राजपूत गोत्र लिस्ट: एक संपूर्ण सूची | Rajput Gotra List: A Complete List

हम इस लेख में राजपूत गोत्र, कुलदेवी और राजपूत वंशावली (Rajput Vanshavali) के बारेमे जानकारी प्राप्त करेंगे, इसके अलावा राजपूत गोत्र नाम जानकर राजपूत गोत्र लिस्ट (rajput gotra list) और राजपूत वंशावली लिस्ट (Rajput Vanshavali list) तैयार करेंगे एवं राजपूत गोत्र वंशावली की जानकारी हासिल करेंगे| 

परिचय | Introduction

राजपूत, वीरता के प्रतीक, विभिन्न गोत्रों में बंटे हैं, जैसे सूर्यवंशी, चंद्रवंशी। ये गोत्र उनके इतिहास की कड़ी हैं। वंश, गोत्र के ही उपसमूह है (rajput gotra and vansh), जैसे कछवाहा, सिसोदिया। कुलदेवी, परिवार की रक्षक देवी, जैसे चामुंडा, दुर्गा, उनकी आस्था का केंद्र हैं। गोत्र, वंश और कुलदेवी, राजपूतों की पहचान और गौरव का स्रोत हैं।

वीरता की मिसाल राजपूत कई शाखाओ में बंटे हैं, जिन्हें गोत्र कहते हैं। सूर्यवंशी, चंद्रवंशी जैसे गोत्र उनका पुराना इतिहास बताते हैं। गोत्र को बड़े पेड़ की डाल समझें, जिनसे छोटी डालियाँ निकलती हैं, जिन्हें वंश कहते हैं। कछवाहा, सिसोदिया जैसे वंशों ने इतिहास में बड़े काम किए हैं।

परिवार को और मजबूत करती हैं कुलदेवियाँ। ये माताएँ, जैसे चामुंडा, दुर्गा, हर पीढ़ी की रक्षा करती हैं। कुलदेवी की पूजा राजपूतों की ज़िंदगी का अहम हिस्सा है, जहाँ वे पुरखों को याद करते हैं और आगे बढ़ने की ताकत पाते हैं।

गोत्र, वंश और कुलदेवी मिलकर राजपूतों की पहचान बनाते हैं। ये उन्हें इतिहास से जोड़ते हैं, रिश्तों को मजबूत करते हैं और ज़िंदगी जीने का रास्ता दिखाते हैं। ये सिर्फ शब्द नहीं, बल्कि उनकी धड़कन हैं, जो पीढ़ियों से चली आ रही हैं और आगे भी चलती रहेंगी।

राजपूत गोत्र | Rajput Gotra

हिंदू धर्म में गोत्र का अर्थ वंश या कुल होता है। इसे प्राचीन ऋषियों के नाम से जोड़ा जाता है, जिनसे वंश चला माना जाता है। ये ऋषि ज्ञान और तपस्या के लिए विख्यात थे। गोत्र सिर्फ पहचान नहीं, बल्कि सामाजिक-धार्मिक व्यवस्था का भी अहम हिस्सा है। यह विवाह संबंधों को निर्धारित करने में भूमिका निभाता है, क्योंकि कुछ गोत्रों के बीच विवाह वर्जित माना जाता है। पूजा-पाठ के दौरान भी पंडित प्रायः व्यक्ति का गोत्र पूछते हैं। कुल मिलाकर, गोत्र सदियों से चली आ रही परंपरा है, जो सामाजिक और धार्मिक जीवन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है।

राजपूत वंश | Rajput Vansh

राजपूत वंश, भारतीय इतिहास में वीरता और गौरव का पर्याय, अनेक शाखाओं में विभाजित है। सूर्यवंशी और चंद्रवंशी दो प्रमुख वंश माने जाते हैं। सूर्यवंशी शाखाओं में कछवाहा, सिसोदिया, राठौड़ और मेवाड़ प्रमुख हैं, जिन्होंने राजस्थान के विशाल रेगिस्तान में शौर्य के गाथा लिखी। वहीं, चंद्रवंशी शाखाओं में चौहान, पवार और गहड़वाल का डंका मध्यकालीन भारत में खूब बजा। इनके अतिरिक्त, बूंदी, दौसा और कोटा जैसी अनेक शाखाएँ भी राजपूत इतिहास को समृद्ध करती हैं।

प्रत्येक शाखा की अपनी विशिष्ट परंपराएँ, कुलदेवी और वंशजात हैं। कुछ शाखाएँ राजनीतिक रूप से शक्तिशाली रहीं, तो कुछ ने कला और संस्कृति को संरक्षण दिया। किलों का निर्माण, युद्ध कौशल और बलिदान की गाथाएँ इन शाखाओं को परिभाषित करती हैं। राजपूत शाखाएँ भारत की सांस्कृतिक विविधता का एक महत्वपूर्ण हिस्सा हैं, जिनका इतिहास वीरता, त्याग और सांस्कृतिक वैभव से ओतप्रोत है।

राजपूत वंशावली | Rajput Vanshavali

राजपूत वंशावली भारतीय इतिहास और संस्कृति का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। यह वंशावली विभिन्न क्षत्रिय राजवंशों और समुदायों को एकजुट करती है, जो अपनी वीरता, त्याग और बलिदान के लिए जाने जाते हैं।

याहा हम जानेंगे राजपूत वंशावली इन हिंदी (Rajput Vanshavali in Hindi) और बनाएंगे राजपूत वंशावली लिस्ट (Rajput Vanshavali list) साथ ही पता करेंगे राजपूत वंशावली गोत्र (Rajput Vanshavali gotra)

राजपूतों की उत्पत्ति को लेकर कई मत हैं, कुछ इतिहासकारों का मानना ​​है कि वे प्राचीन क्षत्रियों से वंशज हैं, जबकि अन्य उन्हें हूणों, गुर्जरों, या अन्य विदेशी समुदायों के वंशज मानते हैं।

राजपूत वंशावली (Rajput Vanshavali) में कई प्रमुख राजवंश शामिल हैं, जिनमें चौहान, सिसोदिया, राठौड़, और गहलोत शामिल हैं। इन राजवंशों ने भारत के विभिन्न क्षेत्रों पर शासन किया और अपनी कला, संस्कृति, और स्थापत्य कला के लिए प्रसिद्धि प्राप्त की।

राजपूत वंशावली आज भी भारतीय समाज में महत्वपूर्ण स्थान रखती है। यह वंशावली साहस, वीरता, और त्याग का प्रतीक है।

यह ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि राजपूत वंशावली एक जटिल विषय है और इसके बारे में कई भिन्न मत हैं।

राजपूत वंश की कुलदेवी | Rajput Vansh Kuldevi 

किसी भी वंश की कुलदेवी उस वंश के लोगों के लिए एक महत्वपूर्ण आध्यात्मिक और सांस्कृतिक प्रतीक होती है। कुलदेवी को उस वंश की आराध्य देवी माना जाता है और उनके प्रति विशेष श्रद्धा प्रकट की जाती है।

वंश की कुलदेवी के बारे में कई मान्यताएं और कहानियां प्रचलित हैं। इन मान्यताओं और कहानियों में कुलदेवी के चमत्कार और शक्तियों का वर्णन किया जाता है। कुलदेवी को उस वंश की रक्षा करने वाली देवी माना जाता है और उनके आशीर्वाद से वंश के लोगों को सुख-शांति और समृद्धि प्राप्त होती है।

वंश की कुलदेवी की पूजा उस वंश के लोगों के लिए एक महत्वपूर्ण धार्मिक अनुष्ठान है। वंश के लोग अपनी कुलदेवी के मंदिर में जाकर उनकी पूजा करते हैं। कुलदेवी की पूजा से वंश के लोगों का मानना ​​है कि उन्हें देवी का आशीर्वाद प्राप्त होता है और उनके जीवन में सुख-शांति और समृद्धि आती है।

कुलदेवी की पूजा से जुड़ी कुछ मान्यताएं निम्नलिखित हैं:

  • कुलदेवी की पूजा करने से वंश के लोगों को देवी का आशीर्वाद प्राप्त होता है।
  • कुलदेवी की पूजा करने से वंश की रक्षा होती है।
  • कुलदेवी की पूजा करने से वंश के लोगों को सुख-शांति और समृद्धि प्राप्त होती है।

वंश की कुलदेवी एक महत्वपूर्ण आध्यात्मिक और सांस्कृतिक प्रतीक है। कुलदेवी की पूजा से वंश के लोगों को आध्यात्मिक शक्ति और सकारात्मक ऊर्जा प्राप्त होती है।

राजपूत शाखा नामगोत्रवंशवंश की कुलदेवी
अमेठियाभारद्वाजगौडमहाकाली
अहवनवशिष्ठचावडा,कुमावतश्री चामुंडा माता
आहडियाबैजवापेणगहलोतश्री बाण माता
इन्दौरियाव्याघ्रतोमरचिलाय माता
उजैनेवशिष्ठपंवारगढ़कालिका देवी
उदमतियावत्सब्रह्मक्षत्रियहिंगलाज माता
उदमतियावत्सब्रह्मक्षत्रियहिंगलाज माता
उदावतबैजवापेणगहलोतश्री बाण माता
कछनियाशान्डिल्यब्रह्मक्षत्रियहिंगलाज माता
कछवाहागौतम,वशिष्ठ,मानवसूर्यकालिका देवी
कटहरियावशिष्ठ्याभारद्वाजसूर्यकालिका देवी
कटारियाभारद्वाजसोलंकीखेवज माता
कटियारव्याघ्रतोंवरचिलाय माता
कटोचकश्यपभूमिवंश
कदम्बमान्डग्यब्रह्मक्षत्रियहिंगलाज माता
कनपुरियाभारद्वाजब्रह्मक्षत्रियहिंगलाज माता
करचुल हैहयकृष्णात्रेयचन्द्र
कश्यपदीक्षितकछवाह शाखाजमवाय माता
काकनभृगुब्रह्मक्षत्रियहिंगलाज माता
काकुतीयभारद्वाजचन्द्र,प्राचीन सूर्य थानंदा देवी
काठीकश्यपगहरवारशाखामाँ दुर्गा
कासिबकश्यपकछवाह शाखाजमवाय माता
किनवारकश्यपसेंगर की शाखाविंध्यवासिनी माता
किसनातिलअत्रयतोमरशाखाचिलाय माता
कुमावतवशिष्ठपंवार की शाखागढ़कालिका देवी
कौशिककौशिकचन्द्रनंदा देवी
खरवडवशिष्ठयदुवंशमाँ विंध्यवासिनी
खागरअत्रययदुवंश शाखामाँ विंध्यवासिनी
खातीकश्यपदीक्षित शाखामाता पार्वती
खींचरवत्सचौहान शाखाआशापुरा माता
खींचीवत्सचौहानआशापुरा माता
गढावंशीकांवायनचन्द्रनंदा देवी
गर्गवंशीगर्गब्रह्मक्षत्रियहिंगलाज माता
गहलोतबैजवापेणसूर्यकालिका देवी
गिदवरियावशिष्ठपंवारगढ़कालिका देवी
गुप्तगार्ग्यचन्द्रनंदा देवी
गेहरवारकश्यपसूर्यकालिका देवी
गोहिलबैजबापेणगहलोत शाखाश्री बाण माता
गौतमगौतमब्रह्मक्षत्रियहिंगलाज माता
गौर,गौडभारद्वाजसूर्यकालिका देवी
घोडेवाहामानव्यकछवाह शाखाजमवाय माता
चन्देलचान्द्रायनचन्द्रवंशीनंदा देवी
चन्दोसियाभारद्वाजवैस
चावडावशिष्ठपंवार की शाखागढ़कालिका देवी
चोहानवशिष्ठपंवार की शाखागढ़कालिका देवी
चौपटखम्बकश्यपब्रह्मक्षत्रियहिंगलाज माता
चौलवंशभारद्वाजसूर्यकालिका देवी
चौहानवत्सअग्निशाकम्भरी देवी
छोकरअत्रययदुवंशमाँ विंध्यवासिनी
जनवारकौशल्यसोलंकी शाखाखेवज माता
जरोलियाव्याघ्रपदचन्द्रनंदा देवी
जसावतमानव्यकछवाह शाखाजमवाय माता
जांगडावत्सचौहानआशापुरा माता
जाटूव्याघ्रतोमरचिलाय माता
जाडेचाअत्रययदुवंशीमाँ विंध्यवासिनी
जादवाअत्रयजादौनश्री कैलादेवी
जायसकश्यपराठौड की शाखानागनेची/नागनेचिया माता
जेठवाकश्यपहनुमानवंशीशीतलामाता
जैवारव्याघ्रतंवर की शाखाचिलाय माता
जैसवारकश्यपयदुवंशीमाँ विंध्यवासिनी
जोतियानामानव्यकश्यप,कछवाह शाखाअदिति
जोहियापाराशरचन्द्रनंदा देवी
झालामरीच कश्यपचन्द्रनंदा देवी
टडैयाभारद्वाजसोलंकी शाखाखेवज माता
टांक (तत्तक)शौनिकनागवंशमाँ नागेश्वरी
डाबीवशिष्ठयदुवंशमाँ विंध्यवासिनी
डोमराकश्यपसूर्यकालिका देवी
डौडियावशिष्ठपंवार शाखागढ़कालिका देवी
तखीकौशल्यपरिहारगाजणमाता
तिरोताकश्यपतंवर की शाखाचिलाय माता
तिसहियाकौशल्यपरिहारगाजणमाता
तुलवाआत्रेयचन्द्रनंदा देवी
तोमरव्याघ्रचन्दनंदा देवी
दहियाकश्यपराठौड शाखानागनेची/नागनेचिया माता
दाहिमागार्गेयब्रह्मक्षत्रियहिंगलाज माता
दीत्ततकश्यपसूर्यवंश की शाखाकालिका देवी
दुर्गवंशीकश्यपदीक्षितमाता पार्वती
देवडावत्सचौहानआशापुरा माता
दोबर(दोनवर)वत्स या कश्यपब्रह्मक्षत्रियहिंगलाज माता
द्वारव्याघ्रतोमरचिलाय माता
धन्वस्तयमदाग्निब्रह्मक्षत्रियहिंगलाज माता
धाकरेभारद्वाज(भृगु)ब्रह्मक्षत्रियहिंगलाज माता
धेकाहाकश्यपपंवार की शाखागढ़कालिका देवी
नगबकमानव्यकछवाह शाखाजमवाय माता
ननवगकौशल्यचन्द्रनंदा देवी
नरौनीमानव्यकछवाहाजमवाय माता
निकुम्भवशिष्ठसूर्यकालिका देवी
निमवंशीकश्यपसूर्यकालिका देवी
निर्वाणवत्सचौहानआशापुरा माता
पंवारवशिष्ठअग्निशाकम्भरी देवी
पंवारवशिष्ठअग्निशाकम्भरी देवी
पठानियापाराशरवनाफ़रशाखा
पडियारियादेवल,सांकृतसामब्रह्मक्षत्रियहिंगलाज माता
परिहारकौशल्यअग्निशाकम्भरी देवी
पलवारव्याघ्रसोमवंशी शाखाचामुण्डा देवी
पवैयावत्सचौहानआशापुरा माता
पांड्यअत्रयचन्दनंदा देवी
पालकश्यपसूर्यकालिका देवी
पालीवारव्याघ्रतोंवरचिलाय माता
पिपरियाभारद्वाजगौडों की शाखामहाकाली
पुण्डीरकपिलब्रह्मक्षत्रियहिंगलाज माता
पोलचभारद्वाजब्रह्मक्षत्रियहिंगलाज माता
बच्छगोत्रीवत्सचौहानआशापुरा माता
बढगूजरवशिष्ठसूर्यकालिका देवी
बमटेलाशांडल्यविसेन शाखा
बरहियागौतमसेंगर की शाखाविंध्यवासिनी माता
बल्लाभारद्वाजसूर्यकालिका देवी
बहरेलियाभारद्वाजवैस की गोद सिसोदिया
बाकाटकविष्णुवर्धनसूर्यकालिका देवी
बाणवंशकश्यपअसुरवंश
बारहगैयावत्सचौहानआशापुरा माता
बिलखरियाकश्यपदीक्षितमाता पार्वती
बिसैनवत्सब्रह्मक्षत्रियहिंगलाज माता
बुन्देलाकश्यपगहरवारशाखामाँ दुर्गा
बैसभारद्वाजसूर्यकालिका देवी
भदौरियावत्सचौहानआशापुरा माता
भनवगभारद्वाजकनपुरिया
भाटीअत्रयजादौनश्री कैलादेवी
भालेसुल्तानभारद्वाजवैस की शाखा
भृगुवंशीभार्गवचन्द्रनंदा देवी
भैंसोलियावत्सचौहानआशापुरा माता
मोरीब्रह्मगौतमसूर्यकालिका देवी
मोहिलवत्सचौहान शाखाआशापुरा माता
मौखरीअत्रयचन्द्रनंदा देवी
मौनसमानव्यकछवाह शाखाजमवाय माता
यदुवंशीअत्रयचन्दनंदा देवी
रक्षेलकश्यपसूर्यकालिका देवी
रजवारवत्सचौहानआशापुरा माता
राजकुमारवत्सचौहानआशापुरा माता
राठोडकश्यपसूर्यकालिका देवी
रायजादेपाराशरचन्द्र की शाखानंदा देवी
रैकवारभारद्वाजसूर्यकालिका देवी
लिच्छिवीकश्यपसूर्यकालिका देवी
लौतमियाभारद्वाजबढगूजर शाखामाँ आशावारी
वनाफ़रपाराशर,कश्यपचन्द्रनंदा देवी
वर्तमानवशिष्ठपंवार की शाखागढ़कालिका देवी
वाच्छिलअत्रयवच्छिलचन्दनंदा देवी
वाच्छिलअत्रयवच्छिलचन्द्रनंदा देवी
वैनवंशीवैन्यसोमवंशीचामुण्डा देवी
शम्भरीवत्सचौहानआशापुरा माता
सड़मालसूर्यभारद्वाजबिन्दुक्षणी माता
सरगैयांव्याघ्रसोमवंशचामुण्डा देवी
सिंहेलकश्यपसूर्यकालिका देवी
सिकरवारभारद्वाजबढगूजरमाँ आशावारी
सिरसवारअत्रयचन्द्र शाखानंदा देवी
सिरसेतभारद्वाजसूर्यकालिका देवी
सिलारशौनिकचन्द्रनंदा देवी
सिसोदियाबैजवापेडसूर्यकालिका देवी
सुकेतभारद्वाजगौड की शाखामहाकाली
सुणग वंशभारद्वाजचन्द्र,पाचीन सूर्य थानंदा देवी
सुरवारगर्गसूर्यकालिका देवी
सुर्वैयावशिष्ठयदुवंशमाँ विंध्यवासिनी
सूर्यवंशीभारद्वाजसूर्यकालिका देवी
सेंगरगौतमब्रह्मक्षत्रियहिंगलाज माता
सैनअत्रयब्रह्मक्षत्रियहिंगलाज माता
सोमवंशीअत्रयचन्दनंदा देवी
सोलंकीभारद्वाजअग्निशाकम्भरी देवी
हरद्वारभार्गवचन्द्र शाखानंदा देवी
हाडावत्सचौहानआशापुरा माता

प्रमुख राजपूत वंश और उसकी शाखाएं | Rajput Vansh and Branches

सूर्य वंश की शाखायें | Surya vansh Branches

सूर्यवंश, क्षत्रियों के प्रमुख वंशों में से एक, प्राचीन भारत की विरासत का गौरवशाली अध्याय है। सूर्य देवता से उत्पन्न माने जाने वाले इस वंश की शाखाएं विविध और समृद्ध हैं। इतिहास के गलियारों में इन्होंने साम्राज्यों का निर्माण किया, युद्धों का सामना किया, और सांस्कृतिक परंपराओं को पोषित किया।

सूर्य वंश का सार एक ही है – वीरता, धर्मनिष्ठा, और सांस्कृतिक उत्कर्ष। सूर्यवंश की शाखाएं प्राचीन भारत के राजनीतिक मानचित्र पर ही नहीं, बल्कि साहित्य, कला, और संस्कृति में भी अपना अमिट छाप छोड़ती हैं।

अतः, सूर्यवंश की शाखाएं सिर्फ वंशावली से अधिक हैं। वे प्राचीन भारत के इतिहास, संस्कृति, और शौर्य का जीवंत प्रमाण हैं।

कछवाहराठौडबडगूजरगहलबार
सिकरवारसिसोदियागहलोतगौर
रेकबारजुननेबैसरघुवंशी

चन्द्र वंश की शाखायें | Chandra Vansh Branches

चंद्रवंश, सूर्यवंश की भांति ही, प्राचीन भारत के इतिहास में एक चमकता अध्याय है। चंद्र देवता से माना जाने वाला यह वंश अपनी विस्तृत शाखाओं के लिए प्रसिद्ध है, जो शौर्य, कूटनीति, और कलात्मकता का अनूठा सम्मिश्रण प्रस्तुत करती हैं।

हालांकि शाखाओं की विशालता अचंभित करती है, चंद्रवंश का सार एक ही है। ये शाखाएं कलात्मक अभिव्यक्ति, युद्ध कौशल, और सामरिक चातुर्य की प्रतीक हैं। उनके नाम साहित्य और लोककथाओं में गूंजते हैं, महलों और मंदिरों में उनकी विरासत अंकित है।

इस प्रकार, चंद्रवंश की शाखाएं सिर्फ वंशावली नहीं हैं, बल्कि वे प्राचीन भारत के जीवंत इतिहास, कलात्मक प्रतिभा, और वीरतापूर्ण गाथा का प्रमाण हैं। इन शाखाओं की कहानियां प्राचीन भारत की समृद्धि और जटिलता को उजागर करती हैं, जो आने वाली पीढ़ियों को प्रेरणा देती रहेंगी।

जादौनभाटीतोमरचन्देल
छोंकरहोंडपुण्डीरकटैरिया
दहिया

अग्नि वंश की शाखायें | Agni Vansh Branches

अग्निवंश, भारतीय इतिहास में एक अनूठा अध्याय है। सूर्यवंश और चंद्रवंश से अलग, यह वंश अग्नि देवता से जुड़ा हुआ माना जाता है। प्राचीन किंवदंतियों के अनुसार, इस वंश की स्थापना एक यज्ञ के दौरान अग्नि से उत्पन्न हुए वीरों से हुई थी।

अग्निवंश की खासियत इसकी चार प्रमुख शाखाओं – चौहान, परिहार, परमार और सोलंकी – में निहित है। ये शाखाएं मध्यकालीन भारत में शौर्य, बलिदान और युद्ध कौशल के लिए विख्यात थीं। उन्होंने विशाल साम्राज्यों का निर्माण किया, युद्धों का सामना किया और सांस्कृतिक परंपराओं को संरक्षित किया।

हालांकि, अग्निवंश की महिमा केवल शाखाओं की संख्या में नहीं निहित है। यह उनके साझा मूल और मूल्यों में निहित है। अग्नि से जन्मे होने की किंवदंती उन्हें निडरता, दृढ़ संकल्प और नेतृत्व क्षमता का प्रतीक बनाती है। उनके इतिहास में वीरतापूर्ण युद्धों के साथ कृषि, व्यापार और कला को बढ़ावा देने के उदाहरण भी मिलते हैं।

इस प्रकार, अग्निवंश की शाखाएं सिर्फ राजनीतिक या वंशावली इकाई नहीं हैं। वे एक साझा पहचान, सांस्कृतिक मूल्यों और शानदार इतिहास का प्रतिनिधित्व करती हैं। उनकी कहानियां भारत के मध्यकालीन युग को जीवंत करती हैं और आज भी वीरता, धैर्य और दृढ़ संकल्प के आदर्श प्रस्तुत करती हैं।

चौहानसोलंकीपरिहारपरमार

ऋषि वंश की शाखायें | Rushi Vansh Branches

ऋषिवंश (Rushivansh), प्राचीन भारत की सांस्कृतिक और बौद्धिक धारा का अनूठा स्रोत है। राजवंशों की तरह खून के रिश्ते से नहीं, बल्कि ज्ञान और परंपरा के वारिस होने के नाते जुड़े ये वंश भारतीय इतिहास में विशिष्ट स्थान रखते हैं। इनमें वेदों के रचयिता, आध्यात्मिक गुरु, विद्वान और समाज सुधारक शामिल हैं।

प्रमुख रूप से दो ऋषिवंशों का उल्लेख मिलता है – अंगिरस वंश और वशिष्ठ वंश। इन वंशों के ऋषियों ने वेदों के संकलन, दर्शन शास्त्र के विकास, और यज्ञीय परंपराओं को स्थापित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। भृगु, गौतम, कश्यप जैसे ऋषि भी अपने-अपने वंशों के साथ प्राचीन ज्ञान के संरक्षक रहे हैं।

ऋषिवंशों की शाखाओं को सूचीबद्ध करना मुश्किल है, क्योंकि वे समय के साथ फैले और आपस में जुड़े हुए हैं। उनकी विरासत शिष्य परंपरा के माध्यम से आगे बढ़ती रही है, जो ज्ञान और संस्कारों को पीढ़ी दर पीढ़ी हस्तांतरित करती है।

हालांकि, ऋषिवंशों का सार एक ही है – ज्ञान की खोज, आध्यात्मिकता का अनुसरण, और समाज को सन्मार्ग दिखाना। उनके आश्रम ज्ञान के केंद्र बने, जहां राजा-रानी से लेकर आम जन तक सभी शिक्षा ग्रहण करने आते थे। उनके उपदेशों ने धर्मशास्त्र, राजनीतिशास्त्र, और जीवनशैली को आकार दिया।

सेंगरदीक्षितदायमागौतम
अनवार (राजा जनक के वंशज)विसेनकरछुलहय
अबकू तबकूकठोक्सद्लेलाबुन्देला

चौहान वंश की शाखायें | Chauhan Vansh Branches

चौहान वंश, भारतीय इतिहास में वीरता, दृढ़ता और सांस्कृतिक समृद्धि का पर्याय बना हुआ है। ७ वीं से १२ वीं शताब्दी तक भारत के विशाल भूभाग पर शासन करने वाले इस वंश की शाखाएं सिर्फ खून के रिश्ते से नहीं, बल्कि साझी पहचान, गौरवशाली इतिहास और सांस्कृतिक मूल्यों के सूत्र में पिरोई हैं।

हालांकि विभिन्न स्रोत चौहान वंश की कई शाखाओं का उल्लेख करते हैं, उनका सार एक ही है। रणथम्भौर की शाखा विजयी प्रतिरोध का प्रतीक है, जिसने तुर्की आक्रमणों को बार-बार विफल किया। सपादलक्ष क्षेत्र की चौहान शाखाएं कृषि, व्यापार और कला को फलने-फूलने का वातावरण बनाने के लिए जानी जाती थीं। मेवाड़ और गुजरात की शाखाएं सांस्कृतिक विरासत के संरक्षण और मंदिर निर्माण में अग्रणी रहीं।

चौहान वंश की शाखाओं की विशेषता उनकी आपसी जुड़ाव में भी निहित है। वीरतापूर्ण युद्धों के दौरान एक-दूसरे का साथ देना, राजनीतिक गठबंधन बनाना और सांस्कृतिक परंपराओं को साझा करना उनकी एकता का प्रमाण है। यही कारण है कि चौहान वंश का इतिहास सिर्फ अलग-अलग शाखाओं का योग नहीं, बल्कि एक सामंजस्यपूर्ण समग्रता का वृत्तांत है।

इस प्रकार, चौहान वंश की शाखाओं को समझना प्राचीन भारत के एक महत्वपूर्ण अध्याय को खोलना है। यह वीर योद्धाओं, कुशल शासकों और कला-प्रेमियों की विरासत है, जो भारतीय इतिहास और संस्कृति में अमिट छाप छोड़ गई है। उनकी कहानियां आज भी राष्ट्रभक्ति, धैर्य और सांस्कृतिक गौरव की प्रेरणा देती हैं।

हाडाखींचीसोनीगारापाविया
पुरबियासंचौरामेलवालभदौरिया
निर्वाणमलानीधुरामडरेवा
सनीखेचीवारेछापसेरियाबालेछा
रूसियाचांदानिकूमभावर
छछेरियाउजवानियादेवडाबनकर

32 thoughts on “राजपूत गोत्र लिस्ट: एक संपूर्ण सूची | Rajput Gotra List: A Complete List”

    • Aryan Singh Ji, Thank you for your comment.
      आप का सुझाव काफी सराहनीय है| मै जरूर ही कालहंस राजपूत के बारे में लिखूंगा, हो सके तो इसी पोस्ट में अपडेट करूँगा। अगर आप कुछ और भी पढ़ना या जानकारी हासिल करना चाहते है तो हमें बताये|
      आपके फीडबैक हमारे लिए महत्वपूर्ण है|

      Reply
    • Bhaiya ji hamara vansh to bais hai par apne kuldevi ke bare me nhi bataya or ye kitne number par hai yah bhi nhi bataya pls meri help kijiye or apne Ghar me Maine pucha to wo log gotra Himanchal batate hain kya Himanchal gotra bhi hota hai kya bhaiya pls ap reply dijiyega

      Reply
      • हिंदू धर्म में सप्तर्षियों (Sapta Rishi) को कई गोत्रों का मूल माना जाता है। इन सप्तऋषि गोत्रो से अन्य कई गोत्र उत्पन्न हुए हैं। ये है सप्तऋषि गोत्र।
        अत्रि (Atri)
        भारद्वाज (Bharadwaj)
        गौतम (Gautam)
        जमदग्नि (Jamadagni)
        कश्यप (Kashyap)
        वसिष्ठ (Vashisht)
        विश्वामित्र (Vishwamitra)
        कुछ अन्य प्रमुख हिंदू गोत्र निचे दिए गए है।
        अगस्त्य (Agastya)
        कौंडिल्य (Kaundilya)
        कौशिक (Kaushilk)
        वत्स (Vatsa)

        ज्यादातर सभी गोत्रो का मूल इन्ही गोत्रो से मिलता है। इसका मतलब ये है की हमरा मूल गोत्र इन्ही मे से एक होने की उम्मीद सबसे अधिक है| क्यों की हिंदू धर्म में गोत्रों की कोई निश्चित या “आधारभूत” सूची नहीं है।

        आप बैस वंश पर लिखे इस स्वतंत्र लेख को पढ़िए। इसमें आप को जरूर ही आप के कई सवालों के जवाब मिल जायेंगे। https://kingrajput.com/bais-rajput-bais-vansh/

        Reply
    • रोहन जी, आप के परामर्श के लिए धन्यवाद, करियार राजपूत के बारे में भी आप जल्द ही इस ब्लॉग पर एक विस्तृत पोस्ट पाएंगे।

      Reply
  1. मौर्यवंश के बारे में भी लिखिए।

    Reply
    • अंकुर जी आप की सलाह के लिए धन्यवाद। कुछ वक़्त पहले हमें ऐसे ही एक रिक्वेस्ट प्राप्त हुआ था जो की कालहंस राजपूत के बारेमे जानना चाहते थे, तो उसपर हमने एक सेपरेट पोस्ट लिखा था| आप की इस अनुरोध पर भी हम मौर्य वंश की जानकारी के लिए अलगसे एक विस्तृत पोस्ट जल्द ही लिखेंगे|

      Reply
  2. Mai Chakuaen Rajput hu

    And Mera gotra Sandilya Hai

    But aapke bataye gye details se mai apne caste ke baare me jankari nhi juta pa rha hu.

    Please meri madat kare.
    Aapka hamesha abhari rahunga.

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    • जरूर रणवीर भाई साहब, मई आप की मदद करने की पूरी कोशिश करूँगा। नयी आने वाली पोस्ट में शायद आप की मदद हो पाए| आप नई पोस्ट की जानकारी पाने के लिये इस ब्लॉग को जरूर सब्सक्राइब कर ले और अन्य भाइयों को भी बताये।
      धन्यवाद,
      किंग राजपूत।

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  3. Gohil vansh ke bare me bhi bataayenga bhai… Gohil vansh ke gotra ,kul devta aur kuldevi ke baare me bhi jankari saza kijiye… Dhanyawad

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    • आप के कमेंट के लिए धन्यवाद सुरेश भाई. गोहिल वंश पर हमारा काम चल रहा है, अगले २-३ दिन मे सभी गोहिल भाइयों को गोहिल वंश पर एक विस्तृत लेख जरूर ही प्राप्त होगा। अपडेट पाने के लाइट इस ब्लॉग को जरूर सब्सक्राइब कर ले और अन्य भाइयों को भी बताये।
      धन्यवाद,
      किंग राजपूत।

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  4. अथर्व राजपूत और कच्छ गोत्र के बारे में आप को जानकारी हो तो कृपा जवाब दे मैं बहुत इच्छुक हूं

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    • रिशु कुमार जी, हम आपकी मदद करने की जरूर कोशिश करेंगे. अगर आपके पास कुछ और जानकारी हो तो हमें बताएं जैसे वंश का नाम और कुलदेवी.
      धन्यवाद,
      किंग राजपूत।

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  5. Banwad gotar to list mein nhi hai , agar ess k baare mein kisi ko jaankari ho to kirpa kr k bataye

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    • नागवंश के लिए हमने एक स्वतंत्र लेख प्रकाशित किया है। नागवंश की जानकारी के लिए आप निचे दिए गए URL को देख सकते है।
      https://kingrajput.com/nagvanshi-rajvansh-history/

      गंग वंश पर भी हम जल्द ही एक स्वतंत्र लेख प्रदर्शित करेंगे।

      और किसी भी अन्य वंश की जानकारी के लिए आप इसी वेबसाइट में राजपूत राजवंश -> राजपूत प्रांत -> भाग १ से भाग ४ देख सकते है।

      आप के अभिप्राय के लिए धन्यवाद।
      KingRajput.

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  6. राजपूतों में क्या कंस गोत्र होता है? बचपन से हमारे बूढ़े लोग हमी हमारा गोत्र कंस बताते आये है।
    लेकिन अभी वताओ की कनस गोत्र होता भी है हां या नहीं।

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  7. आपसे बात करना है हुकम आपने जो लेख लिखा है कलहंस राजपूतों पे आपको कहा से मिला वह क्या आप बता सकते है ?
    काफ़ी जानकारी ग़लत है उसमें एक बार आपसे बात करना चाहता हूँ
    कृपया आप अपना contact दीजिए मेल पे मेरे
    [email protected]

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    • आप की कमेंट के लिए धन्यवाद भाई साहब,
      कलहंस राजपूतों के बारे में हमारी दी गई जो भी जानकारी आप के नजरिये से गलत है आप कृपया हमें बताये। हम उस लिहाज़ से आपने लेख में जरूर बदलाव करेंगे ताकि सभी भाइयो तक सही जानकारी पहुंचाई जा सके।
      आप सभी जानकारी कमेंट के डाल सकते है या हमें [email protected] पर लिख सकते है।
      धन्यवाद,
      किंग राजपूत

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  8. भाई साहब,
    जम्मू-कश्मीर में चसयाल राजपूत हैं। इनका गोत्र अग्नि है। पड़ताल पर यही समझ आता है कि राजस्थान से कहीं इनका इधर आना हुआ होगा। इस बारे में कोई लेख लिखें तो बहुत अच्छा होगा। विस्तृत जानकारी जो हम सभी को सत्य तक ले जाए। राजा मंडलीक जिन्हें जाहरपीर, गुग्गा वीर कह कर राजस्थान में पूजते हैं। इनका कुलदेवता हैं। जम्मू संभाग के जम्मू, राजौरी, पुंछ, ऊधमपुर, रियासी आदि जिलों में काफी संख्या में चसयाल राजपूत हैं।

    सादर

    Reply
    • हमसे जुड़नेके लिए धन्यवाद भाई साहब,
      हम जल्द ही चसयाल राजपूत के बारे मे एक विस्तृत लेख लिखेंगे। आप पाठकों की ऐसी ही सलाह से हमें अपने इस साइट को परिपूर्ण करने में मदद मिलती है| ऐसे ही जुड़े रहिये।
      किंग राजपूत।

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