पूर्वी गंग वंश: ओडिशा का स्वर्णिम अध्याय | Eastern Ganga Dynasty

भारत के मध्ययुगीन इतिहास में पूर्वी गंग वंश (Eastern Ganga Dynasty) का एक शानदार अध्याय है। लगभग एक हज़ार वर्षों तक ओडिशा पर शासन करने वाले इस वंश ने कला, संस्कृति, साहित्य और वास्तुकला के क्षेत्र में ओडिशा को एक समृद्ध राज्य बनाया।

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पूर्वी गंग राजवंश का परिचय | पूर्वी गंग वंश का परिचय | Introduction of Eastern Ganga Dynasty

भारत के इतिहास में पूर्वी गंग वंश का एक महत्वपूर्ण स्थान रहा है। यह एक विशाल मध्ययुगीन हिंदू राजवंश था जिसने कलिंग (आधुनिक ओडिशा) पर लगभग ५ वीं शताब्दी से लेकर २० वीं शताब्दी के मध्य तक शासन किया। इस वंश के शासनकाल में ओडिशा कला, संस्कृति और साहित्य का एक प्रमुख केंद्र बनकर उभरा।

पूर्वी गंग वंश के शासकों ने ओडिशा के सामाजिक-आर्थिक विकास में महत्वपूर्ण योगदान दिया। उन्होंने मंदिर निर्माण, सिंचाई व्यवस्था और व्यापार को बढ़ावा दिया। उनके शासनकाल में ओडिया भाषा और साहित्य का भी उत्कर्ष हुआ। इस वंश के कई शासक कुशल योद्धा और प्रशासक थे जिन्होंने अपने राज्य का विस्तार भी किया।

आगे के लेख में, हम पूर्वी गंग वंश के इतिहास, उनके प्रमुख शासकों, उनकी उपलब्धियों और विरासत पर विस्तार से चर्चा करेंगे।

पूर्वी गंग वंश की उत्पत्ति | पूर्वी गंग वंश के संस्थापक | पूर्वी गंग क्षत्रिय की उत्पत्ति | Eastern Ganga vansh ke Sansthapak | Kathi Vansh ki Utpatti | Purvi Ganga Vansh ki Utpatti

पूर्वी गंग वंश, भारत के इतिहास में एक महत्वपूर्ण मध्ययुगीन हिंदू राजवंश था, जिसने ५ वीं शताब्दी से १५ वीं शताब्दी तक कलिंग (आधुनिक ओडिशा) पर शासन किया। इस वंश के शासनकाल में ओडिशा कला, संस्कृति और साहित्य का एक प्रमुख केंद्र बनकर उभरा।

पूर्वी गंग वंश की उत्पत्ति को लेकर इतिहासकारों के बीच कुछ मतभेद हैं। हालांकि, अधिकांश मानते हैं कि यह वंश कलिंग (आधुनिक ओडिशा) के मूल निवासी था। इसकी स्थापना लगभग ५ वीं शताब्दी में हुई। वज्रहस्त अन्याभिमा को इस वंश का संस्थापक माना जाता है।

वज्रहस्त अन्याभिमा के शासनकाल और उनके जीवन के बारे में विस्तृत जानकारी उपलब्ध नहीं है। लेकिन, उनके बाद आए शासकों के शिलालेखों और अन्य ऐतिहासिक स्रोतों से यह स्पष्ट होता है कि उन्होंने कलिंग में अपने शासन की नींव रखी और एक मजबूत राज्य स्थापित करने का आधार तैयार किया। उनके उत्तराधिकारियों ने इसी नींव पर आगे बढ़ते हुए ओडिशा में एक समृद्ध और शक्तिशाली साम्राज्य का निर्माण किया।

पूर्वी गंग वंश का इतिहास | पूर्वी गंग वंश हिस्ट्री इन हिंदी | Eastern Ganga Dynasty History in Hindi | Purvi Ganga Vansh ka itihas

पूर्वी गंग वंश का शासनकाल लगभग ११ वीं शताब्दी से लेकर १५ वीं शताब्दी तक चला। इस वंश के शासनकाल को ओडिशा के इतिहास में एक स्वर्णिम युग माना जाता है। इस कालखंड में ओडिशा कला, संस्कृति, साहित्य और अर्थव्यवस्था के क्षेत्र में अभूतपूर्व विकास हुआ।

आरंभिक शासक:

वज्रहस्त अन्याभिमा को वंश का संस्थापक माना जाता है। उनके बाद उनके वंशजों ने शासन संभाला। प्रारंभिक शासकों में दंतवर्मन और त्रिभुवनदेव उल्लेखनीय हैं। इन शासकों ने कलिंग (आधुनिक ओडिशा) में अपने राज्य को मजबूत किया और विस्तार किया।

स्वर्णिम काल:

११ वीं शताब्दी के अंत में चोडगंगदेव के शासनकाल के साथ पूर्वी गंग वंश का स्वर्णिम काल शुरू हुआ। चोडगंगदेव एक कुशल योद्धा और प्रशासक थे। उन्होंने अपने राज्य का विस्तार करते हुए पश्चिम बंगाल, छत्तीसगढ़ और आंध्र प्रदेश के कुछ हिस्सों को अपने अधीन कर लिया। उनके शासनकाल में कला, संस्कृति और साहित्य को अभूतपूर्व संरक्षण मिला। उन्होंने कोणार्क सूर्य मंदिर जैसे भव्य मंदिरों का निर्माण करवाया।

उनके उत्तराधिकारी अनंगभिमदेव तृतीय और नरसिंहदेव प्रथम भी कुशल शासक थे। उन्होंने चोडगंगदेव के साम्राज्य को बनाए रखा और ओडिशा की समृद्धि को और बढ़ाया। नरसिंहदेव प्रथम को ‘ओडिशा का निर्माता’ भी कहा जाता है। उनके शासनकाल में ओडिशा एक शक्तिशाली और समृद्ध राज्य बन गया।

पतन:

१४ वीं शताब्दी के अंत से पूर्वी गंग वंश का पतन शुरू हो गया। आंतरिक कलह और बाहरी आक्रमणों ने इस वंश को कमजोर कर दिया। गजपति राजवंश के उदय के साथ पूर्वी गंग वंश का शासन समाप्त हो गया।

पूर्वी गंग वंश का इतिहास ओडिशा के सांस्कृतिक और कलात्मक विरासत का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। उनके शासनकाल में निर्मित मंदिर, मूर्तियां और साहित्यिक रचनाएं आज भी ओडिशा की समृद्ध संस्कृति की गवाही देती हैं।

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पूर्वी गंग वंश के राजा और उनकी उपलब्धियां | पूर्वी गंग वंश के प्रमुख शासक और उनकी उपलब्धियां | Kings of Eastern Ganga Dynasty | Purvi Ganga Vansh ke Raja

पूर्वी गंग वंश के कई शासकों ने ओडिशा के इतिहास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। यहाँ कुछ प्रमुख शासकों और उनकी उपलब्धियों का संक्षिप्त विवरण दिया गया है:

  • चोडगंगदेव (११ वीं शताब्दी): पूर्वी गंग वंश के स्वर्णिम काल के संस्थापक माने जाते हैं। उन्होंने अपने राज्य का विस्तार पश्चिम बंगाल, छत्तीसगढ़ और आंध्र प्रदेश के कुछ हिस्सों तक किया। कला और संस्कृति के महान संरक्षक थे। उनके शासनकाल में कोणार्क सूर्य मंदिर, जगन्नाथ मंदिर पुरी जैसे भव्य मंदिरों का निर्माण हुआ।
  • अनंगभिमदेव तृतीय (१२ वीं शताब्दी): चोडगंगदेव के उत्तराधिकारी, जिन्होंने साम्राज्य को बनाए रखा और ओडिशा की समृद्धि को बढ़ाया। उन्होंने कोणार्क सूर्य मंदिर के निर्माण को पूरा किया। उनके शासनकाल में ओडिया साहित्य का भी उत्कर्ष हुआ।
  • नरसिंहदेव प्रथम (१३ वीं शताब्दी): ‘ओडिशा का निर्माता’ के रूप में विख्यात। उन्होंने कलिंग साम्राज्य को अपने चरम पर पहुंचाया। उनके शासनकाल में ओडिशा एक शक्तिशाली और समृद्ध राज्य बन गया। उन्होंने मंदिर निर्माण, सिंचाई व्यवस्था और व्यापार को बढ़ावा दिया।
  • अनंगभिमदेव द्वितीय (१३ वीं शताब्दी): नरसिंहदेव प्रथम के पुत्र, जिन्होंने साम्राज्य की स्थिरता बनाए रखी। उनके शासनकाल में भी ओडिशा कला, संस्कृति और अर्थव्यवस्था में समृद्ध रहा।

पूर्वी गंग वंश के इन शासकों ने ओडिशा के इतिहास में एक अमिट छाप छोड़ी है। उनके द्वारा किए गए कार्यों ने ओडिशा को कला, संस्कृति, साहित्य और वास्तुकला के एक प्रमुख केंद्र के रूप में स्थापित किया।

पूर्वी गंग वंश की वंशावली | Purvi Ganga Vansh ki vanshavali

पूर्वी गंग वंश के शासनकाल का सटीक कालक्रम निर्धारित करना चुनौतीपूर्ण है, लेकिन अनुमानित रूप से उनका शासन ५ वीं शताब्दी से १५ वीं शताब्दी तक चला। यहाँ इस वंश के कुछ प्रमुख शासकों की सूची दी गई है:

  • वज्रहस्त अन्याभिमा (५ वीं शताब्दी): पूर्वी गंग वंश के संस्थापक माने जाते हैं।
  • दंतवर्मन (६ वीं शताब्दी): वंश के प्रारंभिक शासकों में से एक, जिन्होंने कलिंग में राज्य को मजबूत किया।
  • त्रिभुवनदेव (७ वीं शताब्दी): दंतवर्मन के उत्तराधिकारी, जिनके शासनकाल में राज्य का विस्तार हुआ।
  • देवानंद प्रथम (८ वीं शताब्दी): कला और संस्कृति के संरक्षक माने जाते हैं।
  • शान्ति कर (९ वीं शताब्दी): आंतरिक कलह से जूझना पड़ा, लेकिन राज्य को बनाए रखा।
  • चोडगंगदेव (११ वीं शताब्दी): पूर्वी गंग वंश के स्वर्णिम काल के संस्थापक। उन्होंने राज्य का विस्तार किया और कला, संस्कृति को बढ़ावा दिया।
  • अनंगभिमदेव तृतीय (१२ वीं शताब्दी): चोडगंगदेव के उत्तराधिकारी, जिन्होंने साम्राज्य को बनाए रखा और ओडिशा की समृद्धि को बढ़ाया।
  • नरसिंहदेव प्रथम (१३ वीं शताब्दी): ‘ओडिशा का निर्माता’ के रूप में विख्यात। उनके शासनकाल में ओडिशा एक शक्तिशाली और समृद्ध राज्य बन गया।
  • अनंगभिमदेव द्वितीय (१३ वीं शताब्दी): नरसिंहदेव प्रथम के पुत्र, जिन्होंने साम्राज्य की स्थिरता बनाए रखी।
  • भानुदेव चतुर्थ (१५ वीं शताब्दी): पूर्वी गंग वंश के अंतिम ज्ञात शासकों में से एक।

यह ध्यान देना महत्वपूर्ण है कि यह सूची संपूर्ण नहीं है और अन्य शासक भी इस वंश का हिस्सा थे। शासनकाल की तिथियां भी अनुमानित हो सकती हैं और इतिहासकारों के बीच मतभेद हो सकते हैं।

पूर्वी गंग वंश गोत्र | पूर्वी गंग वंश का गोत्र | Eastern Ganga Dynasty Gotra | Purvi Ganga Vansh gotra

पूर्वी गंग वंश के गोत्र के बारे में इतिहासकारों के बीच स्पष्ट जानकारी उपलब्ध नहीं है। किसी भी ऐतिहासिक दस्तावेज या शिलालेख में पूर्वी गंग वंश के गोत्र का स्पष्ट उल्लेख नहीं मिलता है।

हालांकि, कुछ इतिहासकारों का मानना है कि यह वंश कांवयना गोत्र से संबंधित हो सकता है। यह अनुमान इस तथ्य पर आधारित है कि दक्षिण भारत के गंग वंश, जिससे पूर्वी गंग वंश की उत्पत्ति का कुछ संबंध माना जाता है, कांवयना गोत्र से संबंधित था।

हालाँकि, यह केवल एक संभावना है और इस दावे को पुष्ट करने के लिए कोई ठोस सबूत मौजूद नहीं है। पूर्वी गंग वंश के शासनकाल के दौरान गोत्र पर अधिक ध्यान नहीं दिया जाता था। शासन और राज्य व्यवस्था को ही प्राथमिकता दी जाती थी।

इसलिए, पूर्वी गंग वंश के गोत्र को लेकर निश्चित रूप से कुछ कहना मुश्किल है। इतिहासकारों के पास इस विषय पर अधिक शोध और अध्ययन करने की आवश्यकता है।

पूर्वी गंग वंश की कुलदेवी | पूर्वी गंग क्षत्रिय की कुलदेवी | Eastern Ganga Dynasty Kuldevi | Purvi Ganga Vansh ki kuldevi

पूर्वी गंग वंश के शासकों की कुलदेवी ज्वाला माता मानी जाती हैं। ज्वाला देवी हिमाचल प्रदेश के ज्वालामुखी शहर में स्थित एक प्रसिद्ध शक्तिपीठ हैं।

हालांकि, इतिहास में ज्वाला माता को पूर्वी गंग वंश की कुलदेवी के रूप में स्पष्ट रूप से उल्लेखित नहीं किया गया है। यह जानकारी मुख्य रूप से लोक कथाओं और पौराणिक कथाओं से प्राप्त होती है।

कुछ कथाओं के अनुसार, पूर्वी गंग वंश के संस्थापक वज्रहस्त अन्याभिमा ने ज्वाला माता की अराधना की थी और उनकी कृपा से उन्हें राज्य प्राप्त हुआ था। इसके बाद से, ज्वाला माता को वंश की कुलदेवी माना जाने लगा।

वंश के अन्य शासकों ने भी ज्वाला माता की पूजा की और उनके मंदिर का जीर्णोद्धार करवाया। नरसिंह देव प्रथम ने ज्वाला माता के मंदिर में सोने की मूर्ति स्थापित करवाई थी।

यह भी कहा जाता है कि वंश के अंतिम शासकों में से एक भानुदेव चतुर्थ ने ज्वाला माता की मूर्ति को ओडिशा लाकर जगन्नाथ मंदिर पुरी में स्थापित करवाया था।

हालांकि, ये सभी जानकारी लोककथाओं और पौराणिक कथाओं पर आधारित है और इनकी पुष्टि करने के लिए कोई ठोस ऐतिहासिक प्रमाण नहीं है।

फिर भी, पूर्वी गंग वंश और ज्वाला माता के बीच संबंध एक महत्वपूर्ण सांस्कृतिक और धार्मिक जुड़ाव दर्शाता है।

पूर्वी गंग वंश के प्रांत | Purvi Ganga Vansh ke Prant

क्र.प्रांत के नामप्रांत का प्रकार
हिंडोलरियासत
पारला खिमेडीजमींदारी

निष्कर्ष  | Conclusion

पूर्वी गंग वंश का ओडिशा के इतिहास में एक महत्वपूर्ण स्थान है। लगभग १००० वर्षों के शासनकाल में उन्होंने ओडिशा को कला, संस्कृति, साहित्य और अर्थव्यवस्था के क्षेत्र में एक समृद्ध राज्य बनाया। उनके द्वारा निर्मित भव्य मंदिर और स्थापत्य कला आज भी उनकी महानता की गवाही देते हैं। यद्यपि उनका शासन समाप्त हो गया, पूर्वी गंग वंश की विरासत ओडिशा की पहचान का एक अभिन्न अंग बनी हुई है।

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