महाराणा उदयसिंह का परिचय | Introduction of Maharana Udai Singh | Maharana Udaya singh ka Parichay
पूरा नाम | महाराणा उदयसिंह |
पिता | राणा सांगा |
माता | महाराणी कर्णावती |
घराना | सिसोदिया राजपूत |
जन्म | ४ अगस्त, १५२२ ई. |
जन्म स्थान | चित्तौड़गढ़ |
पूर्ववर्ती | राणा सांगा |
उत्तरवर्ती | महाराणा प्रताप सिंह |
पत्नियां | महाराणी जयवंताबाई सहित सात पत्नियाँ |
संतान | २४ लड़के |
राज्य सीमा | मेवाड़ |
शासन काल | १५३७-१५७२ ई. |
शा. अवधी | ३५ वर्ष |
निधन | २८ फरवरी, १५७२ ई. |
महाराणा उदयसिंह कौन थे? | Who was Maharana Udai Singh? | Maharana Udaya singh Kaun The?
मेवाड़ के ५३ वें महाराणा, राणा उदयसिंह (Maharana Udai Singh) द्वितीय का जीवन काफी सघर्षपुर्ण रहा है| ये राणा सांगा (संग्राम सिंह) के चौथे पुत्र और महाराणा प्रताप (Maharana Pratap) के पिता थे| राणा उदयसिंह द्वितीय उदयपुर शहर के संस्थापक के रूप में भी जाने जाते है|
बूंदी राजघराने की रानी, कर्णावती (Rani Karnawati) राणा उदयसिंह द्वितीय की माँ थीं| राणा उदयसिंग (Maharana Udai Singh) का जन्म ४ अगस्त, १५२२ ई. को उनके पिता के मृत्यु के पाच्यात हुआ था| उनके पिता राणा सांगा (Rana Sanga) खानवा युद्ध में लड़ते वक़्त घायल हो गए थे और उसके पश्चात उनका देहावसान हो गया|
महाराणा उदयसिंह का जन्म कब और कहाँ हुआ? | When and where was Maharana Udai Singh born? | Maharana Udaya singh ka Janm Kab aur Kahan Hua?
महाराणा उदयसिंह का पूरा नाम महाराणा उदयसिंह सिसोदिया (Maharana Udai Singh Sisodia) था। वह सिसोदिया वंश का राणा सांगा (Rana Sanga) के पुत्र थे| महाराणा उदयसिंह (Maharana Udai Singh) का आरंभिक जीवन काफी मुश्किलों से भरा था| महाराणा उदयसिंह का जन्म ४ अगस्त १५२२ को चित्तौड़गढ़ दुर्ग में राणा सांग तथा रानी कर्णावती के घर हुआ| वह राणा सांगा के चौथे पुत्र के रूप में जाने जाते है| उनका जन्म उनके पिता राणा सांगा (Rana Sanga) के खानवा युद्ध में हुई मृत्यु के पश्चात हुआ था|
महाराणा उदयसिंह के पिता का नाम | महाराणा उदयसिंह की माता का नाम | Father’s name of Maharana Udai Singh | Maharana Udaya singh ke Pita ka Naam | Name of mother of Maharana Udai Singh | Maharana Udaya singh ki Mata ka Naam
महाराणा उदयसिंह (Maharana Udai Singh) के पिता सिसोदिया वंश के राणा सांगा (महाराणा संग्राम सिंह | Maharana Sangram Singh) थे| राणा सांगा मेवाड़ के महाराजा थे| महाराणा संग्राम सिंह, महाराणा कुंभा (Maharana Kumbha) के बाद,सबसे प्रसिद्ध महाराजा थे। मेवाड़ में सबसे महत्वपूर्ण शासक। इन्होंने अपनी शक्ति के बल पर मेवाड़ साम्राज्य का विस्तार किया और उसके तहत राजपूताना के सभी राजाओं को संगठित किया।
महाराणा उदयसिंह (Maharana Udai Singh) की माता का नाम रानी कर्णावती (Rani Karnawati) या कर्मवती था| रानी कर्णावती/कर्मवती, बूंदी के शासक हाड़ा नरबध्दु की पुत्री थी| महाराणा सांगा (Maharana Sanga) और रानी कर्णावती का विवाह बूंदी में सम्पन्न हुआ था | रानी कर्णावती अल्पकाल के लिए बूंदी की शासिका भी रहीं। रानी कर्णावती राणा विक्रमादित्य और राणा उदय सिंह की माँ थीं, और महाराणा प्रताप (Maharana Pratap) की दादी थी। महाराणा सांगा की मृत्यु के उपरांत रानी कर्णावती द्वारा मेवाड़ का दूसरा जौहर ८ मार्च, १५३५ को किया गया था|
महाराणा उदयसिंह की कितनी पत्नियां थी? | महाराणा उदयसिंह की सबसे प्रिय रानी कौन थी?| How many wives did Maharana Udai Singh have? | Maharana Udaya singh ki Kitani Patniyan Thi? | Who was the favorite queen of Maharana Udai Singh? | Maharana Udaya singh ki Sabase Priya Rani Kaun Thi?
महाराणा उदयसिंह ((Maharana Udai Singh)) की महाराणी जयवंताबाई सहित सात पत्नियाँ थी| कुछ किवदंतियों के अनुसार उदयसिंह की कुल २२ पत्नियां और ५६ पुत्र और २२ पुत्रियां थी।
इतिहास में विशेष रूप से महारानी जयवंता बाई, सज्जा बाई सोलंकी और धीरबाई भटियानी (जो की उदयसिंह की सबसे पसंदीदा पत्नी थी) का नाम विशेष रूप से पाया जाता है|
महाराणा उदयसिंग (Maharana Udai Singh) की पहली पत्नी का नाम महारानी जयवंताबाई (Maharani Jaiwanti bai) था उन्होंने महाराणा उदयसिंग के सबसे बड़े पुत्र का नाम महाराणा प्रताप (Maharana Pratap) को जन्म दिया। उदयसिंह की दूसरी पत्नी का नाम सज्जा बाई सोलंकी (Sajja Bai Solanki) था जिन्होंने शक्ति सिंह और विक्रम सिंह को जन्म दिया था| जबकि जगमाल सिंह ,चांदकंवर और मांकनवर की माता धीरबाई भटियानी थी, जो की उदयसिंह (Udai Singh) की सबसे पसंदीदा पत्नी थी| इनके अलावा इनकी चौथी पत्नी रानी वीरबाई झाला थी जिन्होंने जेठ सिंह को जन्म दिया था।
उदय सिंह के पुत्र का नाम क्या है? | महाराणा उदयसिंह के कितने बच्चे थे? | What is the name of Uday Singh’s son? | Udaya singh ke Putra ka Naam Kya Hai? | How many children did Maharana Udai Singh have? | Maharana Udaya singh ke Kitane Bachhe The?
इतिहास में पाई गई जानकारी के अनुसार महाराणा उदय सिंह (Maharana Udai Singh) के २४ पुत्र थे| कुछ किवदंतियों के अनुसार महाराणा उदय सिंह के ५६ पुत्र और २२ पुत्रियां थी, पर इस बात की कहीं पर पुष्टि नहीं मिलती|
महाराणा उदय सिंह के सबसे ज्येष्ठ पुत्र का नाम महाराणा प्रताप (Maharana Pratap) था| उनके अलावा महाराणा उदय सिंह के कुछ पुत्रों के नाम इस प्रकार है, शक्ति सिंह, विक्रम सिंह, जगमाल सिंह, चांद कंवर, मान कंवर, जेठ सिंह, सागर सिंह, हरि सिंह, राम सिंह।
महाराणा उदयसिंह का राज्याभिषेक कब हुआ? | When was the coronation of Maharana Udai Singh? | Maharana Udaya singh ka Rajyabhishek Kab Hua?
महाराणा उदयसिंह (Maharana Udai Singh) का राज्याभिषेक १५३७ में कुंभलगढ़ दुर्ग में हुआ था। इस राज्य अभिषेक में मेवाड़ के कई राजा महाराजा भी शामिल हुए थे| उनमें से एक जोधपुर के शासक मालदेव भी थे|
महाराणा उदयसिंह और धाय पन्ना धाय का इतिहास | धाय पन्ना धाय की कहानी | History of Maharana Udai Singh and Dhai Panna Dhai | Maharana Udaya singh aur Dhay Panna Dhay ka Itihas | Story of Dhai Panna Dhai | Dhay Panna Dhay ki Kahani
पन्नाधाय (Panna Dhai), राणा सांगा के पुत्र राणा उदयसिंह (rana Udai Singh) की धाय माँ थीं। पन्ना धाय खींची चौहान राजपूत थी। पन्ना धाय राणा सांगा (Rana Sanga) के पुत्र उदयसिंह को दूध पिलाने के लिए नियुक्त की गयी थी| पन्ना धाय (Panna Dhai) राणा उदयसिंह को माँ की जगह दूध पिलाती थी इसलिए उसे ‘धाय माँ’ कहा जाता था|
पन्ना धाय (Panna Dhai) सर्वस्वी अपने स्वामी को अर्पण करने के लिए जानी जाती थी| पन्ना का पुत्र चन्दन और राजकुमार उदयसिंह साथ-साथ बड़े हुए थे। पन्नाधाय ने उदयसिंह की माँ रानी कर्णावती (Rani Karnawati) के सामूहिक आत्म बलिदान के बाद, राजकुमार उदयसिंह के परवरिश करने का दायित्व संभाल लिया था।
राणा विक्रमादित्य सिंह (Rana Vikramaditya Singh) के शासनकाल के दौरान १५३७ में दासी का पुत्र बनवीर (Banvir) चित्तौड़ का शासक बनना चाहता था। एक रात बनवीर ने महाराणा विक्रमादित्य की हत्या कर दी| उसके पश्चात वह उदयसिंह को मारने के लिए उसके महल की ओर चल पड़ा।
एक विश्वस्त सेवक ने इसकी खबर पन्ना धाय को दे दी, इसकी पूर्व सूचना मिलते ही पन्ना धाय ने उदयसिंह (Udai Singh) को एक बांस की टोकरी में सुलाकर उसे पत्तों से ढक दिया और एक बारी जाती की महिला साथ चित्तौड़ से बाहर भेज दिया।
तत्पश्चात पन्ना धाय (Panna Dhai) ने बनवीर को धोखा देने के उद्देश्य से अपने पुत्र चंदन को उदयसिंह के पलंग पर सुला दिया। बनवीर रक्तरंजित तलवार लिए उदयसिंह के कक्ष में आया और उदयसिंह के बारे में पूछा। पन्ना ने उदयसिंह (Udai Singh) के पलंग की ओर संकेत किया जिस पर उसका पुत्र सोया था। बनवीर ने पन्ना के पुत्र को उदयसिंह समझकर मार डाला। पन्ना अपनी आँखों के सामने अपने पुत्र के वध को अविचलित रूप से देखती रही। बनवीर को पता न लगे इसलिए वह आंसू भी नहीं बहा पाई। बनवीर के जाने के बाद अपने मृत पुत्र की लाश को चूम कर राजकुमार को सुरक्षित स्थान पर ले जाने के लिए निकल पड़ी।
महाराणा उदयसिंह की जीवनी | महाराणा उदयसिंह इतिहास | Biography of Maharana Udai Singh | Maharana Udaya singh ki Jivani | Maharana Udai Singh History | Maharana Udaya singh ka Itihas
मेवाड़ के 53 वें महाराणा, राणा उदयसिंह द्वितीय (Maharana Udai Singh Second) का जीवन काफी सघर्षपुर्ण रहा है| ये राणा सांगा (संग्राम सिंह) के चौथे पुत्र और महाराणा प्रताप (Maharana Pratap) के पिता थे| राणा उदयसिंह (Maharana Udai Singh) द्वितीय उदयपुर शहर के संस्थापक के रूप में भी जाने जाते है| बूंदी राजघराने की रानी, कर्णावती राणा उदयसिंह द्वितीय की माँ थीं|
राणा उदयसिंग (rana Udai Singh) का जन्म ४ अगस्त, १५२२ ई. को उनके पिता के मृत्यु के पाच्यात हुआ था| उनके पिता राणा सांगा खानवा युद्ध में लड़ते वक़्त घायल हो गए थे और उसके पश्चात उनका देहावसान हो गया|
महाराणा सांगा (Rana Sanga) के निधन के बाद रतन सिंह द्वितीय को नया शासक नियुक्त किया गया। राणा उदयसिंह (Maharana Udai Singh) के बाल्यावस्था में ही तुर्की के सुल्तान गुजरात के बहादुरशाह ने चित्तौड़ पर आक्रमण करके उसे नष्ट कर दिया और उसीके चलते उनकी माँ कर्णावती (Karnawati) ने जौहर कर लिया था|
राणा विक्रमादित्य सिंह के शासनकाल के दौरान तुर्की के सुल्तान गुजरात के बहादुर शाह ने चित्तौड़गढ़ पर १५३४ में हमला कर दिया था, इस कारण उदयसिंह (Udai Singh) को सुरक्षित रखने के लिए बूंदी भेज दिया गया। आगे कुछ सालो बाद १५३७ में दासी पुत्र बनवीर ने विक्रमादित्य की गला घोंटकर हत्या कर दी, और उसके बाद उन्होंने उदयसिंह को भी मारने का प्रयास किया|
लेकिन उदयसिंह की धाय (nurse) पन्ना धाय ने उदयसिंह को बचाने के लिए अपने पुत्र चन्दन का बलिदान दे दिया| इस कारण उदयसिंह ज़िंदा रह सके| पन्ना धाय ने यह जानकारी किसी को नहीं दी कि बनवीर ने जिसको मारा है वह उदयसिंह नहीं बल्कि उनका पुत्र चन्दन था।
इसके पश्चात उदयसिंह को अपने कर्तव्यपरायण धाय पन्ना के साथ बलबीर से बचने के लिए जगह-जगह शरण लेनी पड़ी। इसके बाद पन्ना धाय बूंदी में रहने लगी। लेकिन उदयसिंह (Udai Singh) को कहीं आने जाने और किसी से मिलने की अनुमति नहीं दी।
कुछ वक़्त पश्चात धाय पन्ना और दूसरे विश्वासपात्र सेवक उदयसिंह को लेकर मुश्किलों का सामना करते हुए खुफिया तरीके से कुम्भलगढ़ पहुंचे। कुम्भलगढ़ का किलेदार, आशा देपुरा था, जो राणा सांगा के समय से ही इस किले का किलेदार था। आशा की माता ने आशा को प्रेरित किया और आशा ने उदयसिंह को अपने साथ रखा। उस समय उदयसिंह की आयु १५ वर्ष की थी।
कुम्भलगढ़ आते ही उदयसिंह (Maharana Udai Singh) के नाम से पट्टे-परवाने निकलने आरंभ हो गए थे। कुम्भलगढ़ में उदयसिंह को २ सालों तक रहना पड़ा। इसी दौरान कुम्भलगढ़ में मालदेव के सहयोग से मेवाड़ी उमरावों ने उदयसिंह को १५३६ में महाराणा घोषित कर दिया।
इसके पश्चात राणा उदयसिंह (Maharana Udai Singh) ने मालदेव के सहयोग से १५४० ई में मावली उदयपुर के युद्ध में बनवीर की हत्या कर मेवाड़ की पैतृक सत्ता प्राप्त कर वह मेवाड़ के राणा बन गए और चित्तौड़ पर अधिकार किया।
इसी के साथ उदयसिंह ने अखेराज सोनगरा एवं खैरवा के ठाकुर जैत्रसिंह की पुत्रियों से विवाह कर अपनी स्थिति को और भी मजबूत कर ली। कुछ किवदंतियों के अनुसार उदयसिंह की कुल २२ पत्नियां और ५६ पुत्र और २२ पुत्रियां थी।
उदयसिंह के सबसे बड़े पुत्र का नाम महाराणा प्रताप था जबकि पहली पत्नी का नाम महारानी जयवंताबाई (Maharani Jaiwanta bai) था। तथा उनकी दूसरी पत्नी का नाम सज्जा बाई सोलंकी था जिन्होंने शक्ति सिंह और विक्रम सिंह को जन्म दिया था जबकि जगमाल सिंह, चांदकंवर और मांकनवर को जन्म धीरबाई भटियानी ने दिया था, ये उदयसिंह की सबसे पसंदीदा पत्नी थी। इनके अलावा इनकी चौथी पत्नी रानी वीरबाई झाला थी जिन्होंने जेठ सिंह को जन्म दिया था।
अकबर का चित्तौड़गढ़ पर हमला | चित्तौड़गढ़ का युद्ध | Akbar’s attack on Chittorgarh | Akabar ka Chittorgarh par Hamala | Battle of Chittorgarh | Chittorgarh ka Yuddh
१५६२ ईस्वी में अकबर ने मेड़ता, नागौर के शासक जयमल राठौड़ पर आक्रमण कर दिया था। तो जयमल राठौड़ को महाराणा उदयसिंह (Maharana Udai Singh) ने अपने दुर्ग में शरण दी। इसी कारण से सन १५६७ में अकबर ने मांडलगढ़ भीलवाड़ा के रास्ते चित्तौड़गढ़ पर आक्रमण कर दिया था।
१५६७ में जब अकबर ने चित्तौड़गढ़ किले का दूसरी बार घेराव किया तो यहां राणा उदयसिंह (rana Udai Singh) की सूझबूझ काम आयी। अकबर की पहली चढ़ाई को राणा ने असफल कर दिया था। पर जब दूसरी बार चढ़ाई की गयी तो लगभग छह माह के इस घेरे में किले के भीतर के कुओं तक में पानी समाप्त होने लगा।
किले के भीतर के लोगों की और सेना की स्थिति बड़ी ही दयनीय होने लगी। तब किले के रक्षकदल सेना के उच्च पदाधिकारियों और राज्य दरबारियों ने मिलकर राणा उदय सिंह से निवेदन किया कि राणा संग्राम सिंह के उत्तराधिकारी के रूप में आप ही हमारे पास हैं, इसलिए आपकी प्राण रक्षा इस समय आवश्यक है। अत: आप को किले से सुरक्षित निकालकर हम लोग शत्रु सेना पर अंतिम बलिदान के लिए निकल पड़े।
तब राणा उदय सिंह ने सारे राजकोष को सावधानी से निकाला और उसे साथ लेकर पीछे से अपने कुछ विश्वास आरक्षकों के साथ किले को छोड़कर निकल गये।
उदयसिंह (Maharana Udai Singh) के सफलतापूर्वक किले से निकलने के पश्चात् रात्रि के समय किले की दीवार की मरम्मत करवाते समय जयमल, अकबर की संग्राम नाम की बंदूक से बुरी तरह से घायल हो गये| जयमल राठौड़ (Jaimal Rathor) के पैर में गोली लग जाती है|
उसके अगले दिन २४ फरवरी १९६८ को राजपूतों ने केसरिया बाना धारण कर मुगलों से युद्ध किया| जयमल राठौड़ (Jaimal Rathor) को घायल अवस्था में उनके भतीजे वीर कल्ला (Kalla) ने अपने कंधों पर उठा लिया था। तब अकबर को जयमल राठौड़ के चार हाथ देखते हैं। इसी कारण से वीर कला (Kalla) को चार हाथो वाला लोक देवता (Char Hatho wala Dewata) भी कहते हैं। जयमल ने कल्ला राठौड़ और फत्ता सिसोदिया (Fatta Sisodiya) भी लड़ते हुए मारे गये| अकबर की सेना के साथ भयंकर युद्घ करते हुए वीर राजपूतों ने अपना अंतिम बलिदान दिया।
जब अनेकों वीरों की छाती पर पैर रखता हुआ अकबर किले में घुसा तो उसे शीघ्र ही पता चल गया कि वह युद्ध तो जीत गया है, लेकिन कूटनीति में हार गया है, किला उसका हो गया है परंतु किले का कोष राणा उदय सिंह लेकर चंपत हो गये हैं। अकबर झुंझलाकर रह गया।
फत्ता की पत्नी फूलकंवर के नेतृत्व में महिलाओं ने जौहर किया, जो चित्तौड़ का तीसरा साका कहलाता हैं|
जयमल और फत्ता और कल्ला राठौड़ की छतरियां चित्तौड़ में बनी हुई हैं| अकबर ने २५ फरवरी १५६८ को चित्तौड़ के किले पर अधिकार करके ३०,००० व्यक्तियों का कत्लेआम करवाया| अकबर ने जयमल और फत्ता की वीरता से मुग्ध होकर आगरा के किले के बाहर गजारूढ़ पाषाण मूर्तियाँ लगवाई| अकबर ने राणा उदयसिंह को खोजने के लिए हुसैन कुली खां को गिरवा की पहाड़ियों में भेजा|
महाराणा उदय सिंह द्वारा नई राजधानी उदयपुर का निर्माण | Construction of new capital Udaipur by Maharana Udai Singh | Maharana Udaya singh Dwara Nai Rajadhani Udaipur ka Nirman
राणा उदयसिंह (Maharana Udai Singh) ने जिस प्रकार किले के बीजक को बाहर निकालने में सफलता प्राप्त की वह उनकी सूझबूझ और बहादुरी का ही प्रमाण है। चित्तौड़ किले से निकालनेके पश्चात उदयसिंह अरावली के घने जंगलों में चले गए। वहाँ उन्होंने नदी की बाढ़ रोक उदयसागर नामक सरोवर का और मोती मगरी के सुंदर महलों का निर्माण कराया। वहीं उदयसिंह ने अपनी नई राजधानी उदयपुर बसाई।
गुहिल वंश के मेवाड़ी शासकों में उदयसिंह (Maharana Udai Singh) की गिनती सबसे कमजोर शासकों में की जाती हैं| उनकी कमजोरियों के कई वाजिब कारण भी थे| इनके जन्म से पूर्व ही पिता सांगा की मृत्यु के बाद बचपन में ही माँ कर्णावती के नेतृत्व में जौहर का होना एक तरह से ऐसे राजनैतिक निराशा के वातावरण में उनके पास न कोई भविष्य योजना थी, न विरासत में कोई बेहतरीन सेनानायकों का सहयोग इन्हें मिल सका| इन सबके बावजूद इन्होने ३२ वर्षों तक शासन किया| उस दौरान इन्होने उदयपुर को मेवाड़ की नई राजधानी बनाया गया|
महाराणा उदयसिंह की मृत्यु कैसे हुई? | महाराणा उदयसिंह की मृत्यु कब हुई? | How did Maharana Udai Singh die? | Maharana Udaya singh ki Mrutu kaise hui? | When did Maharana Udai Singh die? | Maharana Udaya singh ki Mrtyu kab Hui?
चित्तौड़ के विध्वंस के चार वर्ष बाद उदयसिंह का देहांत हो गया। राणा उदय सिंह (Maharana Udai Singh) की मृत्यु १५७२ में हुई थी। उस समय उनकी उम्र ४२ वर्ष थी और उनकी सात रानियों से उन्हें २४ लड़के थे। उनकी सबसे छोटी रानी का लड़का जगमल था, जिससे उन्हें असीम अनुराग था। मृत्यु के समय राणा उदय सिंह ने अपने इसी पुत्र को अपना उत्तराधिकारी नियुक्त कर दिया था।
लेकिन राज्य दरबार के अधिकांश सरदार लोग यह नहीं चाहते थे कि राणा उदयसिंह (Maharana Udai Singh) का उत्तराधिकारी जगमल जैसा अयोग्य राजकुमार बने। राणा उदय सिंह के काल में पहली बार सन १५६६ में चढ़ाई की थी, जिसमें वह असफल रहा। इसके बाद दूसरी चढ़ाई सन १५६७ में की गयी थी और वह इस किले पर अधिकार करने में इस बार सफल भी हो गया था।
इसलिए राणा उदयसिंह (Maharana Udai Singh) की मृत्यु के समय उनके उत्तराधिकारी की अनिवार्य योग्यता चित्तौड़गढ़ को वापस लेने और अकबर जैसे शासक से युद्ध करने की चुनौती को स्वीकार करना था। राणा उदय सिंह के पुत्र जगमल में ऐसी योग्यता नहीं थी इसलिए राज्य दरबारियों ने उसे अपना राजा मानने से इंकार कर दिया।
राणा उदयसिंह (Maharana Udai Singh) की अंतिम क्रिया करने के पश्चात राज्य दरबारियों ने राणा जगमल को राजगद्दी से उतारकर महाराणा प्रताप को उसके स्थान पर बैठा दिया। इस प्रकार एक मौन क्रांति हुई और मेवाड़ का शासक राणा उदय सिंह की इच्छा से न बनकर दरबारियों की इच्छा से महाराणा प्रताप बने।
FAQ (Frequently Asked Question | अक्सर पूछे जाने वाले सवाल)
महाराणा प्रताप के पिता का नाम क्या था?
महाराणा प्रताप के पिता का नाम राणा उदय सिंह था।
राणा उदयसिंग के पिता का नाम क्या था?
राणा उदयसिंग के पिता का नाम राणा सांगा था।
महाराणा उदयसिंह का जन्म कब और कहाँ हुआ था?
महाराणा उदयसिंह का जन्म ४ अगस्त १५२२ को चित्तौड़गढ़ दुर्ग में हुआ था।
महाराणा उदयसिंह की मृत्यु कैसे हुई
चित्तौड़ के विध्वंस के चार वर्ष बाद उदयसिंह का देहांत हो गया। राणा उदय सिंह की मृत्यु १५७२ में हुई थी। उस समय उनकी उम्र ४२ वर्ष थी।
उदयसिंह को कौन मारना चाहता था?
दासी का पुत्र बनवीर चित्तौड़ का शासक बनना चाहता था। बनवीर ने राणा उदय सिंह के वंशजों को मार डाला और वह एक रात महाराजा विक्रमादित्य की हत्या करके उदयसिंह को मारने के लिए उसके ओर निकल पड़ा था।
महाराणा उदय सिंह के कुल कितने पुत्र थे?
महाराणा उदय सिंह को उनकी सात रानियों से उन्हें २४ लड़के थे। कुछ किवदंतियों के अनुसार उदयसिंह की कुल २२ पत्नियां और ५६ पुत्र और २२ पुत्रियां थी।
उदय सिंह को किसने बचाया?
महाराणा उदय सिंह को उनकी धाय पन्ना दाई ने उसे बनवीर से बचाने के लिए अपने बेटे चंदन का बलिदाब दे दिया और उसे कुंभलगढ़ ले गई।
उदयपुर शहर की स्थापना किसने की थी?
महाराणा उदयसिंह ने उदयपुर शहर की स्थापना की थी