उत्तर भारत के इतिहास में तंवर वंश का नाम शक्तिशाली राजवंशों में शुमार होता है| आइये जानते है तंवर/तोमर वंश का इतिहास, तंवर/तोमर वंश की कुलदेवी, तंवर/तोमर राजपूत गोत्र और कई रोमांचकारी जानकारी।
तंवर वंश का परिचय | तोमर वंश का परिचय | तंवर राजपूत का परिचय | Tanwar vansh ka Parichay | Tomar Rajput Introduction
उत्तर-पश्चिम भारत के इतिहास में तंवर या तोमर वंश का नाम प्रमुखता से लिया जाता है। माना जाता है कि यह राजपूत वंश चंद्रवंश से निकला है, जिसकी उत्पत्ति महाभारत के प्रसिद्ध राजा शांतनु से जुड़ी है। हालांकि, इतिहासकारों के बीच वंश की सटीक उत्पत्ति को लेकर मतभेद भी पाए जाते हैं।
राजा शांतनु के ही वंश में आगे पांडव राजकुमार अर्जुन ही तंवर या तोमर वंश के वंशज होने का दावा करते हैं। महाभारत के अनुसार, अर्जुन के पुत्र अभिमन्यु की पत्नी उत्तरा ने परीक्षित नामक पुत्र को जन्म दिया। परीक्षित के वंशज आगे चलकर ‘अर्जुनायन क्षत्रिय’ कहलाए। माना जाता है कि यही अर्जुनायन क्षत्रिय आगे चलकर तंवर या तोमर क्षत्रिय कहलाए।
कुछ का मानना है कि वे सूर्यवंश से संबंध रखते थे। ९ वीं से १२ वीं शताब्दी के दौरान तंवर वंश का शासनकाल उत्तर भारत के राजनीतिक परिदृश्य को प्रभावित करता रहा। उनके राज्य की सीमाएं दिल्ली, हरियाणा, पंजाब, उत्तर प्रदेश और राजस्थान के कुछ भागों तक फैली हुई थीं। आगामी लेख में, हम इस वंश के प्रमुख शासकों, उनकी उपलब्धियों और पतन के कारणों पर विस्तार से चर्चा करेंगे।
तंवर राजपूत का इतिहास | तंवर वंश का इतिहास | तोमर वंश का इतिहास | Tanwar Rajput History in Hindi | Tanwar vansh History
तंवर राजपूतों का इतिहास सदियों से रहस्य और वैभव की गाथा समेटे हुए है। उनकी उत्पत्ति को लेकर इतिहासकारों में मतभेद पाए जाते हैं। कुछ का मानना है कि वे चंद्रवंशी राजा शांतनु, महाभारत के प्रसिद्ध राजा के वंशज हैं। अन्य उन्हें सूर्यवंशी वंश से जोड़ते हैं।
९ वीं से १२ वीं शताब्दी के दौरान तंवर राजपूतों का शासन उत्तर भारत के राजनीतिक परिदृश्य को प्रभावित करता रहा। दिल्ली, हरियाणा, पंजाब, उत्तर प्रदेश और राजस्थान के कुछ हिस्सों पर उनका राज्य विस्तृत था। इस दौरान तंवर वंश ने कई शक्तिशाली शासकों को जन्म दिया, जिनमें अनंगपाल प्रथम (दिल्ली के तोमर वंश के संस्थापक), जयपाल, अनंगपाल द्वितीय और प्रसिद्ध पृथ्वीराज चौहान शामिल हैं। इन शासकों के अधीन कला, संस्कृति और वास्तुकला को भरपूर समृद्धि प्राप्त हुई। उन्होंने कई मंदिरों, किलों और स्मारकों का निर्माण करवाया। दिल्ली को एक महत्वपूर्ण राजनीतिक केंद्र के रूप में स्थापित करने में भी उनकी भूमिका रही।
हालांकि, ११९२ ईस्वी में पृथ्वीराज चौहान को मोहम्मद गौरी द्वारा पराजित किया गया, जिसने तंवर साम्राज्य के अंत का सूत्रपात किया। इसके बाद दिल्ली में तुर्कों का शासन स्थापित हो गया। लेकिन तंवर वंश की विरासत यहीं खत्म नहीं हुई। उनकी कई उपशाखाएँ, जैसे जाटू, कलिया, रघु और डूंगरिया, आज भी विभिन्न राज्यों में मौजूद हैं। तंवर वंश का इतिहास इतिहासकारों और पुरातत्वविदों के लिए निरंतर अध्ययन का विषय बना हुआ है।
तंवर वंश के राजा और उनकी उपलब्धियां | तोमर वंश के राजा और उनकी उपलब्धियां | Tanwar vansh ke Raja | Tomar vansh ke Raja
तंवर वंश के इतिहास में शक्तिशाली शासकों की एक लंबी श्रृंखला रही है, जिन्होंने कला, संस्कृति, वास्तुकला और युद्ध कौशल में अपने कार्यों के लिए ख्याति अर्जित की।
शासन काल और उपलब्धियां:
- अनंगपाल I (७३६-७८६ ईस्वी): दिल्ली में तोमर वंश की नींव रखने वाले अनंगपाल प्रथम ने शांति और स्थिरता का शासन स्थापित किया। उनके शासनकाल में कला, संस्कृति और शिक्षा को बढ़ावा मिला।
- जयपाल (८७१-९१४ ईस्वी): अनंगपाल प्रथम के पुत्र जयपाल के अधीन तंवर वंश का राज्य विस्तार हुआ। उन्होंने युद्ध कौशल का प्रदर्शन किया और अपने राज्य की सीमाओं का विस्तार किया।
- अनंगपाल II (९५४-१०११ ईस्वी): जयपाल के पुत्र अनंगपाल द्वितीय ने कला और संस्कृति को समृद्ध करने पर ध्यान केंद्रित किया। उनके शासनकाल में स्थापत्य कला को भी प्रोत्साहन मिला।
- पृथ्वीराज चौहान (११७९-११९२ ईस्वी): तंवर वंश के अंतिम शासक पृथ्वीराज चौहान वीरता और पराक्रम के प्रतीक के रूप में जाने जाते हैं। उन्होंने कई युद्धों में विजय प्राप्त की, जिनमें मुहम्मद गौरी के साथ हुए युद्ध भी शामिल हैं।
स्थायी विरासत:
तंवर राजाओं ने न केवल युद्ध क्षेत्र में बल्कि कलात्मक अभिव्यक्ति के माध्यम से भी अपनी पहचान बनाई। उन्होंने कई मंदिरों, किलों और स्मारकों का निर्माण करवाया। इनमें दिल्ली का लाल किला, कुतुब मीनार, और कुव्वत-उल-इस्लाम मस्जिद, साथ ही राजस्थान में अजमेर का किला और तारागढ़ का किला शामिल हैं। ये स्थापत्य चमत्कार आज भी उनके शासनकाल की भव्यता को प्रदर्शित करते हैं।
तंवर वंश की शाखाएं | तोमर वंश की शाखाएं | Branches of Tanwar/Tomar vansh
तंवर वंश, जिसे तोमर वंश भी कहा जाता है, कई शाखाओं में विभाजित था। यह विविधता तंवर राजपूतों की समृद्ध और जटिल विरासत का प्रतीक है।
प्रमुख शाखाएं:
- तंवर: यह मुख्य शाखा थी, जो दिल्ली और उसके आसपास के क्षेत्रों में शासन करती थी।
- चौहान: यह शाखा राजस्थान, मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश में फैली थी।
- कछवाहा: यह शाखा आगरा, मथुरा और ग्वालियर क्षेत्रों में शासन करती थी।
- डूंगरिया: यह शाखा राजस्थान में स्थित डूंगरपुर राज्य में शासन करती थी।
- बदगुर्जर: यह शाखा राजस्थान में स्थित बूंदी राज्य में शासन करती थी।
अन्य शाखाएं:
इनके अलावा, तंवर वंश की कई अन्य शाखाएं भी थीं, जिनमें जाटू, कलिया, रघु, भदौरिया, और डूंगरिया प्रमुख हैं।
तंवर वंश की शाखाओं की विविधता इस वंश की समृद्ध विरासत और विभिन्न क्षेत्रों में उनके प्रभाव का प्रतीक है। इन शाखाओं ने कला, संस्कृति और वास्तुकला के क्षेत्र में महत्वपूर्ण योगदान दिया।
तंवर वंश की शाखाएं इस वंश की शक्ति, प्रभाव और विविधता का प्रमाण हैं। इन शाखाओं ने भारत के इतिहास और संस्कृति को समृद्ध बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
तंवर राजपूत वंशावली | तोमर वंश की वंशावली | Tanwar/Tomar vansh ki vanshavali
तंवर राजपूत वंशावली, जिसे तोमर वंशावली भी कहा जाता है, वीरता और महिमा का एक लंबा सिलसिला है। यह वंशावली महाभारत के वीर योद्धा अर्जुन से जुड़ी हुई है।
वंशावली:
- अर्जुन: महाभारत के वीर योद्धा, जिनसे तंवर राजपूतों की उत्पत्ति मानी जाती है।
- अभिमन्यु: अर्जुन के पुत्र, जिन्होंने वीरता का अद्भुत प्रदर्शन किया।
- परीक्षित: अभिमन्यु और उत्तरा के पुत्र, जिनके शासनकाल में हस्तिनापुर (दिल्ली) को राजधानी बनाया गया।
- जनमेजय: परीक्षित के पुत्र, जिन्होंने नाग यज्ञ का आयोजन किया।
- अनंगपाल I: दिल्ली में तोमर वंश के संस्थापक, जिन्होंने ७३६-७८६ ईस्वी तक शासन किया।
- जयपाल: अनंगपाल I के पुत्र, जिन्होंने ८७१-९१४ ईस्वी तक शासन किया।
- अनंगपाल II: जयपाल के पुत्र, जिन्होंने ९५४-१०११ ईस्वी तक शासन किया।
- तेजपाल: अनंगपाल II का पुत्र और पृथ्वीराज चौहान का पिता।
- माधवपाल: तेजपाल का पुत्र और पृथ्वीराज चौहान का बड़ा भाई ११७०-११७९।
- गोविंदराज: तेजपाल का पुत्र और पृथ्वीराज चौहान का चाचा।
- पृथ्वीराज चौहान: तंवर वंश के अंतिम शासक, जिन्होंने ११७९-११९२ ईस्वी तक शासन किया।
तंवर राजपूत वंशावली केवल नामों की सूची नहीं है। यह वीरता, त्याग, और महिमा का प्रतीक है। यह वंशावली भारत के इतिहास और संस्कृति का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है।
तंवर राजपूत वंशावली वीरता और महिमा का एक सिलसिला है। यह वंशावली भारत के इतिहास और संस्कृति को समृद्ध बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है।
तंवर वंश की कुलदेवी | तोमर वंश की कुलदेवी | तंवर राजपूत की कुलदेवी | Tanwar vansh ki Kuldevi | Tomar vansh ki Kuldevi
तंवर/तोमर वंश की कुलदेवी चिलाय माता हैं, जिन्हें योगमाया, जोगेश्वरी, सरूण्ड माता, मनसादेवी आदि नामों से भी जाना जाता है।
कुलदेवी वंश की रक्षा और कल्याण के लिए पूजनीय होती हैं। तंवर वंश के राजाओं ने चिलाय माता को अपनी कुलदेवी मानकर उनका पूजन किया।
तंवर/तोमर वंश के राजाओं ने चिलाय माता के कई मंदिरों का निर्माण करवाया। इनमें से प्रमुख मंदिर दिल्ली में योगमाया मंदिर, ग्वालियर में जोगेश्वरी मंदिर, और राजस्थान में सरूण्ड माता मंदिर हैं।
तंवर वंश के राजाओं ने चिलाय माता की कृपा से कई युद्ध जीते और अपने राज्य का विस्तार किया।
तंवर/तोमर वंश की कुलदेवी चिलाय माता शक्ति और भक्ति का प्रतीक हैं। तंवर वंश के राजाओं ने उनकी पूजा और आराधना करके अपने राज्य और प्रजा की रक्षा की।
तंवर वंश का गोत्र | तोमर वंश का गोत्र | तंवर राजपूत गोत्र | Tanwar/Tomar vansh Gotra
तंवर वंश, जिसे तोमर वंश भी कहा जाता है, एक राजपूत वंश है जो हस्तिनापुर (दिल्ली) से उत्पन्न हुआ माना जाता है। तोमर वंश के गोत्र को लेकर विभिन्न मत हैं।
तोमर वंश के प्रमुख गोत्र:
- कश्यप: यह गोत्र तंवर वंश के अधिकांश राजाओं का गोत्र माना जाता है।
- अत्रि: कुछ तंवर राजपूतों का मानना है कि वे अत्रि गोत्र से संबंधित हैं।
- भार्गव: कुछ तंवर राजपूतों का मानना है कि वे भार्गव गोत्र से संबंधित हैं।
तंवर वंश की वंशावली में विभिन्न गोत्रों का उल्लेख मिलता है। यह संभावना है कि वंश के विभिन्न शाखाओं ने अलग-अलग गोत्रों को अपनाया।
तंवर वंश का गोत्र निश्चित रूप से कहना मुश्किल है। वंश की वंशावली में विभिन्न गोत्रों का उल्लेख मिलता है।
तंवर राजवंश के प्रांत | तोमर वंश के प्रांत | Tanwar/Tomar Vansh ke Prant
क्र. | प्रांत के नाम | प्रांत का प्रकार |
---|---|---|
१ | बेजा | रियासत |
२ | बोरज तँवरान | जागीर |
३ | छिंछास | ठिकाना |
४ | डालनियाँ | ठिकाना |
५ | दाउदसर | ठिकाना |
६ | घिल्ल | ठिकाना |
७ | गोपालपुरा | जागीर |
८ | काशीपुरा | ठिकाना |
९ | कायस्थपाड़ा | ठिकाना |
१० | केलावा कलां | ठिकाना |
११ | खातीपुरा | ठिकाना |
१२ | खेरली | जागीर |
१३ | खेतासर | ठिकाना |
१४ | कोटी | जैलदारी |
१५ | लखासर | ठिकाना |
१६ | मंढोली | जागीर |
१७ | मुकुंदगढ़ | ठिकाना |
१८ | नरवल | ठिकाना |
१९ | नूरपुर | रियासत |
२० | पडला | ठिकाना |
२१ | पाटन | ठिकाना |
२२ | रामदेवरा | ठिकाना |
२३ | रेह | जागीर |
२४ | सवंतसर | ठिकाना |
२५ | श्रीनाल | जागीर |
२६ | उचाँएडा | ठिकाना |
२७ | वीरामदेवरा | ठिकाना |
निष्कर्ष | Conclusion
तंवर वंश, जिसे तोमर वंश के नाम से भी जाना जाता है, भारतीय इतिहास में वीरता और समृद्धि का पर्याय बन गया है। सदियों तक शासन करने वाले इस वंश ने कला, संस्कृति, वास्तुकला और युद्ध कौशल में अद्वितीय योगदान दिया। अनंगपाल प्रथम से लेकर पृथ्वीराज चौहान तक, इस वंश के शासकों ने अपने पराक्रम और कुशल नेतृत्व का लोहा मनवाया। उनकी स्थापत्य कला की धरोहर आज भी दिल्ली और राजस्थान जैसे स्थानों में देखी जा सकती है। यद्यपि उनका साम्राज्य समाप्त हो गया, उनकी शाखाएं और कुलदेवी चिलाय माता की परंपराएं आज भी मौजूद हैं, जो उनके गौरवशाली इतिहास की साक्षी हैं। तंवर वंश की कहानी हमें शौर्य, सांस्कृतिक समृद्धि और राष्ट्रभक्ति का एक प्रेरक संदेश देती है।