तारागढ़ का किला: इतिहास और वीरता का संगम | Taragarh Fort

अजमेर की अरावली पर्वतमालाओं पर खड़ा तारागढ़ का किला (Taragarh Fort), राजस्थान के गौरवशाली इतिहास का एक प्रतीक है। आइए, इस भव्य दुर्ग की कहानियां और इतिहास के बारे में विस्तार से जानें।

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तारागढ़ दुर्ग का परिचय | तारागढ़ किले का परिचय | तारागढ़ दुर्ग जयपुर | Introduction of Taragarh Fort

राजस्थान के शानदार इतिहास को समेटे हुए अरावली पर्वतमाला की खड़ी चोटियों पर विराजमान है तारागढ़ दुर्ग। यह दुर्ग न सिर्फ अजमेर शहर की रक्षा करता रहा है बल्कि अपने वैभवशाली अतीत और मनमोहक वास्तुकला के कारण पर्यटकों को भी अपनी ओर खींचता है।

१४२६ फीट की ऊँचाई पर स्थित तारागढ़ दुर्ग का निर्माण चौदहवीं शताब्दी (१३५४ ईस्वी) में राव देव हाड़ा द्वारा करवाया गया था। जिसे “अजयमेरु दुर्ग” के नाम से भी जाना जाता है। यह दुर्ग अपनी मजबूती के लिए प्रसिद्ध रहा है और इसे “राजस्थान का जिब्राल्टर” भी कहा जाता है।

तारागढ़ दुर्ग तक पहुंचने के लिए रोपवे या पैदल रास्ते का सहारा लेना पड़ता है। ऊपर पहुंचने पर आप अजमेर शहर का मनोरम दृश्य निहार सकते हैं। अगले भागों में हम इस ऐतिहासिक दुर्ग के विभिन्न पहलुओं पर चर्चा करेंगे, जिसमें इसका निर्माण इतिहास, स्थापत्य कला की खूबियां, प्रमुख दर्शनीय स्थल और रोचक किस्से शामिल होंगे।

तारागढ़ किले का स्थान | तारागढ़ किला कहा स्थित है | तारागढ़ किले की भौगोलिक स्थिति | Location of Taragarh Fort | Taragarh ka kila kaha hai

अरावली पर्वतमाला की खड़ी चोटी पर, राजस्थान के ऐतिहासिक शहर अजमेर को निहारते हुए स्थित है तारागढ़ का भव्य किला। यह किला शहर के केंद्र से पश्चिम दिशा में लगभग तीन किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। किले तक पहुंचने के लिए या तो आप घुमावदार पहाड़ी सड़क से होते हुए जा सकते हैं अथवा रोपवे का सहारा ले सकते हैं।

तारागढ़ दुर्ग की रणनीतिक स्थिति को समझने के लिए, यह जानना महत्वपूर्ण है कि यह अजमेर किले के ठीक सामने स्थित है। दोनों किलों के बीच एक खाईनुमा घाटी है, जो सदियों से अजमेर की सुरक्षा व्यवस्था का एक अभिन्न अंग रही है।

अगले भाग में, हम तारागढ़ किले के इतिहास और उसके स्थापत्य कला शैली पर चर्चा करेंगे।

तारागढ़ किले की वास्तुकला | Architecture of Taragarh Fort

तारागढ़ किला अपनी भव्य और मजबूत वास्तुकला का एक शानदार उदाहरण है। रक्षा के उद्देश्य से निर्मित इस दुर्ग में सैन्य शैली की स्पष्ट झलक मिलती है। ऊँची और मोटी दीवारें किले को सुरक्षित करती हैं, जिनमें युद्ध के समय तोपें रखने के लिए बने कंगूरे और छेद मौजूद हैं।

किले के मुख्य द्वार को “बड़ी पोल” के नाम से जाना जाता है, जो लोहे की मजबूत जंजीरों से सुसज्जित है। किले के अंदर कई महल, मंदिर और अन्य संरचनाएं देखने को मिलती हैं। इनमें से कुछ प्रमुख हैं – बादल महल, जो अपनी खूबसूरत खिड़कियों और मेहराबों के लिए प्रसिद्ध है, चंद्र महल, जिसकी दीवारों पर बेहतरीन चित्रकारी की गई है, और गुप्त गंगा महल, जिसमें छिपी हुई जलस्रोत की व्यवस्था है।

इन भवनों में राजपूत शैली की वास्तुकला की झलक दिखती है। जटिल नक्काशी, सुंदर मेहराब और बालकनियां किले की शोभा बढ़ाते हैं। कुल मिलाकर, तारागढ़ किले की वास्तुकला सैन्य शक्ति और कलात्मक प्रतिभा का एक अद्भुत मिश्रण है।

तारागढ़ दुर्ग का निर्माण | तारागढ़ के किले का निर्माण | तारागढ़ का क़िला किसने बनाया | Construction of Taragarh Fort

तारागढ़ दुर्ग का निर्माण इतिहास कई शताब्दियों को समेटे हुए है। माना जाता है कि इस दुर्ग की नींव ८ वीं शताब्दी में अजयराज चौहान द्वारा रखी गई थी। उस समय इसे “अजयमेरु दुर्ग” के नाम से जाना जाता था। हालांकि, १४ वीं शताब्दी में मेवाड़ के शासक राव देव हाड़ा ने इस दुर्ग का जीर्णोद्धार करवाया और इसे नया रूप दिया। उन्होंने ही किले का नाम बदलकर “तारागढ़” कर दिया, जिसका अर्थ है “सितारों का किला”।

दुर्ग के निर्माण में रणनीतिक महत्व को सर्वोच्च प्राथमिकता दी गई थी। अरावली पर्वतमाला की ऊंची चोटी पर स्थित होना ही इसकी मजबूती का प्रमाण है। इसके अतिरिक्त, किले की दीवारों को इतना मजबूत बनाया गया कि सदियों से यह शत्रुओं के लिए अभेद्य बना रहा।

हालांकि, इतिहास गवाह है कि तारागढ़ दुर्ग पर कभी भी पूर्ण रूप से कब्जा नहीं किया जा सका। मुगल शासन के दौरान भी यह स्वतंत्र राजपूत राजाओं के अधीन रहा। बाद में १८ वीं शताब्दी में मराठों के अधीन भी रहा। अंततः १९ वीं शताब्दी में अंग्रेजों के आने के बाद यह ब्रिटिश राज के अधीन हुआ।

आगे के भागों में, हम तारागढ़ किले की वास्तुकला शैली और इसके प्रमुख दर्शनीय स्थलों के बारे में विस्तार से चर्चा करेंगे।

तारागढ़ दुर्ग का इतिहास | तारागढ़ किले का इतिहास | Taragarh fort history in Hindi | Taragarh fort Rajasthan History

राजस्थान के वीरतापूर्ण इतिहास में तारागढ़ दुर्ग का अपना एक विशिष्ट स्थान है। अरावली की ऊंची चोटियों को गले लगाता यह दुर्ग न केवल अजमेर शहर का रक्षक रहा है, बल्कि सदियों से चले सत्ता के संघर्षों का मूक गवाह भी बना हुआ है। आइए, तारागढ़ दुर्ग के इतिहास के विभिन्न पहलुओं पर एक नजर डालते हैं:

प्रारंभिक निर्माण (८ वीं शताब्दी):

इतिहासकारों का मानना है कि तारागढ़ दुर्ग की नींव ८वीं शताब्दी में डाली गई थी। उस समय के शासक अजयराज चौहान ने इस दुर्ग का निर्माण करवाया था। इस कालखंड में इसे “अजयमेरु दुर्ग” के नाम से जाना जाता था। रणनीतिक दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण स्थान पर निर्मित यह दुर्ग उस समय अजमेर की सुरक्षा व्यवस्था का एक मजबूत स्तंभ था।

चौदहवीं शताब्दी का जीर्णोद्धार और नाम परिवर्तन:

१४ वीं शताब्दी में मेवाड़ के शक्तिशाली शासक राव देव हाड़ा ने इस दुर्ग का जीर्णोद्धार करवाया और इसे एक नया स्वरूप प्रदान किया। उन्होंने इस दुर्ग की मरम्मत करवाई, नई संरचनाओं का निर्माण करवाया और सुरक्षा व्यवस्था को और भी मजबूत बनाया। उन्हीं के शासनकाल में इस दुर्ग का नाम बदलकर “तारागढ़” कर दिया गया। “तारा” शब्द का अर्थ होता है “सितारा” और “गढ़” का अर्थ होता है “किला”। इस प्रकार, तारागढ़ का अर्थ हुआ “सितारों का किला”।

अजेय दुर्ग की ख्याति:

अपनी ऊंचाई और मजबूत दीवारों के कारण तारागढ़ दुर्ग सदियों से शत्रुओं के लिए अभेद्य बना रहा। इतिहास गवाह है कि इस दुर्ग पर कभी भी पूर्ण रूप से विजय प्राप्त नहीं की जा सकी। मुगल शासन के दौरान भी यह स्वतंत्र राजपूत राजाओं के अधीन रहा। बाद में १८ वीं शताब्दी में मराठों के अधीन भी रहा।

अंग्रेजों का आगमन और तारागढ़ का अधीन होना:

१९ वीं शताब्दी के प्रारंभ में अंग्रेजों की भारत में सत्ता बढ़ने के साथ ही तारागढ़ दुर्ग का स्वतंत्र अस्तित्व भी समाप्त हो गया। १८१८ ईस्वी में हुए अंग्रेज-मेवाड़ युद्ध के बाद तारागढ़ दुर्ग अंग्रेजों के अधीन हो गया। इसके पश्चात् ब्रिटिश राज के अंत तक यह दुर्ग उनके नियंत्रण में ही रहा।

स्वतंत्रता के बाद का तारागढ़ दुर्ग:

भारत के स्वतंत्र होने के बाद तारागढ़ दुर्ग भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग के अधीन हो गया। आज यह दुर्ग एक महत्वपूर्ण पर्यटन स्थल के रूप में विख्यात है। इसकी भव्य वास्तुकला, ऐतिहासिक महत्व और अजमेर शहर का मनमोहक दृश्य देखने के लिए प्रतिवर्ष हजारों पर्यटक यहां आते हैं।

तारागढ़ दुर्ग से जुड़े किस्से-कहानियां | तारागढ़ दुर्ग की कहानिया | Stories of Taragarh Fort

तारागढ़ दुर्ग के गौरवशाली इतिहास के साथ कई रोचक किस्से-कहानियां भी जुड़ी हुई हैं, जो पीढ़ी दर पीढ़ी लोगों के बीच सुनाई जाती हैं। आइए, इनमें से कुछ लोकप्रिय कहानियों पर एक नजर डालते हैं:

  • मुगल बादशाह अकबर की असफल कोशिश: एक प्रचलित किस्से के अनुसार, मुगल बादशाह अकबर तारागढ़ दुर्ग को जीतने में असफल रहा था। कहा जाता है कि उसने किले के नीचे ही अपना शिविर लगा दिया और धोखे से किले पर कब्जा करने की योजना बनाई। उसने किले के रक्षक सैनिकों को नशीला पदार्थ पिलाने का प्रयास किया, लेकिन उनकी चाल असफल हो गई और उसे खाली हाथ वापस लौटना पड़ा।
  • गुप्त सुरंग का रहस्य: तारागढ़ दुर्ग के बारे में एक और लोकप्रिय किस्सा गुप्त सुरंग का है। कहा जाता है कि दुर्ग के नीचे एक गुप्त सुरंग है, जो अजमेर शहर तक जाती है। इस सुरंग का इस्तेमाल युद्ध के समय सैनिकों और रसद सामग्री को किले तक पहुंचाने के लिए किया जाता था। हालांकि, इस सुरंग के अस्तित्व के पुरातात्विक प्रमाण अभी तक नहीं मिले हैं, फिर भी यह किस्सा लोगों की कल्पना को जागृत करता है।
  • दुर्ग की रानी का बलिदान: एक अन्य कहानी ताराग दुर्ग की रानी से जुड़ी है। किंवदंती के अनुसार, दुश्मन सेना किले पर कब्जा करने वाली थी। रानी ने अपने सम्मान की रक्षा के लिए किले की ऊंची दीवार से कूदकर जान दे दी। इस बलिदान से दुश्मन सेना का मनोबल टूट गया और उन्हें पीछे हटना पड़ा।

ये कहानियां चाहे ऐतिहासिक तथ्यों पर आधारित हों या न हों, लेकिन ये तारागढ़ दुर्ग के इतिहास को और भी रोचक बनाती हैं। ये कहानियां हमें उस समय के साहस, वीरता और बलिदान की भावना से रूबरू कराती हैं।

तारागढ़ दुर्ग के प्रमुख दर्शनीय स्थल | तारागढ़ किले के पर्यटन स्थल |  Major tourist places of Taragarh Fort

तारागढ़ दुर्ग अपनी ऐतिहासिक धरोहरों के साथ-साथ पर्यटकों को मंत्रमुग्ध करने वाली कई मनमोहक संरचनाओं का भी संग्रह है। आइए, इनमें से कुछ प्रमुख दर्शनीय स्थलों पर विस्तार से चर्चा करें:

  • बड़ी पोल: यह तारागढ़ दुर्ग का मुख्य द्वार है। लोहे की मजबूत जंजीरों से सुसज्जित यह द्वार किले की अभेद्यता का प्रतीक है। द्वार से गुजरते समय आप सदियों पुराने इतिहास को महसूस कर सकते हैं।
  • बादल महल: यह महल अपनी खूबसूरत खिड़कियों और आकर्षक मेहराबों के लिए प्रसिद्ध है। कहा जाता है कि मानसून के दौरान ये खिड़कियां बादलों को छूती हैं, जिसके कारण ही इसका नाम बादल महल पड़ा। महल के अंदर की शानदार नक्काशी और कलाकृतियां पर्यटकों को अपनी ओर खींचती हैं।
  • चांद महल: अपने नाम के अनुरूप चांद महल की खूबसूरती रात के समय और भी निखर उठती है। इसकी दीवारों पर बेहतरीन चित्रकारी की गई है, जो उस समय के कला कौशल का जीता जागता उदाहरण है। महल से अजमेर शहर का मनोरम दृश्य भी दिखाई देता है।
  • गुप्त गंगा महल: यह महल किले के रहस्य से जुड़ा हुआ है। माना जाता है कि इस महल में एक छिपी हुई जलस्रोत की व्यवस्था है, जो वर्षा ऋतु में जल से भर जाती थी। यह जलस्रोत युद्ध के समय किलेवासियों के लिए पेयजल की आपूर्ति करता था।
  • रणजीत सिंह बाड़ा: यह एक खूबसूरत बगीचा है, जहां से अरावली पर्वतमाला का मनोरम दृश्य दिखाई देता है। थकान मिटाने और प्राकृतिक सौंदर्य का आनंद लेने के लिए यह स्थान एकदम उपयुक्त है।

इनके अलावा भी तारागढ़ दुर्ग में कई अन्य मंदिर, दरवाजे और कोठार हैं, जो इतिहास प्रेमियों और पुरातत्व में रुचि रखने वालों के लिए आकर्षण का केंद्र हैं।

तारागढ़ किला घूमने का सही समय | Right time to visit Taragarh Fort

तारागढ़ किले की सैर पर जाने का सबसे अच्छा समय अक्टूबर से मार्च के महीनों के बीच माना जाता है। इस दौरान मौसम सुहाना रहता है, न ज्यादा गर्मी होती है और न ही ज्यादा सर्दी।

अक्टूबर से मार्च: इन महीनों में हवा में खुश कमीज घुली होती है, जिससे घूमने में आराम मिलता है। मौसम साफ रहने के कारण आप किले से अजमेर शहर का मनोरम दृश्य भी आसानी से देख सकते हैं।

अप्रैल से सितंबर: गर्मियों में (अप्रैल से सितंबर) तेज धूप और गर्मी पड़ती है। कड़ी धूप में घूमना मुश्किल हो सकता है।

जुलाई-अगस्त: मानसून का मौसम (जुलाई-अगस्त) घूमने के लिए उपयुक्त नहीं माना जाता है। बारिश के कारण फिसलन हो सकती है और रास्ते बंद भी हो सकते हैं।

अनुशंसित समय:

अगर आप तारागढ़ किले की खूबसूरती का पूरा आनंद लेना चाहते हैं, तो सुबह या शाम के समय घूमने जाना उचित रहेगा। सुबह सूर्योदय का नजारा किले से देखना एक अविस्मरणीय अनुभव हो सकता है। वहीं शाम के समय किले की रोशनी देखने का अपना ही अलग मजा है।

अतिरिक्त सुझाव:

गर्मियों में भी अगर आप तारागढ़ घूमने का प्लान बना रहे हैं तो सुबह जल्दी निकल लें और साथ में पानी की बोतल, छाता और टोपी जरूर रखें।

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अगर आप तारागढ़ किले की भव्यता को निहारने और इतिहास के झरोखों में झांकने की सोच रहे हैं, तो आपके लिए जरूरी जानकारी यह है कि यह किला सुबह ९ बजे से शाम ६ बजे तक पर्यटकों के लिए खुला रहता है।

हफ्ते के सभी दिन (सोमवार से रविवार) आप किले की सैर कर सकते हैं। किले में प्रवेश के लिए आपको प्रवेश शुल्क का भुगतान करना होता है।

प्रवेश शुल्क:

  • भारतीय पर्यटक: ₹ ५०/- प्रति व्यक्ति
  • विदेशी पर्यटक: ₹ १००/- प्रति व्यक्ति
  • 15 साल से कम उम्र के बच्चे: निःशुल्क प्रवेश

अतिरिक्त शुल्क:

  • कैमरा ले जाने के लिए ₹ ५०/- का अतिरिक्त शुल्क लग सकता है।
  • वीडियोग्राफी की अनुमति के लिए अलग से शुल्क देना पड़ सकता है।

सुझाव:

किले में प्रवेश के लिए टिकट ऑनलाइन बुक करा सकते हैं। इससे आपको लंबी कतारों से बचने में मदद मिलेगी।

किले तक पहुंचने के लिए आप चाहें तो पैदल रास्ते का सहारा ले सकते हैं या फिर रोपवे का उपयोग कर सकते हैं। रोपवे का किराया अलग से देना होता है।

तारागढ़ किले तक कैसे पहुंचे | How to Reach Taragarh Fort

तारागढ़ किले की मनमोहक यात्रा के लिए पहुंचना भी अपने आप में एक रोमांचकारी अनुभव है। आइए देखें, आप किले तक सड़क मार्ग, रेल मार्ग और हवाई मार्ग से कैसे पहुंच सकते हैं:

सड़क मार्ग:

अगर आप सड़क मार्ग से तारागढ़ किले तक जाना चाहते हैं, तो यह अजमेर शहर से मात्र 3 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। आप किसी निजी वाहन, टैक्सी या ऑटोरिक्शा का उपयोग करके आसानी से किले तक पहुंच सकते हैं।

रेल मार्ग:

रेल मार्ग से यात्रा करने वालों के लिए निकटतम रेलवे स्टेशन अजमेर जंक्शन है। यह स्टेशन देश के प्रमुख शहरों से अच्छी रेल संपर्क से जुड़ा हुआ है। अजमेर जंक्शन से किले तक पहुँचने के लिए आप टैक्सी या रिक्शा का सहारा ले सकते हैं।

हवाई मार्ग:

यदि आप हवाई जहाज से यात्रा करना पसंद करते हैं, तो निकटतम हवाई अड्डा जयपुर अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डा (जयपुर एयरपोर्ट) है। यह हवाई अड्डा अजमेर से लगभग १२५ किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। हवाई अड्डे से आप टैक्सी या कैब किराए पर लेकर अजमेर पहुंच सकते हैं और वहां से आगे किले तक जाने के लिए स्थानीय परिवहन का उपयोग कर सकते हैं।

रोपवे की सवारी:

अगर आप रोमांच पसंद करते हैं, तो अजमेर से तारागढ़ किले तक जाने के लिए रोपवे की सवारी का विकल्प चुन सकते हैं। रोपवे की सवारी आपको अरावली पहाड़ियों की खूबसूरती का नजारा कराएगी और किले तक पहुंचने का एक यादगार अनुभव प्रदान करेगी।

तारागढ़ किले में पर्यटकों के लिए मार्गदर्शन | पर्यटकों के लिए सुझाव | Tourist Guide for Taragarh fort | Tourist Instruction for Taragarh fort

तारागढ़ किले की यात्रा को यादगार बनाने के लिए कुछ सुझाव आपके लिए:

  • आरामदायक कपड़े और जूते पहनें: किले में काफी घूमना पड़ता है, इसलिए आरामदायक जूते और कपड़े पहनकर जाएं।
  • पानी की बोतल साथ रखें: खासकर गर्मियों में घूमते समय पानी की बोतल साथ रखना न भूलें।
  • टोपी और धूप का चश्मा: गर्मी से बचने के लिए टोपी और धूप का चश्मा साथ रखें।
  • कैमरा: किले की खूबसूरती को कैमरे में कैद करना न भूलें। (कैमरा शुल्क लागू हो सकता है)
  • स्थानीय गाइड: यदि आप इतिहास के बारे में अधिक जानना चाहते हैं तो स्थानीय गाइड की मदद ले सकते हैं।
  • सूर्यास्त का नजारा: शाम के समय सूर्यास्त का नजारा अविस्मरणीय होता है।
  • सामान की संभाल: अपने सामान का ध्यान रखें और भीड़ भाड़ वाली जगहों से बचें।
  • प्लास्टिक का प्रयोग कम करें: प्लास्टिक का कम से कम उपयोग करें और कचरे को इधर-उधर न फेंके।

तारागढ़ किले के नियमों का पालन करें और किले की साफ-सफाई बनाए रखने में सहयोग करें।

निष्कर्ष | Conclusion

तारागढ़ दुर्ग राजस्थान के गौरवशाली इतिहास का एक अभिन्न अंग है। सदियों से यह दुर्ग अजेय रहा है और अजमेर की रक्षा करता रहा है। इसकी भव्य वास्तुकला, रोचक किस्से-कहानियां और अरावली पर्वतमाला की मनमोहक छटा पर्यटकों को अपनी ओर खींचती है।

तारागढ़ किला इतिहास प्रेमियों, प्रकृति प्रेमियों और फोटोग्राफरों के लिए एकदम उपयुक्त पर्यटन स्थल है। यहां आकर आप इतिहास के झरोखों में झांक सकते हैं, प्राकृतिक सौंदर्य का आनंद ले सकते हैं और यादगार तस्वीरें कैद कर सकते हैं।

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