महारानी जयवंता बाई | Maharani Jaivanta Bai

जयवंता बाई (Maharani Jaivanta Bai), महाराणा प्रताप की माता, वीरता और त्याग का प्रतीक, अपने साहस और दूरदर्शिता के लिए सदैव स्मरणीय रहेंगी। आइए, जानते है जयवंता बाई का इतिहास, जयवंता बाई के कितने पुत्र थे साथ ही सज्जा बाई सोलंकी का परिचय।

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महारानी जयवंता बाई का परिचय | Introduction of Maharani Jaivanta Bai | Maharani Jaivanta Bai ka parichay

नाममहारानी जयवंताबाई
जीवनसंगीमहाराणा उदय सिंह
संतानमहाराणा प्रताप
घरानासिसोदिया राजपूत
धर्महिंदु
पितासोंगरा चौहान

कभी राजपूत वीरता की कहानियां सुनी हैं? महाराणा प्रताप (Maharana Pratap) के नाम से तो वाकिफ होंगे ही! लेकिन क्या आप जानते हैं उनकी माता जयवंताबाई ((Jaivanta Bai)) के बारे में? वही जयवंताबाई जिन्होंने भक्ति और वीरता के संस्कारों से प्रताप को गढ़ा। राजनीति में भी राजा को सलाह देने वाली जयवंताबाई रणनीति की भी धनी थीं। आइए जानते हैं इस महारानी के बारे में, जिन्होंने मेवाड़ का गौरव बढ़ाने में अहम भूमिका निभाई।

महारानी जयवंता बाई की उदयसिंह से शादी | Maharani Jaivanta Bai’s Marriage to Udai Singh | Maharani Jaivanta Bai ki Uday Singh se Shadi

जयवंता बाई (Jaivanta Bai) की शादी महाराणा उदय सिंह के साथ उनकी पहली पत्नी के रूप में हुई थी| यह शादी बेहद ही रोचक और विशेष परिस्थितियों में हुई थी। इतिहासकारों के मुताबिक महाराणा उदयसिंह के द्वारा राज गद्दी संभालने से पहले कुंभलगढ़ में कई बनवीर समर्थक राजपूत शासकों ने उदयसिंह पर संदेह जाहिर किया था। उनको शक था कि उदयसिंह क्या वाकई में महाराणा सांगा और रानी कर्णावती के बेटे है, यह कैसे मान लें?

ऐसे में अखेराज सिंह ने कहा कि अगर मैं अपनी पुत्री की शादी महाराजा उदय सिंह से कर दूं तब तो आप मान लेंगे ना| इसके बाद अखेराज सिंह ने अपने परिवार को कुंभलगढ़ दुर्ग में बुलवाया और यह शादी हुई।

जयवंता बाई (Jaivanta Bai) उदय सिंह को राजनीतिक मामलों में सलाह देती थी और राज्य कारोबार चलाने में उनकी मदद करती थी। आगे चलके यह वीर क्षत्राणी, वीर शिरोमणि महाराणा प्रताप (Maharana Pratap) की माता बनी|

महाराणा प्रताप (Maharana Pratap) के पिता महाराणा उदयसिंह ने कुल २० विवाह किए थे और उनकी ४५ संताने थी (२५ पुत्र और २० पुत्रियां)। परन्तु उन ४५ संतानों में से सिर्फ महाराणा प्रताप का नाम ही स्वर्णिम अक्षरों में लिखा जाता है| ऐसा क्या था कि आखिर महाराणा प्रताप (Maharana Pratap) को ही वीर शिरोमणि कहा जाता है? सिर्फ वे ही अपने सिद्धांतों के लिए जीवन भर क्यों अडिग रहे? महाराणा प्रताप ने ही जीत से ज्यादा सिद्धांतों और मूल्यों को क्यों माना? इसके पीछे का एकमात्र कारण है महाराणा प्रताप (Maharana Pratap) की मां जयवंता बाई की शिक्षा। महाराणा प्रताप को पहले दिन से ही मां जयवंता बाई (Maharani Jaivanta Bai) ने गढ़ा ही ऐसा था|

महारानी जयवंता बाई का व्यक्तित्व? | Personality of Maharani Jaivanta Bai? | Maharani Jaivanta Bai ka Vyaktitv?

Personality of Maharani Jaivanta Bai

जयवंता बाई (Jaivanta Bai) एक बहादुर, सीधी राजपूत रानी थी। वह भगवान कृष्ण की एक प्रफुल्लित भक्त थी और कभी उनके सिद्धांतों और आदर्शवादी विश्वासों से समझौता नहीं करती थी। उन्होंने प्रताप को अपने पोषित सिद्धांतों और धार्मिकता को पारित कर दिया, जो उनके द्वारा बहुत प्रेरित थे। 

१५४० में प्रताप का जन्म हुआ और महाराणा उदयसिंह का भाग्योदय होने लगा। प्रताप के जन्म के समय ही महाराणा ने खोए हुए चित्तौड़ को जीता। इस विजय यात्रा में जयवंता बाई (Jaivanta Bai) भी उदयसिंह के साथ थीं। 

बाद में उनके जीवन में, प्रताप ने उसी आदर्शवादी और सिद्धांतों का पालन किया जो जयवंता बाई (Jaivanta Bai) ने किया। प्रताप एक महान राणा (राजा) बन गए। उन्होंने प्रताप को नैतिकता दी और उन्होंने इसका पालन किया और जिसके कारण उन्होंने महान लोगों की सूची में अपना नाम लिखा। उन्होंने प्रताप के जीवन में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।

जयवंता बाई द्वारा बालक प्रताप को उच्च संस्कार एवं शिक्षा | High Rites and Education to child Pratap by Jaivanta Bai | Maharani Jaivanta Bai Dwara Balak Pratap ko Uchha Sanskar awam Shiksha

जयवंता बाई (Jaivanta Bai) बालक प्रताप को लेकर चित्तौड़ दुर्ग से नीचे बनी हवेली में रहने लगीं। यहीं से शुरू हुआ मां के संस्कारों का बीजारोपण। प्रशासनिक कुशल मां ने प्रताप को अपने जैसा जांबाज बनाया और शूरवीरता के गुण दिए। 

चित्तौड़गढ़ के दरबार और राजनीति से दूर जयवंता बाई (Jaivanta Bai) माँ ने महाराणा प्रताप (Maharana Pratap) और उनके छोटे भाई शक्ति सिंह( सज्जा बाई सोलंकिनी के पुत्र) को पौराणिक कथाओं और रामायण की कहानियां सुनाई।

कुंवर प्रताप एक बहुत ही बुद्धिमान और सक्रिय बालक थे। तीन साल की छोटी सी उम्र में ही वह अपने उत्सुक सवालों से सभी को प्रभावित कर देते थे।

महाराणा प्रताप (Maharana Pratap) की मां जयवंता बाई (Jaivanta Bai) एक कुशल घुड़सवार भी थी, और उन्होंने अपने बेटे को भी दुनिया का बेहतरीन अश्वारोही शूरवीर बनाया। जयवंता बाई द्वारा महाराणा प्रताप (Maharana Pratap) को दिए गए यही संस्कारों ने हल्दीघाटी के युद्ध और उसके बाद के हालात में प्रताप को दुनिया के समस्त शासकों से अलग साबित किया।

जयवंता बाई (Jaivanta Bai) एक कृष्ण भक्त थीं। इसलिए कृष्ण के युद्ध कौशल को भी प्रताप के जीवन में उतार दिया। उन्हें प्रशासनिक दक्षता सिखाई और रणनीतिकार बनाया। उन्हें जीवन में सिद्धांतों के प्रति अडिग रहने के संस्कार भी इसी मां ने दिए।

यह जयवंता बाई (Jaivanta Bai) ही थीं, जिन्होंने प्रताप को शासन करने का यह संस्कार दिया कि उन्होंने हल्दीघाटी जैसे युद्ध में अपना सेनापति हकीम खां सुर को बनाकर अकबर के युद्ध कौशल की धार भोथरी कर दी।

प्रसिद्ध साहित्यकार राहुल सांकृत्यायन ने अपनी पुस्तक ‘अकबर’ में लिखा है : अगर एक मुस्लिम रणनीतिकार को सेनापति बनाने और आपसी फूट से बचने की प्रताप की यह नीति राजपूत शासक आगे बढ़ाते तो देश में मुगल शासन ज्यादा समय तक टिका नहीं रह सकता था।

महारानी जयवंता बाई ने चित्तौड़गढ़ को छोड़ा | जयवंता बाई और उदयसिंह के मध्य तनाव | Maharani Jaivanta Bai left Chittorgarh | Maharani Jaivanta Bai ne Chittorgarh ko chhoda | Tension between Jaivanta Bai and Uday Singh | Jaivanta Bai aur Udai Singh ke Madhy Tanav

इतिहास की कुछ पुस्तकों के अनुसार जयवंता बाई (Jaivanta Bai) और महाराणा उदयसिंह के मध्य इतना तनाव बढ़ गया था कि जयवंता बाई को अपने बेटे प्रताप के साथ मज़बूरी में चित्तौड़गढ़ को छोड़ना पड़ा।

जयवंताबाई लंबे समय तक किसी पर निर्भर रहने वाली महिलाओं में से नहीं थी। जयवंता बाई (Jaivanta Bai) कुछ समय के लिए जालौर में रही। यहां बालक प्रताप ने पहली बार अपने दादा से अपने पूर्वजों की प्रेरक कहानियां यही सुनी। प्रभावशाली राणा कुंभा, राणा सांगा के बलिदान और बहादुरी ने युवा राजकुमार पर छाप छोड़ी।

जयवंता बाई और महाराणा प्रताप का जंगल में भीलों के साथ प्रशिक्षण | Jaivanta Bai and Maharana Pratap’s Training with the Bhils in the Jungle | Jaivanta Bai aur Maharana Pratap ka Jangal mein Bheelon ke Saath Prashikshan

जयवंता बाई (Jaivanta Bai) कुछ दिन तो जालौर में रही| परंतु महाराजा उदयसिंह के द्वारा जयवंता बाई पर वापस आने का दबाव बनाए जाने के कारण जयवंता बाई का बालक प्रताप के साथ जालौर में रहना संभव नहीं था। दरअसल जयवंता बाई अपने पुत्र प्रताप की सुरक्षा को लेकर बहुत चिंतित थी| उन्हें डर था कि कहीं धीरबाई भटियानी उनके पुत्र को कोई हानि ना पहुंचा दे।

जालौर के बाद जयवंता बाई (Jaivanta Bai) कुंवर प्रताप के साथ अपना भेष बदलकर भीलवाड़ा के जंगलों में रहने चली गई थी। वे राजसी ठाठ बाट से उकता चुकी थी और अपने बेटे कुंवर प्रताप की देखभाल एक सामान्य मां की तरह करना चाहती थी।

अगले दो वर्षों तक जयवंता बाई (Jaivanta Bai) अपने पुत्र के साथ भीलों के बीच में ही रही और जंगल के जीवन के बारे में बहुत कुछ सीखा। जंगल में में बिताए गए इन २ वर्षों के अनुभव के कारण ही शायद हल्दीघाटी युद्ध के बाद महाराणा प्रताप (Maharana Pratap) इतना कठिन जीवन जी पाए।

महाराणा प्रताप (Maharana Pratap) को भील कीका कहकर बुलाते थे| और उन्हें गुरिल्ला रणनीति और धनुष और तीर चलाने की शिक्षा दी। भील समुदाय को यह नहीं पता था कि कुंवर प्रताप, उदय सिंह के पुत्र थे।

एक दिन कुंवर प्रताप ने अपने खंजर से एक बाघ को मार दिया और इस घटना ने भीलों को उनकी पहचान पर सवाल उठाने पर मजबूर किया। अंततः भीलों के सामने सच्चाई आ गई परंतु सच्चाई जानने के बाद भीलो का कुंवर प्रताप के प्रति प्रेम और बढ़ गया और उन्हें हर तरह से समर्थन देने का वचन भी दिया।

जयवंता बाई की चित्तौड़ में वापसी | Jaivanta Bai Returns to Chittor | Jaivanta Bai ki Chittoud mein Vapasi

उदय सिंह अपने बेटे और रानी को अब महल में किसी भी हाल में वापस लाना चाहते थे| क्योंकि महाराजा उदय सिंह की छवि पर कई तरह के प्रश्न चिन्ह लग रहे थे। महाराणा उदयसिंह ने महारानी जयवंता बाई (Jaivanta Bai) को सभी तरह के आश्वासन दिए और वचन दिया कि उन्हें या उनके पुत्र को कोई हानि नहीं पहुंचाएगा और उनका पूरा सम्मान किया जाएगा।

बहुत सोच विचार के बाद जयवंता बाई (Jaivanta Bai) ने चित्तौड़गढ़ आने के लिए हामी भर दी। इतिहास की कुछ पुस्तकों के अनुसार जब महाराणा प्रताप (Maharana Pratap) १३ वर्ष के थे तब जयवंता बाई वापस चित्तौड़गढ़ आई थी,इसका मतलब लगभग सन १५५३ में जयवंता बाई अपने पुत्र प्रताप के साथ पुनः चित्तौड़ आई।

हल्दीघाटी युद्ध के बाद जयवंता बाई कहां गई | Where did Jaivanta Bai go after the Haldighati War? | Haldighati Yudh ke Baad Jaivanta Bai Kaha Gai

हल्दीघाटी युद्ध के बाद छोटी सी बात पर अपने भाई से झगड़ कर शत्रु से मिल जाने की ग्लानि अंदर ही अंदर शक्ति सिंह को कचोट रही थी| आखिरकार शक्ति सिंह ने अपने चुने हुए राजपूत साथियों के साथ मेवाड़ लौट जाने का फैसला किया|

परंतु शक्ति को लगा कि खाली हाथ माहाराणा से मिलना उचित नहीं होगा। अतः एक छोटी सेना एकत्र करके शक्ति सिंह ने माइनसोर के दुर्ग पर आक्रमण करके उसे अपने अधिकार में ले लिया। मेवाड़ आकर शक्ति सिंह ने यह किला महाराणा प्रताप (Maharana Pratap) को भेट किया।

महाराणा प्रताप (Maharana Pratap) जब पर्वतों में जगह-जगह अपने स्थान बदलकर मुगलों के विरुद्ध छापामार युद्ध करने की योजना बना रहे थे तो उन्होंने अपने बेटे अमर सिंह के परिवार तथा अन्य परिजनों को साथ रखा लेकिन अपनी वृद्ध माता जयवंता बाई (Jaivanta Bai) को इस तरह से भटकने का कष्ट ना हो यह सोच कर महाराणा प्रताप (Maharana Pratap) ने जयवंता बाई को माइनसोर के किले में शक्ति सिंह के पास भेज दिया।

शक्ति सिंह जयवंता बाई का बहुत सम्मान करता था इसी कारण शक्ति सिंह ने जयवंता बाई (Jaivanta Bai) का भरपूर आदर सम्मान किया और उनकी सुख सुविधा का सारा प्रबंध कर दिया। कहते हैं जयवंता बाई भी वहां जाकर बहुत खुश थी क्योंकि वह शक्ति सिंह को भी प्रताप की तरह स्नेह करती थी।

जयवंता बाई की मृत्यु | Death of Jaivanta Bai | Jaivanta Bai ki Mrutyu

जयवंता बाई (Jaivanta Bai) की मृत्यु कब हुई इस संबंध में कोई ठोस प्रमाण तो नहीं मिलता है परंतु कुछ प्रामाणिक किताबों के अनुसार जयवंता बाई की मृत्यु सन १६१७ से १६२० के मध्य ८० वर्ष में हुई थी।

धन्य हो ऐसी साहसी, स्वाभिमानी, उच्च संस्कारित माता जिन्होंने बालक प्रताप को “महाराणा प्रताप” (Maharana Pratap) बनाया।

निष्कर्ष | Conclusion

महारानी जयवंताबाई का जीवन वीरता, धैर्य और त्याग का प्रतीक है। उन्होंने न केवल मेवाड़ की रक्षा में योगदान दिया बल्कि राणा प्रताप को एक महान योद्धा के रूप में गढ़ने में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। जयवंताबाई ने कठिन परिस्थितियों में भी संघर्ष की भावना को जीवित रखा और मेवाड़ के गौरव को बनाए रखने के लिए सदैव प्रयासरत रहीं। उनका जीवन इतिहास हमें यह सीख देता है कि कठिन समय में भी धैर्य और बुद्धि से काम लेकर विजय प्राप्त की जा सकती है।

FAQ (Frequently Asked Questions)

महाराणा प्रताप की माँ का नाम क्या था? | What is the name of Maharana Pratap mother?

महाराणा प्रताप की माँ का नाम महारानी जयवंता बाई था। | Maharana Pratap’s mother Name was Maharani Jaivanta Bai.

हल्दीघाटी युद्ध के बाद जयवंता बाई कहां गई | Where did Jaivanta Bai go after the Haldighati War?

हल्दीघाटी युद्ध के बाद महाराणा प्रताप (Maharana Pratap) ने जयवंता बाई को माइनसोर के किले में शक्ति सिंह के पास भेज दिया था।

महारानी जयवंता बाई की शादी किससे हुई थी?

महारानी जयवंता बाई की शादी उदयसिंह से हुई थी।

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