राजपूताने के महावीर जयमल,कल्ला राठोड और पत्ता | Mahavir Jaimal, Kalla Rathod and Patta of Rajputana

जयमल, पत्ता और कल्ला राठोड १६ वीं शताब्दी के तीन वीर राजपूत योद्धा जो चित्तौड़गढ़ किले के रक्षार्थ मुगलों के विरुद्ध लड़े और वीरगति को प्राप्त की।

जयमल सिंह राठौड़ मेड़ता के राव जयमल के पुत्र थे। पत्ता चूंडावत चित्तौड़गढ़ के किलेदार थे। कल्ला राठौड़ मेड़ता के राव जयमल के छोटे भाई आसासिंह के पुत्र थे।

१५६७ में, मुगल बादशाह अकबर ने चित्तौड़गढ़ किले पर आक्रमण किया। किले के अंदर जयमल, पत्ता और कल्ला राठौड़ के नेतृत्व में लगभग ८००० राजपूत योद्धा थे।

मुगलों ने किले को घेर लिया और कई महीनों तक युद्ध चला। जयमल, पत्ता और कल्ला राठौड़ ने मुगल सेना का डटकर मुकाबला किया। उनके पराक्रम और साहस से अकबर भी हतप्रभ रह गया।

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राव जयमल राठौड़ / मेड़तिया कौन थे? | Who was Rao Jaimal Rathore | Raav Jayamal Rathaud / Medatiya Kaun The?

राव जयमल राठौड़ १६ वीं शताब्दी के एक महान राजपूत योद्धा थे। उनका जन्म १७ सितंबर १५०७ को मेड़ता के राजा वीरमदेव के घर हुआ था। वे मेड़ता के वीरमदेव के ज्येष्ठ पुत्र थे। पिता की मृत्यु के पश्चात १५४४ में ३६ वर्ष की आयु में जयमल को मेड़ता की राजगद्दी प्राप्त हुई।

जयमल राठौड़ अपने पिता के साथ कई युद्धों में भाग ले चुके थे। इन युद्धों के अनुभव से उन्हें बड़ी-बड़ी सेनाओं से लड़ने की रणनीति की सूझ-बूझ थी। वे अपनी युद्धनीति और युद्धकला के चलते कुछ ही समय में योद्धाओं में सर्वश्रेष्ठ वीर बन चुके थे।

१५४९ में मालदेव ने मेड़ता पर आक्रमण करके अपना अधिकार कर लिया। इस समय जयमल राठौड़ मेड़ता में नहीं थे। वे महाराणा उदयसिंह के पास बदनौर जागीर संभाल रहे थे। जयमल राठौड़ ने मालदेव को परास्त करके मेड़ता पर पुनः अधिकार कर लिया।

१५६७ में अकबर ने अपनी विशाल सेना के साथ मेड़ता पर आक्रमण कर दिया। जयमल राठौड़ ने अकबर की विशाल सेना का प्रतिकार बड़े ही बहादुरी और साहस के साथ किया। जयमल राठौड़ के नेतृत्व में उनके भाई आसासिंह तथा कल्ला जी ने भी उनका पूर्णतः साथ दिया।

अकबर की विशाल सेना के सामने यह युद्ध अभियान असफल होता हुआ प्रतीत होने लगा। तब जयमल राठौड़ ने अपने परिवार सहित घेराबंदी से निकल कर पुनः चित्तौड़ के महाराणा उदयसिंह के पास निकल जाना ही उचित समझा। महाराणा उदयसिंह ने जयमल राठौड़ को पुनः अपने राज्य में स्थान दिया और उन्हें बदनौर और कोठारिया की जागीर प्रदान की।

कृष्ण भक्त भक्तिमती मीराबाई के राव जयमल राठौड़ सौतेले भाई थे।

जयमल राठौड़ की वीरता और साहस की कहानी आज भी लोगों को प्रेरित करती है। उन्हें “चित्तौड़ का शेर” कहा जाता है।

फतेह सिंह चुंडावत या पत्ता / फत्ता कौन थे? | Who was Fateh Singh Chundawat or Patta/Fatta? | Phateh Singh chundavat ya patta / Fhatta Kaun The?

फतेह सिंह जी, जिन्हें आमतौर पर पत्ता या फत्ता नाम से जाना जाता है, १६ वीं शताब्दी के एक महान राजपूत योद्धा थे। वे मेवाड़ के आमेट ठिकाने के सामंत थे। उनका जन्म १५२७ में हुआ था।

पत्ता सिंह बचपन से ही युद्ध कौशल में निपुण थे। उन्होंने कई तरह की युद्ध कलाओं में प्रशिक्षण प्राप्त किया था। वे एक कुशल धनुर्धर, भाला चलाने वाले और तलवारबाज थे।

सन १५५५ में पत्ता सिंह के पिता की उदयपुर में मृत्यु हो गई। इसके बाद उन्हें केलवा की जागीर प्राप्त हुई। पत्ता सिंह ने अपनी वीरता और युद्ध कौशल से केलवा को एक मजबूत और सुरक्षित किले में बदल दिया।

१५६७ में अकबर ने मेवाड़ पर आक्रमण किया। उस समय महाराणा उदयसिंह चित्तौड़गढ़ में थे। उन्होंने पत्ता सिंह को चित्तौड़गढ़ के प्रमुख सेनापति के रूप में नियुक्त किया।

पत्ता सिंह ने अकबर की विशाल सेना का डटकर मुकाबला किया। उन्होंने कई युद्धों में अकबर की सेना को पराजित किया।

अंततः, १५६८ में चित्तौड़गढ़ पर अकबर का अधिकार हो गया। पत्ता सिंह और उनके साथी योद्धाओं ने वीरतापूर्वक लड़ते हुए शहीद हो गए।

पत्ता सिंह की वीरता और साहस की कहानी आज भी लोगों को प्रेरित करती है। उन्हें “चित्तौड़ का वीर” कहा जाता है।

पत्ता सिंह की कुछ प्रमुख उपलब्धियाँ:

  • उन्होंने केलवा की जागीर को एक मजबूत और सुरक्षित किले में बदल दिया।
  • उन्होंने अकबर की विशाल सेना का डटकर मुकाबला किया।
  • उन्होंने कई युद्धों में अकबर की सेना को पराजित किया।
  • उन्होंने चित्तौड़गढ़ की रक्षा के लिए अपने प्राणों की आहुति दी।

पत्ता सिंह एक महान राजपूत योद्धा थे। उन्होंने अपने पराक्रम और शौर्य से मेवाड़ की रक्षा की। उनकी वीरता और साहस की कहानी आज भी लोगों को प्रेरित करती है।

कल्ला राठौड़ कौन थे? | Who was Kalla Rathore? | Kalla Rathaud Kaun The?

कल्ला जी राठौड़ १६ वीं शताब्दी के एक महान राजपूत योद्धा थे, जिन्हें लोक देवता माना जाता है। उनका जन्म ८ सितंबर १६०१ को मेड़ता के राव जयमल के छोटे भाई अचल सिंह के घर हुआ था। उनकी माता का नाम श्वेत कुंवर था।

कल्ला जी राठौड़ बचपन से ही युद्ध कौशल में निपुण थे। उन्होंने कई तरह की युद्ध कलाओं में प्रशिक्षण प्राप्त किया था। वे एक कुशल धनुर्धर, भाला चलाने वाले और तलवारबाज थे।

कल्ला जी राठौड़ के पिता मेड़ता के राव जयमल थे, जो एक महान राजा और योद्धा थे। कल्ला जी राठौड़ ने अपने पिता से युद्ध कौशल और वीरता की शिक्षा प्राप्त की।

१५६७ में मुगल बादशाह अकबर ने मेड़ता पर आक्रमण किया। कल्ला जी राठौड़ ने अपने पिता और भाई के साथ मिलकर अकबर की विशाल सेना का डटकर मुकाबला किया। हालांकि, अकबर की सेना बहुत बड़ी थी और मेड़ता के राजपूतों को हार का सामना करना पड़ा।

कल्ला जी राठौड़ ने चित्तौड़ के महाराणा उदयसिंह से मदद मांगी। महाराणा उदयसिंह ने कल्ला जी राठौड़ को रणढालपुर की जागीर दी और उन्हें गुजरात की सीमा से लगे क्षेत्र का रक्षक नियुक्त किया।

कल्ला जी राठौड़ ने रणढालपुर में अपनी वीरता और कौशल का लोहा मनवाया। उन्होंने कई मुगल सेनाओं को पराजित किया।

१६२४ में मुगल बादशाह अकबर ने फिर से चित्तौड़ पर आक्रमण किया। कल्ला जी राठौड़ ने अपने पिता और भाई के साथ मिलकर अकबर की सेना का डटकर मुकाबला किया। कल्ला जी राठौड़ ने अकबर की सेना को कई बार पीछे हटने पर मजबूर किया।

अंत में, कल्ला जी राठौड़ अकबर की सेना से लड़ते हुए वीरगति को प्राप्त हो गए। उनकी वीरता और साहस की कहानी आज भी लोगों को प्रेरित करती है।

कल्ला जी राठौड़ की कुछ प्रमुख उपलब्धियाँ:

  • उन्होंने मेड़ता पर मुगल आक्रमण का डटकर मुकाबला किया।
  • उन्होंने गुजरात की सीमा से लगे क्षेत्र का रक्षक के रूप में अपनी वीरता और कौशल का लोहा मनवाया।
  • उन्होंने चित्तौड़ पर मुगल आक्रमण का डटकर मुकाबला किया।

कल्ला जी राठौड़ एक महान राजपूत योद्धा थे। उन्होंने अपने पराक्रम और शौर्य से मेवाड़ की रक्षा की। उनकी वीरता और साहस की कहानी आज भी लोगों को प्रेरित करती है।

अकबर का चित्तोड़ पर आक्रमण | Akbar’s Attack on Chittor | Akabar ka Chittod par Akraman

अकबर एक महत्वाकांक्षी सम्राट था। वह अपने साम्राज्य का विस्तार करना चाहता था। उसने अपने पूर्ववर्तियों की तरह ही राजपूत राज्यों को भी अपने अधीन करना चाहा।

१५६७ में अकबर ने मेवाड़ के चित्तौड़गढ़ पर आक्रमण किया। इस आक्रमण की कुछ औपचारिक वजहें थीं।

  • १५६२ में अकबर ने मेड़ता के राव जयमल राठौड़ पर आक्रमण किया था। जयमल राठौड़ को महाराणा उदयसिंह ने अपने दरबार में शरण दी थी। अकबर को यह बात नागवार गुजरी।
  • अकबर के शत्रु मालवा के राजा बाज बहादुर को महाराणा उदयसिंह ने अपने दरबार में शरण दी थी। अकबर ने इसे भी चित्तौड़गढ़ पर आक्रमण का बहाना बनाया।

लेकिन वास्तव में अकबर की चित्तौड़गढ़ पर आक्रमण की मंशा इन औपचारिक वजहों से कहीं अधिक व्यापक थी। अकबर राजपूत राज्यों को अपने अधीन करना चाहता था। और चित्तौड़गढ़ राजपूत राज्यों का एक महत्वपूर्ण गढ़ था।

अकबर को यह भी पता था कि महाराणा उदयसिंह एक वीर और स्वाभिमानी राजा थे। वे किसी भी कीमत पर अपनी स्वतंत्रता नहीं छोड़ना चाहते थे। अकबर को यह भी पता था कि चित्तौड़गढ़ एक मजबूत किला था। इसलिए अकबर को लगा कि चित्तौड़गढ़ पर आक्रमण करना एक चुनौतीपूर्ण लेकिन जरूरी काम था।

अकबर की इस चुनौती को महाराणा उदयसिंह और उनके साथी राजपूतों ने स्वीकार किया। उन्होंने अकबर की विशाल सेना का डटकर मुकाबला किया। लेकिन अंततः अकबर को सफलता मिली। चित्तौड़गढ़ पर अकबर का कब्जा हो गया।

अकबर की चित्तौड़गढ़ पर विजय राजपूत इतिहास का एक महत्वपूर्ण मोड़ था। इस विजय के बाद अकबर ने राजपूत राज्यों को अपने अधीन करने की अपनी नीति में तेजी लाई। और जल्द ही अधिकांश राजपूत राज्य अकबर के अधीन हो गए।

महाराणा उदयसिंह का चित्तोड़ से सुरक्षित पलायन | Safe Escape of Maharana Uday Singh from Chittor | Maharana Udayasinh ka Chittod se Surakshit Palaayan

१५६७ ईस्वी में अकबर ने मेवाड़ के चित्तौड़गढ़ पर आक्रमण किया। अकबर की विशाल सेना ने चित्तौड़गढ़ को चारों ओर से घेर लिया।

अकबर के आक्रमण की योजना गुप्तचरों द्वारा जयमल राठौड़ को बहुत पहले ही मिल चुकी थी। जयमल राठौड़ एक वीर राजपूत सरदार थे। उन्होंने चित्तौड़गढ़ की रक्षा की तैयारी शुरू कर दी।

२६ अक्टूबर १५६७ को अकबर चित्तौड़ के पास नगरी नामक गांव पहुंचा। जिसकी सूचना मिलने पर महाराणा उदयसिंह ने युद्ध परिषद बुलाई। परिषद में यह निर्णय लिया गया कि महाराणा उदयसिंह को पहाड़ों में भेज दिया जाए।

महाराणा उदयसिंह को चित्तौड़गढ़ की रक्षा के लिए सबसे योग्य व्यक्ति माना जाता था। लेकिन युद्ध की स्थिति को देखते हुए यह निर्णय लिया गया कि महाराणा उदयसिंह की रक्षा के लिए उन्हें पहाड़ों में भेजना आवश्यक है।

युद्ध परिषद में जयमल राठौड़ को चित्तौड़गढ़ का सेनापति नियुक्त किया गया। जयमल राठौड़ के नेतृत्व में ८००० राजपूत सैनिकों ने चित्तौड़गढ़ की रक्षा के लिए दृढ़ निश्चय किया।

महाराणा उदयसिंह ने सारे राजकोष को सुरक्षित स्थान पर ले जाया गया। इसके बाद वे कुछ विश्वासपात्र सैनिकों के साथ पहाड़ों में चले गए।

राव जयमल का कल्ला राठौड़ को युद्ध संदेश | Rao Jaimal’s war message to Kalla Rathod | Rav Jayamal ka Kalla Rathaud ko Yuddh Sandesh

१५६७ ईस्वी में, मेवाड़ के चित्तौड़गढ़ पर अकबर की विशाल सेना ने आक्रमण किया। इस आक्रमण की खबर जब रणढालपुर के कल्लाजी राठौड़ को मिली, तो वे उस समय अपने विवाह समारोह में व्यस्त थे।

कल्लाजी एक वीर राजपूत योद्धा थे। उन्होंने तुरंत अपने विवाह समारोह को बीच में ही छोड़ दिया और २००० वीर राजपूत योद्धाओं के साथ चित्तौड़गढ़ की ओर कूच कर दिया।

कल्लाजी का विवाह शिवगढ़ के राव कृष्णदास की पुत्री कृष्णा के साथ तय हुआ था। कल्लाजी का विवाह समारोह बहुत ही धूमधाम से हो रहा था। कल्लाजी अपने विवाह मंडप में पधारे थे और द्वारचार के समय जब उनकी सास उनकी आरती उतार रही थी, तभी जयमल जी के द्वारा भेजे गए संदेशवाहक से कल्लाजी को महाराणा उदयसिंह का सन्देश मिला।

महाराणा उदयसिंह का सन्देश था कि अकबर ने चित्तौड़ पर हमला कर दिया है, अतः तुरन्त सेना सहित वहाँ पहुँचें।

कल्लाजी ने मातृभूमि की आवाज सुनकर संक्षिप्त तरीके से विवाह की औपचारिकता जल्द ही पूरी की। उन्होंने अपनी नयी सुंदर राजकुमारी पत्नी कृष्णा को वही अकेला छोड़ पुनः आकर मिलने का वचन देकर चित्तौड़ की और कूच कर दिया।

कल्लाजी का वीर प्रस्थान एक ऐतिहासिक घटना है। यह घटना राजपूतों के पराक्रम और देशभक्ति की भावना का प्रतीक है।

कल्ला राठौड़ का चित्तौड़गढ़ दुर्ग में प्रवेश | Kalla Rathore’s Entry into Chittorgarh Fort | Kalla Rathaud ka Chittaudagadh Durg Mein Pravesh

कल्लाजी राठौड़ एक वीर राजपूत योद्धा थे। वे चित्तौड़गढ़ की रक्षा के लिए अपने प्राणों की बाजी लगाने को तैयार थे।

जब कल्लाजी राठौड़ चित्तौड़गढ़ पहुँचे, तो उन्होंने देखा कि अकबर की सेना ने किले की घेराबंदी कर रखी है। किले का एक दरवाजा खुला हुआ था, लेकिन उस पर अकबर के सेनापति आसिफ खाँ और उनके मुगल सैनिकों का पहरा था।

कल्लाजी राठौड़ को चित्तौड़गढ़ की रक्षा के लिए किले में प्रवेश करना आवश्यक था। उन्होंने अपने प्रमुख सेनापति रणधीर सिंह को ५०० सैनिकों के घेरे में लेकर किले में प्रवेश करने का आदेश दिया।

रणधीर सिंह एक वीर योद्धा थे। उन्होंने कल्लाजी राठौड़ की सुरक्षा के लिए अपने प्राणों की बाजी लगा दी। उन्होंने अकबर के मुगल सैनिकों से डटकर मुकाबला किया।

रणधीर सिंह और उनके साथी योद्धाओं ने मुगल सैनिकों को काफी नुकसान पहुँचाया। लेकिन अंततः, वे वीरगति को प्राप्त हुए।

कल्लाजी राठौड़ अपनी शेष सेना सहित किले में प्रवेश करने में सफल हो गए। रणधीर सिंह और उनके साथी योद्धाओं के साहस के चलते कल्लाजी राठौड़ को सुरक्षित किले में प्रवेश कराने का अभियान कामयाब रहा।

कल्लाजी राठौड़ ने चित्तौड़गढ़ की रक्षा के लिए अपने प्राणों की बाजी लगा दी। उनकी वीरता और देशभक्ति की भावना का इतिहास में हमेशा सम्मान किया जाएगा।

अकबर का राव जयमल को प्रस्ताव | Akbar’s proposal to Rao Jaimal | Akabar ka Rav Jayamal ko Prastav

चित्तौड़गढ़ का विशाल दुर्ग अकबर की विशाल सेना से घिरा हुआ था। इसकी प्राचीन दीवारें सूरज की किरणों में चमकती थीं, मानो चुनौती दे रही हों। किले को भेदना हर किसी के बस की बात नहीं थी, परंतु अकबर की महत्वाकांक्षाएँ उफनती सागर लहरों की तरह थीं। वह किसी न किसी तरह चित्तौड़ को जीतना चाहता था।

उन्हें पता चला कि मेवाड़ के महाराणा उदयसिंह इस युद्ध में नहीं थे, किले की रक्षा का भार वीर राव जयमल के कंधों पर था। एक चतुर योजना अकबर के दिमाग में कौंध गयी। चूंकि जयमल का अपना राज्य मेड़ता, अकबर के अधीन था, इसलिए उसने लालच का हथियार उठाने का निश्चय किया।

अकबर ने एक दूत को जयमल के पास भेजा, उसके लुभावने शब्दों में कहा, “राव जयमल, तुम इस दुर्ग में क्यों अपनी जान जोखिम में डाल रहे हो? तुम्हारा राज्य मेड़ता तुम्हारी प्रतीक्षा कर रहा है, जो मैं तुमसे जीता था उसे लौटा दूंगा। तुम बड़े राज्य के राजा बनो, चित्तौड़ का बोझ छोड़ो।”

जयमल हंस पड़े। उन्होंने तुरंत एक दोहा भेजकर जवाब दिया, “हे बादशाह, मेरी भूख मेड़ता से नहीं, नागौर से नहीं मिटेगी। मेरी आत्मा को वीरता की अग्नि जला रही है, जो सिर्फ चित्तौड़ की रक्षा से शांत होगी।”

अकबर ने एक और प्रयास किया। अब उन्होंने नागौर का राज्य भी लालच के पिटारे में डाल दिया। लेकिन जयमल अडिग रहे। उन्होंने एक और दोहा भेजकर कहा, “चित्तौड़ की माटी में वीरता का बीज रोपा गया है, जिसे सोने-चांदी नहीं, सिर्फ शहादत खिला सकती है।”

आखिरकार, अकबर को समझ आ गया कि इन वीरों को दौलत नहीं, स्वतंत्रता का जुनून चलाता है। उनके हृदय में सिर्फ चित्तौड़ की रक्षा का मंत्र गूंज रहा था।

अकबर का चित्तोड़ के किले पर आक्रमण | Akbar’s Attack on the Fort of Chittor | Akabar ka Chittod ke Kile Par Aakraman

अकबर का चित्तोड़ के किले पर आक्रमण

अकबर की चित्तौड़गढ़ की घेराबंदी १५६७ से १५६८ तक चली। यह एक लंबी और कठिन लड़ाई थी, जिसमें दोनों पक्षों को भारी नुकसान उठाना पड़ा।

अकबर ने घेराबंदी की शुरुआत में जयमल और पत्ता को राजी करने की कोशिश की। उसने उन्हें मेड़ता और नागौर के राज्य वापस देने का वादा किया। लेकिन जयमल और पत्ता ने अकबर के प्रस्ताव को ठुकरा दिया। वे चित्तौड़गढ़ की रक्षा करना चाहते थे।

अकबर ने फिर तोपों से किले पर आक्रमण शुरू किया। लेकिन जयमल और उनके सैनिकों ने बड़ी बहादुरी से तोपों का सामना किया। उन्होंने तोपों की मार से हुए नुकसान को रात में ठीक कर दिया।

अकबर ने फिर सुरंग खोदने की रणनीति अपनाई। लेकिन जयमल और उनके सैनिकों ने सुरंग खोदने वाले मुगल सैनिकों पर हमला कर दिया। इससे मुगलों को भारी नुकसान उठाना पड़ा।

अंत में, अकबर को किले की एक दीवार में सुरंग बनाने में सफलता मिली। उसने सुरंग में बारूद भरकर विस्फोट किया। लेकिन जयमल और पत्ता ने इस हमले से बचने के लिए एक रणनीति तैयार कर रखी थी। उन्होंने क्षतिग्रस्त दीवार की जगह मिट्टी के तेल में भिगोकर कपास और लकड़ी रख दी थी। जैसे ही मुगल सैनिक किले में घुसने का प्रयास किया, तो जयमल ने आग लगा दी। इससे मुगलों का प्रयास विफल हो गया।

इस प्रकार, अकबर की सभी रणनीतियाँ विफल हो गईं। आठ महीने तक चली घेराबंदी के बाद भी वह चित्तौड़गढ़ को जीतने में नाकाम रहा।

इस बीच, जयमल भी घायल हो गए थे। उनके पैर में गोली लगी थी। किले में अनाज और पानी भी कम होने लगा था। ऐसे में, जयमल ने अंतिम संघर्ष का फैसला किया।

२३ फरवरी, १५६८ को, जयमल और पत्ता ने अपने सैनिकों के साथ किले से बाहर निकलकर मुगलों पर हमला किया। इस हमले में जयमल और पत्ता वीरगति को प्राप्त हुए। लेकिन उनके सैनिकों ने भी मुगलों को भारी नुकसान पहुंचाया।

चित्तौड़गढ़ की घेराबंदी राजपूत वीरता और स्वाभिमान का एक गौरवशाली अध्याय है। जयमल और पत्ता के नेतृत्व में मेवाड़ के वीरों ने अकबर की शक्तिशाली सेना का डटकर सामना किया। अपनी वीरता और बलिदान से उन्होंने देश की रक्षा में महत्वपूर्ण योगदान दिया।

आठ महीने तक चली इस संघर्ष में दोनों पक्षों की स्थिति लगातार बिगड़ती जा रही थी। अकबर की सेना में हताशा बढ़ रही थी, क्योंकि वह किले को जीतने में नाकाम हो रही थी। मेवाड़ के वीरों की संख्या भी कम होती जा रही थी, और उनके पास भोजन और पानी भी कम पड़ने लगा था।

इस बीच, एक दिन जयमल किले की दीवारों की मरम्मत कर रहे थे। तभी अकबर के एक सैनिक ने उन्हें मशाल जलाते हुए देखा और अकबर को सूचना दी। अकबर ने अपनी संग्राम नामक बंदूक से निशाना साधा और जयमल को पैर में गोली मार दी।

जयमल के घायल होने से मेवाड़ के वीरों में निराशा छा गई। लेकिन जयमल ने अपने सैनिकों को धैर्य रखने और अंतिम संघर्ष के लिए तैयार रहने का आह्वान किया।

मेवाड़ी वीरों की काम होती संख्या, किले में खत्म होते अनाज और पानी के भंडार और साथ ही घायल सिपाही और खुद मुख्य सेनापति| यह समय था शत्रु पर आखरी हमले का| तो सेनापति जयमल ने निश्चय किया कि अब अंतिम संघर्ष का समय आ गया है।

कुछ ऐतिहासिक तथ्यों का उल्लेख

  • चित्तौड़गढ़ की घेराबंदी के दौरान, अकबर की सेना में लगभग 1 लाख सैनिक थे, जबकि जयमल और पत्ता के पास केवल ८,००० सैनिक थे।
  • किले की दीवारों की मरम्मत के लिए, जयमल और उनके सैनिकों ने रात में दीवारों पर चढ़कर काम किया।
  • सुरंग खोदने वाले मुगल सैनिकों को बचाने के लिए, अकबर ने उन्हें एक-एक मिट्टी की टोकरी के बदले एक-एक स्वर्ण मुद्रा देने की पेशकश की थी।
  • जयमल के पैर में गोली लगने के बाद, उन्हें किले के अंदर ले जाया गया। लेकिन उन्होंने अपने सैनिकों को अंतिम संदेश दिया कि वे अंतिम संघर्ष के लिए तैयार रहें।

जयमल, पत्ता और कल्ला का अकबर पर अंतिम आक्रमण | Jaimal, Patta and Kalla’s Final Attack on Akbar | Jayamal, Patta aur Kalla ka Akabar par Antim Aakraman

आठ महीने की लंबी और कठिन लड़ाई के बाद, चित्तौड़गढ़ की घेराबंदी आखिरकार अपने अंतिम चरण में पहुंच चुकी थी। अकबर की शक्तिशाली सेना ने किले को चारों ओर से घेर रखा था, और मेवाड़ के वीरों के पास अब कोई रास्ता नहीं बचा था।

अंतिम प्रहार करने से पहले, जयमल, फत्ता सिसोदिया और कल्ला राठौड़ ने एक बार फिर मिलकर आगे की रणनीति को सुनिश्चित किया। जयमल ने अपने सभी सैनिकों को केसरिया बाना पहनने का निर्देश दिया। यह केसरिया बाना वीरता और बलिदान का प्रतीक था।

किले के अंदर भी, सभी मेवाड़ी शूरवीरों में क्रोध की ज्वाला फट पड़ी थी। वे मुगलों को अंतिम समय तक मारने का प्रण ले चुके थे।

जयमल को युद्ध करने की तीव्र इच्छा थी। वह चाहते थे कि वह मुगलों को मारते-मारते वीरगति को प्राप्त हों। लेकिन उनके पैर में गोली लगने के कारण उनका चलना तो दूर, खड़ा होना भी मुश्किल हो रहा था।

जयमल की युद्ध करने की तीव्र इच्छा को जानकर, उनके भतीजे कल्ला राठौड़ ने कहा, “चाचा, आपकी ये इच्छा अवश्य पूरी होगी।” इसके बाद, कल्ला राठौड़ ने जयमल को अपने कंधे पर बैठाकर युद्ध के मैदान में ले गए।

किले के भीतर सभी सरदारों को भी एकत्रित किया गया। सभी सरदारों ने मिलकर निर्णय लिया कि अंतिम प्रहार के साथ ही जौहर और केसरिया किया जाएगा।

२३ फरवरी, १५६८ को, जयमल, फत्ता सिसोदिया और कल्ला राठौड़ के नेतृत्व में मेवाड़ी वीरों ने किले से बाहर निकलकर मुगलों पर हमला किया। 

जयमल ने अपने सभी सैनिकों को गोल घेरे में रहकर मुगलों पर हमला करने का आदेश दिया। इस रणनीति का उद्देश्य यह था कि मुगल सैनिकों के मुकाबले राजपूत योद्धाओं की संख्या काफी कम थी| ६०००० मुगल सैनिकों से लड़नेके लिए सिर्फ ८००० राजपूत वीर ही थे| इसलिए गोल घेरे में रहकर प्रहार करने से एक मुगल सैनिक पर दो या तीन राजपूत योद्धा प्रहार कर सकते थे। इस प्रकार मुगल सेना को ज्यादा से ज्यादा नुकसान पहुंचाया जा सकता था।

जौहर की ज्वाला

तय रणनीति के अनुसार, अगले दिन 23 फरवरी, 1568 की रात में चित्तौड़ के किले में उपस्थित सभी क्षत्राणियों ने जौहर किया। जौहर एक प्राचीन राजपूत प्रथा थी, जिसमें महिलाएं अपने पति की मृत्यु के बाद खुद को आग में झोंक देती थीं। इस प्रथा का उद्देश्य यह था कि यदि पुरुष वीरगति को प्राप्त हो गए हैं, तो स्त्रियां भी उन्हें अकेला नहीं छोड़ेंगी।

जौहर की ज्वाला ने चित्तौड़ के आसमान में एक भयानक दृश्य उपस्थित किया। इस ज्वाला को देखकर अकबर और उसकी सेना को समझ आ गया कि अब आगे क्या होने वाला है।

मुगलों की तैयारी

जौहर की ज्वाला देखकर अकबर ने भी दुर्ग के द्वार पर सैनिकों की संख्या बढ़ा दी। उन्हें पता था कि राजपूत योद्धा दुर्ग के द्वार खोलकर ही केसरिया करेंगे।

केसरिया

२४ फरवरी, १५६८ की सुबह, जयमल, फत्ता सिसोदिया और कल्ला राठौड़ के नेतृत्व में मेवाड़ी वीरों ने किले से बाहर निकलकर मुगलों पर हमला किया।

अकबर जानता था कि राजपूत वीर दुर्ग के द्वार से बाहर निकलकर केसरिया करेंगे। इसलिए उसने दुर्ग के द्वार पर अपनी सबसे शक्तिशाली सेना तैनात कर दी थी। अकबर की योजना थी कि जब राजपूत वीर दुर्ग के द्वार से बाहर निकलेंगे, तो उसकी सेना उन्हें घेर लेगी और उन्हें मार डालेगी।

राजपूतों की रणनीति

जयमल और फत्ता सिसोदिया को पता था कि दुर्ग के द्वार पर अकबर ने अधिक मुगल सेना को तैनात किया हुआ होगा। इसलिए उन्होंने भी इससे निपटने के लिए और मुगलों को चौंकाने के लिए एक अलग योजना बनाई।

जयमल और फत्ता सिसोदिया को पता था कि युद्ध में अकबर की नज़र जयमल पर ही रहेगी। इसीलिए जयमल २-३ हजार राजपूत सैनिकों के गोल घेरे में किले के द्वार को खोलकर केसरिया करेंगे। और दूसरी तरफ फत्ता सिसोदिया मुगलों द्वारा तोड़ी गई दीवारों से अन्य योद्धाओं के साथ बाहर जाकर हमला करके उन्हें चौंका देंगे।

अंतिम प्रहार

अगले दिन २४ फरवरी, १५६८ को, मेवाड़ी वीर किले के द्वार खोल कर भूखे सिंह की भाँति मुगल सेना पर टूट पड़े। राजपूतों के इस अचानक हमले से मुगल सेना घबरा गई। राजपूतों ने मुगलों पर ऐसा प्रहार किया कि मुगलों की सेना को संभलने का भी मौका नहीं मिला।

दूसरी तरफ से पत्ता सिंह ने भी टूटी हुई दीवारों से राजपूत सैनिकों के साथ गोल घेरे में बाहर निकलकर मुगलों पर आक्रमण करके उन्हें चौंका दिया। पत्ता सिंह और उनकी सैन्य टुकड़ी ने सैकड़ों अकबर के सैनिकों को मौत के घाट उतार दिया।

युद्ध के मैदान में जयमल और कल्ला एक भयंकर दृश्य प्रस्तुत कर रहे थे। कल्ला ने जयमल को अपने कंधों पर बैठा लिया था, और दोनों अपने दोनों हाथों में तलवारें थामे हुए थे। चारों तलवारें बिजली की गति से चल रही थीं, और हर तरफ मुगल सैनिकों की लाशे बिखर रही थीं।

अकबर भी इस दृश्य को देखकर चकित रह गया। उसे लगा कि कोई देवता युद्ध कर रहा है।

कल्ला की वीरगति

युद्ध करते-करते दोनों वीर बुरी तरह से घायल हो गए। कल्ला ने जयमल को नीचे उतारकर उनकी चिकित्सा करना चाहा, लेकिन इसी समय एक मुगल सैनिक ने पीछे से हमला कर उनका सिर काट दिया।

सिर कटने के बाद भी कल्ला का धड़ बहुत देर तक युद्ध करता रहा। अंत में, एक मुगल सैनिक ने उनके धड़ पर वार कर उन्हें वीरगति दिला दी।

जयमल की वीरगति

कल्ला की वीरगति के बाद, जयमल अकेले ही मुगलों से युद्ध करने लगे। अंत में, मुगलों ने उन पर घेरा डाला और उन पर प्राणघातक हमला कर दिया। जयमल भी वीरगति को प्राप्त हो गए।

पत्ता सिसोदिया की वीरगति

जयमल की वीरगति का समाचार जब पत्ता सिसोदिया को पता चला, तो वह दुर्ग के अंदर उन्हें देखने गए। लेकिन दुर्भाग्य से, दुर्ग के अंदर रामपुर दरवाजे के पास उन्हें भी मुगल सैनिकों ने घेर लिया और उन पर कई वार किए। इस प्रकार यह वीर राजपूत योद्धा भी अपनी मातृभूमि की रक्षा करता हुआ अपने प्राणों को अर्पण कर गया।

मेवाड़ के अन्य वीरों की वीरगति

जयमल, कल्ला और पत्ता सिसोदिया के साथ ही चित्तौड़गढ़ के अन्य सभी मेवाड़ी वीर योद्धा भी मुगलों से लड़ते-लड़ते वीरगति को प्राप्त हो गए।

मेवाड़ की वीरता और स्वाभिमान का प्रतीक

चित्तौड़गढ़ की घेराबंदी और जौहर की घटना राजपूत इतिहास में एक महत्वपूर्ण घटना है। यह घटना राजपूत वीरता और स्वाभिमान का एक गौरवशाली अध्याय है।

अकबर की जयमल, पत्ता और कल्ला की बहादुरी की प्रशंसा | Akbar Praises the Bravery of Jaimal, Patta and Kalla | Akabar Ki Jayamal, Patta aur Kalla kee Bahaduri Ki Prashansa

चित्तौड़गढ़ की घेराबंदी के दौरान जयमल और कल्ला राठौड़ की वीरता ने अकबर को भी प्रभावित किया। अकबर ने उनकी वीरता को देखते हुए आगरा के किले के मुख्य द्वार पर उनकी विशालकाय मूर्तियां बनवाईं।

जर्मन इतिहासकार टॉड ने अकबर के बारे में अपनी पुस्तक में लिखा है कि, “जयमल की वीरता के आगे अकबर भी नतमस्तक था।”

जयमल और कल्ला की वीरता का इतिहास में अमिट स्थान है। उनकी वीरता आज भी लोगों को प्रेरित करती है।

कल्ला राठौड़ का लोकदेवता बनना

चित्तौड़गढ़ की घेराबंदी में कल्ला राठौड़ ने जयमल के साथ मिलकर मुगलों से लोहा लिया। इस युद्ध में कल्ला राठौड़ ने अपने प्राणों का बलिदान दिया।

कल्ला राठौड़ की वीरता के कारण उन्हें राजस्थान में लोकदेवता का दर्जा दिया गया है। उनके बलिदान दिवस को बड़ी धूमधाम से मनाया जाता है।

निष्कर्ष | Conclusion

चित्तौड़गढ़ की घेराबंदी के दौरान जयमल, कल्ला राठौड़ और पत्ता ने जो वीरता का प्रदर्शन किया, वह इतिहास में अमर हो गया है। उनकी वीरता ने न केवल भारत बल्कि पूरे विश्व में लोगों को प्रेरित किया है।

उन्होंने अपनी मातृभूमि की रक्षा के लिए अपने प्राणों का बलिदान दे दिया। उनकी वीरता से यह सिद्ध होता है कि देशभक्ति और स्वाभिमान की भावना कितनी महान है। उन्होंने अपने जीवन में हमेशा नैतिक मूल्यों का पालन किया। उनकी वीरता से यह सिद्ध होता है कि नैतिक मूल्यों का पालन करने से व्यक्ति महान बन सकता है।

जयमल, कल्ला  और पत्ता की वीरता एक अमूल्य धरोहर है। उनकी वीरता से प्रेरित होकर हम भी अपने देश, समाज और परिवार की रक्षा के लिए सदैव तत्पर रह सकते हैं।

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