९ वा स्थान तो आप को जरूर ही हैरान कर देगा।
१२२ फीट ऊँचा, ९ मंजिला, शिल्पकला का अद्भुत नमूना, देवी-देवताओं की मूर्तियों से युक्त, विजय स्तंभ राणा कुंभा का मालवा के सुल्तान महमूद खिलजी पर विजय का स्मारक है।
चित्तौड़गढ़ दुर्ग में स्थित पद्मिनी महल, रानी पद्मिनी की अनोखी सुंदरता के लिए प्रसिद्ध है। यह महल, राजपूत स्थापत्य कला का अद्भुत नमूना है।
चित्तौड़गढ़ किले में स्थित रावत बाघसिंह का स्मारक, वीरता और बलिदान की अमर कहानी कहता है। अकबर के साथ युद्ध में वीरगति प्राप्त करने वाले रावत बाघसिंह की याद दिलाता है।
मूर्ति शिल्प की दृष्टि से चित्तौड़ दुर्ग का सबसे सुन्दर मंदिर श्रृंगार चौरी राणा कुम्भा के भंडारी (कोषाध्यक्ष) वेलाक ने बनवाया था। वास्तव में यह शान्ति नाथ का ये जैन मंदिर है।
रक्त से लथपथ रणक्षेत्र में वीरता की प्रतिमा, चित्तौड़गढ़ की रक्षक देवी काली माता का मंदिर, शक्ति और भक्ति का अद्भुत संगम है।
चित्तौड़गढ़ किले में स्थित जयमल व कल्ला की छतरियां, वीरता और बलिदान की अमर कहानी को दर्शाती हैं। इन्होने अकबर की विशाल सेना के विरुद्ध वीरगति प्राप्त की थी।
महाराणा प्रताप के वीर सेनापति भामाशाह द्वारा निर्मित, यह हवेली 16वीं शताब्दी की राजपूत वास्तुकला का अद्भुत नमूना है।
वीरता की कहानी कहता है चित्तौड़गढ़ का पत्ता का स्मारक, जहाँ एक वीर राजपूत ने अपनी जान देकर किले की रक्षा की थी।
भगवान शिव को समर्पित, १२ वीं शताब्दी का कुकड़ेश्वर मंदिर, चित्तौड़गढ़ की धार्मिक गरिमा का प्रतीक है। इस जगहका संबंध महाभारत कल से भी जोड़ा गया है।
१२२ फिट ऊँची, ९ मंजिला, १५७ सीढ़ीयोसे जुडी, जैन धर्म के चित्रों से सुसज्जित यह ईमारत भगेरवाल जैन व्यापारी जीजाजी कथोड़ ने तेरहवीं शताब्दी में बनवाई थी।
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