करणी माता मंदिर (Karni mata Mandir) जिसे “चूहों के मंदिर” के रूप में भी जाना जाता है| आइये जानते है राजपूत शासकों की कुलदेवी करणी माता का इतिहास|
करणी माता का मंदिर अपनी अनोखी विशेषता के लिए जाना जाता है, यहाँ हजारों काले चूहे विचरण करते हैं, जिन्हें ‘माँ की संतान’ माना जाता है। इन चूहों को ‘कबा’ कहा जाता है और उन्हें यहाँ विशेष सम्मान दिया जाता है।
करणी माता का इतिहास १४ वीं शताब्दी से जुड़ा हुआ है। आइए आगे के लेख में जानते है की करणी माता का मंदिर कहा है, करणी माता का चमत्कार, करणी माता किसकी कुलदेवी है और करणी माता के भजनों के बारे में।
करणी माता मंदिर परिचय | Karni mata Mandir Introduction
करणी माता मंदिर राजस्थान के बीकानेर जिले के देशनोक में स्थित एक प्रसिद्ध हिंदू मंदिर है। यह मंदिर देवी करणी माता को समर्पित है, जो १४ वीं और १५ वीं शताब्दी में एक लोकप्रिय संत और दयालु आत्मा थीं।
यह मंदिर मुख्य रूप से “चूहों के मंदिर” के रूप में जाना जाता है क्योंकि यहाँ हजारों सफेद चूहे रहते हैं, जिन्हें “कबा” कहा जाता है। इन चूहों को पवित्र माना जाता है और उन्हें भक्तों द्वारा दूध और प्रसाद खिलाया जाता है।
मंदिर में देवी करणी माता की संगमरमर की मूर्ति स्थापित है। मंदिर का निर्माण १५ वीं शताब्दी में हुआ था और इसका वास्तुकला शैली राजस्थानी और मुगल शैली का मिश्रण है।
करणी माता मंदिर हर साल लाखों भक्तों को आकर्षित करता है। यह मंदिर धार्मिक महत्व के साथ-साथ एक लोकप्रिय पर्यटन स्थल भी है।
यह मंदिर भक्तों के लिए एक महत्वपूर्ण स्थान है और यह दया, करुणा और पुनर्जन्म की अवधारणाओं को दर्शाता है|
करणी माता का जन्म | Karni Mata ka Janm
करणी माता का जन्म २ अक्टूबर १३८७ को राजस्थान के सुवाप गांव में हुआ था। उनके पिता का नाम मेहाजी और माता का नाम देवल देवी था। उनका जन्म चारण जाति में हुआ था।
करणी माता बचपन से ही अत्यंत धार्मिक और दयालु थीं। उन्होंने अपना जीवन समाज सेवा और ईश्वर की भक्ति में लगा दिया।
करणी माता का जन्मदिन हर साल २ अक्टूबर को मनाया जाता है।
यह ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि करणी माता का जन्म कब हुआ, इसके बारे में अलग-अलग मतभेद हैं। कुछ इतिहासकारों का मानना है कि करणी माता का जन्म १३८७ में हुआ था, जबकि अन्य का मानना है कि उनका जन्म १४२४ में हुआ था।
करणी माता मंदिर की स्थापना | Karni Mata Temple Establishment
करणी माता मंदिर, जिसे चूहों के मंदिर के रूप में भी जाना जाता है, राजस्थान के बीकानेर जिले में स्थित एक प्रसिद्ध मंदिर है।
करणी माता मंदिर की स्थापना किसने और कब की
इस मंदिर का निर्माण १५ वीं शताब्दी में हुआ था, लेकिन इसके निर्माण का श्रेय किसी एक व्यक्ति को नहीं दिया जाता है। माना जाता है कि यह मंदिर धीरे-धीरे बनता गया और समय के साथ इसका विस्तार हुआ।
करणी माता मंदिर का निर्माण किस तरह हुआ
मंदिर का निर्माण राजस्थानी और मुगल शैली के मिश्रण में किया गया है। मंदिर में एक मुख्य गर्भगृह है, जहाँ देवी करणी माता की संगमरमर की मूर्ति स्थापित है। गर्भगृह के चारों ओर कई छोटे मंदिर और मंडप हैं। मंदिर में चूहों के लिए कई छेद और बिल हैं, जहाँ वे स्वतंत्र रूप से विचरण करते हैं।
करणी माता मंदिर की स्थापना के पीछे की कहानी
इस मंदिर के निर्माण के पीछे कई कहानियां प्रचलित हैं। एक प्रचलित कहानी के अनुसार, करणी माता ने राव बीका को राज्य स्थापना के लिए आशीर्वाद दिया था। बदले में, राव बीका ने देशनोक में करणी माता के मंदिर का निर्माण करवाया।
करणी माता मंदिर का रहस्य
इस मंदिर का सबसे बड़ा रहस्य यहां रहने वाले चूहे हैं। इन चूहों को “कबा” कहा जाता है और इन्हें पवित्र माना जाता है। भक्त इन चूहों को दूध और प्रसाद खिलाते हैं।
यह मंदिर दया, करुणा और पुनर्जन्म की अवधारणाओं को दर्शाता है। यह मंदिर भक्तों के लिए एक महत्वपूर्ण स्थान है और हर साल लाखों भक्तों को आकर्षित करता है।
करणी माता का इतिहास | karni mata history
करणी माता का इतिहास लोक कथाओं, चमत्कारों और दयालुता की कहानियों से जुड़ा हुआ है। १४ वीं शताब्दी में चारण जाति में जन्मी रिघुबाई के रूप में उनकी यात्रा शुरू हुई। कहा जाता है कि बचपन से ही उनमें अलौकिक शक्तियां थीं और लोगों की भलाई के लिए वह जानी जाती थीं। कुछ मान्यताओं के अनुसार, उन्होंने विवाह का त्याग कर खुद को समाज सेवा और ईश्वर की भक्ति में लगा दिया। उन्हें करणी माता के नाम से पुकारा जाने लगा और उनकी लोकप्रियता बढ़ती गई।
करणी माता के इतिहास में पुनर्जन्म की अवधारणा प्रमुख है। एक लोककथा के अनुसार, उनके सौतेले पुत्र का दुर्घटना में निधन हो गया। हताश करणी माता ने देवी हिंगलाज से प्रार्थना की और अपने पुत्र को चूहे के रूप में पुनर्जन्म दिलाने का वरदान प्राप्त किया। इसी विश्वास के साथ, १५ वीं शताब्दी में राजस्थान के देशनोक गांव में एक मंदिर का निर्माण हुआ। माना जाता है कि मंदिर में रहने वाले सफेद चूहे उनके पुत्र और उनके वंशज हैं। यह कहानी भले ही लोक परंपरा का हिस्सा हो, लेकिन यह करणी माता की सभी प्राणियों के प्रति करुणा और समान भाव रखने की सीख को दर्शाती है।
उनके चमत्कारों की कहानियां भी प्रचलित हैं। सूखे के दौरान पानी की आपूर्ति करने और बीमारों को ठीक करने का वर्णन किया जाता है। उनके आशीर्वाद को कई राजपूत राज्यों की स्थापना का कारण माना जाता है। उनके जीवन के अंतिम क्षणों के बारे में भी अलग-अलग मान्यताएं हैं। कुछ मानते हैं कि वे १५१ साल जिएं और समाधि ले ली, जबकि अन्य बताते हैं कि वे एक चट्टान से अदृश्य हो गईं।
करणी माता का इतिहास भक्ति, चमत्कार और दयालुता का अनोखा मिश्रण है। उनका मंदिर आज भी हर साल हजारों भक्तों को आकर्षित करता है, जो उनकी कृपा और आशीर्वाद पाने की आशा रखते हैं।
करणी माता के चमत्कार | Karni Mata ke Chamatkar
करणी माता का इतिहास चमत्कारों की कहानियों से भरा है, जो सदियों से पीढ़ी दर पीढ़ी सुनाई जाती हैं। उन्हें लोक-देवी के रूप में मानने वाले भक्त उनकी अलौकिक शक्तियों और दयालुता के किस्से सुनाते हैं, जिनमें से कुछ ऐतिहासिक तथ्यों से जुड़े हैं तो कुछ लोक परंपरा का रंग लिए हुए हैं।
चमत्कारों की सबसे चर्चित कहानी उनके सौतेले पुत्र के पुनर्जन्म से जुड़ी है। मान्यता है कि उनके पुत्र की असामयिक मृत्यु के बाद उन्होंने भगवान हिंगलाज से उसे पुनर्जीवित करने की प्रार्थना की। उन्हें वरदान मिला कि उनका पुत्र चूहे के रूप में वापस आएगा। यही कारण है कि आज भी चूहों को मंदिर में पवित्र माना जाता है।
अन्य कहानियां उनकी दयालुता और समाज सेवा को उजागर करती हैं। कहा जाता है कि उन्होंने सूखे से ग्रस्त गांवों में बारिश करवाई और बीमारों को छूकर ठीक किया। उनकी कृपा से कई लोगों के जीवन में सुख-समृद्धि आई और राजपूत राज्यों की स्थापना भी उनके आशीर्वाद का फल मानी जाती है।
कुछ चमत्कार ऐतिहासिक संदर्भों से जुड़े हैं। यह माना जाता है कि राव बीका ने उनका आशीर्वाद प्राप्त करके ही राज्य स्थापित किया था। उनकी प्रार्थनाओं से युद्ध में विजय पाने की कहानियां भी प्रचलित हैं।
हालांकि चमत्कारों का प्रमाण देना कठिन है, लेकिन करणी माता का जीवन और उसके इर्द-गिर्द की कहानियां आज भी लोगों में अटूट श्रद्धा जगाती हैं। मंदिर में चूहों के प्रति सम्मान का भाव बनाए रखना और दयालुता को अपनाना ही उनका सबसे अनोखा चमत्कार है।
करणी माता का ससुराल | Karni Mata ka Sasural
करणी माता का विवाह नहीं हुआ था, इसलिए उनका कोई ससुराल नहीं था।
करणी माता बचपन से ही ईश्वर की भक्ति में लीन थीं और उन्होंने अपना जीवन समाज सेवा में लगा दिया। उन्होंने कभी विवाह नहीं किया और आजीवन कुंवारी रहीं।
हालांकि, कुछ लोगों का मानना है कि करणी माता ने देवी हिंगलाज के रूप में पुनर्जन्म लिया था। देवी हिंगलाज को करणी माता का ससुराल माना जाता है।
यह ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि करणी माता का ससुराल है या नहीं, इसके बारे में कोई ऐतिहासिक प्रमाण नहीं है। यह धारणा लोक परंपरा और धार्मिक मान्यताओं से जुड़ी हुई है।
करणी माता किसकी कुलदेवी है | Karni Mata kiski Kuldevi hai
करणी माता बीकानेर और जोधपुर की शाही परिवारों की कुलदेवी हैं। इसके अलावा, राजस्थान के शेखावत, राठौड़, जोधा, चौहान, जाट, ब्राह्मण और कुछ अन्य जातियों में भी करणी माता को कुलदेवी के रूप में पूजा जाता है।
करणी माता के अन्य नाम | करणी माता का दूसरा नाम क्या है? | Karni Mata other names
करणी माता को कई नामों से जाना जाता है, जिनमें से कुछ प्रमुख हैं:
- देवी करणी: यह उनका सबसे प्रचलित नाम है।
- रीघुबाई: यह उनका जन्म नाम था।
- डोकरी: यह नाम उनके जन्म स्थान, डोकरी गांव से जुड़ा हुआ है।
- काबला: यह नाम उनके द्वारा स्थापित मठ से जुड़ा हुआ है।
- माँ: यह नाम उनके मातृत्व और दयालुता का प्रतीक है।
- श्री करणी जी: यह नाम उनका सम्मानजनक नाम है।
- देवी हिंगलाज: कुछ लोगों का मानना है कि करणी माता ने देवी हिंगलाज के रूप में पुनर्जन्म लिया था।
इनके अलावा, करणी माता को उनके भक्त विभिन्न नामों से भी पुकारते हैं, जो उनके प्रति स्नेह और श्रद्धा का प्रतीक हैं।
करणी माता मंदिर में अन्य दर्शनीय स्थल | Other places of interest in Karni Mata Temple
करणी माता मंदिर के अलावा, देशनोक में कई अन्य दर्शनीय स्थल भी हैं जो भक्तों और पर्यटकों को आकर्षित करते हैं। इनमें से कुछ प्रमुख स्थल हैं:
- देवी आवड़ जी का मंदिर: यह मंदिर देवी आवड़ जी को समर्पित है, जो करणी माता की बहन थीं। मंदिर में देवी आवड़ जी की संगमरमर की मूर्ति स्थापित है।
- तेमडा राय मंदिर: यह मंदिर देवी तेमडा राय को समर्पित है, जो करणी माता की भक्त थीं। मंदिर में देवी तेमडा राय की मूर्ति स्थापित है।
- गंगा सिंह की छतरी: यह छतरी बीकानेर के महाराजा गंगा सिंह की स्मृति में बनाई गई है। यह छतरी अपनी सुंदर वास्तुकला के लिए प्रसिद्ध है।
- लक्ष्मी नारायण मंदिर: यह मंदिर भगवान लक्ष्मी नारायण को समर्पित है। मंदिर में भगवान लक्ष्मी नारायण की संगमरमर की मूर्ति स्थापित है।
- सूर्य मंदिर: यह मंदिर भगवान सूर्य को समर्पित है। मंदिर में भगवान सूर्य की संगमरमर की मूर्ति स्थापित है।
- हनुमान मंदिर: यह मंदिर भगवान हनुमान को समर्पित है। मंदिर में भगवान हनुमान की विशाल मूर्ति स्थापित है।
- गौशाला: यह गौशाला करणी माता मंदिर द्वारा संचालित है। गौशाला में सैकड़ों गायों की देखभाल की जाती है।
- बाजार: देशनोक में कई बाजार हैं जहाँ भक्त और पर्यटक स्मृति चिन्ह और अन्य सामान खरीद सकते हैं।
- रेस्टोरेंट और होटल: देशनोक में कई रेस्टोरेंट और होटल हैं जहाँ भक्त और पर्यटक भोजन और आवास की सुविधा प्राप्त कर सकते हैं।
- ऊंट सफारी: देशनोक में ऊंट सफारी का आनंद भी लिया जा सकता है।
यह ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि करणी माता मंदिर के अलावा अन्य दर्शनीय स्थलों के खुलने और बंद होने का समय अलग-अलग हो सकता है।
करणी माता से जुड़े त्योहार और उत्सव | Festivals and celebrations related to Karni Mata
करणी माता के जीवन और उनकी शिक्षाओं से जुड़े कई त्योहार और उत्सव मनाए जाते हैं। इनमें से कुछ प्रमुख त्योहार और उत्सव हैं:
- चूहों का उत्सव: करणी माता मंदिर में हर साल चूहों का उत्सव मनाया जाता है। यह उत्सव चैत्र शुक्ल पक्ष की द्वितीया को मनाया जाता है। इस दिन, भक्त मंदिर में चूहों को प्रसाद खिलाते हैं और उनकी पूजा करते हैं।
- गंगा जयंती: गंगा जयंती के अवसर पर करणी माता मंदिर में विशेष पूजा का आयोजन किया जाता है। इस दिन, भक्त गंगा स्नान करते हैं और मंदिर में गंगा माता की पूजा करते हैं।
- नवरात्रि: नवरात्रि के दौरान करणी माता मंदिर में विशेष पूजा का आयोजन किया जाता है। इस दिन, भक्त नौ दिनों तक मां दुर्गा की पूजा करते हैं।
- दीपावली: दीपावली के अवसर पर करणी माता मंदिर में दीप प्रज्वलित किए जाते हैं और भक्त मंदिर में दीपावली का त्योहार मनाते हैं।
- होली: होली के अवसर पर करणी माता मंदिर में होली का त्योहार मनाया जाता है। इस दिन, भक्त एक दूसरे को रंग लगाते हैं और मंदिर में होली का आनंद लेते हैं।
- गुरु पूर्णिमा: गुरु पूर्णिमा के अवसर पर करणी माता मंदिर में गुरुओं की पूजा की जाती है। इस दिन, भक्त अपने गुरुओं का आशीर्वाद प्राप्त करते हैं।
- माघ पूर्णिमा: माघ पूर्णिमा के अवसर पर करणी माता मंदिर में विशेष पूजा का आयोजन किया जाता है। इस दिन, भक्त स्नान करते हैं और मंदिर में माघ पूर्णिमा का त्योहार मनाते हैं।
- श्रावण मास: श्रावण मास में करणी माता मंदिर में विशेष पूजा का आयोजन किया जाता है। इस दिन, भक्त भगवान शिव की पूजा करते हैं और मंदिर में श्रावण मास का त्योहार मनाते हैं।
- नव वर्ष: नव वर्ष के अवसर पर करणी माता मंदिर में विशेष पूजा का आयोजन किया जाता है। इस दिन, भक्त नए साल की शुरुआत करते हैं और मंदिर में नव वर्ष का त्योहार मनाते हैं।
- बैसाखी: बैसाखी के अवसर पर करणी माता मंदिर में विशेष पूजा का आयोजन किया जाता है। इस दिन, भक्त फसलों की कटाई का त्योहार मनाते हैं और मंदिर में बैसाखी का त्यौहार मनाते हैं।
यह ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि त्योहारों और उत्सवों की तिथियां हर साल बदल सकती हैं।
करणी माता मंदिर से जुडी लोक परंपराएं और मान्यताएं | traditions and beliefs related to Karni Mata Temple
करणी माता मंदिर से जुड़ी कई लोक परंपराएं और मान्यताएं हैं जो भक्तों और पर्यटकों को आकर्षित करती हैं। इनमें से कुछ प्रमुख लोक परंपराएं और मान्यताएं हैं:
- चूहों को पवित्र मानना: करणी माता मंदिर में चूहों को पवित्र माना जाता है। भक्त मंदिर में चूहों को प्रसाद खिलाते हैं और उनकी पूजा करते हैं।
- मंदिर में प्रवेश करने से पहले जूते उतारना: करणी माता मंदिर में प्रवेश करने से पहले भक्तों को अपने जूते उतारने होते हैं।
- काले कपड़े पहनना: करणी माता मंदिर में काले कपड़े पहनना मना है।
- मंदिर में चूहों को नुकसान नहीं पहुंचाना: करणी माता मंदिर में चूहों को नुकसान पहुंचाना मना है।
- मंदिर में चूहों को प्रसाद खिलाना: करणी माता मंदिर में चूहों को प्रसाद खिलाना एक लोकप्रिय परंपरा है।
- मंदिर में चूहों को गिनना मना है: करणी माता मंदिर में चूहों को गिनना मना है।
- मंदिर में चूहों को काटने से मुक्ति: मान्यता है कि करणी माता मंदिर में चूहों को काटने से मुक्ति मिलती है।
- मंदिर में चूहों को आशीर्वाद: मान्यता है कि करणी माता मंदिर में चूहों को आशीर्वाद मिलता है।
- मंदिर में चूहों को धन-समृद्धि का प्रतीक: करणी माता मंदिर में चूहों को धन-समृद्धि का प्रतीक माना जाता है।
- मंदिर में चूहों को संतान प्राप्ति का प्रतीक: करणी माता मंदिर में चूहों को संतान प्राप्ति का प्रतीक माना जाता है।
करणी माता ने समाधि कब ली थी? | Karni Mata ki Samadhi
ऐतिहासिक रूप से कोई लिखित प्रमाण मौजूद नहीं है जो ये स्पष्ट तौर पर बताए कि करणी माता ने समाधि कब ली थी। उनकी मृत्यु के बारे में जानकारी विभिन्न लोक कथाओं और कहानियों से मिलती है, जिनमें सटीकता की गारंटी नहीं है। कुछ मान्यताएं बताती हैं कि उन्होंने १५१६ ईस्वी में, कुछ १५३५ ईस्वी में समाधि ली, जबकि अन्य उन्हें अमर मानती हैं।
इसलिए, करणी माता की समाधि लेने की कोई निश्चित तिथि नहीं है। उनका जीवन और मृत्यु श्रद्धा और लोक परंपराओं से जुड़ी अनेक कथाओं में ढका हुआ है।
करणी माता मंदिर कैसे पहुंचे | How to reach Karni Mata Temple
करणी माता मंदिर राजस्थान के बीकानेर जिले में देशनोक नामक स्थान पर स्थित है। यह मंदिर बीकानेर से 30 किलोमीटर दक्षिण-पश्चिम में स्थित है।
मंदिर तक पहुंचने के लिए कई विकल्प हैं:
१. सड़क मार्ग:
- बीकानेर से देशनोक तक नियमित बस सेवा उपलब्ध है।
- आप टैक्सी या किराए की गाड़ी भी ले सकते हैं।
- सड़क मार्ग से यात्रा में लगभग 1 घंटा लगता है।
२. रेल मार्ग:
- बीकानेर रेलवे स्टेशन निकटतम रेलवे स्टेशन है जो देश के प्रमुख शहरों से जुड़ा हुआ है।
- स्टेशन से देशनोक तक आप बस या टैक्सी ले सकते हैं।
- रेल मार्ग से यात्रा में लगभग 2 घंटे लगते हैं।
३. हवाई मार्ग:
- बीकानेर में एक हवाई अड्डा है जो देश के कुछ प्रमुख शहरों से जुड़ा हुआ है।
- हवाई अड्डे से देशनोक तक आप टैक्सी या किराए की गाड़ी ले सकते हैं।
- हवाई मार्ग से यात्रा में लगभग 30 मिनट लगते हैं।
मंदिर के दर्शन का समय:
- सुबह ६:०० बजे से दोपहर १२:३० बजे तक
- दोपहर ३:०० बजे से शाम ६:०० बजे तक
मंदिर में दर्शन के लिए कुछ महत्वपूर्ण बातें:
- मंदिर में प्रवेश करने से पहले जूते उतारने होंगे।
- मंदिर में काले कपड़े पहनना मना है।
- मंदिर में चूहों को नुकसान नहीं पहुंचाना चाहिए।
- मंदिर में चूहों को प्रसाद खिलाना एक लोकप्रिय परंपरा है।
करणी माता मंदिर जाने का सबसे अच्छा समय | Best time to visit Karni Mata Temple
करणी माता मंदिर जाने का सबसे अच्छा समय अक्टूबर से मार्च के बीच का होता है। इस समय मौसम सुहावना होता है और गर्मी कम होती है।
सुबह का समय मंदिर जाने का सबसे अच्छा समय माना जाता है। इस समय मंदिर में भीड़ कम होती है और आप शांति से दर्शन कर सकते हैं।
यहां कुछ अन्य बातें हैं जिन पर आपको विचार करना चाहिए:
- त्योहारों और उत्सवों के दौरान: त्योहारों और उत्सवों के दौरान मंदिर में भक्तों की भारी भीड़ होती है। यदि आप शांति से दर्शन करना चाहते हैं तो इन दिनों से बचना चाहिए।
- सप्ताहांत: सप्ताहांत में भी मंदिर में भक्तों की अधिक भीड़ होती है। यदि आप भीड़ से बचना चाहते हैं तो सप्ताह के बीच में दर्शन करने के लिए जाना बेहतर होगा।
- मौसम: गर्मी के मौसम में करणी माता मंदिर में जाना थोड़ा मुश्किल हो सकता है क्योंकि तापमान बहुत अधिक होता है। यदि आप गर्मी से परेशान होते हैं तो सर्दियों के मौसम में दर्शन करने के लिए जाना बेहतर होगा।