राणा हम्मीर सिंह (Rana Hammir Singh), जिन्होंने सिसोदिया राजवंश के पहले राणा के रूप में चित्तौड़ के किले को दिल्ली के सुल्तान अलाउद्दीन खिलजी से जीतकर मेवाड़ की स्वतंत्रता का शंखनाद किया था। इसी जीत से मेवाड़ की स्वतंत्रता की स्थापना हुई।
राणा हम्मीर सिंह का परिचय | Introduction of Rana Hammir Singh
अरावली की वीरांगनाओं के गीतों में गूंजता एक ऐसा नाम, राणा हम्मीर सिंह, जिसने सिसोदिया वंश को गौरव से खड़ा किया और मेवाड़ के गौरव पर झींकती दिल्ली सल्तनत की तलवार को कुंद कर दिया।
बचपन से तलवार और ढाल के संगत पले-बढ़े राणा हम्मीर सिंह बचपन ही नहीं, पूरे जीवन “विषम घाटी पंचानन” रहे। १३१४ में सिसोदा गांव में जन्मे हम्मीर सिंह ने किशोरावस्था में ही युद्ध कौशल में महारथ हासिल कर ली थी।
१३०३ में चित्तौड़ पर अलाउद्दीन खिलजी के घात लगाकर किए गए कब्जे का बदला लेना राणा हम्मीर सिंह के जीवन का लक्ष्य बन गया। १३२६ में, २३ साल की उम्र में, उन्होंने अलाउद्दीन की विशाल सेना को धूल चटाते हुए चित्तौड़ को मुक्त कराया। यह विजय न केवल मेवाड़ की स्वतंत्रता की नींव रखी, बल्कि पूरे भारत में दिल्ली सल्तनत के विरुद्ध विद्रोह की ज्वाला जगा दी।
राणा हम्मीर सिंह (Rana Hammir Singh) महान योद्धा होने के साथ ही कुशल शासक भी थे। उन्होंने मेवाड़ की सेना को सुदृढ़ किया, राज्य की सीमाओं का विस्तार किया, और न्याय व प्रशासन पर बल देकर जनता का विश्वास अर्जित किया। कला और संस्कृति के संरक्षक के रूप में उन्होंने मेवाड़ को ज्ञान और सौंदर्य का केंद्र बनाया।
अपने ५० वर्ष के जीवन में, राणा हम्मीर सिंह ने मेवाड़ को अनंत गौरव दिया और शत्रुओं के लिए दुर्जय काल बने रहे। उनकी वीरता की गाथाएं आज भी राजस्थानी लोकगीतों में बजती हैं और मेवाड़ की पहाड़ियां उनकी वीरता की गवाह बनी खड़ी हैं।
राणा हम्मीर सिंह का जन्म और बचपन | Birth and childhood of Rana Hammir Singh
राणा हम्मीर सिंह का जन्म १३१४ में सिसोदा गांव में हुआ था। उनके पिता का नाम अरि सिंह और माता का नाम उर्मिला देवी था। हम्मीर सिंह बचपन से ही साहसी और वीर थे। उन्होंने बचपन से ही युद्ध कला का अभ्यास किया था।
हम्मीर सिंह के पिता, अरि सिंह, मेवाड़ के एक शक्तिशाली राजपूत सरदार थे। वे दिल्ली सल्तनत के सुल्तान अलाउद्दीन खिलजी के खिलाफ लड़ने वाले प्रमुख योद्धाओं में से एक थे। १३०३ में, अलाउद्दीन खिलजी ने चित्तौड़ के किले पर कब्जा कर लिया और अरि सिंह को मार डाला।
हम्मीर सिंह के पिता की मृत्यु के बाद, उनकी माता ने उन्हें पालने का जिम्मा संभाला। उर्मिला देवी एक साहसी और वीर महिला थीं। उन्होंने अपने पुत्र को एक महान योद्धा बनने के लिए प्रेरित किया।
हम्मीर सिंह ने अपने बचपन में युद्ध कला का गहन अध्ययन किया। वे एक कुशल योद्धा और रणनीतिकार बन गए। उन्होंने अपने पिता की मृत्यु का बदला लेने और मेवाड़ की स्वतंत्रता को पुनः प्राप्त करने का संकल्प लिया।
राणा हम्मीर सिंह का परिवार/राणा हम्मीर सिंह की पत्नियाँ और पुत्र | Family of Rana Hammir Singh/Wives and sons of Rana Hammir Singh
राणा हम्मीर सिंह सिसोदिया वंश के प्रथम शासक थे। उनके पिता का नाम आरिसिंह और माता का नाम चंपावती था। उनके दो भाई थे, करण सिंह और वीर सिंह।
राणा हम्मीर सिंह की दो पत्नियां थीं। उनकी पहली पत्नी का नाम रानी राणवाड़ी था, जिनसे उन्हें एक पुत्र, क्षेत्र सिंह, हुआ। उनकी दूसरी पत्नी का नाम रानी वीरावती था, जिनसे उन्हें कोई संतान नहीं हुई।
राणा हम्मीर सिंह के पुत्र क्षेत्र सिंह ने उनके बाद मेवाड़ की राजगद्दी संभाली।
राणा हम्मीर सिंह के परिवार के बारे में कुछ अन्य महत्वपूर्ण तथ्यों में निम्नलिखित शामिल हैं:
- राणा हम्मीर सिंह के पिता, आरिसिंह, मेवाड़ के पहले सिसोदिया शासक थे।
- राणा हम्मीर सिंह की मां, चंपावती, आबू परमार वंश की राजकुमारी थीं।
- राणा हम्मीर सिंह के भाई, करण सिंह, मेवाड़ के एक महान योद्धा थे।
- राणा हम्मीर सिंह की दूसरी पत्नी, वीरावती, दिल्ली सल्तनत के सुल्तान मुहम्मद तुगलक की पुत्री थीं।
राणा हम्मीर सिंह के परिवार ने मेवाड़ के इतिहास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उन्होंने मेवाड़ को एक शक्तिशाली राज्य बनाने में महत्वपूर्ण योगदान दिया।
राणा हम्मीर सिंह सिसोदिया राजवंश के प्रथम राणा | Rana Hammir Singh, the first Rana of the Sisodiya dynasty
राणा हम्मीर सिंह सिसोदिया राजवंश के प्रथम राणा कहे जाते हैं क्योंकि उन्होंने इस राजवंश की स्थापना की थी। इससे पहले, सिसोदिया राजपूतों को रावल कहा जाता था। राणा हम्मीर सिंह के पिता, अरि सिंह, मेवाड़ के एक शक्तिशाली रावल थे। १३०३ ईस्वी में, दिल्ली सल्तनत के सुल्तान अलाउद्दीन खिलजी ने चित्तौड़ पर आक्रमण किया और अरि सिंह को मार डाला।
१३२६ ईस्वी में, राणा हम्मीर सिंह ने चित्तौड़ पर चढ़ाई करके दिल्ली सल्तनत की सेना को पराजित किया। उन्होंने चित्तौड़ को मुक्त कराया और मेवाड़ के सिंहासन पर बैठे।
राणा हम्मीर सिंह ने सिसोदिया राजवंश की स्थापना की और मेवाड़ की स्वतंत्रता को पुनः प्राप्त किया। इसलिए, उन्हें सिसोदिया राजवंश के प्रथम राणा कहा जाता है।
राणा हम्मीर सिंह का इतिहास | History of Rana Hammir Singh
१३१४ ईस्वी में अरावली की गोद में बसे सिसोदा गांव ने एक वीर शिशु, राणा हम्मीर सिंह, को जन्म दिया। उनके पिता, अरि सिंह, मेवाड़ के एक साहसी सरदार थे, जिन्होंने दिल्ली सल्तनत के सुल्तान अलाउद्दीन खिलजी के विरुद्ध लोहा लिया था। परन्तु, भाग्य की क्रूरता से १३०३ में खिलजी के आक्रमण में अरि सिंह वीरगति को प्राप्त हो गए।
माता उर्मिला देवी के अश्रु बहे, पर हम्मीर की नन्हें आंखों में बदले की ज्वाला सुलगने लगी। उनकी लोरी अब युद्ध गीत बनी और रणनीति उनका खेल। तलवारबाजी और घुड़सवारी उनके रोज़मर्रा के साथी बन गए। उनके हृदय में एक ही संकल्प तप रहा था – पिता की शहादत का बदला और मेवाड़ को उसकी खोई गरिमा लौटाना।
युवावस्था में ही हम्मीर का नाम वीरता के पर्याय बन चुका था। १३२६ में उन्होंने दिल्ली सल्तनत के सुल्तान मुहम्मद तुगलक को धूल चटा दी। सिंगोली के युद्ध में उनकी कुशल रणनीति और अदम्य साहस के सामने तुगलक की विशाल सेना पराजित होकर भाग खड़ी हुई। चित्तौड़ का किला, जो मेवाड़ का हृदय था, एक बार फिर उनके नियंत्रण में आ गया।
राणा हम्मीर सिंह (Rana Hammir Singh) के शासन में मेवाड़ ने पुनरुत्थान का मार्ग प्रशस्त किया। उन्होंने राज्य की सीमाओं का विस्तार किया, व्यापार को बढ़ावा दिया और कला-संस्कृति को पनपने का वातावरण दिया। परन्तु उनकी सबसे बड़ी विरासत उनकी अजेय वीरता और स्वतंत्रता के प्रति अटूट प्रतिबद्धता है।
आज भी राणा हम्मीर सिंह “विषम घाटी-पंचानन” कहलाते हैं। विषम परिस्थितियों में भी वह शेर के समान दृढ़ और साहसी थे। उनका जीवन उन लाखों भारतीय वीरों के संघर्ष का प्रतीक है जिन्होंने विदेशी आक्रमणकारियों से अपनी मातृभूमि की रक्षा की। मेवाड़ की पहाड़ियां उनके साहस की कहानी गाती हैं और आने वाली पीढ़ियों को प्रेरणा देती हैं।
राणा हम्मीर सिंह और सिंगोली का युद्ध (१३२६ ईस्वी) | Rana Hammir Singh and Battle of Singoli
दिल्ली सल्तनत के सुल्तान मुहम्मद तुगलक की महत्वाकांक्षा राणा हम्मीर सिंह के लिए चुनौती बनकर सामने आई। 1326 में, तुगलक ने विशाल सेना के साथ मेवाड़ पर आक्रमण किया। लेकिन राणा हम्मीर सिंह ने रणनीति और साहस का बेजोड़ मिश्रण प्रदर्शित किया। उन्होंने सिंगोली के मैदान में तुगलक की सेना का सामना किया।
हम्मीर सिंह ने दुर्गम पहाड़ी इलाके का फायदा उठाया और गुरिल्ला युद्ध शैली का इस्तेमाल किया। उनकी फुर्तीली घुड़सवार सेना ने बार-बार तुगलक की सेना पर हमले किए, उन्हें अस्त-व्यस्त करते हुए। खुद राणा हम्मीर सिंह (Rana Hammir Singh) ने युद्ध के मैदान में अदम्य वीरता का प्रदर्शन किया। उन्होंने तुगलक के पुत्र हरिदास को द्वंद्व युद्ध में मार गिराया और अंततः सुल्तान को ही बंदी बना लिया।
युद्ध में हारने के बाद, मुहम्मद बिन तुगलक को राणा हम्मीर सिंह ने बंदी बना लिया। तुगलक को चित्तौड़गढ़ में छह महीने तक कैद में रखा गया। इस दौरान, राणा हम्मीर सिंह ने दिल्ली से भारी फिरौती वसूली।
मुहम्मद बिन तुगलक की सिंगोली युद्ध में हार और कैद दिल्ली सल्तनत के लिए एक बड़ी हार थी। इसने मेवाड़ के राजपूतों के आत्मविश्वास को बढ़ाया और दिल्ली सल्तनत के पतन की शुरुआत की।
सिंगोली का युद्ध एक निर्णायक जीत थी जिसने मेवाड़ की स्वतंत्रता को बचा लिया। इस युद्ध ने राणा हम्मीर सिंह की ख्याति को एक अजेय योद्धा के रूप में स्थापित किया और उन्हें “विषम घाटी पंचानन” की उपाधि दी गई।
राणा हम्मीर सिंह के प्रमुख कार्य | Rana Hammir Singh ke Pramukh karya
हालांकि राणा हम्मीर सिंह का नाम युद्ध वीरता से जुड़ा है, उनके शासनकाल में हुए निर्माण कार्य भी उतने ही प्रभावी और मेवाड़ के लिए महत्वपूर्ण थे। उन्होंने राज्य की सुरक्षा और समृद्धि को मजबूत करने के लिए अनेक स्थापत्य का हस्ताक्षेप किया:
- चित्तौड़गढ़ का दुर्ग: राणा हम्मीर सिंह ने दिल्ली सल्तनत के हमलों से बचाने के लिए चित्तौड़गढ़ के किले का विस्तार और मजबूतीकरण किया। उन्होंने नई दीवारें बनवाई, पहाड़ी खंडहरों को दुर्ग में शामिल किया और रणनीतिक रूप से प्रहरी चौकियां स्थापित कीं। यह कार्य चित्तौड़गढ़ को अजेय किले में बदलने में महत्वपूर्ण था।
- अन्नापूर्णा मंदिर: इस मंदिर का निर्माण बिड़वीजी नामक सैनिक के सम्मान में करवाया गया, जिन्होंने सिंगोली के युद्ध में वीरगति प्राप्त की थी। मंदिर की स्थापना राणा हम्मीर सिंह की बहादुरी और दयालुता का प्रतीक है।
- जल-व्यवस्था प्रणाली: मेवाड़ के पहाड़ी इलाकों के लिए जल संग्रह और वितरण व्यवस्था बेहद जरूरी थी। राणा हम्मीर सिंह ने तालाबों का निर्माण और नहरों का विस्तार करके जल-व्यवस्था को उन्नत किया। इससे कृषि का विकास हुआ और मेवाड़ की आर्थिक स्थिति मजबूत हुई।
- कला-संस्कृति का संरक्षण: राजनीतिक और भौतिक निर्माण के साथ-साथ राणा हम्मीर सिंह ने कला और संस्कृति को भी प्रोत्साहन दिया। उन्होंने मंदिरों और महलों के निर्माण में कुशल शिल्पियों को आमंत्रित किया, जिससे मेवाड़ की कलात्मक विरासत समृद्ध हुई।
इन निर्माण कार्यों ने राणा हम्मीर सिंह के प्रशासनिक कौशल और उनकी दूरदृष्टि को प्रदर्शित किया। उन्होंने सैनिक सुरक्षा, आर्थिक प्रगति और सांस्कृतिक विकास के लिए एक मजबूत आधार तैयार किया, जिससे मेवाड़ आने वाले सदियों तक समृद्ध और शक्तिशाली बना रहा।
राणा हम्मीर सिंह की मृत्यु | Rana Hammir Singh ki Mrutyu
राणा हम्मीर सिंह सिसोदिया वंश के प्रथम शासक थे। वे १३१४ से १३७८ तक मेवाड़ के शासक रहे। राणा हम्मीर सिंह को मेवाड़ का उद्धारक कहा जाता है। उन्होंने दिल्ली सल्तनत के सुल्तान मुहम्मद तुगलक की सेना को पराजित करके मेवाड़ की स्वतंत्रता की रक्षा की।
राणा हम्मीर सिंह की मृत्यु १३७८ में हुई। उनकी मृत्यु के कारणों के बारे में कोई निश्चित जानकारी नहीं है। कुछ इतिहासकारों का मानना है कि उनकी मृत्यु प्राकृतिक कारणों से हुई, जबकि अन्य का मानना है कि उन्हें जहर दे दिया गया था।
राणा हम्मीर सिंह की मृत्यु मेवाड़ के लिए एक बड़ी क्षति थी। उन्होंने मेवाड़ को एक शक्तिशाली राज्य बनाया और इसे भारतीय इतिहास के पन्नों में अमर कर दिया।
राणा हम्मीर सिंह की मृत्यु के बाद, उनके पुत्र क्षेत्र सिंह ने मेवाड़ की राजगद्दी संभाली।
निष्कर्ष | Conclusion
राणा हम्मीर सिंह (Rana Hammir Singh) एक महान योद्धा, कुशल शासक और मेवाड़ के स्वतंत्रता के लिए एक प्रबल समर्थक थे। उन्होंने मेवाड़ को एक शक्तिशाली राज्य बनाया और इसे भारतीय इतिहास के पन्नों में अमर कर दिया।
राणा हम्मीर सिंह की उपलब्धियों ने उन्हें मेवाड़ के इतिहास में एक महत्वपूर्ण स्थान दिया है। उन्हें “विषम घाटी पंचानन” की उपाधि दी गई, जिसका अर्थ है “विषम घाटियों के राजा”। यह उपाधि उनकी वीरता और साहस को दर्शाती है।
राणा हम्मीर सिंह के बारे में कुछ महत्वपूर्ण बातें जो याद रखना चाहिए:
- वह सिसोदिया वंश के प्रथम शासक थे।
- उन्होंने चित्तौड़गढ़ के किले का पुनर्निर्माण किया और इसे एक मजबूत किले में बदल दिया।
- उन्होंने दिल्ली सल्तनत के सुल्तान मुहम्मद तुगलक की सेना को पराजित करके मेवाड़ की स्वतंत्रता की रक्षा की।
- उन्होंने मेवाड़ की अर्थव्यवस्था और संस्कृति को भी बढ़ावा दिया।
राणा हम्मीर सिंह (Rana Hammir Singh) का जीवन और कार्य हमें एक प्रेरणा देते हैं। उन्होंने हमें सिखाया कि कठिन परिस्थितियों में भी साहस और दृढ़ संकल्प से जीत हासिल की जा सकती है।