तनत के साथ युद्धों का सामना करना पड़ा था, जिनमें उन्हें पराजय का मुंह देखना पड़ा। इस कारण चंदेल प्रभाव काफी कम हो गया था और उनका साम्राज्य सिकुड़ गया था।

हालांकि, परमर्दिदेव ने हार नहीं मानी और अपने बचे हुए राज्य की रक्षा करने का प्रयास किया। उनके शासनकाल से जुड़े कुछ शिलालेख मिलते हैं, जो उनके शासन को प्रमाणित तो करते हैं, लेकिन साम्राज्य के वैभव की विस्तृत जानकारी नहीं देते।

१३ वीं शताब्दी के अंत तक चंदेल वंश का प्रभाव पूरी तरह समाप्त हो गया। उनकी भूमि पर कब्जा कर लिया गया और उनका शासन समाप्त हो गया। परमर्दिदेव चंदेल वंश के अंतिम ज्ञात शासक है, जिनके बाद यह गौरवशाली राजवंश इतिहास के पन्नों में सिमट गया।

निष्कर्ष  | Conclusion

चंदेल राजपूत वंश का इतिहास युद्धों, विजयों, कलात्मक वैभव और धीरे-धीरे होने वाले अवसान का वृत्तांत है। ९ वीं से १३ वीं शताब्दी के बीच मध्य भारत में अपना प्रभाव जमाने वाले चंदेलों ने एक शक्तिशाली साम्राज्य स्थापित किया।

उन्होंने प्रतिहार साम्राज्य के कमजोर पड़ने का फायदा उठाकर अपना साम्राज्य विस्तार किया। महान शासक धंग के नेतृत्व में चंदेल साम्राज्य अपनी ऊंचाई पर पहुंचा। इस कालखंड में खजुराहो के भव्य मंदिरों का निर्माण हुआ, जो उनकी कलात्मक प्रतिभा का अद्वितीय उदाहरण है। चंदेल वास्तुकला, मूर्तिकला और साहित्य ने भारतीय कला को समृद्ध किया।

हालांकि, दिल्ली सल्तनत के उदय और आंतरिक संघर्षों के कारण 13वीं शताब्दी के अंत तक चंदेल वंश का पतन हो गया। भले ही उनका शासन समाप्त हो गया, लेकिन उनकी कलात्मक विरासत आज भी खजुराहो के मंदिरों में जीवित है। चंदेल वंश का इतिहास हमें सिखाता है कि वैभव क्षणभंगुर होता है, लेकिन कलात्मक कृतियां सदियों से अपना प्रभाव छोड़ती हैं।

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