कैला देवी मंदिर करौली राजस्थान में स्थित (Kaila Devi Mandir), माता पार्वती का एक रूप है। कैला देवी यदुवंश की कुलदेवी हैं। कैला देवी का इतिहास (Kaila Devi ka Itihas) हजारों साल पुराना माना जाता है| चैत्र मास में लगने वाला कैला देवी का मेला बहुत ही लोकप्रिय है|
कैला देवी मंदिर राजस्थान का परिचय | Kaila Devi Mandir ka Parichay | Introduction of Kaila Devi Temple Rajasthan
स्थान: कैला देवी मंदिर राजस्थान के करौली जिले में स्थित है (Kaila Devi Temple Karauli)। यह त्रिकूट पर्वत पर स्थित है, जो कि अरावली पर्वत श्रृंखला का हिस्सा है।
इतिहास: कैला देवी का इतिहास १० वीं शताब्दी का माना जाता है। यह माना जाता है कि इस मंदिर का निर्माण राजा भोज ने करवाया था।
देवी: कैला देवी को यदुवंश की कुलदेवी माना जाता है। भगवान कृष्ण भी यदुवंश के थे, इसलिए कैला देवी को कृष्ण की कुलदेवी भी कहा जाता है।
मंदिर: मंदिर का निर्माण हिंदू वास्तुकला शैली में किया गया है। मंदिर में तीन गर्भगृह हैं, जिनमें कैला देवी, भगवान शिव और भगवान हनुमान की मूर्तियां स्थापित हैं।
मेला: हर साल चैत्र नवरात्रि में यहाँ एक विशाल मेला आयोजित होता है। इस मेले में लाखों भक्त देवी के दर्शन के लिए आते हैं।
महत्व: कैला देवी मंदिर (Kaila Devi Mandir) हिंदुओं के लिए एक महत्वपूर्ण तीर्थ स्थल है। यह मंदिर अपनी शक्ति और साहस के लिए जाना जाता है।
आवागमन: मंदिर तक सड़क और रेल दोनों मार्गों से पहुंचा जा सकता है। निकटतम रेलवे स्टेशन हिंडौन सिटी है, जो मंदिर से लगभग ५५ किलोमीटर दूर है।
पर्यटन: कैला देवी मंदिर एक लोकप्रिय पर्यटन स्थल है। यहाँ भक्तों के साथ-साथ पर्यटक भी आते हैं।
अन्य आकर्षण: मंदिर के आसपास कई अन्य आकर्षक स्थान भी हैं, जैसे कि कंकाली देवी मंदिर, भैरव मंदिर और नारायण सरोवर।
कैला देवी का इतिहास | Kaila Devi ka Itihas | History of Kaila Devi
राजस्थान के त्रिकूट पर्वत पर विराजमान कैला देवी मंदिर अपने समृद्ध इतिहास और रहस्यमयी कथाओं के लिए देशभर में प्रसिद्ध है। हजारों साल पुराना माना जाने वाला यह मंदिर न सिर्फ धार्मिक आस्था का केंद्र है, बल्कि इतिहास, कला और मान्यताओं का संगम भी है। आइए, झांकते हैं कैला देवी के अतीत मेंः
अनेक रूप, एक देवी: कैला देवी के उद्भव से जुड़ी कई रोचक कहानियां प्रचलित हैं। कुछ मानते हैं वो सती के अंग से उत्पन्न ५१ शक्तिपीठों में से एक हैं। कुछ उन्हें योगमाया, भगवान कृष्ण की बहन मानते हैं। वहीं कुछ उन्हें नरकासुर राक्षस का वध करने वाली दुर्गा का ही अवतार मानते हैं।
इतिहास के झरोखे: मंदिर के वास्तुकला शैली से अनुमान लगाया जाता है कि इसका निर्माण कम से कम १० वीं शताब्दी में हुआ होगा। किंवदंती है कि राजा भोज ने मंदिर की स्थापना की, मगर ठोस प्रमाण मौजूद नहीं हैं। मुगल काल में मंदिर क्षतिग्रस्त हुआ था, जिसे बाद में करौली के राजाओं ने जीर्णोद्धार करवाया।
मूर्ति और रहस्य: मंदिर की मुख्य प्रतिमा काले संगमरमर से निर्मित है और तीन देवियों (कैला देवी, चामुंडा देवी और सिंहवाहिनी देवी) का प्रतिनिधित्व करती है। इसकी खासियत यह है कि कैला देवी की मूर्ति थोड़ी झुकी हुई है, जिसके पीछे भी कई लोक कथाएं मौजूद हैं।
आस्था का केंद्र: कैला देवी को धन, शक्ति और कष्ट निवारण की देवी माना जाता है। लाखों श्रद्धालु साल भर दर्शन के लिए आते हैं। चैत्र नवरात्रि में लगने वाला मेला सबसे प्रसिद्ध है, जिसमें हजारों लोगों की धर्मपरायणता का सागर नजर आता है।
मंदिर परिसर: मंदिर परिसर विशाल और आकर्षक है। इसमें भगवान शिव, गणेश, हनुमान और भैरव के भी मंदिर हैं। लाल पत्थर से अलंकृत यह परिसर धार्मिक शांति और शक्ति का अनुभव कराता है।
पौराणिक महत्व: मंदिर के आसपास कई ऐतिहासिक और पौराणिक स्थल हैं। माना जाता है कि पांडवों ने भी अज्ञातवास के दौरान यहां कुछ समय बिताया था। नारायण सरोवर और कंकाली देवी मंदिर भी पर्यटकों को आकर्षित करते हैं।
कैला देवी का इतिहास, समय के साथ धर्म, कथाओं और आस्था से जुड़कर एक समृद्ध ताना-बाना बन गया है। चाहे मान्यताएं हों या इतिहास, यह मंदिर राजस्थान की धार्मिक और सांस्कृतिक धरोहर का एक अहम हिस्सा है। हर आने वाले को अपनी अनूठी शक्ति और आध्यात्मिक अनुभव प्रदान करता है।
कैला देवी के लांगुरिया | Kaila Devi ke Languriya
राजस्थान के कैला देवी मंदिर की गूंजती भक्ति का एक अनूठा रूप है – लांगुरिया। लांगुरिया एक ऐसा लोकगीत है जो पीढ़ियों से चली आ रही परंपरा है, खासकर चैत्र नवरात्रि के दौरान जब लाखों श्रद्धालु मंदिर पहुंचते हैं। लेकिन ये सिर्फ एक गीत नहीं, भक्ति और उत्सव का एक अनोखा मिश्रण है।
लांगुरिया का शाब्दिक अर्थ है “लाठी का नृत्य”। परंपरागत रूप से पुरुष, लकड़ी की लाठियों से तालबद्ध तरीके से ताल देते हुए, गाते और नाचते हैं। गीत देवी की महिमा का गुणगान करते हैं, उनकी शक्ति और कृपा का आह्वान करते हैं। संगीत ऊर्जावान होता है, लय ललक और उत्साह से भरी होती है।
हालांकि पहले सिर्फ पुरुष ही लांगुरिया में भाग लेते थे, लेकिन अब महिलाएं भी इसमें हिस्सा लेती हैं। लांगुरिया के गीत अक्सर भक्तों की व्यक्तिगत यात्राओं, आशाओं और प्रार्थनाओं को भी व्यक्त करते हैं। वे देवी से कष्ट दूर करने, मनोकामनाएं पूरी करने और आशीर्वाद देने की प्रार्थना करते हैं।
लांगुरिया सिर्फ मनोरंजन नहीं, मंदिर के वातावरण को जीवंत बनाता है। गीत गाते और नाचते हुए भक्तों में एकता और भाईचारे का भाव पनपता है। लांगुरिया एक सांस्कृतिक धरोहर है, जो मंदिर की परंपरा को जीवित रखता है और पीढ़ी-दर-पीढ़ी आगे बढ़ाता है।
आज के समय में आधुनिक संगीत के प्रभाव के बावजूद, लांगुरिया अपनी प्राचीनता और आकर्षण को बनाए हुए है। मंदिर को गूंजते लांगुरिया की धुन आपको एक अनोखा आध्यात्मिक और सांस्कृतिक अनुभव प्रदान करती है। यह भक्ति और लोक परंपरा का एक सुंदर संगम है।
कैला देवी का मंदिर कहां स्थित है | कैला देवी मंदिर कहा है | Kaila Devi Mandir Location | Kaila Devi Mandir kaha hai
कैला देवी मंदिर (Kaila Devi Mandir) राजस्थान राज्य के करौली जिले में त्रिकूट पर्वत पर स्थित है, जो अरावली पर्वत श्रृंखला का हिस्सा है।
- सड़क मार्ग: यदि आप सड़क मार्ग से यात्रा कर रहे हैं, तो मंदिर जयपुर-आगरा राष्ट्रीय राजमार्ग पर महुवा से ९५ किमी की दूरी पर स्थित है। आप हिंडौन, करौली के रास्ते मंदिर पहुँच सकते हैं।
- रेल मार्ग: निकटतम रेलवे स्टेशन हिंडौन सिटी है, जो मंदिर से लगभग ५५ किलोमीटर दूर है। आप वहां से राज्य परिवहन की बस या निजी टैक्सी से मंदिर पहुंच सकते हैं।
- हवाई मार्ग: यदि आप हवाई मार्ग से यात्रा कर रहे हैं, तो निकटतम हवाई अड्डा जयपुर है, जो मंदिर से लगभग १९५ किमी दूर है। वहां से, आप सड़क मार्ग से महुवा, हिंडौन और करौली होकर मंदिर पहुंच सकते हैं।
आप अपनी सुविधा के अनुसार गूगल मैप्स पर दिशा-निर्देश प्राप्त कर सकते हैं: Google Maps directions to Kaila Devi Mandir
कैला देवी का मेला | कैला देवी चैत्र मास मेला | Kaila Devi Chaitra Mela | Kaila Devi Mela
राजस्थान के हृदय में स्थित, करौली जिले के त्रिकूट पर्वत पर विराजमान कैला देवी मंदिर न सिर्फ एक धार्मिक स्थल है, बल्कि सालाना आयोजित होने वाले भव्य मेले के लिए भी प्रसिद्ध है। चैत्र नवरात्रि के दौरान आयोजित होने वाला यह मेला भारत के सबसे बड़े धार्मिक आयोजनों में शुमार होता है।
कैला देवी का मेला कहाँ लगता है?
- यह मेला कैला देवी मंदिर परिसर में और उसके आसपास के क्षेत्र में लगता है।
कब लगता है?
- चैत्र मास के दौरान, जो आमतौर पर मार्च-अप्रैल महीनों में पड़ता है। मेला की अवधि लगभग 15 दिनों की होती है।
क्या खास है इस मेले में?
- हजारों, बल्कि लाखों श्रद्धालु इस मेले में देश के विभिन्न हिस्सों से दर्शन के लिए आते हैं।
- भक्तों की आस्था, संगीत, लोक परंपराएं और खान-पान का खूबसूरत संगम देखने को मिलता है।
- मेले में धार्मिक अनुष्ठानों के साथ-साथ मनोरंजन के साधन भी मौजूद रहते हैं।
मेले में क्या खास होता है?
- लांगुरिया: लाठियों के साथ गाए जाने वाले पारंपरिक लोक नृत्यों की धुन से पूरा माहौल भक्तिमय हो जाता है।
- बाज़ार: मेले में कपड़े, आभूषण, मूर्तियों आदि की दुकानों की भरमार रहती है।
- भंडारे: विभिन्न धार्मिक संस्थाएं और श्रद्धालु भक्तों के लिए भंडारे लगाते हैं।
कैला देवी दर्शन | Kaila Devi Darshan
कैला देवी मंदिर, राजस्थान के करौली जिले में स्थित, एक प्रसिद्ध धार्मिक स्थल है। देवी कैला यदुवंश की कुलदेवी है और भगवान कृष्ण भी इसी वंश से थे।
दर्शन समय:
- मंदिर सुबह ५:३० बजे से रात १०:०० बजे तक खुला रहता है।
- आरती का समय:
- सुबह ६:०० बजे
- दोपहर १२:०० बजे
- शाम ७:०० बजे
कैला देवी की मूर्ति:
- मंदिर में देवी कैला की ३ फीट ऊंची काली संगमरमर की मूर्ति है।
- मूर्ति में देवी को त्रिशूल, कमल और वरद मुद्रा में दर्शाया गया है।
- देवी के साथ भगवान शिव, हनुमान और गणेश की मूर्तियां भी हैं।
दर्शन के लिए सुझाव:
- सुबह जल्दी या शाम को देर से दर्शन के लिए जाना बेहतर है, क्योंकि दिन में बहुत भीड़ होती है।
- मंदिर में प्रवेश करने के लिए कोई शुल्क नहीं है।
- मंदिर परिसर में प्रसाद, फूल और अन्य पूजा सामग्री उपलब्ध हैं।
कैला देवी दर्शन के लाभ:
- मान्यता है कि देवी कैला भक्तों की मनोकामनाएं पूर्ण करती हैं।
- देवी को शक्ति और साहस की देवी माना जाता है।
- दर्शन के लिए आने वाले भक्तों को शांति और आध्यात्मिक अनुभव प्राप्त होता है।
कैला देवी दर्शन:
- दर्शन के लिए मंदिर में प्रवेश करने के बाद, भक्तों को पहले भगवान गणेश और हनुमान जी के दर्शन करने चाहिए।
- इसके बाद, देवी कैला की मूर्ति के सामने दीप प्रज्वलित करें और फूल अर्पित करें।
- देवी से प्रार्थना करें और मनोकामना व्यक्त करें।
- दर्शन के बाद, मंदिर परिसर में स्थित अन्य मंदिरों में भी जा सकते हैं।
कैला देवी मंदिर में दर्शन एक अद्भुत अनुभव है। यदि आप राजस्थान में हैं, तो कैला देवी मंदिर में दर्शन के लिए जरूर जाएं।
ऐसे ही और रोचक जानकारी के लिए यहाँ क्लिक करे|
FAQ (Frequently Asked Question | अक्सर पूछे जाने वाले सवाल)
कैला देवी का इतिहास क्या है?
इतिहासकार के नजरिए से, कैला देवी से जुड़ी सटीक तारीखें धुंधली हैं। किंवदंतियां हमें १० वीं शताब्दी तक ले जाती हैं और संभावित निर्माता के रूप में राजा भोज का नाम लेती हैं। हालांकि पुख्ता सबूत कम हैं। एक विचार कैला देवी को योगमाया, भगवान कृष्ण की बहन से जोड़ता है, जबकि दूसरा उन्हें शक्तिपीठों में से एक मानता है। खुदाई और शिलालेखों से इतिहास स्पष्ट हो सकता है, लेकिन फिलहाल, कैला देवी का अतीत कहानियों और मान्यताओं में बसा है।
कैला देवी का मेला कब लगता है?
कैला देवी का मेला चैत्र नवरात्र के दौरान सालाना आयोजित होता है। यह आमतौर पर मार्च-अप्रैल के महीनों में पड़ता है। इसका इतिहास काफी पुराना है और माना जाता है कि हजारों साल से यह परंपरा चली आ रही है। चैत्र मास को हिंदू धर्म में शुभ माना जाता है और नवरात्रि के नौ दिनों में देवी दुर्गा के नौ स्वरूपों की पूजा अर्चना होती है। कैला देवी को भी कई लोग दुर्गा का ही अवतार मानते हैं, इसलिए मेले का महत्व और भी बढ़ जाता है। यह मेला न सिर्फ आस्था का केंद्र है बल्कि राजस्थान की सांस्कृतिक विरासत का भी एक अहम हिस्सा है।
कैला देवी किसकी पुत्री है?
कुछ मानते हैं कैला देवी सती के अंग से उत्पन्न शक्तिपीठों में से एक हैं। कुछ उन्हें योगमाया, भगवान कृष्ण की बहन मानते हैं, जबकि अन्य उन्हें नरकासुर राक्षस का वध करने वाली दुर्गा का ही अवतार मानते हैं।
निश्चित रूप से कहना मुश्किल है, लेकिन ये मान्यताएं कैला देवी के धार्मिक महत्व और सदियों से चली आ रही कथाओं को दर्शाती हैं।
कैला देवी मंदिर किसने बनवाया था?
कैला देवी मंदिर का निर्माण किसने करवाया, इस बारे में इतिहासकारों के बीच मतभेद हैं। कुछ का मानना है कि यह मंदिर 8वीं शताब्दी में गुर्जर-प्रतिहार राजाओं द्वारा बनवाया गया था।
दूसरी ओर, कुछ इतिहासकारों का मानना है कि यह मंदिर 11वीं शताब्दी में कच्छपघात राजाओं द्वारा बनवाया गया था।
हालांकि, मंदिर के वास्तुकला शैली से पता चलता है कि इसका निर्माण 10वीं या 11वीं शताब्दी में हुआ होगा।
यह भी उल्लेखनीय है कि मंदिर का जीर्णोद्धार कई बार विभिन्न राजाओं द्वारा किया गया था।
कैला देवी का मंदिर कौन सी नदी के किनारे हैं?
कैला देवी का मंदिर कालीसिल नदी के किनारे स्थित है। यह नदी चंबल नदी की सहायक नदी है।
इतिहासकारों के अनुसार, यह मंदिर १० वीं शताब्दी में बनाया गया था। मंदिर का निर्माण राजा भोज द्वारा करवाया गया था।
कालीसिल नदी को पवित्र नदी माना जाता है। भक्त मंदिर में दर्शन करने के बाद नदी में स्नान करते हैं।
कैला देवी का मेला साल में कितनी बार लगता है?
कैला देवी का मेला साल में दो बार लगता है।
पहला मेला:
यह चैत्र नवरात्रि के दौरान लगता है, जो आमतौर पर मार्च-अप्रैल महीनों में पड़ता है।
यह मेला 15 दिनों तक चलता है।
दूसरा मेला:
यह आश्विन नवरात्रि के दौरान लगता है, जो आमतौर पर सितंबर-अक्टूबर महीनों में पड़ता है।
यह मेला 7 दिनों तक चलता है।
दोनों मेले में लाखों भक्त देश के विभिन्न हिस्सों से दर्शन के लिए आते हैं।
यह मेला धार्मिक अनुष्ठानों, लोक परंपराओं और खान-पान का खूबसूरत संगम होता है।